रीता गांगुली की संगीत शिक्षा

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रीता गांगुली की संगीत शिक्षा
पूरा नाम रीता गांगुली
जन्म 1940
जन्म भूमि लखनऊ
अभिभावक पिता: के. एल. गांगुली और माता: मीना
पति/पत्नी केशव कोठारी
संतान एक पुत्र और एक पुत्री
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार (हिंदी सिनेमा)
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री (2003)
नागरिकता भारतीय
बाहरी कड़ियाँ आजकल रीता गांगुली कुछ ऐसे ग़रीब बच्चों को संगीत सिखा रही हैं, जिनके पास किसी उस्ताद के पास जाकर सीखने के साधन नहीं हैं। उनके द्वारा बच्चों को सीख कर ख़ुशी मिल रही है और उन्हें बच्चों को सिखा कर मज़ा आ रहा है।
अद्यतन‎

रीता गांगुली का सुर से रिश्ता तो तभी जुड़ गया था, जब बचपन में उनकी माँ लोरी सुनाया करती थीं। उनके यहाँ बचपन में रसूलन बाई आती थीं, जो उनके पिता को भाई मानती थीं और इस तरह उन्हें बचपन में ही बहुतों को सुनने का मौक़ा मिला।

संगीत की शिक्षा

रीता गांगुली सिद्धेश्वरी देवी की पहली शिष्या थीं। बेगम अख़्तर से उनकी मुलाक़ात लखनऊ के एक कार्यक्रम के दौरान हुई, जहाँ वो उन्हें पसंद आ गई। कार्यक्रम ख़त्म होने पर बेगम अख़्तर ने सिद्धेश्वरी देवी से कहा, "मुझे तुम से कुछ चाहिए।" सिद्धेश्वरी देवी ने कहा, "ज़िदगी भर मांगती आई हो, कभी किसी को कुछ दिया भी है?" बेगम ने अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ कहा, “यह तो अपनी अपनी-अपनी क़िस्मत है। मैं मांगती हूँ मुझे मिल जाता है और तुम हो कि मांगना ही नहीं जानती।" वह बहुत ऐतिहासिक दिन था। तक़रीबन तीस साल बाद दोनों कलाकार रूबरू हुई थीं। इस तरह बेगम ने उन्हें सिद्धेश्वरी देवी से मांग लिया और वह उनकी शिष्या बन गई।[1]

बेगम अख़्तर की यह ख़ासियत और खूबी थीं, कि उन्होंने कभी भी रीता गांगुली से नहीं कहा कि जो तुमने सिद्धेश्वरी देवी से जो सीखा है उसे भूल जाओ। बेगम अख़्तर कहती थीं, "जो तुमने सिद्धेश्वरी देवी से सीखा है वह ख़ालिस चौबीस कैरट सोना है। लेकिन ख़ालिस सोने के गहने से तो कुछ होगा नहीं उसमें एक दो हीरे के नग भी जड़ने चाहिए। तब वह बेशकीमती गहना बन पाएगा और वह मैं जड़ूँगी।" इस तरह वह उनकी क़ाबिलियत के मुताबिक़़ उन्हें सिखाती थी। उन्होंने बेगम से शायरी का चयन और तर्ज़ देने का हुनर भी सीखा।

दो गुरु

रीता गांगुली के अनुसार- "अपनी दोनों गुरूओं की तुलना करूँ तो सिद्धेश्वरी देवी जी बहुत मेहनत चाहती थीं। वह चाहती थीं कि हूबहू उनकी नक़ल की जाए। जबकि बेगम हमें अपनी शख़्सियत उभारने का पूरा मौक़ा देती थीं। वे कहती थीं कि 'मैं चाहती हूं, मेरी रूह तुम्हारी मौसीक़ी में झलके' दोनो में यह बुनियादी फर्क था। घर पर संगीत का माहौल तो था नहीं, लिहाज़ा प्रोत्साहन का तो सवाल ही नहीं उठता। बल्कि जब संगीत की तरफ़ रुझान बढ़ने लगा तो पिता जी ने समझाया कि अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ, क्योंकि जिस दिन तुम दूसरे नंबर पर आओगी, उस दिन तुम्हें अपना गाना छोड़ना पड़ेगा।" लेकिन यह रीता गागुली ज़िद कहें या लगन कि पढ़ाई में अव्वल आते हुए भी उन्होंने संगीत जारी रखा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'जिसे सुनकर लोग रो पड़ें वो है संगीत' (हिंदी) www.bbc.com/hindi। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2017।

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