बाबूलाल मरांडी

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बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी
पूरा नाम बाबूलाल मरांडी
जन्म 11 जनवरी, 1958
जन्म भूमि गिरिडीह, बिहार (गिरिडीह अब झारखण्ड का हिस्सा है)
पति/पत्नी शांति देवी
संतान दो पुत्र
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी झारखण्ड विकास मोर्चा' (झाविमो)
पद प्रथम मुख्यमंत्री, झारखण्ड
कार्य काल वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री-1998-1999

मुख्यमंत्री-15 नवम्बर, 2000 से 18 मार्च, 2003 तक

अन्य जानकारी वर्ष 2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के साथ साथ गिरीडिह लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने 'झारखण्ड विकास मोर्चा' नाम से नई पार्टी बनाई।

बाबूलाल मरांडी (अंग्रेज़ी: Babulal Marandi, जन्म- 11 जनवरी, 1958, गिरिडीह[1], बिहार) भारतीय राज्य झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं। एक सरकारी स्‍कूल अध्यापक से झारखण्ड के पहले मुख्‍यमंत्री बनने वाले बाबूलाल मरांडी को अब किसी विशेष परिचय की जरूरत नहीं है। कभी आर.एस.एस. के निष्‍ठावान स्‍वयंसेवक और समर्पित भाजपाई रहे बाबूलाल मरांडी ने 2006 में पार्टी से मनमुटाव के बाद 'झारखण्ड विकास मोर्चा' (झाविमो) नाम से अपनी एक नई पार्टी बना ली, जिससे वे लगातार दो बार कोडरमा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने। 1998 के चुनाव में उन्होंने शिबू सोरेन को संथाल से हराकर चुनाव जीता था, जिसके बाद एनडीए की सरकार में बिहार के 4 सांसदों को कैबिनेट में जगह दी गई, इसमें से एक बाबूलाल मरांडी भी थे। उनके पुत्र अनूप मरांडी 2007 के झारखण्ड के गिरीडीह क्षेत्र में हुए नक्‍सली हमले में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

परिचय

बाबूलाल मरांडी का जन्म 11 जनवरी, 1958 को गिरिडीह जिले के कोडिया बैंक गांव में हुआ। वह 'झारखण्ड विकास मोर्चा' (प्रजातंत्र) के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वह वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री रहे। 1989 में उनका विवाह शांतिदेवी से हुआ। एक बेटा अनूप मरांडी था, जो 2007 में झारखंड के गिरीडीह क्षेत्र में हुए नक्‍सली हमले में मृत्यु को प्राप्त हो गया।

राजनीतिक कॅरियर

1991 के आम चुनाव में भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को दुमका (आरक्षित) सीट से टिकट दिया, लेकिन वह चुनाव हार गए। 1996 के चुनाव में भाजपा ने फिर से उन्हें टिकट दिया। हालांकि, इस चुनाव में वह शिबू सोरेन से मात्र 5 हजार मतों से हार गए। इसके बाद उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। 1998 में हुए आम चुनाव में भाजपा बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखण्ड मेें 14 में से 12 लोकसभा सीटेे जीतने में कामयाब रही। उस वक्त झारखण्ड बिहार का ही हिस्सा था। इस चुनाव में वह शिवू सोरेन को हराने में कामयाब रहे। इस प्रदर्शन से बाबूलाल मरांडी के कॅरियर को ताकत मिली और बिहार से वाजपेयी सरकार में शामिल किए गए चार सांसदों में से वह एक थे।

एनडीए का प्रथम शासन

वर्ष 2000 में झारखण्ड को बिहार से अलग कर नया प्रदेश बनाया गया। यहां पर बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में एनडी गठबंधन ने सरकार बनाई। राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार, बाबूलाल मरांडी ने प्रदेश के लिए कई विकास के कार्यक्रम शुरू किए। इनमें से एक था- सड़कों का विकास। हालांकि, बाबूलाल मरांडी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और जदयू जैसे अहम सहयोगियों के दबाव के चलते उन्हें 2003 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह अर्जुन मुंडा को प्रदेश का नया मुखिया बनाया गया। अर्जुन मुंडा के सीएम बनने के बाद बाबूलाल मरांडी के पार्टी नेतृत्व से मतभेद होने लगे। 2004 के आम चुनावों में उन्होंने कोडरमा लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा। वह यहां से जीतने में कामयाब रहे, जबकि केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और रीटा वर्मा जैसे दिग्गज नेता अपने चुनाव हार गए। इस दौरान उनके पार्टी से मतभेद बढ़ते गए।

झारखण्ड विकास मोर्चा

वर्ष 2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के साथ साथ गिरीडिह लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने 'झारखण्ड विकास मोर्चा' नाम से नई पार्टी बनाई। उनकी इस पार्टी में भाजपा के पांच विधायक भी शामिल हो गए। कोडरमा सीट के लिए हुए उपचुनाव में वह निर्दलीय के रूप में खड़े हुए और जीतने में कामयाब रहे। 2009 के आम चुनाव में वह कोडरमा लोकसभा सीट से अपनी नई पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहे। हालांकि, 2014 के आम चुनाव में वह नरेन्द्र मोदी लहर में अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं रहे। प्रदेश की 14 में से 12 सीटें भाजपा जीतने में कामयाब रही। कोडरमा से भाजपा के रविंद्र कुमार रे चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गिरिडीह अब झारखण्ड का हिस्सा है।

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