हृदय प्रत्यारोपण दिवस

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हृदय प्रत्यारोपण दिवस
हृदय प्रत्यारोपण दिवस
हृदय प्रत्यारोपण दिवस
विवरण 'हृदय प्रत्यारोपण दिवस' भारत में प्रत्येक वर्ष 3 अगस्त को मनाया जाता है। इस समय दुनियाभर में हर साल करीब 3,500 हृदयों का प्रत्यारोपण किया जा रहा है। सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण अमेरिका में किए जा रहे हैं।
प्रथम प्रत्यारोपण 3 दिसंबर, 1967, कैपटाउन, दक्षिण अफ्रीका
भारत में प्रथम प्रत्यारोपण 3 अगस्त, 1994, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
सर्जन पी. वेणुगोपाल
व्यक्ति (रोगी) देवीराम
विशेष तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 3 अगस्त को हृदय प्रत्यारोपण दिवस घोषित किया गया था।
अन्य जानकारी भारत में प्रथम हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी देवीराम नामक शख्स की गई थी। सर्जरी के बाद 15 साल तक वह जीवित रहे।
अद्यतन‎

हृदय प्रत्यारोपण दिवस (अंग्रेज़ी: Heart Transplant Day) भारत में प्रत्येक वर्ष 3 अगस्त को मनाया जाता है। भारत में हृदय प्रत्यारोपण के प्रयास तो बहुत पहले से चलते रहे, लेकिन पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण 3 अगस्त, 1994 को हुआ था। इसीलिए इस बड़ी उपलब्धि को देखते हुए हर साल 3 अगस्त को ही भारत में हृदय प्रत्यारोपण दिवस मनाया जाता है। यह प्रत्यर्पण भारत के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ पी. वेणुगोपाल की अगुआई में भारतीय चिकित्सकों की टीम ने सफलतापूर्वक किया था।

इतिहास

  • अमेरिकी सर्जन नॉर्मन सम्वे ने पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण एक कुत्ते का किया था। कैलिफोर्निया के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में यह प्रत्यारोपण 1958 में किया गया था। इसके बाद उन्होंने कई कुत्तों के हृदय का कामयाब प्रत्यारोपण किया। सम्बे ने हृदय प्रत्यारोपण की तकनीक विकसित की जिसका आगे चलकर कई सर्जनों ने इस्तेमाल किया।
  • 3 दिसंबर 1967 को दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन में पहला हृदय प्रत्यारोपण किया गया। दक्षिण अफ्रीका के सर्जन क्रिस्टियन बर्नाड ने इस सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। क्रिस्टियन बर्नाड की टीम में 30 लोग शामिल थे और हृदय प्रत्यारोपण करने में उसे 9 घंटे का वक्त लगा। बर्नाड ने नॉर्मन सम्वे द्वारा विकसित तकनीक का इस्तेमाल किया था। हालांकि 1905 में भी मानव हृदय प्रत्यारोपण की कोशिश की गई थी लेकिन यह कामयाब नहीं हो पाई।
  • पहला मानवीय हृदय प्रत्यारोपण 53 साल के लुइस वाशकांस्काई नामक मरीज का किया गया। उनके हृदय ने काम करना बंद कर दिया था और वह जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। उनमें 25 साल की डेनिस डरवाल का हृदय प्रत्यारोपित किया था। एक कार दुर्घटना में डेनिस के दिमाग में गंभीर चोटें आई थीं और वह ब्रेन डेड हो गई थीं। डेनिस दूसरों की मदद करने में यकीन करती थीं इसलिए पिता एडवर्ड डरवाल ने अपनी बेटी के अंगदान करने का निर्णय लिया था। डेनिस की किडनी ने दस साल के बच्चे की भी जान बचाई थी।
  • हृदय प्रत्यारोपण के बाद मरीज लुइस के पहले शब्द थे, “मैं अब भी जीवित हूं।” निमोनिया के कारण हृदय प्रत्यारोपण के 18 दिन बाद लुइस की मौत हो गई। डॉक्टर क्रिस्टियन बर्नाड के दूसरे मरीज फिलिप ब्लाईबर्ग करीब दो साल तक जीवित रहे। शुरुआत में जिन मरीजों का हृदय प्रत्यारोपण किया गया, वे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाए।
  • हृदय प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों की लंबी आयु न होने के कारण इसमें कमी आई। 1968 में जहां दुनियाभर में 99 हृदय प्रत्यारोपण किए गए, वहीं 1969 में 47, 1970 में 17 और 1971 में 9 हृदय प्रत्यारोपण ही हो पाए। इसके बाद विशेषज्ञों ने मांग की कि इस क्षेत्र में और शोध की जरूरत है।[1]

भारत में हृदय प्रत्यर्पण

भारत में पहला हृदय प्रत्यर्पण 3 अगस्त, 1994 को दिल्ली स्थित 'अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान' में सर्जन पी. वेणुगोपाल ने किया था। इस सफल सर्जरी में 20 सर्जन ने योगदान दिया और 59 मिनट में यह सर्जरी की गई। यह सर्जरी देवीराम नामक शख्स की गई थी। सर्जरी के बाद 15 साल तक वह जीवित रहे। इससे पहले हृदय प्रत्यारोपण के लिए विदेश जाना पड़ता था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 3 अगस्त को हृदय प्रत्यारोपण दिवस घोषित किया गया था। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पहले किए गए पहले हृदय प्रत्यारोपण के अवसर पर रेस कोर्स रोड स्थित अपने आवास पर आयोजित एक समारोह में यह घोषणा की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि 'एम्स में ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग संगठन अब एक राष्ट्रीय सुविधा होगी'। उन्होंने कहा था कि 'ये दोनों फैसले देश में हृदय प्रत्यारोपण को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित होंगे'।

