प्रताप चन्द्र सारंगी
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पूरा नाम | प्रताप चन्द्र सारंगी |
जन्म | 4 जनवरी, 1955 |
जन्म भूमि | गोपीनाथपुर ग्राम, बालासोर, ओडिशा |
अभिभावक | पिता- गोविन्द चन्द्र सारंगी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | समाज सेवक व राजनेता |
पार्टी | भारतीय जनता पार्टी |
पद | सांसद, केन्द्रीय राज्य मंत्री |
कार्य काल | 23 मई, 2019 से |
शिक्षा | कला स्नातक |
विद्यालय | फकीर मोहन महाविद्यालय[1] |
चुनाव क्षेत्र | बालासोर |
अन्य जानकारी | प्रताप चन्द्र सारंगी का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव रहा। वह रामकृष्ण मठ में संन्यासी बनना चाहते थे। इसलिए कई बार पश्चिम बंगाल में हावड़ा स्थित बेलूर मठ में रहे। |
अद्यतन | 15:25, 25 मार्च 2020 (IST)
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प्रताप चन्द्र सारंगी (अंग्रेज़ी: Pratap Chandra Sarangi, जन्म- 4 जनवरी, 1955, बालासोर, ओडिशा) भारत के सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता हैं। अपने विनम्र और सरल स्वभाव के कारण वे प्रसिद्ध हैं। वह कभी साधु बनना चाहते थे और एकांत जीवन बिताना चाहते थे, लेकिन उनका समाज के प्रति समर्पण और जनसेवा का भाव उनको नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में ले आया। प्रताप चन्द्र सारंगी लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बालासोर संसदीय सीट से बीजद प्रत्याशी रबींद्र कुमार जेना को 12,956 मतों से हरा दिया। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रताप चन्द्र सारंगी को ओडिशा का मोदी भी कहा जाता है। राष्ट्रीय चुनाव लड़ने से पहले सारंगी 2004 से 2014 तक ओडिशा विधानसभा के सदस्य रहे। वे ओडिशा में बजरंग दल के प्रमुख रह चुके हैं।
परिचय
प्रताप चन्द्र सारंगी का जन्म 4 जनवरी सन 1955 को बालासोर के गोपीनाथपुर ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविन्द चन्द्र सारंगी था। उन्होंने 1975 ई में उत्कल विश्वविद्यालय के अधीन बालेश्वर के फकीर मोहन महाविद्यालय से कला में स्नातक उपाधि प्राप्त की। प्रताप चन्द्र सारंगी अत्यन्त सरल जीवन जीते हैं। वे आने-जाने के लिए एक सायकिल का प्रयोग करते हैं और चुनाव प्रचार के लिए आटो रिक्सा का। वह अविवाहित हैं। उनकी विधवा मां का 2018 में निधन हो गया। वह अकेले ही रहते हैं और पूरे समाज को अपना परिवार मानते हैं। समाज सेवा उनका धर्म है। वह मानते हैं कि इसके लिए उपयुक्त प्लेटफार्म राजनीति ही है। सफेद दाढ़ी, सिर पर सफेद कम बाल, साइकिल, बैग उनकी पहचान है। संपत्ति के नाम पर छोटा सा घर है। किसी गरीब का कोई काम होता है तो वह सीधे प्रताप चन्द्र सारंगी की झोपड़ी में जा पहुंचता है।
संन्यासी बनने की इच्छा
प्रताप चन्द्र सारंगी का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव रहा। वह रामकृष्ण मठ में संन्यासी बनना चाहते थे। इसलिए कई बार पश्चिम बंगाल में हावड़ा स्थित बेलूर मठ में रह चुके हैं। प्रताप चन्द्र सारंगी ने जब मठ के सन्यासियों से इच्छा जताई तो उन्होंने उनके बारे में जानकारी हासिल की। मठ को पता चला कि उनकी मां जीवित हैं और विधवा हैं, तो उन्होंने सारंगी से आग्रह किया कि वह घर लौटकर मां की सेवा करें। इस पर प्रताप चन्द्र सारंगी गांव लौट आए और मां के साथ समाज की भी सेवा करने लगे।
एक प्रसंग
'ओडिशा के मोदी' के नाम से मशहूर बालासोर के सांसद प्रताप चन्द्र सारंगी की कई ऐसी बातें हैं, जो उनके सरल स्वभाव को दर्शाती हैं। उनसे जुड़ा एक क़िस्सा है। 2009 में जब वह ओडिशा में विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे तो बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया था, लेकिन वह टिकट ही खो गया। बावजूद इसके उन्होंने पार्टी से दूसरा टिकट नहीं मांगा और निर्दलीय ही पर्चा भर दिया। टिकट खोने का कारण भी अलग है। जब वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस में सफर कर रहे थे तो जेब से टिकट गिर गया, जो बाद में मिला ही नहीं।
लोकसभा सांसद
बालासोर से लोकसभा सांसद चुने जाने से पहले प्रताप चन्द्र सारंगी 2004, 2009 में निलागिरी विधानसभा सीट से बतौर विधायक जीत दर्ज कर चुके हैं। 2004 में बीजेपी के टिकट से तो 2009 में निर्दलीय के तौर पर। नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने कैबिनेट में जगह दी है और राज्य मंत्री बनाया है। जब वह शपथ लेने आए थे तो राष्ट्रपति भवन का प्रांगण तालियों से गूंज उठा था। सोशल मीडिया पर भी उनकी काफी चर्चा रही। प्रताप चन्द्र सारंगी हिंदी-ओड़िया-संस्कृत भाषा में निपुण हैं। अपने क्षेत्र में वह साइकिल से ही सफर करते हैं। चुनाव में भी वह एक ऑटो रिक्शा पर अपना प्रचार करते हुए देखे गए थे। उनकी इसी सादगी की वजह से लोग उन्हें 'ओडिशा का मोदी' भी कहते हैं। वह कभी जानवरों की सेवा करते हुए नजर आते हैं तो कभी किसी गुफा में साधना में लीन। उनकी इस सादगी के लोग मुरीद हो गए हैं। चुनाव जीतने के बाद भी उनकी जिंदगी में बहुत बदलाव नहीं आया है। जब उन्होंने बीजेपी के टिकट पर 2004 और 2009 में विधानसभा चुनाव जीता था, तब भी वह उसी सादगी के साथ जीते रहे। बताया जा रहा है कि उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में बिल्कुल खर्च नहीं किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उत्कल विश्वविद्यालय के अधीन
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