भारोत्तोलन (अंग्रेज़ी: Weightlifting) किसी भी खिलाड़ी के लिये उसकी ताकत और तकनीक को दर्शाने वाली खेल प्रतियोगिता है। भारोत्तोलन में दो तरह की तकनीकों का इस्तेमाल होता है। पहली तकनीक है स्नेच, जिसमें भार को सिर के ऊपर तक उठाना होता है और दूसरी तकनीक है क्लीन एंड जर्क, जिसमें भार को दो चरणों में उठाना होता है। चोटी के भारोत्तोलक अपने वज़न से तीन गुना ज़्यादा तक भार उठा लेते हैं।
परिचय
सन 1896 के बाद से भारोत्तोलन ओलंपिक खेलों का हिस्सा रहा है, भारोत्तोलन एथलीट की शक्ति और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। सबसे आकर्षक खेलों में से एक, भारोत्तोलन एथलीट की शक्ति और साहस का प्रतीक है। तकनीक और असली ताकत के साथ खेला जाने वाला भारोत्तोलन रोमांचक खेलों में से एक है। जिसमें एथलीट अपने शरीर के दोगुना या कभी कभी तीन गुना भार उठा लेता है। एक गलत लिफ्ट कई चोटों का कारण बन सकती है।[1]
इतिहास
इस ऐतिहासिक खेल की जड़े अफ्रीका, दक्षिण एशिया और प्राचीन ग्रीस में फैली हुई हैं। हालांकि आज इस खेल में कई देशों के युवा अपना करियर बनाना चाहते हैं। विश्व भारोत्तोलन की शासी निकाय 'अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन महासंघ' का गठन 1905 में किया गया था और प्रत्येक वर्ष पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए भारोत्तोलन विश्व चैंपियनशिप आयोजित करता है। ओलंपिक वर्ष में इस इवेंट को आयोजित नहीं किया जाता है। हालांकि खेल का नाम जितनी आसानी से खेल की व्याख्या करता है, ये खेल उतना भी आसान नहीं है। भारोत्तोलन में उसे विजेता घोषित नहीं किया जाता, जिसने सबसे ज्यादा वजन उठा लिया हो।
नियम और स्कोरिंग
आधुनिक ओलंपिक भारोत्तोलन में दो चरण होते हैं-
- स्नैच
- क्लीन एंड जर्क
स्नैच वो जगह होती है, जहां वेटलिफ्टर बारबेल को उठाता है और अपने सिर के ऊपर एक गति में उठाता है। क्लीन एंड जर्क में, वेटलिफ्टर को सबसे पहले बारबेल को उठाकर अपनी छाती (क्लीन) तक लानी होती है। फिर उन्हें एक सीधी कोहनी के साथ अपने सिर से ऊपर उठाने के लिए अपनी बाहों और पैरों को थामना और विस्तारित करना होता है और बजर के बजने तक इसे वहीं रखना होता है। एक वेटलिफ्टर को तीन स्नैच प्रयास और तीन क्लीन एंड जर्क प्रयास दिए जाते हैं। वेटलिफ्टर का स्नैच और क्लीन एंड जर्क में सर्वश्रेष्ठ प्रयास को माना जाता है और जो सबसे अधिक संयुक्त भार उठाता है उसे विजेता घोषित किया जाता है। अगर दो प्रतिभागियों ने एक ही बराबर वजन उठाया है, तो कम बॉडीवेट वाले वेटलिफ्टर को विजेता घोषित किया जाता है। बॉडीवेट भी बराबर होने की स्थिति में, कम प्रयासों में अधिक वजन उठाने वाले को विजेता घोषित किया जाता है।[1]
एक प्रतिभागी को एक सफल लिफ्ट के बाद अपने अगले प्रयास के लिए अपना वजन बढ़ाने की अनुमति होती है। जो अपने पहले प्रयास में सबसे कम वजन उठाने का फैसला करता है, उसे पहले जाने की अनुमति दी जाती है। किसी भी टूर्नामेंट में सबसे पहले जाने वाले वेटलिफ्टर के नाम को पुकारे जाने के एक मिनट के भीतर उसे अपना पहला प्रयास करना होता है। बारबेल स्टील से बना होता है और भारी वजन, रबर से ढका होता है, जो कि प्लेट्स के किनारों पर जोड़ा जाता है। भारोत्तोलक को अपने शरीर के कुछ हिस्सों को ढकने के लिए टेप का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है, जैसे- कलाई और अंगूठे। ऐसा इसलिए किया जाता है, जिससे वेटलिफ्टर चोट के जोखिम को रोक या कम कर सकें। वे अक्सर लिफ्ट से पहले अपने हाथों को सुखाने के लिए हाथों पर चाक रगड़ते हैं, जो बारबेल को फिसलने से रोकता है।