आठ सबसे महत्वपूर्ण बातें

हृदय प्रत्यारोपण प्रक्रिया में रोगी के क्षतिग्रस्त हृदय को दाता के स्वस्थ हृदय से बदल दिया जाता है। दाता या तो मृत व्यक्ति हो सकता है या रोगी जिसका मस्तिष्क मर चुका हो। निस्संदेह, हृदय पाने के लिए दाता के परिवार की सहमति की आवश्यकता होगी। यह कोई छोटी सर्जरी नहीं है। इसके साथ बहुत सी चीज़ें आती हैं। इसीलिए लोगों के मन में कई मिथक और जिज्ञासाएं हैं। हृदय प्रत्यारोपण के बारे में आठ सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं जो अवश्य जाननी चाहिए।

हृदय प्रत्यारोपण के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है

हृदय प्रत्यारोपण के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। यहां तक ​​कि छोटे बच्चे भी हृदय रोग से पीड़ित हो सकते हैं और उन्हें हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। 70 या 80 के दशक जैसे बुढ़ापे में लोग भी यह सर्जरी कराते हैं। बीस या तीस के दशक के लोगों की तरह, युवा पीढ़ी भी हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी से गुज़री है। इसलिए हृदय प्रत्यारोपण के लिए कोई विशिष्ट आयु मानदंड नहीं हैं।[2]

ट्रांसप्लांट के बाद जी सकते हैं सामान्य जीवन-

सबसे अहम सवाल यह है कि क्या ट्रांसप्लांट के बाद मरीज सामान्य रहेगा? पिछले कुछ वर्षों में हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद जीवित रहने की संभावना में सुधार हुआ है। महिला बच्चों को जन्म दे सकती हैं, आमतौर पर अपने कार्यालय में काम कर सकती हैं, छुट्टियों पर जा सकती हैं और अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर सकती हैं। थोड़ा सावधान रहना होगा कि ज्यादा मेहनत न करें।

दाता की पिछली बीमारी से कोई फर्क नहीं पड़ता

यदि हृदय का दाता किसी घातक बीमारी से पीड़ित था, तो इससे तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कि उसका हृदय स्वस्थ न हो जाए। आप उसका दिल उधार ले सकते हैं, भले ही उसे किडनी की समस्या हो, वायरल बीमारी हो या हृदय रोग के अलावा कोई अन्य बीमारी हो।

प्रत्यारोपण के बाद देखभाल स्वस्थ जीवन की जड़ है

प्रत्यारोपण के बाद पहले छह महीनों तक रोगी थोड़ा नाजुक होता है। इसलिए उन्हें अतिरिक्त देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है। एक विशेष आहार, नियमित जांच, दवाएँ, हर चीज़ पर नज़र रखनी होगी। कुछ दवाएँ ऐसी होंगी जो जीवन भर चलती रहेंगी। इसलिए आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप इन्हें समय-समय पर अपने प्रियजनों को देते रहें।

एक से अधिक अंग प्रत्यारोपण संभव है

हृदय प्रत्यारोपण के बहुत से रोगियों की किडनी भी खराब हो जाती है। इसलिए, चिकित्सा उद्योग दो या दो से अधिक अंगों को प्रत्यारोपित करने की अनुमति देता है। सबसे पहले हृदय का प्रत्यारोपण किया जाता है और एक-दो दिन बाद दूसरा अंग प्रत्यारोपित किया जाता है।

केवल शारीरिक देखभाल ही पर्याप्त नहीं है

याद रखें कि एक मरीज को हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी से गुजरना पड़ा, क्योंकि वह अत्यधिक दर्द में था। बेशक, उस दर्द ने उसे न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी विनाशकारी स्थिति में छोड़ दिया है। इसलिए अपने प्रियजनों को मानसिक रूप से समर्थन देना परम कर्तव्य बन जाता है। वे धीरे-धीरे अपने शारीरिक दर्द से उबर जाएंगे, लेकिन मानसिक रूप से उनकी स्थिति में सुधार करना आपका कर्तव्य बनता है।[2]

हर किसी की प्रतिरोध शक्ति अलग-अलग होती है

यह तथ्य कि किसी और का दिल डाला जाता है, शरीर को बदल देता है। नए दिल के प्रति हर किसी का प्रतिरोध अलग-अलग होता है। प्रत्येक रोगी की यात्रा इस बात से भिन्न होती है कि उनका शरीर नए हृदय पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। इसलिए, आपको किसी और की हृदय प्रत्यारोपण यात्रा से प्रभावित नहीं होना चाहिए। कुछ शरीर नए हृदय को तुरंत स्वीकार कर लेते हैं, जबकि कुछ इसे कभी स्वीकार नहीं करते।

डॉक्टर केवल हृदय प्रत्यारोपण पर विचार कर सकते हैं यदि अन्य सभी उपचार विफल हो गए हों

भले ही किसी अन्य उपचार या थेरेपी के माध्यम से आशा की थोड़ी सी किरण हो, डॉक्टर प्रत्यारोपण के लिए नहीं जाएंगे। इसके बजाय, जब कोई अन्य विकल्प नहीं बचता तो डॉक्टर इस उपाय को चुनते हैं और केवल एक डॉक्टर ही इसका निर्णय नहीं करेगा, बल्कि हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए आगे बढ़ने के लिए दो या दो से अधिक सहमति की आवश्यकता होगी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हृदय प्रत्यारोपण के 50 साल (हिंदी) downtoearth.org.in। अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2023।
  2. 2.0 2.1 हृदय प्रत्यारोपण के बारे में जानने योग्य 8 बातें (हिंदी) aimsindia.com। अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2023।

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