सारा बहुत पुकारिया -कबीर
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सारा बहुत पुकारिया, पीर पुकारै और। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि प्राय: सारे लोग जोर-जोर से पुकारते हैं, किन्तु उनकी पुकार बनावटी होती है। वास्तविक वेदना की पुकार कुछ और ही होती है। गुरु के शब्द की चोट लगने पर कबीर जहाँ-का-तहाँ रह गया। उसमें पुकारने की भी शक्ति शेष न रह गयी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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