"ओ हर सुबह जगाने वाले -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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भूख़ फलती थी यूँ गलियों में , ज्यों फले यौवन कनेर का, | भूख़ फलती थी यूँ गलियों में , ज्यों फले यौवन कनेर का, | ||
बीच ज़िन्दगी और मौत के फासला था बस एक मुंडेर का। | बीच ज़िन्दगी और मौत के फासला था बस एक मुंडेर का। | ||
मजबूरी इस | मजबूरी इस क़दर कि बहारों में गाने वाली बुलबुल को, | ||
दो दानो के लिए करना पड़ता था कीर्तन कुल्लेर का। | दो दानो के लिए करना पड़ता था कीर्तन कुल्लेर का। | ||
ओ हर पलना झुलाने वाले, ओ हर पलंग बिछाने वाले, | ओ हर पलना झुलाने वाले, ओ हर पलंग बिछाने वाले, | ||
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यूँ चलती थी हाट कि बिकते फूल , दाम पाते थे माली, | यूँ चलती थी हाट कि बिकते फूल , दाम पाते थे माली, | ||
दीपों से | दीपों से ज़्यादा अमीर थी , उंगली दीप बुझाने वाली। | ||
और यहीं तक नहीं, आड़ लेके सोने के सिहांसन की, | और यहीं तक नहीं, आड़ लेके सोने के सिहांसन की, | ||
पूनम को बदचलन बताती थी अमावस की रजनी काली। | पूनम को बदचलन बताती थी अमावस की रजनी काली। |
14:27, 11 मई 2012 के समय का अवतरण
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ओ हर सुबह जगाने वाले, ओ हर शाम सुलाने वाले, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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