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| {{भारत विषय सूची}}
| | <div style="float:left; width:50%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> |
| __TOC__
| | {| width="98%" class="bharattable-pink" style="float:left"; |
| {| style="float:right" | | |+ [[भारत]] के प्रमुख व्यक्ति एवं उनके कार्य |
| |- | | |- |
| | | | ! width="5%"| क्रमांक |
| {{प्रांगण लेख इतिहास}} | | ! width="55%"| कार्य |
| | ! width="40%"| व्यक्ति नाम |
| | |} |
| | <div style="height: 350px; overflow:auto; overflow-x:hidden;"> |
| | {| class="bharattable-pink" border="1" width="98%" |
| | |- |
| | | 1 |
| | | परिवार नियोजन |
| | | एम. एस. सेंगर (1952) |
| | |- |
| | | 2 |
| | | वन महोत्सव |
| | | के. एम. मुंशी |
| | |- |
| | | 3 |
| | | सिनेमा |
| | | [[दादा साहेब फाल्के]] |
| | |- |
| | | 4 |
| | | [[पंचायती राज]] |
| | | बलवंत राय मेहता |
| | |- |
| | | 5 |
| | | परमाणु कार्यक्रम |
| | | [[होमी जहांगीर भाभा]] |
| | |- |
| | | 6 |
| | | भारतीय अर्थशास्त्र |
| | | [[मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया]] |
| | |- |
| | | 7 |
| | | माउंट एवरेस्ट की खोज |
| | | जार्ज एवरेस्ट |
| | |- |
| | | 8 |
| | | हरितक्रांति |
| | | एम. एस. स्वामीनाथन |
| | |- |
| | | 9 |
| | | श्वेतक्रांति |
| | | [[वर्गीज़ कुरीयन]] |
| | |- |
| | | 10 |
| | | नागरिक उड्डयन |
| | | [[जे. आर. डी. टाटा]] |
| | |- |
| | | 11 |
| | | जयपुर फुट |
| | | प्रमोद करन सेठी |
| | |- |
| | | 12 |
| | | आधुनिक पुलिस एक्ट |
| | | बर्टल फ्रेरे |
| | |- |
| | | 13 |
| | | सिविल सेवा |
| | | कार्नवालिस |
| | |- |
| | | 14 |
| | | भूदान आंदोलन |
| | | [[विनोबा भावे]] |
| | |- |
| | | 15 |
| | | चिपको आंदोलन |
| | | सुन्दरलाल बहुगुना |
| | |- |
| | | 16 |
| | | नक्सलवाद |
| | | चारू मजूमदार |
| | |- |
| | | 17 |
| | | जनहित याचिका |
| | | पी. एन. भगवती |
| | |- |
| | | 18 |
| | | लोक अदालत |
| | | पी. एन. भगवती |
| | |- |
| | | 19 |
| | | लाईफ लाईन एक्सप्रेस |
| | | जॉन विल्सन |
| | |- |
| | | 20 |
| | | ब्लेक होल |
| | | जयंत नार्लीकर |
| | |- |
| | | 21 |
| | | मिसाईल कार्यक्रम |
| | | [[अब्दुल कलाम|एपीजे अब्दुल कलाम]] |
| | |- |
| | | 22 |
| | | नर्मदा बचाओं आंदोलन |
| | | [[मेधा पाटकर]] |
| | |- |
| | | 23 |
| | | पौधों में जीवन की खोज |
| | | [[जगदीश चंद्र बोस|जगदीश चन्द्र बसु]] |
| | |- |
| | | 24 |
| | | हिन्दू विधि निर्माता |
| | | मनु |
| | |- |
| | | 25 |
| | | आधुनिक तिरंगा झण्डा |
| | | पिगली वेन्कैया |
| | |- |
| | | 26 |
| | | खुले जेल |
| | | सम्पूर्णानंद |
| | |- |
| | |27 |
| | | भारत जोड़ो आन्दोलन |
| | | [[बाबा आम्टे]] |
| | |- |
| | | 28 |
| | | बंधुआ मज़दूर उन्मूलन |
| | | स्वामी अग्निवेश |
| | |- |
| | |29 |
| | | बालविवाह निषेध |
| | | हरविलास शारदा |
| | |- |
| | | 30 |
| | | विधवा पुनर्विवाह आंदोलन |
| | | ईश्वरचंद्र विद्यासागर |
| | |- |
| | |31 |
| | | जल संरक्षण आंदोलन |
| | | राजेन्द्र सिंह |
| | |- |
| | | 32 |
| | | प्रोजेक्ट टाइगर |
| | | कैलाश सांखला |
| | |- |
| | | 33 |
| | | देसी रियासतों का एकीकरण |
| | | [[सरदार पटेल|वल्लभ भाई पटैल]] |
| | |- |
| | | 34 |
| | | [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]] |
| | | एम. एन. राय |
| | |- |
| | | 35 |
| | | उर्दू कविता के जनक |
| | | [[अमीर खुसरो]] |
| | |- |
| | | 36 |
| | | सितार के जनक |
| | | [[अमीर खुसरो]] |
| | |- |
| | | 37 |
| | | शून्यवाद |
| | | [[नागार्जुन]] |
| | |- |
| | | 38 |
| | | वेदों का पुनरूत्थान |
| | | [[दयानंद सरस्वती]] |
| | |- |
| | | 39 |
| | | वर्धा शिक्षा प्रणाली |
| | | [[गाँधीजी]] |
| | |- |
| | | 40 |
| | | स्त्री शिक्षा |
| | | केशव कर्वे |
| | |- |
| | | 41 |
| | | गुरु ग्रन्थ साहिब संकलन |
| | | [[गुरु अर्जुन देव]] |
| | |- |
| | | 42 |
| | | कांग्रेस समाजवादी दल |
| | | [[जयप्रकाश नारायण]] |
| | |- |
| | | 43 |
| | | निर्गुन ब्रम्ह के संस्थापक |
| | | [[कबीर]] |
| | |- |
| | | 44 |
| | | रस चिकित्सा |
| | | [[नागार्जुन]] |
| | |- |
| | | 45 |
| | | सिख राज्य के संस्थापक |
| | | [[रणजीत सिंह]] |
| | |- |
| | | 46 |
| | | कम्प्यूटर क्रांति |
| | | सैम पित्रोदा |
| | |- |
| | | 47 |
| | | सनातन धर्म के संस्थापक |
| | | [[शंकराचार्य]] |
| | |- |
| | | 48 |
| | | आधुनिक बंगाल के निर्माता |
| | | [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] |
| | |- |
| | | 49 |
| | | माल गुजारी व्यवस्था |
| | | [[टोडरमल]] |
| | |- |
| | | 50 |
| | | द्विराष्ट्र सिद्धांत |
| | | [[सैय्यद अहमद ख़ान]] |
| | |- |
| | | 51 |
| | | खालिस्तान आंदोलन |
| | | डॉ जगजीत सिंह चौहान |
| | |- |
| | | 52 |
| | | [[भारत छोड़ो आंदोलन]] |
| | | [[गांधी जी]] |
| | |- |
| | | 53 |
| | | [[अशोक]] के [[शिलालेख|शिलालेखों]] को सर्वप्रथम पढने वाला |
| | | बी. जेम्स प्रिन्सेप (1837 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 54 |
| | | [[अशोक के शिलालेख|अशोक के शिलालेखों]] की खोज |
| | | पान्द्रेटी पेन्थेलर 1750 ईसा पूर्व |
| | |- |
| | | 55 |
| | | अशोक को [[बौद्ध धर्म]] में दीक्षित किया |
| | | [[उपगुप्त]] |
| | |- |
| | | 56 |
| | | [[गुप्त वंश]] की स्थापना |
| | | [[श्रीगुप्त]] |
| | |- |
| | | 57 |
| | | एरण की खोज |
| | | केड़ी बाजपेई (1960 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 58 |
| | | भीम बैठका की खोज |
| | | श्रीधर वाकणकर (1955 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 59 |
| | | सांची स्तूपों का निर्माण |
| | | [[अशोक]] |
| | |- |
| | | 60 |
| | | सांची स्तूपों की निर्माण |
| | | जनरल टेलर 1818 AD |
| | |- |
| | | 61 |
| | | [[खजुराहो|खजुराहो मंदिरों]] का निर्माण |
| | | नरसिहंवर्मन (चंन्देल राजा) |
| | |- |
| | | 62 |
| | | खजुराहों मंदिरों की खोज |
| | | अल्फ्रेड लायल |
| | |- |
| | | 63 |
| | | [[कुषाण वंश|कुषाणवंश]] का संस्थापक |
| | | [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] |
| | |- |
| | | 64 |
| | | [[आयुर्वेद]] के जनक |
| | | धनवंतरि |
| | |- |
| | | 65 |
| | | शल्य चिकित्सा |
| | | सुश्रुप्त |
| | |- |
| | | 66 |
| | | सूर्य सिद्धांत |
| | | [[आर्यभट्ट]] |
| | |- |
| | | 67 |
| | | [[राजपूत|राजपूतों]] की उत्पत्ति का अग्नि कुण्ड सिद्धांत |
| | | [[चन्दबरदाई]] |
| | |- |
| | | 68 |
| | | [[सिंधु सभ्यता]] की खोज |
| | | दयाराम साहनी एवं राखलदास बनर्जी |
| | |- |
| | | 69 |
| | | पुरातत्व विभाग का संस्थापक |
| | | [[कनिंघम|अलेक्जेन्डर कनिंघम]] (1901) |
| | |- |
| | | 70 |
| | | सर्वप्रथम [[वेद|वेदों]] का अध्ययन |
| | | मैक्समूलर (जर्मनी) |
| | |- |
| | | 71 |
| | | [[पाटलीपुत्र]] का संस्थापक |
| | | [[उदयन]] |
| | |- |
| | | 72 |
| | | [[विक्रम संवत]] |
| | | [[विक्रमादित्य|राजा विक्रमादित्य]] (58 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 73 |
| | | [[शक संवत]] |
| | | [[कनिष्क]] (78 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 74 |
| | | [[मौर्य वंश]] का संस्थापक |
| | | [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (322 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 75 |
| | | [[भक्ति आंदोलन]] |
| | | [[चैतन्य महाप्रभु]] |
| | |- |
| | | 76 |
| | | [[हिन्दू धर्म]] का पुनरुत्थान |
| | | [[शंकराचार्य]] |
| | |- |
| | | 77 |
| | | [[मुग़ल वंश]] का संस्थापक |
| | | [[बाबर]] (1526 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 78 |
| | | ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण |
| | | [[शेरशाह सूरी]] |
| | |- |
| | | 79 |
| | | रुपये का प्रचलन |
| | | [[शेरशाह सूरी]] |
| | |- |
| | | 80 |
| | | [[क़ुतुबमीनार]] का निर्माण |
| | | [[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] एवं [[इल्तुतमिश]] |
| | |- |
| | | 81 |
| | | बाज़ार नीति |
| | | [[अलाउद्दीन खिलजी]] |
| | |- |
| | | 82 |
| | | लौह एवं रक्त नीति, सजदा प्रथा, एवं नीरोज त्यौहार |
| | | [[ग़यासुद्दीन बलबन]] |
| | |- |
| | | 83 |
| | | [[सोमनाथ मंदिर]] का विध्वंश |
| | | मोहम्मद गजनवी (8 जनवरी 1025 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 84 |
| | | सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण |
| | | [[सरदार पटेल]] (1949 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 85 |
| | | बावरी मस्जिद का निर्माण |
| | | मीर बाकी |
| | |- |
| | | 86 |
| | | [[ताजमहल]] का वास्तुकार |
| | | उस्ताद ईसा |
| | |- |
| | | 87 |
| | | दीन-ए-इलाही धर्म, सुलह कुल नीति, इबादत खाने की स्थापना,<br /> |
| | [[फतेहपुर सीकरी]] का निर्माण, मजहर की घोषणा |
| | | [[अकबर]] |
| | |- |
| | | 88 |
| | | राजधानी परिवर्तन, सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन |
| | | [[मुहम्मद बिन तुग़लक़|मोहम्मद तुगलक]] |
| | |- |
| | | 89 |
| | | [[आगरा]] का संस्थापक |
| | | [[सिकन्दर लोदी]] (1540 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 90 |
| | | [[जयपुर]] का संस्थापक |
| | | [[राजा जयसिंह|सवाई राजा जयसिंह]] |
| | |- |
| | | 91 |
| | | [[जंतर मंतर जयपुर|जंतर-मंतर]] के संस्थापक |
| | | [[राजा जयसिंह|सवाई राजा जयसिंह]] |
| | |- |
| | |92 |
| | | चारों मठों के संस्थापक |
| | | [[शंकराचार्य]] |
| | |- |
| | |93 |
| | | [[माउंट आबू]] मंदिरों के निर्माता |
| | | विमल शाह |
| | |- |
| | | 94 |
| | | [[दिल्ली]] के वास्तुकार |
| | | एडविन लुटयंस |
| | |- |
| | | 95 |
| | | [[राष्ट्रपति भवन]] के वास्तुकार |
| | | एडविन लुटयंस |
| | |- |
| | | 96 |
| | | [[संसद]] के वास्तुकार |
| | | एडविन लुटयंस एवं हावर्ड वेकर |
| | |- |
| | | 97 |
| | | [[कलकत्ता]] का संस्थापक |
| | | जॉव चारनॉक |
| | |- |
| | | 98 |
| | | [[मुम्बई]] का संस्थापक |
| | | ओनाल्ड आग्जियर |
| | |- |
| | | 99 |
| | | [[भुवनेश्वर]] का वास्तुकार |
| | | कोनिस वर्गर |
| | |- |
| | | 100 |
| | | [[चण्डीगढ़]] का वास्तुकार |
| | | ली कार्बुरियर |
| | |- |
| | | 101 |
| | | भारत भवन |
| | | चार्ल्स कोरिया |
| | |- |
| | | 102 |
| | | रुपये का प्रतीक चिन्ह – |
| | | धर्मलिंगम उदय कुमार |
| | |- |
| | | 103 |
| | | [[गुलाब]] के इत्र का आविष्कार |
