शिशु सुरक्षा दिवस
शिशु सुरक्षा दिवस
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तिथि | 7 नवंबर |
देश | भारत |
उद्देश्य | लोगों में शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित जागरूकता फैलाना और शिशुओं की उचित देखभाल करके उनके जीवन की रक्षा करना। |
अन्य जानकारी | जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने हेतु संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिया जाता है। यह योजना सितंबर 2005 में राजस्थान सरकार द्वारा लागू की गई है। |
अद्यतन | 17:08, 28 जुलाई 2022 (IST)
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शिशु सुरक्षा दिवस हर साल 7 नवंबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में शिशुओं की सुरक्षा से संबंधित जागरूकता फैलाना और शिशुओं की उचित देखभाल कर के उनके जीवन की रक्षा करना है। भारत में शिशु मृत्यु दर कई देशों की तुलना में अधिक है, स्वास्थ्य देखभाल की कमी के कारण समस्या और भी बदतर हो जाती है। लेकिन जनसंख्या के बढ़ते बोझ और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और जागरूकता की कमी के कारण शिशु मृत्यु दर में अपेक्षा के अनुरूप कमी नहीं आई है। एम्बुलेंस की सुविधा न होने के कारण अस्पताल न होने पर भी बच्चे बीच सड़क पर जीवन की जंग हार जाते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित दाइयों के अभाव में भी कई तरह की परेशानी होती है।
उद्देश्य
आज भी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्याओं में शिशु सुरक्षा भी अहम् मुद्दा है, क्योंकि विभिन्न देशों की तुलना में देश की हालत शिशु सुरक्षा के मामले में बहुत खराब है। प्रतिवर्ष 7 नवंबर को शिशु सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य शिशुओं की सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाना और शिशुओं की उचित देखभाल करके उनके जीवन की रक्षा करना है। यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि उचित सुरक्षा और उचित देखभाल की कमी के कारण नवजात शिशुओं को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।[1]
बुनियादी सुविधाओं की कमी
विश्व में नवजात शिशुओं की उचित सुरक्षा ना हो पाने के कारण बहुत सारे बच्चे मौत की गोद में समा जाते है। भारत में नवजात शिशु की मौत की दर हर देश से अधिक है। देश में स्वास्थ्य सम्बन्धी चीज़ों की कमी के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए बहुत सी योजनायें लागू की हैं, लेकिन बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी तथा जागरूकता की कमी के कारण शिशुओं की मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है। उचित पोषण के अभाव में कई बच्चे दम तोड़ देते हैं। बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण एवं समय पर एम्बुलेन्स ना मिलने के कारण बच्चे बीच रास्ते में जिंदगी की जंग हार जाते हैं। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की कमी एवं प्रशिक्षित दाइयों की कमी के कारण भी विभिन्न प्रकार की समस्याओं का जन्म होता है।
शिशु सुरक्षा दायित्व
शिशु सुरक्षा केवल सरकार की नहीं वरन हम सभी की जिम्मेदारी है। हम सभी को एकजुट होकर इसके लिए आगे आना होगा। तब जाकर अपने देश के शिशुओं की सुरक्षा के मामले में अन्य देशों की तुलना में ऊपरी पायदान पर आएंगे। हमें ना केवल शिशुओं की सुरक्षा बल्कि माताओं की सुरक्षा के लिए भी ठोस कदम उठाने पड़ेंगे, क्योंकि यदि माता सुरक्षित होगी तो बच्चे भी सुरक्षित होंगे और उनकी सुरक्षा की सम्भावना में वृद्धि होगी।[1]
योजनाएँ
- सुकन्या समृद्धि योजना
सर्वप्रथम यह योजना 22 जनवरी 2015 को हरियाणा में शुरू की गई। इस योजना के तहत 0 से 10 वर्ष की आयु तक की कन्याओं के खाते सरकारी बैंक या डाकघर में न्यूनतम हजार रुपए से खोले जाते हैं। इस पर 9.1 प्रतिशत का सालाना ब्याज मिलेगा। इसके तहत अभिभावकों को हजार रुपया प्रत्येक माह 14 वर्ष तक जमा कराना होगा। यह खाता 21 साल में परिपक्व होगा।[2]
- राजीव गांधी राष्ट्रीय शिशु पालन गृह योजना
इस योजना में कामकाजी माताओं के 6 माह की आयु से लेकर 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों की देखभाल की अवस्था प्रेत के माध्यम से की जाती है। प्रत्येक यूनिट में 25 बच्चों को रखा जाता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
यह योजना 1 जनवरी 2017 को केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य गर्भवती एवं धात्री महिलाओं तथा उनके शिशुओं के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति में सुधार करने के लिए,गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव और स्तनपान की अवधि के दौरान देख-रेख एवं सेवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना है।
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
यह कार्यक्रम राजस्थान सरकार द्वारा 14 नवंबर 2014 से प्रारंभ किया गया है। इस योजना का उद्देश्य है कि जन्म से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर 4 विकार व 12 गंभीर बीमारियों की समय से पहले पहचान कर उनका उपचार करना।
- मिशन इंद्रधनुष अभियान
इस अभियान के तहत शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में 2 साल तक के छूटे और प्रतिरक्षी बच्चों को 7 बीमारियों की रोकथाम करने वाले टीके लगाना। 7 अप्रैल 2015 को जयपुर में मिशन इंद्रधनुष का शुभारंभ किया गया।
- जननी सुरक्षा योजना
यह योजना सितंबर 2005 में राजस्थान सरकार द्वारा लागू की गई है। इसका उद्देश्य राज्य में मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने हेतु संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना। इस योजना का लाभ सभी गर्भवती महिलाओं जो सरकारी चिकित्सा संस्थान या जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत पंजीकृत निजी अस्पतालों में प्रसव कराती है।
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना। स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में गुणवत्तापूर्ण बढ़ावा करना। यह योजना भारत सरकार द्वारा 2005 में शुरू की गई। इसके तहत शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी लाना है।[2]
- चिरायु-नन्ही जान हमारी शान’ कार्यक्रम
नवजात शिशु को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना। नवजात मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई है।
- किलकारी मोबाइल ऐप
यह एक ऐसा एप्लीकेशन है जो गर्भावस्था की दूसरी तिमाही से शिशु की 1 वर्ष की आयु तक शिशु जन्म व शिशु की देखभाल से संबंधित मुफ्त में 72 ऑडियो संदेश मोबाइल फोन पर उपलब्ध कराता है।
- बर्थ कंपेनिअन
मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा यह योजना शुरू की है।
- मां-बच्चा सुरक्षा कार्ड
यह योजना भारत सरकार द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से की गई है। इस योजना के तहत बच्चों के विकास के लिए उसने स्थिति टीकाकरण सारणी एवं बच्चे की वृद्धि संबंधी उल्लेख नियम बातों की निगरानी रखने माताओं के लिए मां-बच्चा सुरक्षा कार्ड जारी किया गया है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शिशु सुरक्षा दिवस (हिंदी) hindi.rvasia.org। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2022।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 शिशु सुरक्षा दिवस, 2020 (हिंदी) nildarpan.com। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2022।
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