शरद पवार
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पूरा नाम | शरद गोविंदराव पवार |
जन्म | 12 दिसंबर, 1940 |
जन्म भूमि | बारामती, पुणे, महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- गोविंदराव पवार, माता- शारदाबाई पवार |
पति/पत्नी | प्रतिभा शिंदे |
संतान | एक पुत्री- सुप्रिया |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | नेशलिस्ट काँग्रेस पार्टी |
कार्य काल | मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र प्रथम-18 जुलाई, 1978 से 17 फ़रवरी, 1980 |
विद्यालय | पुणे विश्वविद्यालय |
अन्य जानकारी | 'अपनी शर्तों पर' शरद पवार की अंग्रेज़ी में प्रकाशित आत्मकथा 'ऑन माय टर्म्स' का हिंदी अनुवाद है जिसे 'राजकमल प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित किया गया है। |
अद्यतन | 15:29, 29 जुलाई 2020 (IST)
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शरद गोविंदराव पवार (अंग्रेज़ी: Sharad Govindrao Pawar, जन्म- 12 दिसंबर, 1940, पुणे, महाराष्ट्र) वरिष्ठ भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वह राज्यसभा के सदस्य और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष रहे हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने 1999 में की थी। शरद पवार अलग-अलग समय पर तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। 1991-1993 के दौरान केन्द्र सरकार में रक्षामंत्री और 2004-2014 के मध्य कृषि मंत्री भी रह चुके हैं। वे भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे। शरद पवार भारत की सर्वाधिक प्रभावशाली राजनैतिक हस्तियों में आते हैं। पांच दशक लंबे अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा। दो मौके ऐसे भी आए, जब वे भारत के प्रधानमंत्री हो सकते थे। वे भारत और महाराष्ट्र के इतिहास को साठ के दशक से देख रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन
शरद गोविंदराव पवार का जन्म 12 दिसम्बर, 1940 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। उनके पिता गोविंदराव पवार बारामती के कृषक सहकारी संघ में कार्यरत थे और उनकी माता शारदाबाई पवार कातेवाड़ी[1] में परिवार के फार्म का देख-रेख करती थीं। शरद पवार ने पुणे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ब्रिहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स से शिक्षा प्राप्त की है।
शरद पवार का विवाह प्रतिभा शिंदे से हुआ। पवार दंपत्ति की एक पुत्री है जो बारामती संसदीय क्षेत्र से सांसद है। शरद पवार के भतीजे अजित पवार भी महाराष्ट्र की राजनीति में प्रमुख स्थान रखते हैं और पूर्व में महाराष्ट्र राज्य के उप-मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शरद पवार के छोटे भाई प्रताप पवार मराठी दैनिक ‘सकल’ का संचालन करते हैं।
राजनितिक जीवन
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चौहान को शरद पवार का राजनैतिक गुरु माना जाता है। सन 1967 में शरद पवार कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बारामती विधान सभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार महाराष्ट्र विधान सभा पहुंचे। सन 1978 में पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनायी और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। सन 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा गाँधी सरकार ने महाराष्ट्र सरकार को बर्खास्त कर दिया। सन 1980 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिली और ए. आर. अंतुले के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी। सन 1983 में पवार भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और अपने जीवन में पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से लोक सभा चुनाव जीता। उन्होंने सन 1985 में हुए विधान सभा चुनाव में भी जीत अर्जित की और राज्य की राजनीति में ध्यान केन्द्रित करने के लिए लोक सभा सीट से त्यागपत्र दे दिया। विधान सभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली और शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए।[2]
सन 1987 में शरद पवार कांग्रेस पार्टी में वापस आ गए। जून 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चौहान को केन्द्रीय वित्त मंत्री बना दिया जिसके बाद शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री बनाये गए। सन 1989 के लोक सभा चुनाव में महाराष्ट्र के कुल 48 सीटों में से कांग्रेस ने 28 सीटों पर विजय हासिल की। फ़रवरी 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और कांग्रेस पार्टी ने कुल 288 सीटों में से 141 सीटों पर विजय हासिल की पर बहुमत से चूक गयी। शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों से समर्थन लेकर सरकार बनायी और मुख्यमंत्री बने।
