सिद्धेश्वरी देवी का कॅरियर
सिद्धेश्वरी देवी का कॅरियर
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पूरा नाम | सिद्धेश्वरी देवी |
अन्य नाम | गोनो |
जन्म | 8 अगस्त, 1908 |
जन्म भूमि | वाराणसी |
मृत्यु | 17 मार्च, 1977 |
अभिभावक | पिता: श्री श्याम तथा माता: श्रीमती चंदा उर्फ श्यामा थीं |
संतान | सविता देवी |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री |
प्रसिद्धि | गायिका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन ही है। |
अद्यतन | 16:21, 20 जून 2017 (IST)
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शास्त्रीय गायिका सिद्धेश्वरी देवी को पहली बार 17 साल की अवस्था में सरगुजा के युवराज के विवाहोत्सव में गाने का अवसर मिला। उनके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे। ऐसे में विद्याधरी देवी ने इन्हें वस्त्र दिये। वहां से सिद्धेश्वरी देवी का नाम सब ओर फैल गया। एक बार तो मुंबई के एक समारोह में वरिष्ठ गायिका केसरबाई इनके साथ ही उपस्थित थीं। जब उनसे ठुमरी गाने को कहा गया, तो उन्होंने कहा कि जहां ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी हों वहां मैं कैसे गा सकती हूं। अधिकांश बड़े संगीतकारों का भी यही मत था कि मलका और गौहर के बाद ठुमरी के सिंहासन पर बैठने की अधिकार सिद्धेश्वरी देवी का ही हैं। उन्होंने पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल तथा अनेक यूरोपीय देशों में जाकर भारतीय ठुमरी की धाक जमाई। उन्होंने राजाओं और ज़मीदारों के दरबारों से अपने प्रदर्शन प्रारम्भ किये और बढ़ते हुए आकाशवाणी और दूरदर्शन तक पहुंचीं। जैसे-जैसे समय और श्रोता बदले, उन्होंने अपने संगीत में परिवर्तन किया, यही उनका सफलता का रहस्य था। सिद्धेश्वरी देवी ने श्रीराम भारतीय कला केन्द्र, दिल्ली और कथक केन्द्र में नये कलाकारों को ठुमरी सिखाई।[1]
सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन ही है। उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में खुलकर तो भाग नहीं लिया पर उसके लिए वे आर्थिक सहायता करती रहती थीं। उन दिनों वे अपने कार्यक्रमों में यह भजन अवश्य गाती थीं।
- मथुरा न सही गोकुल न सही, रहो वंशी बजाते कहीं न कहीं।
- दीन भारत का दुख अब दूर करो, रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सुरों की सिद्धेश्वरी (हिंदी) www.facebook.com। अभिगमन तिथि: 18 जून, 2017।
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