| | | [[नूरजहाँ]] |
| | |- |
| | | 104 |
| | | सांख्य दर्शन |
| | | [[कपिल मुनि]] |
| | |- |
| | | 105 |
| | | योग दर्शन |
| | | [[पतंजलि]] |
| | |- |
| | | 106 |
| | | [[न्याय दर्शन]] |
| | | [[गौतम]] |
| | |- |
| | | 107 |
| | | मीमांसा दर्शन |
| | | [[जैमिनी]] |
| | |- |
| | | 108 |
| | | उत्तर मीमांसा दर्शन |
| | | बादरायण |
| | |- |
| | | 109 |
| | | सुखवाद |
| | | चार्वाक |
| | |- |
| | | 110 |
| | | [[बौद्ध धर्म]] |
| | | [[महात्मा बुद्ध]] |
| | |- |
| | | 111 |
| | | [[जैन धर्म]] |
| | | [[महावीर|महावीर स्वामी]] |
| | |- |
| | | 112 |
| | | [[सिक्ख धर्म]] |
| | | [[गुरु नानक]] |
| | |- |
| | | 113 |
| | | [[ब्रह्म समाज]] |
| | | [[राजा राम मोहन राय]] |
| | |- |
| | | 114 |
| | | [[आर्य समाज]] |
| | | [[दयानंद सरस्वती]] |
| | |- |
| | | 115 |
| | | प्रार्थना समाज |
| | | आत्माराम पांडुरंग |
| | |- |
| | | 116 |
| | | वेद समाज |
| | | श्रीधर नायडू |
| | |- |
| | | 117 |
| | | थियोसोफिकल सोसायटी |
| | | मेडम ब्लेवत्सकी एवं हेनरी अल्काट |
| | |- |
| | | 118 |
| | | सत्यशोधक समाज |
| | | [[ज्योतिबा फुले]] |
| | |- |
| | | 119 |
| | | कूका विद्रोह |
| | | रामसिंह |
| | |- |
| | | 120 |
| | | अडयार आश्रम |
| | | [[एनी बेसेंट]] |
| | |- |
| | | 121 |
| | | अरूविले आश्रम |
| | | [[अरविन्द घोष]] |
| | |- |
| | | 122 |
| | | [[रामकृष्ण मिशन]] |
| | | [[स्वामी विवेकानंद]] |
| | |- |
| | | 123 |
| | | [[बेलूर मठ कोलकाता|बेलूर मठ]] |
| | | [[स्वामी विवेकानंद]] |
| | |- |
| | | 124 |
| | | [[शिकागो]] में भाषण |
| | | [[विवेकानंद]] (1893 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 125 |
| | | न्यूयार्क में वेदांत सोसायटी |
| | | [[विवेकानन्द]] |
| | |- |
| | | 126 |
| | | [[गणेश]] एवं [[शिवाजी]] उत्सव |
| | | [[बाल गंगाधर तिलक]] |
| | |- |
| | | 127 |
| | | एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल |
| | | विलियम जोन्स |
| | |- |
| | | 128 |
| | | साइंटिफिक सोसायटी |
| | | [[अब्दुल लतीफ]] |
| | |- |
| | | 129 |
| | | मोहम्मद एंग्लो ओरियंटल कालेज |
| | | [[सर सैयद अहमद ख़ान]] |
| | |- |
| | | 130 |
| | | [[कांग्रेस]] की स्थापना |
| | | ए.ओ. ह्यूम |
| | |- |
| | | 131 |
| | | इंडियन एसोसियेशन |
| | | [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] |
| | |- |
| | | 132 |
| | | तत्व बोधिनी सभा |
| | | [[देवेन्द्रनाथ टैगोर]] |
| | |- |
| | | 133 |
| | | ब्रिटिश सार्वजनिक सभा |
| | | [[दादा भाई नौरोजी]] |
| | |- |
| | | 134 |
| | | रहनुमाई मजदायसान सभा |
| | | [[दादा भाई नौरोजी]] |
| | |- |
| | | 135 |
| | | संथाल विद्रोह |
| | | सिद्धू एवं कान्हू |
| | |- |
| | | 136 |
| | | मुंडा विद्रोह |
| | | बिरसा मुंडा |
| | |- |
| | | 137 |
| | | रेल्वे, डाकतार विभाग पीडब्ल्यूडी की स्थापना एवं हड़प नीति |
| | | [[लार्ड डलहौजी]] |
| | |- |
| | |138 |
| | | खुला विश्वविद्यालय |
| | | लार्ड पैरी |
| | |- |
| | | 139 |
| | | महिला चिकित्सालय |
| | | लेडी डफरिन (1885 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 140 |
| | | पुलिस व्यवस्था |
| | | लार्ड कार्नवालिस (1793 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 141 |
| | | स्थाई बंदोबस्त |
| | | लार्ड कार्नवालिस (1793 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 142 |
| | | अंग्रेज़ी शिक्षा |
| | | [[लॉर्ड मैकाले]] (1835 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 143 |
| | | सहायक संधि |
| | | [[लॉर्ड वेलेज़ली]] |
| | |- |
| | | 144 |
| | | रैय्यतबाड़ी व्यवस्था |
| | | थॉमस मुनरो |
| | |- |
| | | 145 |
| | | सतीप्रथा निषेध क़ानून, कन्यावध, नरवलि, पिंडारी ठगों का अंत |
| | | लार्ड विलियम बैंटिंग |
| | |- |
| | | 146 |
| | | दिल्ली दरबार, वर्नाकुलर प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट, द्वितीय अफ़ग़ान युद्ध |
| | | [[लार्ड लिटन]] |
| | |- |
| | | 147 |
| | | इल्बर्ट बिल विवाद, लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण, प्रथम फैक्ट्री क़ानून, <br /> |
| | प्रथम नियमित जनगणना, बालश्रम उन्मूलन |
| | | [[लार्ड रिपन]] |
| | |- |
| | | 148 |
| | | अकर्मण्यता की नीति |
| | | जॉन लारेंस |
| | |- |
| | | 149 |
| | | सर्वेंटस ऑफ इंडिया सोसायटी |
| | | [[गोपालकृष्ण गोखले]] |
| | |- |
| | | 150 |
| | | [[मुस्लिम लीग]] |
| | | सलीमुल्ला एवं आगा खां |
| | |- |
| | | 151 |
| | | बनारस हिन्दू कॉलेज |
| | | [[एनी बेसेंट]] (1898 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 152 |
| | | [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] |
| | | [[मदन मोहन मालवीय]] (1916 ईसा पूर्व) |
| | |- |
| | | 153 |
| | | सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति |
| | | मार्ले एवं मिन्टो |
| | |- |
| | | 154 |
| | | गदर पार्टी की स्थापना |
| | | [[लाला हरदयाल]] |
| | |- |
| | | 155 |
| | | राष्ट्रगीत की रचना |
| | | [[बंकिम चन्द्र चटर्जी]] |
| | |- |
| | | 156 |
| | | [[राष्ट्रगान]] |
| | | [[रविन्द्र नाथ टैगोर]] |
| | |- |
| | |157 |
| | | [[शान्ति निकेतन]] |
| | | [[रविन्द्र नाथ टैगोर]] |
| | |- |
| | | 158 |
| | | हिन्दू महासभा |
| | | [[मदन मोहन मालवीय]] |
| | |- |
| | | 159 |
| | | [[साबरमती आश्रम]] |
| | | [[गांधीजी]] |
| | |- |
| | | 160 |
| | | होमरूल लीग |
| | | [[बाल गंगाधर तिलक]] (1916) |
| | |- |
| | | 161 |
| | | ऑल इंडिया होमरूल लीग |
| | | [[एनी बेसेंट]] |
| | |- |
| | | 162 |
| | | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ |
| | | डॉ. हेडगेवार |
| | |- |
| | | 163 |
| | | बहिष्कृत हितकारिणी सभा |
| | | [[अंबेडकर|डॉ. अंबेडकर]] |
| | |- |
| | | 164 |
| | | [[बारदोली सत्याग्रह]] |
| | | [[सरदार पटेल]] |
| | |- |
| | | 165 |
| | | खिलाफत आन्दोलन |
| | | मुहम्मद एवं शौक़त अली |
| | |- |
| | | 166 |
| | | [[स्वराज पार्टी]] |
| | | [[चितरंजन दास]] एवं [[मोती लाल नेहरू]] |
| | |- |
| | | 167 |
| | | लालकुर्ती दल |
| | | [[खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ]] |
| | |- |
| | | 168 |
| | | हिन्दुस्तान लीग |
| | | [[भगत सिंह]] |
| | |- |
| | | 169 |
| | | हरिजन सेवक संघ |
| | | [[महात्मा गांधी]] |
| | |- |
| | | 170 |
| | | फारवर्ड ब्लाक |
| | | [[सुभाष चन्द्र बोस]] |
| | |- |
| | | 171 |
| | | [[आजाद हिन्द फ़ौज]] |
| | | कैप्टन मोहन सिंह |
| | |- |
| | | 172 |
| | | गांधीजी को महात्मा कहा |
| | | [[रविन्द्र नाथ टैगोर]] |
| | |- |
| | | 173 |
| | | गांधीजी को बापू कहा |
| | | [[नेहरू जी]] |
| | |- |
| | | 174 |
| | | गांधी जी को राष्ट्रपिता |
| | | [[सुभाषचन्द्र बोस]] |
| | |- |
| | | 175 |
| | | मैथलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि |
| | | [[महात्मा गांधी]] |
| | |- |
| | | 176 |
| | | जिन्ना को कायदे आजम |
| | | [[महात्मा गांधी]] |
| | |- |
| | | 177 |
| | | [[सुभाषचन्द्र बोस]] को नेताजी |
| | | हिटलर |
| | |- |
| | | 178 |
| | | नेहरूजी को चाचा |
| | | [[गांधीजी]] |
| | |- |
| | | 179 |
| | | पाकिस्तान नामक शब्द के जनक |
| | | रहमत अली चौधरी |
| | |- |
| | | 180 |
| | | आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास एसोसियेशन |
| | | [[अंबेडकर|डॉ. अंबेडकर]] |
| | |- |
| | | 181 |
| | | साम्प्रदायिक पंचाट |
| | | रेमजे मेकडोनाल्ड |
| | |- |
| | | 182 |
| | | नेहरू रिपोर्ट |
| | | [[मोतीलाल नेहरू]] |
| | |- |
| | | 183 |
| | | [[जलियांवाला बाग़|जलियां वाला बाग]] हत्याकांड |
| | | [[जनरल डायर]] |
| | |- |
| | | 184 |
| | | संविधान सभा का विचार |
| | | एम.एन. राय |
| | |- |
| | | 185 |
| | | जनसंघ की स्थापना |
| | | श्यामाप्रसाद मुखर्जी |
| | |- |
| | | 186 |
| | | सर्वोदय योजना |
| | | [[जयप्रकाश नारायण]] |
| | |- |
| | | 187 |
| | | संविधान सभा के वैधानिक सलाहकार |
| | | वी.एन. राव |
| | |- |
| | | 188 |
| | | नागरिक उड्डयन, जलविद्युत की स्थापना |
| | | [[जे. आर. डी. टाटा]] |
| | |- |
| | | 189 |
| | | [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी]] |
| | | एम.एन. राय |
| | |- |
| | | 190 |
| | | इस्पात उद्योग के जनक |
| | | [[जे. आर. डी. टाटा]] |
| | |- |
| | | 191 |
| | | जनजातियों को नेशनल पार्क की अवधारणा |
| | | बेरियर एल्विन |
| | |- |
| | | 192 |
| | | [[गुरुमुखी लिपि]], लंगर प्रथा |
| | | [[गुरु अंगद|गुरु अंगद]] |
| | |- |
| | | 193 |
| | | गुरु ग्रंथ साहेब का संकलन |
| | | [[गुरु अर्जुन देव|अर्जुन देव]] |
| | |- |
| | |194 |
| | | [[अमृतसर]] के संस्थापक |
| | | [[गुरु रामदास]] |
| | |- |
| | | 195 |
| | | [[स्वर्ण मंदिर]] का निर्माण |
| | | [[गुरु अर्जुन देव|अर्जुन देव]] |
| | |- |
| | | 196 |
| | | [[खालसा पंथ]] |
| | | [[गुरु गोविन्द सिंह]] |
| | |- |
| | | 197 |
| | | न्याय की जंजीर |
| | | [[जहांगीर]] |
| | |- |
| | | 198 |
| | | परिवार न्यायालय |
| | | पी. एन. भगवती |
| |- | | |- |
| | | | | 199 |
| {{इतिहास}}
| | | [[भारत]] में ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापक |
| | | लार्ड क्लाइव |
| | |- |
| | | 200 |
| | | आदिवासियों के मसीहा |
| | | ठक्कर बापा |
| | |- |
| | | 201 |
| | | सूचना का अधिकार |
| | | [[अरविंद केजरीवाल]] |
| | |- |
| | | 202 |
| | | एशियन खेलों के जनक |
| | | गुरुदत्त सोधी |
| | |- |
| | | 203 |
| | | [[लाल क़िला आगरा|आगरा का लाल किला]] |
| | | [[अकबर]] |
| | |- |
| | | 204 |
| | | [[लाल क़िला दिल्ली|दिल्ली का लाल क़िला]] |
| | | [[शाहजहां]] |
| | |- |
| | | 205 |
| | | कांग्रेस का नामकरण |
| | | [[दादा भाई नौरोजी]] |
| |} | | |} |
| [[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण [[केरल]] से मिला है जो '''सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना''' है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।<ref>देखें: '''शोध ग्रंथ''' {{cite book |last=वेल्स|first=स्पेन्सर|url =http://books.google.ca/books?id=WAsKm-_zu5sC&lpg=PP1&dq=The%20Journey%20of%20Man&pg=PP1#v=onepage&q&f=true |title=अ जेनेटिक ओडिसी|year=2002|publisher=प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी प्रॅस, न्यू जर्सी, सं.रा.अमरीका|language=[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]||id=ISBN 0-691-11532-X}} </ref>इसके पश्चात एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19</ref> यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।