सन 1991 लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी जिसके बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में नरसिंह राव और एन. डी. तिवारी के साथ-साथ शरद पवार का नाम भी आने लगा। लेकिन कांग्रेस संसदीय दल ने नरसिंह राव को प्रधानमंत्री के रूप में चुना और शरद पवार रक्षा मंत्री बनाये गए। मार्च 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाईक के पद छोड़ने के बाद शरद पवार एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। वे 6 मार्च 1993 में मुख्यमंत्री बने, पर उसके कुछ दिनों बाद ही महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई 12 मार्च को बम धमाकों से दहल गई और सैकड़ों लोग मारे गए।
विपक्ष के नेता
सन 1995 के विधान सभा चुनाव में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने कुल 138 सीटों पर विजय हासिल की जबकि कांग्रेस पार्टी केवल 80 सीटें ही जीत सकी। शरद पवार को इस्तीफा देना पड़ा और मनोहर जोशी प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने। सन 1996 के लोक सभा चुनाव तक शरद पवार राज्य विधान सभा में बिपक्ष के नेता रहे और लोक सभा चुनाव में जीत के बाद उन्होंने विधान सभा से त्यागपत्र दे दिया। सन 1998 के मध्यावधि चुनाव में शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने महाराष्ट्र में 48 सीटों में से 37 सीटों पर कब्ज़ा जमाया। शरद पवार 12वीं लोक सभा में विपक्ष के नेता चुने गए।[2]
'नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी' की स्थापना
सन 1999 में जब 12वीं लोकसभा भंग कर दी गयी और चुनाव की घोषणा हुई तब शरद पवार, तारिक अनवर और पी. ए. संगमा ने कांग्रेस के अन्दर ये आवाज़ उठाई कि कांग्रेस पार्टी का प्रधानमंत्री उम्मीदवार भारत में जन्म लिया हुआ चाहिये, न कि किसी और देश में। जून 1999 में ये तीनों कांग्रेस से अलग हो गए और ‘नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी’ की स्थापना की। जब 1999 के विधान सभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, तब कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी ने मिलकर सरकार बनायी।
सन 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद शरद पवार यू.पी.ए. गठबंधन सरकार में शामिल हुए और उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया। सन 2012 में उन्होंने सन 2014 का चुनाव न लड़ने का एलान किया ताकि युवा चेहरों को मौका मिल सके।
खेल-कूद प्रशासन
शरद पवार कबड्डी, खो-खो, कुश्ती, फ़ुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों में दिलचस्पी रखते हैं और इनके प्रशासन से भी जुड़े रहे हैं। वे निम्न सभी संगठनों के मुखिया रह चुके हैं-
- मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन
- महाराष्ट्र कुश्ती एसोसिएशन
- महाराष्ट्र कबड्डी एसोसिएशन
- महाराष्ट्र खो-खो एसोसिएशन
- महाराष्ट्र ओलंपिक्स एसोसिएशन
- भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड
- अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के उपाध्यक्ष
- अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष
जुझारुपन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार का वह आख़िरी दिन था जब सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही थी। ये तस्वीर शरद पवार की थी। सतारा में एक चुनाव प्रचार के दौरान की इस तस्वीर में मूसलाधार बारिश में बिना रुके शरद पवार भाषण दे रहे थे। कहा जा रहा था कि जो भी परिणाम आए, उनमें इस तस्वीर की अहम भूमिका रही। इस तस्वीर ने गेम चेंजर का काम किया। इस तस्वीर के वायरल होने के साथ ही लोगों ने शरद पवार के जुझारुपन और उनकी डटे रहने की क्षमता के बारे में बातें करनी शुरू कर दीं।
अपनी जीवनी में शरद पवार ने कहा था कि उन्हें ये जुझारुपन, ये जीवटता उनकी मां शारदा ताई पवार से मिली। उन्होंने लिखा है, "हमारे गांव में एक आवरा सांड था। उसकी वजह से गांव के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। एक दिन किसी ने उसे आग के हवाले कर दिया। जली हुई हालत में वह सड़क के एक किनारे गिर पड़ा। जब अगले दिन मेरी मां सोकर उठी उन्होंने उस घायल सांड को देखा। उसके शरीर से खून बह रहा था। मेरी मां उसके पास गई और बेहद कोमल भावों के साथ उसकी पीठ पर हाथ फेरा। इतने में वो सांड उठ खड़ा हुआ और उसने पूरी ताक़त के साथ मेरी मां को उठाकर एक ओर झटक दिया। अगले पंद्रह मिनट तक वो सांड अपने पूरे वज़न के साथ उन्हें दबाता रहा। इसकी वजह से उनकी जांघों की सारी हड्डियां टूट गई थीं। जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो डॉक्टर को उनके एक पैर से लगभग छह इंच की एक हड्डी निकालनी पड़ी। वो ऑपरेशन तो सफल रहा, लेकिन उस हादसे के बाद वो कभी भी बिना सहारे के चल नहीं सकीं। इतना कुछ हो जाने के बावजूद मेरी मां ने कभी भी दु:ख नहीं मनाया।"[3]
