विजयलक्ष्मी पण्डित
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पूरा नाम | विजयलक्ष्मी पण्डित |
जन्म | 18 अगस्त, 1900 |
जन्म भूमि | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1 दिसम्बर, 1990 |
अभिभावक | मोतीलाल नेहरू |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध महिला नेत्री |
आंदोलन | सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन |
जेल यात्रा | 1932, 1942 में |
विशेष | विजयलक्ष्मी पण्डित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। |
अन्य जानकारी | 1952 और 1964 में विजयलक्ष्मी पण्डित लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वे कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थीं। |
विजयलक्ष्मी पण्डित (अंग्रेज़ी: Vijaya Lakshmi Pandit; जन्म- 18 अगस्त, 1900, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1 दिसम्बर, 1990) एक संपन्न, कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और पण्डित जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित ने भी देश की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। विजयलक्ष्मी एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष भी वही थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
जन्म तथा परिचय
राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और देश की प्रमुख महिला नेत्रियों में से एक विजयलक्ष्मी पण्डित का जन्म 18 अगस्त, 1900 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ये पण्डित मोतीलाल नेहरू की पुत्री तथा जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित का बचपन का नाम 'स्वरूप' था, उन्होंने अपनी सारी शिक्षा एक अंग्रेज़ अध्यापिका से घर पर ही प्राप्त की थी।
गाँधीजी का प्रभाव
जब वर्ष 1919 ई. में महात्मा गाँधी 'आनन्द भवन' में आकर रुके तो विजयलक्ष्मी पण्डित उनसे बहुत प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने गाँधीजी के 'असहयोग आन्दोलन' में भी भाग लिया। इसी बीच 1921 में उनका विवाह बैरिस्टर रणजीत सीताराम पण्डित से हो गया। आन्दोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पण्डित को 1932 में गिरफ़्तार भी किया गया। गाँधीजी का प्रभाव विजयलक्ष्मी पण्डित पर बहुत ज़्यादा था। वह गाँधीजी से प्रभावित होकर ही जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़ी थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर से आन्दोलन में जुट जातीं।
विधान सभा की सदस्य
1937 के चुनाव में विजयलक्ष्मी उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की वह प्रथम महिला थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने के बाद मंत्रिपद छोड़ते ही विजयलक्ष्मी पण्डित को फिर बन्दी बना लिया गया। जेल से बाहर आने पर 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में वे फिर से गिरफ़्तार की गईं, लेकिन बीमारी के कारण नौ महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। 14 जनवरी, 1944 को उनके पति रणजीत सीताराम पण्डित का निधन हो गया।
भारत की राजदूत
वर्ष 1945 में विजयलक्ष्मी पण्डित अमेरिका गईं और अपने भाषणों के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया। 1946 में वे पुन: उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनीं। स्वतंत्रता के बाद विजयलक्ष्मी पण्डित ने 'संयुक्त राष्ट्र संघ' में भारत के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व किया और संघ में महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गईं। विजयलक्ष्मी पण्डित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैण्ड और स्पेन में भारत के राजदूत का और इंग्लैण्ड में हाई कमिश्नर के पद पर कार्य किया। 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गईं। वे कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थीं।
निधन
विजयलक्ष्मी पण्डित देश-विदेश के अनेक महिला संगठनों से जुड़ी हुई थीं। अंतिम दिनों में वे केन्द्र की कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगी थीं। वर्ष 1990 में विजयलक्ष्मी पण्डित का निधन हुआ।
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