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अंग-अंग चंदन वन हो गया।
अंग-अंग चंदन वन हो गया।


बोल है कि वेद की ऋचायें
बोल है कि वेद की ऋचायें,
सांसों में सूरज उग आयें
सांसों में सूरज उग आयें,
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
आँखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे,
मन सारा नील गगन हो गया।
मन सारा नील गगन हो गया।


गंध गुंथी बाहों का घेरा
गंध गुंथी बाहों का घेरा,
जैसे मधुमास का सवेरा
जैसे मधुमास का सवेरा,
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,
पूजा का एक जतन हो गया।
पूजा का एक जतन हो गया।


पानी पर खीचकर लकीरें
पानी पर खीचकर लकीरें,
काट नहीं सकते जंजीरें
काट नहीं सकते जंजीरें,
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं,
अग्निबिंदु और सघन हो गया।
अग्निबिंदु और सघन हो गया।


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एक नाम अधरों पर आया -कन्हैयालाल नंदन
कन्हैयालाल नंदन
कन्हैयालाल नंदन
कवि कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म स्थान फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
मृत्यु स्थान दिल्ली
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ

एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।

बोल है कि वेद की ऋचायें,
सांसों में सूरज उग आयें,
आँखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे,
मन सारा नील गगन हो गया।

गंध गुंथी बाहों का घेरा,
जैसे मधुमास का सवेरा,
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,
पूजा का एक जतन हो गया।

पानी पर खीचकर लकीरें,
काट नहीं सकते जंजीरें,
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं,
अग्निबिंदु और सघन हो गया।

एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया।





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