हरि रस जे जन बेधिया -कबीर
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हरि रस जे जन बेधिया, सर गुण सींगणि नाँहि। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि सत्गुरु अपने शब्द को बड़े ही आश्चर्य ढंग से संचालित करता है। वह न तो शर अर्थात् बाण का प्रयोग करता है और गुण अर्थात् प्रत्यंचा तथा सींगणि अर्थात् धनुष का। फिर भी उसके द्वारा प्रवाहित भक्ति-रस से जो बिद्ध होते हैं, उन पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। उस शब्द की चोट तो लगती है शरीर में, किन्तु वह उसका टीस हृदय तक प्रवेश कर जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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