"लेकिन मन आज़ाद नहीं है -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर

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देख रहा है राम राज्य का
देख रहा है राम राज्य का
स्वप्न आज साकेत हमारा
स्वप्न आज साकेत हमारा
खूनी कफन ओढ़ लेती ह
खूनी कफ़न ओढ़ लेती ह
लाश मगर दशरथ के प्रण की
लाश मगर दशरथ के प्रण की


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एक नयी नगरी तारों में
एक नयी नगरी तारों में
सीमित किन्तु हमारी पूजा
सीमित किन्तु हमारी पूजा
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों में
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों में


यद्यपि कहते आज कि हम सब
यद्यपि कहते आज कि हम सब

10:03, 17 मई 2013 के समय का अवतरण

लेकिन मन आज़ाद नहीं है -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

सचमुच आज काट दी हमने
जंजीरें स्वदेश के तन की
बदल दिया इतिहास बदल दी
चाल समय की चाल पवन की

देख रहा है राम राज्य का
स्वप्न आज साकेत हमारा
खूनी कफ़न ओढ़ लेती ह
लाश मगर दशरथ के प्रण की

मानव तो हो गया आज
आज़ाद दासता बंधन से पर
मज़हब के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

हम शोणित से सींच देश के
पतझर में बहार ले आए
खाद बना अपने तन की-
हमने नवयुग के फूल खिलाए

डाल डाल में हमने ही तो
अपनी बाहों का बल डाला
पात पात पर हमने ही तो
श्रम जल के मोती बिखराए

कैद कफस सय्यद सभी से
बुलबुल आज स्वतंत्र हमारी
ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।
यद्यपि कर निर्माण रहे हम
एक नयी नगरी तारों में
सीमित किन्तु हमारी पूजा
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों में

यद्यपि कहते आज कि हम सब
एक हमारा एक देश है
गूंज रहा है किन्तु घृणा का
तार बीन की झंकारों में

गंगा ज़मज़म के पानी में
घुली मिली ज़िन्दगी़ हमारी
मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद
नहीं है ।
तन तो आज स्वतंत्रतापूर्ण हमारा लेकिन मन
आज़ाद नहीं है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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