"मध्य प्रदेश की कृषि": अवतरणों में अंतर

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'''कृषि राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था''' का मुख्य आधार है। राज्‍य की 74.73 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और खेती पर ही निर्भर है। राज्‍य की लगभग 49 प्रतिशत ज़मीन खेती योग्‍य है। 2004-2005 में शुद्ध बुवाई क्षेत्र 1247 लाख हेक्‍टेयर के लगभग था और अनाज का कुल उत्‍पादन 14.10 करोड़ मीट्रिक टन रहा। [[गेहूँ]], चावल, दलहन जैसी प्रमुख फ़सलों का उत्‍पादन भी अच्‍छा रहा। 20 ज़िलों में 'राष्‍ट्रीय बागवानी मिशन' क्रियान्वित किया गया है। बाग़वानी और खाद्य प्रसंस्‍करण विभाग नाम से अलग विभाग का गठन किया गया है।
'''कृषि राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था''' का मुख्य आधार है। राज्‍य की 74.73 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और खेती पर ही निर्भर है। राज्‍य की लगभग 49 प्रतिशत ज़मीन खेती योग्‍य है। 2004-2005 में शुद्ध बुवाई क्षेत्र 1247 लाख हेक्‍टेयर के लगभग था और अनाज का कुल उत्‍पादन 14.10 करोड़ मीट्रिक टन रहा। [[गेहूँ]], चावल, दलहन जैसी प्रमुख फ़सलों का उत्‍पादन भी अच्‍छा रहा। 20 ज़िलों में 'राष्‍ट्रीय बागवानी मिशन' क्रियान्वित किया गया है। बाग़वानी और खाद्य प्रसंस्‍करण विभाग नाम से अलग विभाग का गठन किया गया है।


'''कृषि योग्य भूमि''' चंबल, मालवा का पठार और रेवा के पठार में मिलती हैं। नदी द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से ढकी नर्मदा घाटी उपजाऊ इलाक़ा है। मध्य प्रदेश की कृषि की विशेषता कृषि की परम्परागत पद्धति का उपयोग है। कृषि योग्य भूमि का केवल 15 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, राज्य की कृषि वर्षा पर निर्भर है और बहुधा कृषकों को सूखे व लाल-पीली मिट्टी के कारण नमी की कम मात्रा का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश में होने वाली सिंचाई मुख्यतः नहरों, कुओं, गाँवों के तालाबों और झीलों से होती है।  
'''कृषि योग्य भूमि''' चंबल, मालवा का पठार और रेवा के पठार में मिलती हैं। नदी द्वारा बहाकर लाई गई [[जलोढ़ मिट्टी]] से ढकी नर्मदा घाटी उपजाऊ इलाक़ा है। मध्य प्रदेश की कृषि की विशेषता कृषि की परम्परागत पद्धति का उपयोग है। कृषि योग्य भूमि का केवल 15 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, राज्य की कृषि वर्षा पर निर्भर है और बहुधा कृषकों को सूखे व लाल-पीली मिट्टी के कारण नमी की कम मात्रा का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश में होने वाली सिंचाई मुख्यतः नहरों, कुओं, गाँवों के तालाबों और झीलों से होती है।  


'''प्रमुख फ़सलें''' चावल, गेहूँ, ज्वार, दलहन (चना, सेम और मसूर जैसी फलियाँ) और [[मूँगफली]] हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में मुख्यतः चावल उगाया जाता है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में गेहूँ और ज्वार अधिक होता है। अन्य फ़सलों में अलसी, तिल, गन्ना और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाने वाला ज्वार-बाजरा प्रमुख है। राज्य अफ़ीम, मंदसौर ज़िले में और मारिजुआना, दक्षिणी-पश्चिमी खांडवा ज़िले में, का उत्पादक राज्य है।  
'''प्रमुख फ़सलें''' चावल, गेहूँ, ज्वार, दलहन (चना, सेम और मसूर जैसी फलियाँ) और [[मूँगफली]] हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में मुख्यतः चावल उगाया जाता है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में गेहूँ और ज्वार अधिक होता है। अन्य फ़सलों में अलसी, तिल, गन्ना और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाने वाला ज्वार-बाजरा प्रमुख है। राज्य अफ़ीम, मंदसौर ज़िले में और मारिजुआना, दक्षिणी-पश्चिमी खांडवा ज़िले में, का उत्पादक राज्य है।  
मध्य प्रदेश में पशु पालन और कुक्कुट पालन महत्त्वपूर्ण हैं। देश के कुल पशुधन (गाय, भैंस और भेड़ और सूअर) का लगभग सातवां भाग इस राज्य में है।  
मध्य प्रदेश में पशु पालन और कुक्कुट पालन महत्त्वपूर्ण हैं। देश के कुल पशुधन (गाय, भैंस और भेड़ और सूअर) का लगभग सातवां भाग इस राज्य में है।  
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मध्य प्रदेश में कुछ महत्त्वपूर्ण नदियों का उद्गम होता है-  
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मध्य प्रदेश राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश के साथ मिलकर 'चंबल' राज्य की उत्तरी सीमा बनाता है। इसकी घाटी की भूमि ऊबड़ - खाबड़ है। मध्य प्रदेश की मिट्टी को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. काली मिट्टी- यह मालवा के पठार के दक्षिणी भाग, नर्मदा घाटी और सतपुड़ा के कुछ भागों में मिलती है। इसमें चिकनी मिट्टी का कुछ अंश रहता है, भारी वर्षा या बाढ़ के पानी से सिंचाई से काली मिट्टी जलावरुद्ध हो जाती है।
  2. लाल-पीली मिट्टी- इसमें कुछ मात्रा बालू की रहती है। यह शेष मध्य प्रदेश में पाई जाती है।