| | </div> |
| | </div> |
|
| |
|
| ==प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत== | | {| class="bharattable-green" |
| भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-
| | |+विशिष्ट पशु - पक्षी एवं उनके निवास स्थल |
| # साहित्यिक साक्ष्य
| | |- |
| # विदेशी यात्रियों का विवरण
| | ! संख्या |
| # पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य
| | ! पशु -पक्षी |
| ====साहित्यिक साक्ष्य====
| | ! निवास स्थल |
| साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- <br />
| | |- |
| धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। <br />
| | |1 |
| ;धार्मिक साहित्य
| | |शुतुरमुर्ग |
| धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।
| | |एटलस पर्वत (मोरक्को अफ्रीका) |
| *ब्राह्मण ग्रन्थों में -
| | |- |
| [[वेद]], [[उपनिषद]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[पुराण]], [[स्मृतियाँ|स्मृति ग्रन्थ]] आते हैं। | | |2 |
| *ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में [[जैन]] तथा [[बौद्ध]] ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है। <br />
| | |मेरिनो भेड |
| ;लौकिक साहित्य
| | |[[आस्ट्रेलिया]] |
| लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।<br />
| | |- |
| | |3 |
| | |किवी |
| | |न्यूजीलैण्ड |
| | |- |
| | |4 |
| | |कंगारू |
| | |आस्ट्रेलिया |
| | |- |
| | |5 |
| | |डे्गन |
| | |[[चीन]] |
| | |- |
| | |6 |
| | |एनाकोंडा |
| | |ब्राजील |
| | |- |
| | |7 |
| | |प्लेटीपस |
| | |[[ऑस्ट्रेलिया]] |
| | |- |
| | |8 |
| | |रेन्डीयर |
| | |अलास्का, टुण्डा प्रदेश |
| | |- |
| | |9 |
| | |श्वेत भू-गिब्बन |
| | |[[असम]] |
| | |- |
| | |10 |
| | |हमिंग वर्ड |
| | |क्यूबा |
| | |- |
| | |11 |
| | |लाल पांडा |
| | |[[हिमाचल प्रदेश]] |
| | |- |
| | |12 |
| | |हंगुल |
| | |[[जम्मू-कश्मीर]] |
| | |- |
| | |13 |
| | |जंगली गधा |
| | |कच्छ का रन |
| | |- |
| | |14 |
| | |सफेद हाथी |
| | |थाईलैण्ड |
| | |- |
| | |15 |
| | |यॉक |
| | |[[तिब्बत]] |
| | |- |
| | |16 |
| | |लामा |
| | |एन्डीज पर्वत |
| | |- |
| | |-17 |
| | |-केरिबू |
| | |-[[दक्षिण अफ्रीका]] |
| | |- |
| | |18 |
| | |एमू |
| | |एन्डीज पर्वत |
| | |- |
| | |19 |
| | |पेग्बिन |
| | |अंटार्कटिका |
| | |- |
| | |20 |
| | |लेमिंग |
| | |[[अफ्रीका]] |
| | |- |
| | |21 |
| | |डांसिगं डियर |
| | |[[मणिपुर]] |
| | |- |
| | |22 |
| | |कस्तूरी मृग |
| | |हिमालय पर्वत |
| | |} |
|
| |
|
| '''धर्म-ग्रन्थ'''<br />
| |
|
| |
|
| प्राचीन काल से ही [[भारत]] के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।<br />
| | ==प्रमुख विटामिन== |
| | {| width="100%" class="bharattable-pink" |
| | |+ विटामिन के बारे में सामान्य जानकारी |
| | |- |
| | ! style="width:10%" | नाम |
| | ! style="width:20%" | वैज्ञानिक नाम |
| | ! style="width:30%" | स्रोत |
| | ! style="width:40%" | कमी से होने वाले रोग |
| | |- |
| | ! विटामिन 'A' |
| | | रेटिनॉल |
| | | [[गाजर]], [[पपीता]], [[दूध]], मक्खन, [[मछली]], अण्डा, हरी सब्जियाँ। |
| | | रतौंधी |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B' |
| | | यह बहुत सारे विटामिनों का समूह है जिसे विटामिन 'बी' काम्पलेक्स कहते है |
| | | हरी सब्जियाँ, अण्डा, मांस, [[सोयाबीन]] आदि। |
| | | चर्म रोग, आंखों में सूजन, कमज़ोर नेत्र दृष्टि, शरीर के विकास की धीमी गति आदि |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B-1' |
| | | थायमिन |
| | | दाल, सोयाबीन, अण्डा, मटर, खमीर आदि। |
| | | बेरी-बेरी |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B-2' |
| | | राइबोफ्लेविन |
| | | खमीर, मटर, सोयाबीन |
| | | मंदबुद्धिता एवं त्वचा पर चकत्ते एवं दानें। |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B-3' |
| | | नियासिन |
| | | [[चावल]], [[गेहूं]], मछली, मांस |
| | | तंत्रिका तंत्र एवं [[पाचन तंत्र|पाचनतंत्र]] प्रभावित |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B-5' |
| | | पेन्टाथानिक एसिड |
| | | हरी सब्जियाँ, मटर एवं दाल |
| | | पेलाग्रा रोग |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B-6' |
| | | पायरीडॉक्सिन |
| | | खमीर, नारियल, पत्तागोभी, टमाटर, अण्ड़ा, सूखें फल |
| | | प्रतिरोधी क्षमता का नाश होना |
| | |- |
| | ! विटामिन 'B12' |
| | | साइनोकोबालामिन, हाइड्रोक्सीकोबालामिन, मिथाइलकोबालामिन |
| | | पत्तागोभी, दालें, हरी सब्जियाँ |
| | | रक्त अल्पता (एनीमिया) |
| | |- |
| | ! विटामिन 'C' |
| | | एस्कार्बिक एसिड |
| | | [[आंवला]], [[नीबू]], [[संतरा]], [[अमरुद]], मिर्च, खट्टे फल आदि |
| | | स्कर्बी |
| | |- |
| | ! विटामिन 'D' |
| | | कैल्सीफेरॉल |
| | | सूर्य का प्रकाश, मछली, [[दूध]], अण्डे आदि |
| | | रिकेट्स (बच्चों में), आस्ट्रयोमलेशिया (वयस्कों में) |
| | |- |
| | ! विटामिन 'E' |
| | | टोकोफेरॉल |
| | | हरी सब्जियाँ, दूध, मक्खन, अण्डा, अनाज, वनस्पति तेल आदि |
| | | हीमोलाइटिक एनीमिया (रक्त अल्पता नवजात शिशुओं में) |
| | |- |
| | ! विटामिन 'K' |
| | | फिलोक़्वेनिन |
| | | टमाटर, हरी सब्जियाँ |
| | | रक्त का थक्का न जमना |
| | |} |
|
| |
|
| '''ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ'''<br />
| |
|
| |
|
| '''ब्राह्मण धर्म''' - ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।<br />
| |
|
| |
|
| '''वेद'''<br />
| | {| class="bharattable-green" |
| {{main|वेद}}
| | |+प्रमुख आविष्कार एवं उनके आविष्कारक |
| वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द [[संस्कृत]] के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-
| | |- |
| *[[ऋग्वेद]]- यह ऋचाओं का संग्रह है।
| | ! क्रमांक |
| *[[सामवेद]]- यह ऋचाओं का संग्रह है।
| | ! आविष्कार |
| *[[यजुर्वेद]]- इसमें यागानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है।
| | ! आविष्कारक |
| *[[अथर्ववेद]]- यह तंत्र-मंत्रों का संग्रह है।
| | |- |
| ====ब्राह्मण ग्रंथ====
| | | 1. |
| {{main|ब्राह्मण साहित्य}}
| | | इंटरनेट के जनक |
| [[यज्ञ|यज्ञों]] एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इस ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई। यहां पर 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रत्येक वेद (संहिता) के अपने-अपने ब्राह्मण होते हैं।
| | | विन्टन जीं सर्प |
| ====आरण्यक====
| | |- |
| {{main|आरण्यक साहित्य}}
| | | 2. |
| आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा, आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन होता है। इन ग्रंथों को आरयण्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थात वन में किया जाता था। ये ग्रन्थ अरण्यों (जंगलों) में निवास करने वाले संन्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गए थै। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन्त आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (इसे जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण भी कहते हैं) मुख्य हैं। ऐतरेय तथा शांखायन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से सम्बद्ध हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राण विद्या की महिमा का प्रतिपादन विशेष रूप से मिलता है। इनमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी हैं, जैसे- तैत्तिरीय आरण्यक में [[कुरु]], [[पंचाल]], [[काशी]], [[विदेह]] आदि [[महाजनपद|महाजनपदों]] का उल्लेख है।
| | | WWW के जनक |
| | | टिम ली बर्नस |
| | |- |
| | | 3. |
| | | उपग्रह |
| | | आर्थर क्लार्क |
| | |- |
| | | 4. |
| | | संकर किस्म की गेंहू प्रजातियां |
| | | नार्मन बोरलांग |
| | |- |
| | | 5. |
| | | लीवर एंव उल्पलावन का सिद्धांत |
| | | आर्कमिंडीज |
| | |- |
| | | 6. |
| | | विद्युत प्रकाश एवं सापेक्षता |
| | | अल्बर्ट आइंस्टीन |
| | |- |
| | | 7. |
| | | सूर्य सिद्धांत |
| | | कॉपरनिकस |
| | |- |
| | | 8. |
| | | हाइड्रोजन गैस एवं पानी |
| | | केवेन्डिस |
| | |- |
| | | 9. |
| | | टेलिस्कोप (दूरदर्शी यंत्र) |
| | | गैलिलियो |
| | |- |
| | | 10. |
| | | डायनामायट |
| | | अल्फ्रेड नोबेल |
| | |- |
| | | 11. |
| | | रेडियम |
| | | मेडम क्यूरी |
| | |- |
| | | 12. |
| | | गति के नियम एंव गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत |
| | | आइजक न्यूटन |
| | |- |
| | | 13. |
| | | [[ऑक्सीजन]] |
| | | प्रीस्टले |
| | |- |
| | | 14. |
| | | ग्रामोफोन, बल्ब, सिनेमेटोग्राफ |
| | | थॉमस एडीसन |
| | |- |
| | | 15. |
| | | इलेक्ट्रॉन एंव परमाणु संख्या |
| | | जे. जे. थामसन |
| | |- |
| | | 16. |
| | | रमन इफेक्ट, थ्योरी ऑफ़ क्रिस्टल |
| | | [[चंद्रशेखर वेंकट रामन|सी.वी. रमन]] |
| | |- |
| | | 17. |
| | | इस्पात गलाने की प्रक्रिया |
| | | बेसेमर |
| | |- |
| | | 18. |
| | | भाप इंजन |
| | | जेम्स वाट |
| | |- |
| | | 19. |
| | | न्यूट्रान |
| | | चैडविक |
| | |- |
| | | 20. |
| | | थर्मामीटर |
| | | फारेनहाईट |
| | |- |
| | | 21. |
| | | क्वाण्टम थ्योरी |
| | | मैक्सप्लैंक |
| | |- |
| | | 22. |
| | | रबर गलाने की प्रक्रिया |
| | | गुड इयर |
| | |- |
| | | 23. |
| | | विद्युत तरंगे |
| | | हर्ट्ज |
| | |- |
| | | 24. |
| | | शार्टहेंड |
| | | पिटमैन |
| | |- |
| | | 25. |
| | | निष्क्रिय गैसें |
| | | रेमजे |
| | |- |
| | | 26. |
| | | एक्स रे |
| | | रोन्टजन |
| | |- |
| | | 27. |
| | | हैवी हाइड्रोजन |
| | | एच.सी. मूरे |
| | |- |
| | | 28. |
| | | विद्युत धारा एवं बैटरी |
| | | वोल्टा |
| | |- |
| | | 29. |
| | | ग्रहों की गति के नियम |
| | | केपलर |
| | |- |
| | | 30. |
| | | एन्थ्रेक्स |
| | | लुई पाश्चर |
| | |- |
| | | 31. |
| | | [[नाइट्रोजन]] |
| | | डेनियल रदरफोर्ड |
| | |- |
| | | 32. |
| | | प्रिटिंग प्रेस |
| | | गुटेन बर्ग |
| | |- |
| | | 33. |
| | | परमाणु संख्या |
| | | मोसले |
| | |- |
| | | 34. |
| | | परमाणु सिद्धांत |
| | | डाल्टन |
| | |- |
| | | 35. |
| | | परमाणु संरचना |
| | | नील बोहर एवं रदरफोर्ड |
| | |- |
| | | 36. |
| | | परमाणु नाभिक विखंडन |
| | | रदरफोर्ड |
