मीठा खाँड़ मधुकरी -कबीर
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मीठा खाँड़ मधूकरी, भाँति भाँति कौ नाज। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! भिक्षा से प्राप्त भोजन में भाँति-भाँति का अन्न रहता है। वह खाँड़ के समान मीठा होता है। उसमें किसी एक व्यक्ति का अधिकार नहीं रहता। भिक्षान्न से सन्तुष्ट ऐसा साधु बिना राज्य के ही राजा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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