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*[[विश्वामित्र]] की घोर तपस्या से विचलित होकर [[इंद्र]] ने मरुदगण तथा रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए दोनों को भेजा।
*[[पुराण|पुराणों]] में '''रंभा''' का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में माना जाता है, जो कि [[कुबेर]] की सभा में थी।
*विश्वामित्र के शाप से रंभा दस हज़ार वर्ष के लिए पाषाण की प्रतिमा बन गई।
*यह [[कश्यप]] और प्राधा की पुत्री थी।
*विश्वामित्र ने रंभा से कहा कि कोई तपस्वी ब्राह्मण तुम्हारा उद्धार करेगा।
*रंभा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी।
*विश्वामित्र ने पूर्व दिशा में जाकर एक हज़ार वर्ष तक निराहार रहकर तपस्या करने की दीक्षा ली। एक हज़ार वर्ष की घोर तपस्या के बाद जब उन्होंने भोजन के लिए अन्न परोसा, तब इंद्र ब्राह्मण के रूप में आये और उनसे भिक्षा मांगी। विश्वामित्र ने सम्पूर्ण भोजन ही उन्हें दे दिया और साँस रोककर एक हज़ार वर्ष तक के लिए पुन: तपस्या में लीन हो गये।
*रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबर के साथ पत्नी की तरह रहती थी।
*विश्वामित्र के मस्तक से धुआं निकलने लगा, जिसे देखकर [[ऋषि]], गंधर्व, पन्नग सब त्रस्त होकर [[ब्रह्मा]] के पास जा पहुँचे, और ब्रह्माजी से कहने लगेकि कलुषहीन विश्वामित्र को मनचाहा वर नहीं मिला तो उनकी तपस्या से चराचर लोक भस्म हो जाएगा। सब लोग धर्म-कर्म भूलकर नास्तिक हुए जा रहे हैं।
*इस सम्बन्ध को लेकर [[रावण]] ने एक बार दोनों का उपहास किया था।
*ब्रह्मा ने विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व प्रदान किया। विश्वामित्र ने उनसे ब्रह्मज्ञान, वेद-वेदांग आदि की याचना की, साथ ही यह भी कि वसिष्ठ भी उन्हें 'ब्रह्मपुत्र' कहकर पुकारें। यह सब प्राप्त होने पर वसिष्ठ ने उनसे मैत्री की और कहा कि अब वे ब्राह्मणत्व के समस्त गुणों से विभूषित हैं। मुनि शतानंद के मुँह से यह गाथा सुनकर जनक अत्यंत प्रसन्न हुए।<ref>(पुस्तक 'भारतीय मिथक कोश') पृष्ठ संख्या-254</ref>
*रावण द्वारा इस प्रकार उपहास किए जाने पर नलकुबर ने उसे शाप दिया था कि, तुझे न चाहने वाली स्त्री से तू बलात्कार करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।
*इसी शाप के भय से रावण [[सीता]] पर अपने बल का प्रयोग न कर सका।
 
*अन्यत्र विवरण मिलता है कि, रावण ने रंभा के साथ बल का प्रयोग करना चाहा था, जिस पर उसने भी उसे शाप दिया था।
 
*[[इन्द्र]] ने [[देवता|देवताओं]] से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था।
*स्वर्ग में [[अर्जुन]] के स्वागत के लिए रंभा ने नृत्य किया था।
*[[विश्वामित्र]] की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा था।
*ऋषि इन्द्र का षड्यंत्र समझ गए और उन्होंने रंभा को हज़ार वर्षों तक शिला बनकर रहने का शाप दे डाला।
*[[वाल्मीकि]] [[रामायण]] के अनुसार एक [[ब्राह्मण]] द्वारा यह [[ऋषि]] के शाप से मुक्त हुई।
*[[स्कन्दपुराण]] में इसके उद्धारक 'श्वेतमुनि' बताए गए हैं, जिनके छोड़े बाण से यह शिलारूप में कंमितीर्थ में गिरकर मुक्त हुई।
*[[महाभारत]] में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।


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10:08, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

  • पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में माना जाता है, जो कि कुबेर की सभा में थी।
  • यह कश्यप और प्राधा की पुत्री थी।
  • रंभा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी।
  • रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबर के साथ पत्नी की तरह रहती थी।
  • इस सम्बन्ध को लेकर रावण ने एक बार दोनों का उपहास किया था।
  • रावण द्वारा इस प्रकार उपहास किए जाने पर नलकुबर ने उसे शाप दिया था कि, तुझे न चाहने वाली स्त्री से तू बलात्कार करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।
  • इसी शाप के भय से रावण सीता पर अपने बल का प्रयोग न कर सका।
  • अन्यत्र विवरण मिलता है कि, रावण ने रंभा के साथ बल का प्रयोग करना चाहा था, जिस पर उसने भी उसे शाप दिया था।
  • इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था।
  • स्वर्ग में अर्जुन के स्वागत के लिए रंभा ने नृत्य किया था।
  • विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा था।
  • ऋषि इन्द्र का षड्यंत्र समझ गए और उन्होंने रंभा को हज़ार वर्षों तक शिला बनकर रहने का शाप दे डाला।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक ब्राह्मण द्वारा यह ऋषि के शाप से मुक्त हुई।
  • स्कन्दपुराण में इसके उद्धारक 'श्वेतमुनि' बताए गए हैं, जिनके छोड़े बाण से यह शिलारूप में कंमितीर्थ में गिरकर मुक्त हुई।
  • महाभारत में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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