| | |- |
| | | 37. |
| | | परमाणु बम |
| | | ऑटोहान |
| | |- |
| | | 38. |
| | | फोटोग्राफी |
| | | लिपमेन |
| | |- |
| | | 39. |
| | | [[प्रकाश]] की [[गति]] |
| | | रोमर |
| | |- |
| | | 40. |
| | | गुब्बारे का निर्माण |
| | | मांटगोल्फियर |
| | |- |
| | | 41. |
| | | पेंट (वार्निश) |
| | | शालीमार |
| | |- |
| | | 42. |
| | | हीलियम गैस |
| | | लाकियर |
| | |- |
| | | 43. |
| | | बिजली का पंखा |
| | | व्हीलर |
| | |- |
| | | 44. |
| | | हेलीकॉप्टर |
| | | ब्रेकेट |
| | |- |
| | | 45. |
| | | हवाई जहाज |
| | | राइट ब्रदर्स |
| | |- |
| | | 46. |
| | | डीजल इंजन |
| | | रुडोल्फ डीजल |
| | |- |
| | | 47. |
| | | कैलकुलेटर |
| | | पास्कल |
| | |- |
| | | 48. |
| | | कैमरा |
| | | विलियम ग्रीन |
| | |- |
| | | 49. |
| | | पेन्डुलम घड़ी |
| | | हाइगेन्स |
| | |- |
| | | 50. |
| | | रिवाल्वर |
| | | कोल्ट |
| | |- |
| | | 51. |
| | | मशीनगन |
| | | रिचर्ड गेटलिन |
| | |- |
| | | 52. |
| | | विद्युत प्रेस |
| | | सीले |
| | |- |
| | | 53. |
| | | टायर |
| | | डनलप |
| | |- |
| | | 54. |
| | | सेफ्टी रेजर |
| | | जिलेट |
| | |- |
| | | 55. |
| | | विद्युत इंजन |
| | | स्टीवेन्सन |
| | |- |
| | | 56. |
| | | हाथ की घड़ी |
| | | बै्ग्वेट |
| | |- |
| | | 57. |
| | | ग्लाइडर |
| | | जे. केले |
| | |- |
| | | 58. |
| | | मोटर कार |
| | | हेनरी फोर्ड |
| | |- |
| | | 59. |
| | | लाउड स्पीकर |
| | | होरेस शार्ट |
| | |- |
| | | 60. |
| | | माचिस |
| | | जॉन वाकर |
| | |- |
| | | 61. |
| | | मोबाइल फोन |
| | | कार्ल हूपर |
| | |- |
| | | 62. |
| | | सुपर कम्प्यूटर |
| | | डॉ. एच.एस.एन. अलान ट्यूरिंग |
| | |- |
| | | 63. |
| | | [[टेलीविजन]] |
| | | जान लोगी वेयर्ड |
| | |- |
| | | 64. |
| | | सीस्मोग्राफ |
| | | राबर्ट मैलेट |
| | |- |
| | | 65. |
| | | होवर क्राफ्ट |
| | | सी.एच. काकरेल |
| | |- |
| | | 66. |
| | | पनडुब्बी |
| | | बुशनेन |
| | |- |
| | | 67. |
| | | फाउन्टेन पेन |
| | | बाटरमेन |
| | |- |
| | | 68. |
| | | लेजर किरणें |
| | | चार्ल्स टाउन्स |
| | |- |
| | | 69. |
| | | सेफ्टी लैम्प |
| | | हम्फ्री डेवी |
| | |- |
| | | 70. |
| | | तडित चालक |
| | | वेजामिन फ्रेंकलिन |
| | |- |
| | | 71. |
| | | डायनेमो |
| | | फैराडे |
| | |- |
| | | 72. |
| | | राडार |
| | | वाटसन वाट |
| | |- |
| | | 73. |
| | | बैरोमीटर |
| | | ई. टारसेली |
| | |- |
| | | 74. |
| | | साइकिल |
| | | के. मेकमिलन |
| | |- |
| | | 75. |
| | | [[कम्प्यूटर]] |
| | | चार्ल्स बैबेज |
| | |- |
| | | 76. |
| | | केस्कोग्राफ |
| | | जे.सी बोस |
| | |- |
| | | 77. |
| | | कार्बन पेपर |
| | | राल्फ वेजवुड |
| | |- |
| | | 78. |
| | | सुपर कंडक्टीविटी |
| | | एच.के. ओनेस |
| | |- |
| | | 79. |
| | | ट्रैक्टर |
| | | राबर्ट फारमिंच |
| | |- |
| | | 80. |
| | | टैंक |
| | | सर अर्नेस्ट स्विंटन |
| | |- |
| | | 81. |
| | | टेलीफोन |
| | | ग्राहमबेल |
| | |- |
| | | 82. |
| | | ट्रांजिस्टर |
| | | विलियम शाकले |
| | |- |
| | | 83. |
| | | प्रेशर कुकर |
| | | डेनिस पैपिन |
| | |- |
| | | 84. |
| | | रेफ्रीजरेटर |
| | | हैरीसन |
| | |- |
| | | 85. |
| | | लिफ्ट |
| | | ओटिस |
| | |- |
| | | 86. |
| | | थर्मस फ्लास्क |
| | | ड्रेवर |
| | |- |
| | | 87. |
| | | जेट इंजन |
| | | फ्रेंक व्हीटल |
| | |- |
| | | 88. |
| | | साइक्लोट्रान |
| | | लारेन्स |
| | |- |
| | | 89. |
| | | बेतार का तार |
| | | मार्कोनी |
| | |- |
| | | 90. |
| | | स्कूटर |
| | | ब्राउशा |
| | |- |
| | | 91. |
| | | थर्मोस्कोप |
| | | [[गैलिलियो गैलीली|गैलिलियो]] |
| | |} |
|
| |
|
| ====उपनिषद==== | | {| class="bharattable-pink" |
| {{main|उपनिषद}}
| | |+ सबसे बड़ा एवं छोटा |
| उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर स्पना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है। ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है। भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य '[[सत्यमेव जयते]]' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें [[प्रश्नोपनिषद|प्रश्न]], [[माण्डूक्योपनिषद|माण्डूक्य]], [[केनोपनिषद|केन]], [[तैत्तिरीयोपनिषद|तैत्तिरीय]], [[ऐतरेयोपनिषद|ऐतरेय]], [[छान्दोग्य उपनिषद|छान्दोग्य]], [[बृहदारण्यकोपनिषद|बृहदारण्यक]] और [[कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद|कौषीतकि उपनिषद]] गद्य में हैं तथा [[केनोपनिषद|केन]], [[ईशावास्योपनिषद|ईश]], [[कठोपनिषद|कठ]] और [[श्वेताश्वतरोपनिषद|श्वेताश्वतर उपनिषद]] पद्य में हैं।
| | |- |
| | | 1 |
| | | सबसे बड़ा पुष्प |
| | | रेफ्लेशिया |
| | |- |
| | | 2 |
| | | सबसे छोटा पुष्प |
| | | वेनेशिया |
| | |- |
| | | 3 |
| | | सबसे बड़ा स्तनधारी जीव |
| | | व्हेल मछली |
| | |- |
| | | 4 |
| | | सबसे बड़ा पक्षी |
| | | शुतुरमुर्ग |
| | |- |
| | | 5 |
| | | सबसे छोटा पक्षी |
| | | हमिंग बर्ड |
| | |- |
| | | 6 |
| | | सबसे बड़ा सांप |
| | | एनाकोंडा |
| | |- |
| | | 7 |
| | | सबसे बड़ा कपि |
| | | गोरिल्ला |
| | |- |
| | | 8 |
| | | सर्वाधिक बुद्धिमान कपि |
| | | चिम्पांजी |
| | |- |
| | | 9 |
| | | सबसे बड़ी मांसपेशी |
| | | ग्लूटियस मैक्सीमस |
| | |- |
| | | 10 |
| | | सबसे बड़ी अस्थि |
| | | फीमर |
| | |- |
| | | 11 |
| | | सबसे छोटी अस्थि |
| | | स्टेप्स |
| | |- |
| | | 12 |
| | | सबसे बड़ी ग्रंथि |
| | | [[यकृत]] (लीवर) |
| | |- |
| | | 13 |
| | | सबसे तेज दौडने वाला प्राणी |
| | | चीता |
| | |- |
| | | 14 |
| | | सबसे ऊंचा प्राणी |
| | | जिराफ |
| | |- |
| | | 15 |
| | | सबसे ऊंचा पेड |
| | | सिकोवा जाइनैन्सिस |
| | |- |
| | | 16 |
| | | मनुष्य का सबसे व्यस्ततम अंग |
| | | [[हृदय]] |
| | |- |
| | | 17 |
| | | सबसे छोटी मछली |
| | | पैडोसाइप्रिस |
| | |} |
|
| |
|
| ====वेदांग==== | | {| class="bharattable-green" |
| {{main|वेदांग}}
| | |+ चिकित्सा संबंधी आविष्कार |
| वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-<br />
| | |- |
| 1- शिक्षा, 2- कल्प, 3- व्याकरण, 4- निरूक्त, 5- छन्द एवं 6- ज्योतिष | | ! क्रमांक |
| | | ! आविष्कार |
| ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
| | ! आविष्कारक |
| *धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं- 1- धर्म सूत्र, 2- स्मृति, 3- टीका एवं 4- निबन्ध।
| | |- |
| | | | 1. |
| ====स्मृतियाँ====
| | | हृदय प्रत्यारोपण |
| {{main|स्मृतियाँ}}
| | | डॉ. क्रिश्चियन बर्नाड (1967 ई.पू.) |
| स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः [[मनुस्मृति]] (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- [[नारद]], [[पराशर]], [[बृहस्पति]], [[कात्यायन]], [[गौतम]], संवर्त, हरीत, [[अंगिरा]] आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के [[भारत]] के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। [[नारद स्मृति]] से [[गुप्त वंश]] के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारूचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।
| | |- |
| ====महाकाव्य====
| | | 2. |
| {{main|महाकाव्य}}
| | | पेनीसिलीन |
| '[[रामायण]]' एवं '[[महाभारत]]', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।
| | | अलेक्जेण्डर फ्लेमिंग (1928 ई.पू.) |
| ====रामायण====
| | |- |
| {{main|रामायण}}
| | | 3. |
| रामायण की रचना [[बाल्मीकि|महर्षि बाल्मीकि]] द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]], [[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्याकाण्ड]], [[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्यकाण्ड]], [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धाकाण्ड]], [[सुन्दर काण्ड वा. रा.|सुन्दरकाण्ड]], [[युद्ध काण्ड वा. रा.|युद्धकाण्ड]] एवं [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तराकाण्ड]] नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम [[भारत]] से बाहर [[चीन]] में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।
| | | [[मलेरिया]] की चिकित्सा |
| ====महाभारत====
| | | रोनाल्ड रोस |
| {{main|महाभारत}}
| | |- |
| [[व्यास|महर्षि व्यास]] द्वारा रचित [[महाभारत]] महाकाव्य [[रामायण]] से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात यह वैदिक जन [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में [[गुप्त काल]] में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' केहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- [[आदि पर्व महाभारत|आदि]], [[सभा पर्व महाभारत|सभा]], [[वन पर्व महाभारत|वन]], [[विराट पर्व महाभारत|विराट]], [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग]], [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म]], [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण]], [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण]], [[शल्य पर्व महाभारत|शल्य]], [[सौप्तिक पर्व महाभारत|सौप्तिक]], [[स्त्री पर्व महाभारत|स्त्री]], [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्ति]], [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन]], [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेघ]], [[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासी]], [[मौसल पर्व महाभारत|मौसल]], [[महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत|महाप्रास्थानिक]] एवं [[स्वर्गारोहण पर्व महाभारत|स्वर्गारोहण]] में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। | | | 4. |
| ====पुराण====
| | | [[इन्सुलिन]] |
| {{main|पुराण}}
| | | एफ. बैटिंग |
| प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को [[पुराण]] कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]] में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. [[ब्रह्म पुराण]] 2. [[पद्म पुराण]] 3. [[विष्णु पुराण]] 4. [[वायु पुराण]] 5. [[भागवत पुराण]] 6. [[नारद पुराण|नारदीय पुराण]], 7. [[मार्कण्डेय पुराण]] 8. [[अग्नि पुराण]] 9. [[भविष्य पुराण]] 10. [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]], 11. [[लिंग पुराण]] 12. [[वराह पुराण]] 13. [[स्कन्द पुराण]] 14. [[वामन पुराण]] 15. [[कूर्म पुराण]] 16. [[मत्स्य पुराण]] 17. [[गरुड़ पुराण]] और 18. [[ब्रह्माण्ड पुराण]]
| | |- |
| ====बौद्ध साहित्य====