कृषि राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्य आधार है। राज्‍य की 74.73 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और खेती पर ही निर्भर है। राज्‍य की लगभग 49 प्रतिशत ज़मीन खेती योग्‍य है। 2004-2005 में शुद्ध बुवाई क्षेत्र 1247 लाख हेक्‍टेयर के लगभग था और अनाज का कुल उत्‍पादन 14.10 करोड़ मीट्रिक टन रहा। गेहूँ, चावल, दलहन जैसी प्रमुख फ़सलों का उत्‍पादन भी अच्‍छा रहा। 20 ज़िलों में 'राष्‍ट्रीय बागवानी मिशन' क्रियान्वित किया गया है। बाग़वानी और खाद्य प्रसंस्‍करण विभाग नाम से अलग विभाग का गठन किया गया है।

कृषि योग्य भूमि चंबल, मालवा का पठार और रेवा के पठार में मिलती हैं। नदी द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से ढकी नर्मदा घाटी उपजाऊ इलाक़ा है। मध्य प्रदेश की कृषि की विशेषता कृषि की परम्परागत पद्धति का उपयोग है। कृषि योग्य भूमि का केवल 15 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, राज्य की कृषि वर्षा पर निर्भर है और बहुधा कृषकों को सूखे व लाल-पीली मिट्टी के कारण नमी की कम मात्रा का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश में होने वाली सिंचाई मुख्यतः नहरों, कुओं, गाँवों के तालाबों और झीलों से होती है।

प्रमुख फ़सलें चावल, गेहूँ, ज्वार, दलहन (चना, सेम और मसूर जैसी फलियाँ) और मूँगफली हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में मुख्यतः चावल उगाया जाता है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में गेहूँ और ज्वार अधिक होता है। अन्य फ़सलों में अलसी, तिल, गन्ना और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाने वाला ज्वार-बाजरा प्रमुख है। राज्य अफ़ीम, मंदसौर ज़िले में और मारिजुआना, दक्षिणी-पश्चिमी खांडवा ज़िले में, का उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश में पशु पालन और कुक्कुट पालन महत्त्वपूर्ण हैं। देश के कुल पशुधन (गाय, भैंस और भेड़ और सूअर) का लगभग सातवां भाग इस राज्य में है।

नर्मदा नदी
Narmada River
नदियाँ

मध्य प्रदेश में कुछ महत्त्वपूर्ण नदियों का उद्गम होता है-

  1. नर्मदा,
  2. ताप्ती (तापी),
  3. महानदी और
  4. वेनगंगा (गोदावरी की सहायक नदी),
  5. बहुत सी जलधाराएँ यमुना और गंगा की सहायक नदियों के रूप में उत्तर की ओर बहती हैं।
  6. अन्य नदियों में यमुना की सहायक नदियाँ—बनास, बेतवाकेन और सोन (गंगा की सहायक नदी) आती हैं।
सिंचाई

2004-2005 में कुल 61.9 लाख हेक्‍टेयर इलाके में सिंचाई सुविधा उपलब्‍ध थी। सिंचाई सुविधाओं में 39 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक वृद्धि का लक्ष्‍य है। 30 ज़िलों की विद्यमान सिंचाई प्रणालियों का नवीकरण करके 5 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं की फिर से बहाली के लिए 1919 करोड़ रुपये की जल क्षेत्र पुनर्निर्माण परियोजना पर काम चल रहा है।



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