भले ही शरद पवार की जीवटता की चर्चा आज हो रही हो, लेकिन कई बार उन्हें अपने बदलते रुख़ की वजह से आलोचन का सामना भी करना पड़ा है। शरद पवार ने बीजेपी सरकार की कमान संभाली और साल 2014 में देवेंद्र फडणवीस को अप्रत्यक्ष समर्थन देकर इस सरकार को बचा लिया। जिस वक्त उन्होंने सोनिया गांधी के विरुद्ध जाकर कांग्रेस से किनारा किया और एनसीपी का निर्माण किया, उनकी तारीफ़ हुई। लेकिन बहुत जल्दी ही उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया और यूपीए सरकार में सोनिया गांधी के नेतृत्व में काम किया। सत्तर के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल का समर्थन करने को लेकर भी उनकी आलोचना हुई।
आत्मबल
वरिष्ठ पत्रकार प्रताप आस्बे शरद पवार की राजनीति और रणनीति पर क़रीबी नज़र रखते आए हैं। उनका कहना है "पवार का ये रूप और जुझारुपन कोई नया नहीं है"। शरद पवार जितने जुझारु दिखते हैं वो असलियत में उससे कहीं अधिक आक्रामक हैं। आस्बे मानते हैं कि राजनीति में वो संसदीय प्रणाली से बहुत अधिक प्रभावित हैं, इसलिए ऐसा बहुत कम ही होता है कि उनका आक्रामक रूप सामने आए। कैंसर के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई उनकी जीवटता का एक और बेहतरीन उदाहरण है।"
बीबीसी के डिजीटल एडिटर मिलिंद खांडेकर बताते हैं- "साल 2004 के लोकसभा चुनावों का वक्त था। मैं पुणे में शरद पवार की रैली को कवर करने के लिए था। रैली के दौरान ही उन्होंने घोषणा की कि एक बार यह रैली ख़त्म हो जाएगी तो वो सीधे अस्पताल जाएंगे जहां उनका एक इमरजेंसी ऑपरेशन होना है। वो वहां से मुंबई के लिए रवाना हुए। इंटरव्यू के लिए मैं उनके साथ उनकी कार में ही था। वो ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए। जब पवार की बीमारी की ख़बर सामने आई तो ऐसा माना जाने लगा कि वो अबसे सक्रिय तौर पर काम नहीं करेंगे, लेकिन अब जो है हमारे सामने है। वो कैंसर से लड़कर खड़े हैं और अब लगभग 15 साल बाद भी वो पर्याप्त सक्रिय हैं। ये उनका आत्मबल नहीं तो और क्या है..."।
आत्मकथा
शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का लोकपर्ण राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, जनपथ, नई दिल्ली में हुआ था। इस मौके पर सीताराम येचूरी, के. सी त्यागी, ग़ुलाम नबी आज़ाद, प्रफुल्ल पटेल, नीरज शेखर, सतीश चंद्र, डी. राजा, सुप्रिया सुले और कई अन्य राजनेता भी शामिल हुए थे।
'अपनी शर्तों पर' शरद पवार की अंग्रेज़ी में प्रकाशित आत्मकथा 'ऑन माय टर्म्स' का हिंदी अनुवाद है जिसे 'राजकमल प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित किया गया है। 'अपनी शर्तों पर' किताब की भूमिका में शरद पवार ने कहा, "यह किताब मैंने अपने जीवन पर दृष्टिपात करने के लिए तैयार की, साथ ही कुछ जरूरी बातों पर अपने विचार रखने और कुछ बातों के जवाब देने के लिए भी"। आत्मकथा में शरद पवार ने अपने कई दशक लंबे राजनीतिक जीवन पर नजर डाली है और गठबंधन की राजनीति से लेकर कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र, देश में कृषि और उद्योगों के हालत के साथ-साथ भावी भारत की चुनौतियों पर अपने निष्कर्ष भी व्यक्त किए हैं।
इस पुस्तक में शरद पवार देश पर आए संकट के कुछ क्षणों पर भी दुर्लभ जानकारी देते चलते हैं, जिनमें आपातकाल और देश की क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय राजनीति पर उसके प्रभाव; 1991 में चंद्रशेखर सरकार का पतन; राजीव गांधी और एच.एस. लोंगोवाल के बीच हुआ पंजाब समझौता; बाबरी मस्जिद ध्वंस; 1993 के मुम्बई दंगे; लातूर का भूकम्प; एनरॉन विद्युत परियोजना विवाद और सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री पद न लेने का फैसला आदि निर्णायक महत्व के मुद्दे शामिल हैं। भारतीय राजनीति के कुछ बड़े नामों का रोमांचकारी आंकलन भी उन्होंने किया है, जिससे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, वाई.बी. चव्हाण, मोरारजी देसाई, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, पी. वी. नरसिम्हा राव, जॉर्ज फर्नांडिस और बाल ठाकरे के व्यक्तित्वों पर नई रोशनी पड़ती है।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बारामती से 10 किलोमीटर दूर
- ↑ 2.0 2.1 शरद पवार (हिंदी) itshindi.com। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2020।
- ↑ शरद पवार: आख़िर कहां से आया उनमें ये जुझारुपन? (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2020।
- ↑ शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर', पढ़ने को मिलेंगे दिलचस्प किस्से (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2020।
बाहरी कड़ियाँ
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