| | | 5. |
| {{main|बौद्ध साहित्य}}
| | | [[पोलियो]] का टीका |
| [[बौद्ध साहित्य]] को ‘[[त्रिपिटक]]‘ कहा जाता है। [[महात्मा बुद्ध]] के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं- <br />
| | | जोनास साल्क |
| [[सुत्तपिटक]], [[विनयपिटक]] और [[अभिधम्मपिटक]]।
| | |- |
| | | | 6. |
| {{seealso|जैन साहित्य|लौकिक साहित्य}}
| | | पोलियो का मुखीय टीका |
| ====जैन साहित्य====
| | | अल्बर्ट सबिन |
| {{main|जैन साहित्य}}
| | |- |
| ऐतिहसिक जानकारी हेतु [[जैन साहित्य]] भी [[बौद्ध साहित्य]] की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य [[प्राकृत]] एवं [[संस्कृत]] भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘[[आगम]]‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा [[महावीर|महावीर स्वामी]] की मृत्यु के बाद की गयी।
| | | 7. |
| | | | हैजा का टीका |
| ====विदेशियों के विवरण====
| | | राबर्ट कोच |
| विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं- <br />
| | |- |
| # [[यूनानी लेखक|यूनानी-रोमन लेखक]]
| | | 8. |
| # [[चीनी लेखक]]
| | | टीबी की चिकित्सा |
| # [[अरबी लेखक]]
| | | राबर्ट कोच |
| | | |- |
| ==पुरातत्त्व==
| | | 9. |
| {{Main|पुरातत्त्व}}
| | | स्टेप्टोमायसिन |
| पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - [[इन्द्र]], मित्र, [[वरुण देवता|वरुण]], नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।
| | | बॉक्समैन |
| | | |- |
| ====चित्रकला====
| | | 10. |
| {{Main|चित्रकला}}
| | | हाइड्रोफोबिया |
| [[चित्रकला]] से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। [[अजंता की गुफ़ाएँ|अजंता]] के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।
| | | लुई पाश्चर |
| | | |- |
| {{इन्हेंभीदेखें|मूर्ति कला मथुरा|अभिलेख}}
| | | 11. |
| | | | [[चेचक]] |
| ==पाषाण काल==
| | | एडवर्ड जेनर |
| {{main|भारत का इतिहास पाषाण काल}}
| | |- |
| समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
| | | 12. |
| #प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Age)
| | | काला जार |
| #आद्य ऐतिहासिक काल (Proto-historic Age)
| | | यू.एन. ब्रह्मचारी |
| #ऐतिहासिक काल (Historic Age)
| | |- |
| ====भारत की आदिम (प्रारंभिक) जातियाँ====
| | | 13. |
| {{main|भारत की आदिम जातियाँ}}
| | | हौम्योपैथी |
| प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। -
| | | हनीमैन |
| 1. नीग्रिटों 2. प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाईड 3. मंगोलायड 4. भूमध्य सागरीय 5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल 6. नॉर्डिक
| | |- |
| ==सिंधु घाटी सभ्यता==
| | | 14. |
| {{main|सिंधु घाटी सभ्यता}}
| | | [[स्टेथोस्कोप]] |
| आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व [[पाकिस्तान]] के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से [[लाहौर]] तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।
| | | लेनेक |
| ====हड़प्पा लिपि====
| | |- |
| {{main|हड़प्पा लिपि}}
| | | 15. |
| हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई। [[सिंधु लिपि]] में लगभग 64 मूल चिन्ह एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। यह लिपि चित्रात्मक थी। यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिन्ह हैं। [[कालीबंगा]] के [[उत्खनन]] से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिन्ह अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिन्ह को काटते हैं। इसी आधार पर 'ब्रजवासी लाल' ने यह निष्कर्ष निकाला है - 'सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।'
| | | सल्फर ड्रग |
| ====मृण्मूर्तियां====
| | | जी. डोमाग |
| {{main|हड़प्पा सभ्यता की मृण्मूर्तियां}}
| | |- |
| हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, [[बाघ]], सुअर, गैंडा, भालू, [[बन्दर]], [[मोर]], तोता, बत्तख़ एवं [[कबूतर]] की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली हैं।
| | | 16. |
| ====हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएं====
| | | डी.डी.टी |
| {{main|हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना}}
| | | पाल मूलर |
| हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।
| | |- |
| ====हडप्पा जनजीवन====
| | | 17. |
| {{main|हड़प्पा समाज और संस्कृति}}
| | | क्लोरोफार्म |
| हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
| | | जेम्स हेरीसन |
| *ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को 'मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन' कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
| | |- |
| *स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा 'मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक' था।
| | | 18. |
| *मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।
| | | रक्त संचार |
| | | | विलियम हार्वे |
| ==प्रागैतिहासिक काल==
| | |- |
| {{Main|प्रागैतिहासिक काल}}
| | | 19. |
| भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच [[सिंधु घाटी]] में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष [[मोहन जोदड़ो]] (मुअन-जो-दाड़ो) और [[हड़प्पा]] में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में [[आर्य|आर्यों]] का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग [[द्रविड़ निवासी|द्रविड़ों]] का था।
| | | [[रक्त]] का ग्रुपों में वर्गीकरण |
| | | | कार्ल लेण्डस्टीनर |
| {{seealso|आर्य|आर्यावर्त|द्रविड़ निवासी}}
| | |- |
| ====महाजनपद युग====
| | | 20. |
| {{मुख्य|महाजनपद}}
| | | आर.एच. फेक्टर |
| <blockquote>'''प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है।''' सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत [[क़ाबुल]] की घाटी से लेकर गोदावरी तक [[सोलह महाजनपद|षोडश जनपदों]] में विभाजित था।</blockquote>
| | | कार्ल लेण्डस्टीनर एवं विएनर |
| | | |- |
| {{seealso|ब्राह्मण|अंधक संघ|कृष्ण|ब्रज}}
| | | 21. |
| ==प्राचीन भारत==
| | | बेरी-बेरी रोग की चिकित्सा |
| {{Main|प्राचीन भारत}}
| | | आइजकमेन |
| {{राज्य सीमा मानचित्र सूची1}}
| | |- |
| ====मौर्य और शुंग====
| | | 22. |
| {{main|मौर्य काल|मौर्य साम्राज्य| शुंग}}
| | | एस्प्रिन |
| यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि [[सिकन्दर]] की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति [[सेल्युकस]] को हरा दिया। सेल्युकस ने [[हिन्दूकुश]] तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
| | | ड्रेजर |
| | | |- |
| {{seealso|अशोक के शिलालेख|अशोक|बुद्ध|बौद्ध दर्शन|बौद्ध धर्म|फ़ाह्यान|पाटलिपुत्र|तक्षशिला}}
| | | 23. |
| | | | [[विटामिन]] |
| ====शक, कुषाण और सातवाहन====
| | | हाफकिन्स |
| {{मुख्य|शक साम्राज्य|कुषाण साम्राज्य}}
| | |- |
| मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और [[सातवाहन]] राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को [[आन्ध्र वंश]] भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में [[मिलिंद (मिनांडर)|मिनाण्डर]] सबसे विख्यात है। इसके बाद ही [[शक]] राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और [[महाराष्ट्र]], [[सौराष्ट्र]] तथा [[मथुरा]] शक क्षत्रपों के शासन में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] द्वारा [[कुषाण वंश]] की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
| | | 24. |
| {{seealso|राबाटक लेख|कुषाण|कनिष्क|कम्बोजिका|कल्हण}}
| | | वायरस |
| | | | इवानोवस्की |
| ====गुप्त====
| | |- |
| {{मुख्य|गुप्त साम्राज्य}}
| | | 25. |
| लगभग 320 ई. पू. में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश को प्रचलित किया और [[पाटलिपुत्र]] को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में [[कालिदास]], [[आर्यभट्ट]] तथा [[वराहमिहिर]] हुए। [[रामायण]], [[महाभारत]], [[पुराण|पुराणों]] तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ।
| | | आई.क्यू टेस्ट |
| ==मध्यकालीन भारत==
| | | वीनेट |
| {{Main|मध्यकालीन भारत}}
| | |- |
| ====तीन साम्राज्यों का युग (8वीं - 10वीं शताब्दी)====
| | | 26. |
| सात सौ पचास और एक हज़ार ईस्वी के बीच उत्तर तथा दक्षिण [[भारत]] में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। नौंवीं शताब्दी तक पूर्वी और उत्तरी भारत में [[पाल साम्राज्य]] तथा दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में [[प्रतिहार साम्राज्य]] शक्तिशाली बने रहे। [[राष्ट्रकूट साम्राज्य|राष्ट्रकूटों]] का प्रभाव दक्कन में तो था ही, कई बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिण भारत में भी अपना प्रभुत्व क़ायम किया। यद्यपि ये तीनों साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे तथापि इन्होंने एक बड़े भू-भाग में स्थिरता क़ायम रखी और साहित्य तथा कलाओं को प्रोत्साहित किया।
| | | मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत |
| ====पाल साम्राज्य====
| | | फ्रायड |
| {{main|पाल साम्राज्य}}
| | |- |
| [[हर्षवर्धन|हर्ष]] के समय के बाद से उत्तरी भारत के प्रभुत्व का प्रतीक [[कन्नौज]] माना जाता था। बाद में यह स्थान [[दिल्ली]] ने प्राप्त कर लिया। पाल साम्राज्य की नींव 750 ई. में 'गोपाल' नामक राजा ने डाली। बताया जाता है कि उस क्षेत्र में फैली अशान्ति को दबाने के लिए कुछ प्रमुख लोगों ने उसको राजा के रूप में चुना। इस प्रकार राजा का निर्वाचन एक अभूतपूर्व घटना थी। इसका अर्थ शायद यह है कि गोपाल उस क्षेत्र के सभी महत्त्वपूर्ण लोगों का समर्थन प्राप्त करने में सफल हो सका और इससे उसे अपनी स्थिति मज़बूत करन में काफ़ी सहायता मिली।
| | | 27. |
| ====राष्ट्रकूट साम्राज्य====
| | | डायलिसिस मशीन |
| {{main|राष्ट्रकूट साम्राज्य}}
| | | कोल्ट |
| जब उत्तरी भारत में पाल और प्रतिहार वंशों का शासन था, दक्कन में राष्टूकूट राज्य करते थे। इस वंश ने भारत को कई योद्धा और कुशल प्रशासक दिए हैं। इस साम्राज्य की नींव 'दन्तिदुर्ग' ने डाली। दन्तिदुर्ग ने 750 ई. में चालुक्यों के शासन को समाप्त कर आज के [[शोलापुर ज़िला|शोलापुर]] के निकट अपनी राजधानी 'मान्यखेट' अथवा 'मानखेड़' की नींव रखी। शीघ्र ही [[महाराष्ट्र]] के उत्तर के सभी क्षेत्रों पर राष्ट्रकूटों का आधिपत्य हो गया। गुजरात और मालवा के प्रभुत्व के लिए इन्होंने प्रतिहारों से भी लोहा लिया। यद्यपि इन हमलों के कारण राष्ट्रकूट अपने साम्राज्य का विस्तार गंगा घाटी तक नहीं कर सके तथापि इनमें उन्हें बहुत बड़ी मात्रा में धन राशि मिली और उनकी ख्याति बढ़ी। वंगी (वर्तमान [[आंध्र प्रदेश]]) के पूर्वी चालुक्यों और दक्षिण में [[कांची]] के [[पल्लव वंश|पल्लवों]] तथा [[मदुरई]] के पांड्यों के साथ भी राष्ट्रकूटों का बराबर संघर्ष चलता रहा।
