मेरि मिटी मुकता भया -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
| ||||||||||||||||||||
|
मेरि मिटी मुकता भया, पाया ब्रह्म बिसास। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! अहं और मेरापन का भाव समाप्त हो गया। अब मैं इस सीमा से विरत हो गया और मेरी ब्रह्म में पूर्ण आस्था हो गयी। हे प्रभु अब मेरे लिए कोई दूसरा नहीं है, केवल तुम्हारा भरोसा है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख