"दाग -राजेश जोशी": अवतरणों में अंतर
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Rajesh-Joshi.jpg |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "गलत" to "ग़लत") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई | मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के | ||
पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है | पीठ पर धूल का एक बड़ा सा गोल छपका है | ||
जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद | जैसे धूल भरी हवाओं वाली रात में चाँद | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
सर उठा कर गा सकता हूँ | सर उठा कर गा सकता हूँ | ||
हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | ||
कितने | कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान | ||
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए | अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए ग़लत समझौते | ||
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ||
आँख के सामने होते अन्याय को देख कर भी चीखे नहीं | आँख के सामने होते अन्याय को देख कर भी चीखे नहीं | ||
और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए | और नज़र बचा कर चुपचाप, हर जोखिम की जगह से खिसक आए | ||
सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल | सामने दिखते दागों के पीछे अपने असल दाग़ छिपाता हूँ | ||
और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ। | और कोई उन पर उंगली उठाता है तो खिसिया कर कन्नी काट जाता हूँ। | ||
14:20, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||
|
मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के |
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
|