| | |- |
| {{seealso|एलोरा की गुफ़ाएं}}
| | | 28. |
| ====गुर्जर प्रतिहार राजवंश====
| | | शल्य चिकित्सा |
| {{main|गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य}}
| | | जोसेफ लिस्टर |
| इतिहास के अनुसार 5वी [[सदी]] में [[भिन्नमाल]] गुर्जर साम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी। चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] अपने लेखो में गुर्जर साम्राज्य का उल्लेख करता है तथा इसे ''kiu-che-lo'' बोलता है।<ref>{{Cite web
| | |- |
| |url=http://persian.packhum.org/persian/index.jsp?serv=pf&file=80201011&ct=90
| | | 29. |
| |title=Juzr or Jurz.
| | | कार्बन डेटिंग (सी-14) |
| |work=Persian Texts in Translation
| | | विलियर्ड लिब्बी |
| |publisher=The Packard Humanities Institute
| | |- |
| |accessdate=2007-05-31
| | | 30. |
| |archiveurl = http://web.archive.org/web/20070929130741/http://persian.packhum.org/persian/index.jsp?serv=pf&file=80201011&ct=90 <!-- Bot retrieved archive --> |archivedate = 2007-09-29}}</ref>6 से 12 वीं [[सदी]] में [[गुर्जर]] कई जगह सत्ता में थे। [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] की सत्ता कन्नौज से लेकर [[बिहार]], [[उत्तर प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]] और [[गुजरात]] तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है। 12वीं [[सदी]] के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए। अरब आक्रान्ताओं ने गुर्जरो की शक्ति तथा प्रसाशन की अपने अभिलेखों में भूरि-भूरि प्रशंसा की है।<ref>{{cite book|title=India: a history|author=John Keay|publisher=Grove Press|year=2001|id=ISBN 0-8021-3797-0, ISBN 978-0-8021-3797-5|url=http://books.google.co.in/books?id=3aeQqmcXBhoC&pg=PA195&dq|page=95}}</ref>इतिहासकार बताते है कि [[मुग़ल काल]] से पहले तक राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।<ref>{{cite book|title=The History and Culture of the Indian People: The classical age|author=Ramesh Chandra Majumdar|coauthor=Achut Dattatrya Pusalker, A. K. Majumdar, Dilip Kumar Ghose, Vishvanath Govind Dighe, Bharatiya Vidya Bhavan|publisher=Bharatiya Vidya Bhavan|year=1977|page=153}}</ref>अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे।<ref>{{cite book|title=India: a history|author=John Keay|publisher=Grove Press|year=2001|id=ISBN 0-8021-3797-0, ISBN 978-0-8021-3797-5|url=http://books.google.co.in/books?id=3aeQqmcXBhoC&pg=PA195&dq|page=95}}</ref>
| | | पश्चुरीकरण |
| | | | लुई पाश्चर |
| ====राजपूत साम्राज्य====
| | |- |
| {{main|राजपूत काल}}
| | | 31. |
| [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य]] के विघटन के बाद उत्तर [[भारत]] में कई राजपूत राज्यों की नींव पड़ी।। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, [[अजमेर]] का [[चौहान वंश]], [[कन्नौज]] का [[गहड़वाल वंश]] तथा मगध और बंगाल का [[पाल वंश]] था। दक्षिण में भी [[सातवाहन वंश]] के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। [[उड़ीसा]] के [[गंग वंश]] जिसने पुरी का प्रसिद्ध [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मन्दिर]] बनवाया, [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के [[चालुक्य वंश]], जिसके राज्यकाल में [[अजन्ता की गुफ़ाएँ|अजन्ता]] के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के [[पल्लव वंश]] ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद [[मान्यखेट]] अथवा [[मालखड़]] के [[राष्ट्रकूट वंश]] का उदय हुआ, जिसका उच्छेद पुर के चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] को अपनी राजधानी बनाया। उसका उच्छेद [[देवगिरि]] के यादवों तथा द्वारसमुद्र के [[होयसल वंश]] ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में चेर, पांड्य और चोल राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।
| | | टिटेनस का टीका |
| | | | क्लेबस |
| {{see also|पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज रासो}}
| | |- |
| | | | 32. |
| ====चोल साम्राज्य <small>नौवीं से बारहवीं शताब्दी</small>====
| | | जीनोम परियोजना |
| {{main|चोल साम्राज्य}}
| | | फ्रांसिस कार्लिंस, क्रेग वेन्टर, जांन सल्सटन |
| चोल साम्राज्य का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और [[मालदीव]] द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव [[कलिंग]] और [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्र]] दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी [[एशिया]] में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। अपनी प्रारम्भिक कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के बाद क़रीब दो शताब्दियों तक अर्थात बारहवीं ईस्वी के मध्य तक चोल शासकों ने न केवल एक स्थिर प्रशासन दिया, वरन कला और साहित्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चोल काल दक्षिण भारत का 'स्वर्ण युग' था।
| | |- |
| ====भव्य मन्दिरों का निर्माण====
| | | 33. |
| {{main|भारत की वास्तुकला का इतिहास}}
| | | सुजननिकी |
| आठवीं शताब्दी के बाद और विशेषकर दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच का काल मन्दिर निर्माण कला का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। आज हम जिन भव्यों मन्दिरों को देखते हैं, उनमें से अधिकतर उसी काल में बनाये गए थे। इस काल की मन्दिर निर्माण कला की मुख्य शैली 'नागर' नाम से जानी जाती है। यद्यपि इस शैली के मन्दिर सारे भारत में पाए जाते हैं तथापि इनके मुख्य केन्द्र उत्तर भारत और दक्कन में थे।
| | | फ्रांसिस गाल्टन |
| {{see also|खजुराहो|लिंगराज मन्दिर}}
| | |- |
| ====इस्लाम का प्रवेश====
| | | 34. |
| {{मुख्य|इस्लाम धर्म}}
| | | प्रतिरक्षा विज्ञान |
| इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। [[मुहम्मद-इब्न-क़ासिम]] के नेतृत्व में [[मुसलमान]] अरबों ने [[सिंध]] पर हमला कर दिया और वहाँ के [[ब्राह्मण]] राजा [[दाहिर]] को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार [[इस्लाम]] के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके [[पंजाब]] छीन लिया था और ग़ज़नी के [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद]] ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
| | | एडवर्ड जेनर |
| {{seealso|चंगेज़ ख़ाँ|महमूद ग़ज़नवी}}
| | |- |
| ====आर्थिक सामाजिक जीवन, शिक्षा तथा धर्म <sub>800 ई. से 1200 ई.</sub>====
| | | 35. |
| {{main|भारत की संस्कृति}}
| | | जीवाणु विज्ञान |
| इस काल में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इनमें से एक यह था कि विशिष्ट वर्ग के लोगों की शक्ति बहुत बढ़ी जिन्हें 'सामंत', 'रानक' अथवा 'रौत्त' ([[राजपूत]]) आदि पुकारा जाता था। इस काल में भारतीय दस्तकारी तथा खनन कार्य उच्च स्तर का बना रहा तथा [[कृषि]] भी उन्नतिशील रही। [[भारत]] आने वाले कई [[अरब देश|अरब]] यात्रियों ने यहाँ की ज़मीन की उर्वरता और भारतीय किसानों की कुशलता की चर्चा की है। पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था इस युग में भी क़ायम रही। [[स्मृतियाँ|स्मृतियों]] के लेखकों ने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के विशेषाधिकारों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर तो कहा ही, शूद्रों की सामाजिक और धार्मिक अयोग्यता को उचित ठहराने में तो वे पिछले लेखकों से कहीं आगे निकल गए।
| | | राबर्ट कोच |
| | | |- |
| ====महमूद ग़ज़नवी====
| | | 36. |
| {{main|महमूद ग़ज़नवी}}
| | | शरीर रचना विज्ञान |
| यह यमीनी वंश का तुर्क सरदार ग़ज़नी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था । उसका जन्म सं. 1028 वि. (ई. 971) में हुआ, 27 वर्ष की आयु में सं. 1055 (ई. 998) में वह शासनाध्यक्ष बना था । महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुनता रहा था । उसके पिता ने एक बार हिन्दू शाही राजा जयपाल के राज्य को लूट कर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त की थी, महमूद भारत की दौलत को लूटकर मालामाल होने के स्वप्न देखा करता था । उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहाँ की अपार सम्पत्ति को वह लूट कर ग़ज़नी ले गया था । उसके आक्रमण और लूटमार के काले कारनामों से तत्कालीन ऐतिहासिक ग्रंथों के पन्ने भरे हुए है ।
| | | विल्लियम हार्वे |
| ====उत्तर भारत पर तुर्कों की विजय====
| | |- |
| [[पंजाब]] में ग़ज़नवियों के बाद हिन्दू और मुसलमानों के बीच दो विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध स्थापित हुए। एक तो लूट की लालसा थी जिसके परिणाम स्वरूप महमूद के उत्तराधिकारियों ने गंगा घाटी और [[राजपूताना]] में कई बार आक्रमण किए। राजपूत शासकों ने इन आक्रमणों का डट कर मुक़ाबला किया और कई बार तुर्कों को पराजित भी किया। लेकिन अब तक ग़ज़नवी साम्राज्य की शक्ति क्षीण हो चुकी थी और तुर्कों को कई बार पराजित कर राजपूत शासक चैन से बैठ गए। दूसरे स्तर पर मुसलमान व्यापारियों को न केवल स्वीकृति दी गई वरन उनका स्वागत भी किया गया क्योंकि उनके माध्यम से मध्य और पश्चिम एशिया के साथ भारत के व्यापार को बहुत बढ़ावा मिलता था और इससे इन राज्यों की आय भी बढ़ती थी। इस कारण उत्तर [[भारत]] के कुछ नगरों में मुसलमान व्यापारियों की कई बस्तियाँ स्थापित हो गईं। व्यापारियों के पीछे-पीछे कई मुसलमान धर्म प्रचारक भी आए जिन्होंने यहाँ [[सूफ़ी आन्दोलन|सूफ़ी मत]] का प्रचार किया। इस प्रकार इस्लाम और हिन्दू समाज तथा और धर्मों में सम्पर्क स्थापित हुआ और वे दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए। लाहौर, [[अरबी भाषा|अरबी]] तथा [[फ़ारसी भाषा]] और साहित्य का केन्द्र बन गया। तिलक जैसे हिन्दू सेनापतियों ने ग़ज़नवियों की सेना का नेतृत्व किया। ग़ज़नवियों की सेना में हिन्दू, सिपाही भी भर्ती होते थे।
| | | 37. |
| ====मुहम्मद बिन क़ासिम और महमूद ग़ज़नवी====
| | | सूक्ष्मदर्शी |
| {{मुख्य|मुहम्मद बिन क़ासिम|महमूद ग़ज़नवी}}
| | | जेड जानसन |
