"एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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माँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने, | माँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने, | ||
हो गया कूल | हो गया कूल नाराज़ जिस नाव से | ||
पा गई प्यार वह एक मंझधार का, | पा गई प्यार वह एक मंझधार का, | ||
बुझ गया जो दीया भोर में दीन-सा | बुझ गया जो दीया भोर में दीन-सा | ||
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एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! | ||
साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर! | साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर! | ||
प्यार इतना किया | प्यार इतना किया ज़िंदगी में कि जड़- | ||
मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया, | मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया, | ||
रूप-सौंदर्य इतना लुटाया कि हर | रूप-सौंदर्य इतना लुटाया कि हर | ||
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याद भूली न लेकिन किसी राम की, | याद भूली न लेकिन किसी राम की, | ||
हर जगह | हर जगह ज़िंदगी में लगी कुछ कमी | ||
हर हँसी आँसुओं में नहाई मिली, | हर हँसी आँसुओं में नहाई मिली, | ||
हर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तक | हर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तक |
17:09, 30 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
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एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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