ओलंपिक में भारोत्तोलन
भारोत्तोलन को आधुनिक ओलंपिक खेलों के साथ शुरुआत से ही जोड़ा गया है। ये ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में क्षेत्र की इवेंट के रूप में 1896 में ग्रीस के एथेंस में उद्घाटन संस्करण में शामिल किया गया था। 1896 के ओलंपिक में दो भारोत्तोलन स्पर्धाएँ थीं- एक हाथ से उठाना और दो हाथों से उठाना। ग्रेट ब्रिटेन के ल्युकेस्टोन इलियट वन-हैंड स्पर्धा के ’चैंपियन बने थे, जबकि डेनमार्क के विगो जेनसेन पहले-टू-हैंड’ ओलंपिक चैंपियन बने थे। हालाँकि, 1904, 1908 और 1912 के ओलंपिक से भारोत्तोलन को बाहर रखा गया था। हालांकि बेल्जियम के एंटवर्प 1920 ओलंपिक में भारोत्तोलन ने फिर से वापसी की और तब से ये खेल ओलंपिक का स्थायी खेल बन गया।
सन 1924 के पेरिस ओलंपिक के बाद एक-हाथ से लिफ्ट करने वाले इवेंट को बंद कर दिया गया था। ओलंपिक भारोत्तोलन ने पहले 'क्लीन एंड प्रेस', स्नैच और क्लीन एंड जर्क इवेंट आयोजित किए। हालांकि, ये स्पर्धाएं 1972 म्यूनिख ओलंपिक के साथ शुरू हुईं। क्लीन एंड प्रेस-तीन चरण की प्रक्रिया के साथ क्लीन एंड जर्क का ही दूसरा रूप था। हालांकि वेटलिफ्टरों को इसकी तकनीकों को पहचानने में कठिनाई हुई, जिसके कारण इस स्पर्धा को भी बंद कर दिया गया। 1920 के ओलंपिक में पहली बार 60 किग्रा से लेकर 82.5 किग्रा तक की वजन श्रेणियां शामिल की गईं।[1]
सबसे कम वजन श्रेणी (52 किग्रा) की शुरुआत म्यूनिख में 1972 के ओलंपिक में हुई थी, ये वो संस्करण था जिसमें सबसे अधिक +110 किग्रा श्रेणी की स्पर्धा भी देखी गई थी। हालांकि शुरुआत में ये खेल सिर्फ पुरुषों के लिए ओलंपिक में रिजर्व किया गया था, 2000 के सिडनी ओलंपिक में पहली बार ओलंपिक में महिला भारोत्तोलन इवेंट को शामिल किया गया था। वह संस्करण भारत के लिए एक ऐतिहासिक था, जहां कर्णम मल्लेश्वरी 69 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर बनीं, जो आज भी भारत का महिला वर्ग में एकमात्र पदक है। कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं।
टोक्यो 2020 में पुरुषों के लिए सात भार वर्ग थे- 61 किग्रा, 67 किग्रा, 73 किग्रा, 81 किग्रा, 96 किग्रा, 109 किग्रा और + 109 किग्रा। जबकि महिलाएं 49 किग्रा, 55 किग्रा, 59 किग्रा, 64 किग्रा, 76 किग्रा, 87 किग्रा और 87 किग्रा में प्रतिस्पर्धा कर सकती थीं।
सफल ओलंपियन भारोत्तोलक
पुरुष भारोत्तोलकों में ग्रीस के पीरोस डिमास सबसे सफल ओलंपियन है, जिसने तीन स्वर्ण पदक जीते हैं और अलग-अलग वर्षों में 82.5 / 83/85 किलोग्राम श्रेणियों में कांस्य पदक जीता है। एक अन्य ग्रीक वेटलिफ्टर काकी कखीशिवली/अकाकियोस काकियाविलीस और तुर्की के हालिल मुटलू और नईम सुलेमानोग्लू ने तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते हैं। चीन के चेन यानकिंग (58 किग्रा) और दक्षिण कोरिया के ह्सू शू-चिंग (53 किग्रा) ओलंपिक में सबसे सफल महिला भारोत्तोलक हैं, दोनों ने दो स्वर्ण अपनी झोली में डाली है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 ओलंपिक भारोत्तोलन (हिंदी) olympics.com। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2021।
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