| मुइज्जुद्दीन मोहम्मद बिन क़ासिम की तुलना अक्सर महमूद ग़ज़नवी से की जाती है। योद्धा के रूप में महमूद ग़ज़नवी अधिक सफल था क्योंकि भारत अथवा मध्य [[एशिया]] के एक भी अभियान में वह पराजित नहीं हुआ। वह भारत के बाहर भी एक बड़े साम्राज्य पर शासन करता था। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि महमूद की अपेक्षा मुइज्जुद्दीन को [[भारत]] में और बड़े तथा संसंगठित राज्यों का सामना करना पड़ा। यद्यपि वह मध्य एशिया में उतना सफल नहीं हो सका, भारत में उसकी राजनीतिक उपलब्धियाँ और बड़ी थीं। उन दोनों को विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। अतः इन दोनों की तुलना से कोई विशेष लाभ नहीं होगा। इसके अलावा भारत में राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से इन दोनों का लक्ष्य कई बातों में बिल्कुल भिन्न था।
| | |- |
| ====भव्य मन्दिरों का निर्माण====
| | | 38. |
| {{main|भारत की वास्तुकला का इतिहास}}
| | | समसूत्री कोशिका विभाजन |
| आठवीं शताब्दी के बाद और विशेषकर दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच का काल मन्दिर निर्माण कला का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। आज हम जिन भव्यों मन्दिरों को देखते हैं, उनमें से अधिकतर उसी काल में बनाये गए थे। इस काल की मन्दिर निर्माण कला की मुख्य शैली 'नागर' नाम से जानी जाती है। यद्यपि इस शैली के मन्दिर सारे भारत में पाए जाते हैं तथापि इनके मुख्य केन्द्र उत्तर भारत और दक्कन में थे।
| | | फ्लेमिंग |
| ====पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी====
| | |- |
| {{मुख्य|पृथ्वीराज चौहान|मुहम्मद ग़ोरी}}
| | | 39. |
| [[फ़ारस]] तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। जब मुइज्जुद्दीन मुहम्मद मुल्तान और उच्छ पर अधिकार करने की चेष्टा कर रहा था, एक चौदह साल का लड़का, [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] [[अजमेर]] की गद्दी पर बैठा। पृथ्वीराज के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं।
| | | लिंग गुणसूत्रों की खोज |
| | | | मकलंग |
| {{इन्हेंभीदेखें|ग़ोर के सुल्तान|चंदबरदाई|पृथ्वीराज रासो}}
| | |- |
| ====क़ुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210 ई.)====
| | | 40. |
| {{main|क़ुतुबुद्दीन ऐबक}}
| | | जेनेटिक कोड |
| तराइन के युद्ध के बाद मुइज्जुद्दीन [[ग़ज़नी]] लौट गया और भारत के विजित क्षेत्रों का शासन अपने विश्वनीय ग़ुलाम [[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] के हाथों में छोड़ दिया। पृथ्वीराज के पुत्र को [[रणथम्भौर]] सौंप दिया गया जो तेरहवीं शताब्दी में शक्तिशाली चौहानों की राजधानी बना। अगले दो वर्षों में ऐबक ने, ऊपरी दोआब में [[मेरठ]], बरन तथा कोइल (आधुनिक [[अलीगढ़]]) पर क़ब्ज़ा किया। इस क्षेत्र के शक्तिशाली डोर-राजपूतों ने ऐबक का मुक़ाबला किया, लेकिन आश्चर्य की बात है कि गहदवालों को तुर्की आक्रमण से सबसे अधिक नुक़सान का ख़तरा था और उन्होंने न तो डोर-राजपूतों की कोई सहायता की और न ही तुर्कों को इस क्षेत्र से बाहर निकालने का कोई प्रयास ही किया। मुइज्जुद्दीन 1194 ई0 में भारत वापस आया। वह पचास हज़ार घुड़सवारों के साथ [[यमुना नदी|यमुना]] को पार कर कन्नौज की ओर बढ़ा।
| | | हरगोविन्द खुराना |
| ====ग़ोरी साम्राज्य का विस्तार====
| | |} |
| जब ऐबक और तुर्की और ख़िलजी सरदार उत्तर भारत में नए क्षेत्रों को जीतने और अपनी स्थिति मज़बूत करने की चेष्टा कर रहे थे, मुइज्जुद्दीन और उसका भाई मध्य एशिया में ग़ोरी साम्राज्य का विस्तार करने लगे थे। ग़ोरियों की विस्तार की आकांक्षा ने उन्हें शक्तिशाली ख्वारिज़म साम्राज्य से टक्कर लेने पर मज़बूर कर दिया। ख्वारिज़म शासक ने मुइज्जुद्दीन को 1203 में करारी मात दी। लेकिन यह पराजय एक प्रकार से उनके लिए लाभदायक सिद्ध हुई। क्योंकि इसके कारण उन्हें एशिया में विस्तार की आकांक्षा को त्यागना पड़ा और उन्होंने भारत में विस्तार की ओर अपना पूरा ध्यान लगा दिया। लेकिन इस युद्ध का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि मुइज्जुद्दीन की हार से साहस पा कर भारत में उसके कई विरोधियों ने बग़ावत कर दी। पश्चिम बंगाल की लड़ाकू जाति खोकर ने लाहौर और ग़ज़नी के बीच सम्पर्क साधनों को काट दिया। मुइज्जुद्दीन ने भारत में अपना अंतिम आक्रमण खोकरों के विद्रोह को दबाने के लिए किया जिसमें वह सफल भी हुआ। ग़ज़नी लौटते समय वह एक विरोधी मुस्लिम सम्प्रदाय के कट्टर समर्थक द्वारा मारा गया।
| |
| ==दिल्ली सल्तनत (मध्यकालीन भारत 3)==
| |
| {{main|दिल्ली सल्तनत}}
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| दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है। शासन का यह नवीन स्वरूप [[भारत]] की पूर्ववर्ती राजव्यवस्थाओं से भिन्न था। इस काल के शासक एवं उनकी [[प्रशासनिक व्यवस्था (सल्तनतकाल)|प्रशासनिक व्यवस्था]] एक ऐसे [[धर्म]] पर आधारित थी, जो कि साधारण धर्म से भिन्न था। शासकों द्वारा सत्ता के अभूतपूर्व केन्द्रीकरण और कृषक वर्ग के शोषण का भारतीय इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता है। दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होकर 1562 ई. तक रहा। 320 वर्षों के इस लम्बे काल में [[भारत]] में मुस्लिमों का शासन व्याप्त रहा। यह काल [[स्थापत्य एवं वास्तुकला (सल्तनत काल)|स्थापत्य एवं वास्तुकला]] के लिये भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
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| ====मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश (1206 से 1290 ई.)====
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| {{main|ग़ुलाम वंश}}
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| तुर्क [[पंजाब]] और मुल्तान से लेकर गंगा घाटी तक, यहाँ तक की [[बिहार]] तथा [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] के कुछ क्षेत्रों में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। इनके राज्य को 'दिल्ली सल्तनत' के नाम से जाना जाता है। क़रीब सौ वर्षों तक इन तुर्कों को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए विदेशी आक्रमणों, तुर्की नेताओं के आंतरिक मतभेदों तथा विजित राजपूत शासकों द्वारा अपने राज्य को पुनः वापस लेने और यदि सम्भव हो तो तुर्कों को बाहर निकाल देने के प्रयासों का सामना करना पड़ा। तुर्की शासक इन बाधाओं को पार कर विजय पाने में सफल हुए और तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक उन्होंने न केवल [[मालवा]] और [[गुजरात]] को अपने अधीन कर लिया, वरन दक्कन और दक्षिण [[भारत]] तक पहुँच गए। इस प्रकार उत्तर भारत में स्थापित तुर्की साम्राज्य का प्रभाव सारे भारत पर पड़ा और इसके परिणामस्वरूप सौ वर्षों में समाज, प्रशासन तथा सांस्कृतिक जीवन पर दूरगामी परिवर्तन हुए।
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| ====इल्तुतमिश/अल्तमश <small>(1201 ई0-1236 ई0)</small>====
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| {{main|इल्तुतमिश}}
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| चौगान खेलते समय 1210 ई0 में घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका दामाद इल्तुतमिश उसका उत्तराधिकारी बना, पर सिंहासन पर बैठने के पहले उसे ऐबक के पुत्र से युद्ध कर उसे पराजित करना पड़ा। इस प्रकार आरम्भ से ही पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र के सिंहासनाधिकार की प्रथा को धक्का लगा।
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| ====रज़िया सुल्तान <small>(1236-39)</small>====
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| {{main|रज़िया सुल्तान}}
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| अपने अंतिम दिनों में [[इल्तुतमिश]] अपने उत्तराधिकार के सवाल को लेकर चिन्तित था। वह अपने किसी भी लड़के को सुल्तान बनने योग्य नहीं समझता था। बहुत सोचने विचारने के बाद अन्त में उसने अपनी पुत्री 'रज़िया' को अपना सिंहासन सौंपने का निश्चय किया तथा अपने सरदारों और उल्माओं को इस बात के लिए राज़ी किया। यद्यपि स्त्रियों ने प्राचीन [[मिस्र]] और [[ईरान]] में रानियों के रूप में शासन किया था और इसके अलावा शासक राजकुमारों के छोटे होने के कारण राज्य का कारोबार सम्भाला थी, तथापि इस प्रकार पुत्रों के होते हुए सिंहासन के लिए स्त्री को चुनना एक नया क़दम था।
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| ====बलबन का युग (1246-86)====
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| {{main|ग़यासुद्दीन बलबन}}
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| तुर्क सरदारों और शासन के बीच संघर्ष चलता रहा। एक तुर्क सरदार 'उलघु ख़ाँ' ने, जिसे उसके बाद के नाम, 'बलबन' से जाना जाता है, धीरे-धीरे सारी शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली और वह 1246 में सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद तुर्क सरदार और शासन के बीच संघर्ष रुका। आरम्भ में बलबन [[इल्तुतमिश]] के छोटे पुत्र [[नसीरूद्दीन महमूद]] का नायब था, जिसे उसने 1246 में गद्दी पर बैठने में मदद की थी। बलबन ने अपनी एक पुत्री का विवाह युवा सुल्तान से करवा कर अपनी स्थिति और मज़बूत कर ली।
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| ====ख़िलजी वंश (1290-1320 ई.)====
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| {{main|ख़िलजी वंश}}
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| ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निज़ामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को [[चंगेज़ ख़ाँ]] का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि [[भारत]] आने से पूर्व ही यह जाति [[अफ़ग़ानिस्तान]] के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा [[ग़ुलाम वंश]] के अन्तिम सुल्तान [[शमसुद्दीन क्यूमर्स]] की हत्या के बाद ही [[जलालुद्दीन ख़िलजी|जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी]] सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
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| ====तुग़लक़ वंश (1320-1414)====
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| {{main|तुग़लक़ वंश}}
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| ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)। इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था। फ़िरोज का साम्राज्य उनसे छोटा अवश्य था, पर फिर भी [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के साम्राज्य से छोटा नहीं था। फ़िरोज की मृत्यु के बाद [[दिल्ली सल्तनत]] का विघटन हो गया और उत्तर [[भारत]] छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया। यद्यपि तुग़लक़ 1412 तक शासन करत रहे, तथापि 1399 में [[तैमूर लंग|तैमूर]] द्वारा [[दिल्ली]] पर आक्रमण के साथ ही तुग़लक़ साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए।
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| {{seealso|सैयद वंश|लोदी वंश}}
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| ====तैमूर====
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| {{main|तैमूर लंग}}
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| दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु [[अलाउद्दीन ख़िलजी|सुल्तान ख़िलजी]] के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु [[दिल्ली सल्तनत]] का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई. में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी [[विजय नगर साम्राज्य]] थी। बंगाल (1338 ई.), [[जौनपुर]] (1393 ई.), [[गुजरात]] तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी [[बहमनी सल्तनत]] (1347 ई.) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई. में [[तैमूर]] ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।
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| {{seealso|विजय नगर साम्राज्य|बहमनी वंश|चंगेज़ ख़ाँ|अलाउद्दीन ख़िलजी|कबीर|भक्ति आन्दोलन}}
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| ==मुग़ल==
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| {{main|मुग़ल काल}}
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| दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई. में [[बाबर]] ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने [[पानीपत]] की [[पानीपत युद्ध प्रथम |पहली लड़ाई]] में अन्तिम सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] को हरा दिया और [[मुग़ल वंश]] की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तीसरा [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। '''अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से [[जज़िया]] उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ़ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं'''।
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| ====बाबर (1526 -1530)====
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| {{main|बाबर}}
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| 526 में ई. पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय के साथ ही भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हो गई। इस वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना। पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य एशिया के अपने पैतृक राज्य पर शासन नहीं कर सका। उसने केवल 22 वर्ष की आयु में क़ाबुल पर अधिकार कर अफ़ग़ानिस्तान में राज्य कायम किया था। वह 22 वर्ष तक क़ाबुल का शासक रहा। उस काल में उसने अपने पूर्वजों के राज्य को वापिस पाने की कई बार कोशिश की, पर सफल नहीं हो सका।
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| ====हुमायूँ====
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| {{main|हुमायूँ }}
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| नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ का जन्म बाबर की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से [[6 मार्च]], 1508 ई. को [[काबुल]] में हुआ था। हुमायूँ, बाबर के 4 पुत्रों- हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिन्दाल में सबसे बड़ा था। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। [[भारत]] में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्वायु में उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया। बदख्शाँ के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था।
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| ====शेरशाह सूरी====
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| {{main|शेरशाह सूरी}}
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| '''शेरशाह सूरी''' के बचपन का नाम 'फ़रीद ख़ाँ' था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता 'हसन ख़ाँ' की [[अफ़ग़ान]] पत्नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन, [[बिहार]] के [[सासाराम]] का ज़मींदार था। फ़रीद ख़ाँ ने अपने अधिकारों की रक्षा एवं शक्ति के विस्तार के लिए [[बिहार]] के सुल्तान मुहम्मद शाह नुहानी के यहाँ नौकरी कर ली। एक बार शिकार पर गये नुहानी के साथ फ़रीद ख़ाँ ने एक शेर को तलवार के एक ही बार से मार दिया। उसकी इस बहादुरी से प्रसन्न होकर मुहम्मद शाह ने उसे ‘शेर ख़ाँ’ की उपाधि प्रदान की। 1529 ई. में [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] के शासक नुसरतशाह को परास्त करके शेरख़ाँ ने हजरत-ए-आला की उपाधि धारण की। 1530 ई. में शेरख़ाँ ने चुनार के किलेदार ताज ख़ाँ की विधवा लाड़मलिका से विवाह करके [[चुनार का क़िला]] तथा बहुत सम्पत्ति प्राप्त की। [[हुमायूँ]] को हराने वाला शेर ख़ाँ, 'सूर' नाम के क़बीले का [[पठान]] सरदार था। वह 'शेरशाह' के नाम से बादशाह हुआ। उसने [[आगरा]] को अपनी राजधानी बनाया था।
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| ====अकबर (1556 1605)====
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| {{main|अकबर}}
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| अकबर जलालुद्दीन मुहम्मद के बचपन का नाम 'बदरुद्दीन' था। 1546 ई. में अकबर के खतने के समय हुमायूँ ने उसका नाम 'जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर' रखा। अकबर के जन्म के समय की स्थिति सम्भवतः हुमायूँ के जीवन की सर्वाधिक कष्टप्रद स्थिति थी। इस समय उसके पास अपने साथियों को बांटने के लिए एक कस्तूरी के अतिरिक्त कुछ भी न था। अकबर ने अपने शासनकाल में सारे भारत को एक साम्राज्य के अंतर्गत लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी रहा था।
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| {{seealso|अकबरनामा|अबुल फ़ज़ल|तानसेन|बीरबल|रहीम|टोडरमल}}
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| ====जहाँगीर (1605 - 1627)====
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| {{main|जहाँगीर}}
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| '''नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर''' का जन्म [[फ़तेहपुर सीकरी]] में स्थित ‘शेख़ सलीम चिश्ती’ की कुटिया में राजा भारमल की बेटी ‘मरियम ज़मानी’ के गर्भ से 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ था। [[अकबर]] सलीम को ‘शेख़ू बाबा’ कहा करता था। सलीम का मुख्य शिक्षक [[रहीम|अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना]] था। अपने आरंभिक जीवन में जहाँगीर शराबी और आवारा शाहज़ादे के रूप में बदनाम था। उसके पिता सम्राट अकबर ने उसकी बुरी आदतें छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। इसीलिए समस्त सुखों के होते हुए भी वह अपने बिगड़े हुए बेटे के कारण जीवन-पर्यंत दुखी: रहा। अंतत: अकबर की मृत्यु के पश्चात जहाँगीर ही [[मुग़ल]] सम्राट बना था। उस समय उसकी आयु 36 वर्ष की थी। ऐसे बदनाम व्यक्ति के गद्दीनशीं होने से जनता में असंतोष एवं घबराहट थी। लोगों को आंशका होने लगी कि, अब सुख−शांति के दिन विदा हो गये और अशांति−अव्यवस्था एवं लूट−खसोट का ज़माना फिर आ गया।
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| ====शाहजहाँ (1627 - 1658)====
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| {{main|शाहजहाँ}}
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| '''शिहाबुद्दीन मुहम्मद शाहजहाँ''' का जन्म [[जोधपुर]] के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री 'जगत गोसाई' (जोधाबाई) के गर्भ से [[5 जनवरी]], 1592 ई. को [[लाहौर]] में हुआ था। उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम [[जहाँगीर]] का छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था। वह बड़ा कुशाग्र बुद्धि, साहसी और शौक़ीन बादशाह था। वह बड़ा कला प्रेमी, विशेषकर स्थापत्य कला का प्रेमी था। उसका विवाह 20 वर्ष की आयु में [[नूरजहाँ]] के भाई [[आसफ़ ख़ाँ (गियासबेग़ पुत्र)|आसफ़ ख़ाँ]] की पुत्री 'आरज़ुमन्द बानो' से सन 1611 में हुआ था। वही बाद में 'मुमताज़ महल' के नाम से उसकी प्रियतमा बेगम हुई।
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| ====औरंगज़ेब (1658 - 1707)====
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| {{main|औरंगज़ेब}}
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| '''मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब''' का जन्म [[4 नवम्बर]], 1618 ई. में [[उज्जैन]] के ‘दोहद’ नामक स्थान पर मुमताज़ के गर्भ से हुआ था। औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय [[नूरजहाँ]] के पास बीता था। 1643 ई. में औरंगज़ेब को 10,000 जात एवं 4000 सवार का मनसब प्राप्त हुआ। ‘[[ओरछा]]’ के जूझर सिंह के विरुद्ध औरंगज़ेब को प्रथम युद्ध का अनुभव प्राप्त हुआ था। 18 मई, 1637 ई. को [[फ़ारस]] के राजघराने की 'दिलरास बानो बेगम' के साथ औरंगज़ेब का निकाह हुआ। 1636 ई. से 1644 ई. एवं 1652 ई. से 1657 ई. तक औरंगज़ेब [[गुजरात]] (1645 ई.), मुल्तान (1640 ई.) एवं [[सिंध]] का भी गर्वनर रहा। [[आगरा]] पर क़ब्ज़ा कर जल्दबाजी में औरंगज़ेब ने अपना राज्याभिषक "अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर" की उपाधि से 31 जुलाई, 1658 ई. को [[दिल्ली]] में करवाया। ‘खजुवा’ एवं ‘देवराई’ के युद्ध में सफल होने के बाद 15 मई, 1659 ई. को औरंगज़ेब ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ [[शाहजहाँ]] के शानदार महल में जून, 1659 ई. को औरंगज़ेब का दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ।
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| ====बहादुर शाह ज़फ़र (1837- 1858)====
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| {{main|बहादुर शाह ज़फ़र}}
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| बहादुर शाह ज़फ़र [[मुग़ल साम्राज्य]] के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-58 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे। बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म [[24 अक्तूबर]] सन 1775 ई. को [[दिल्ली]] में हुआ था। बहादुर शाह अकबर शाह द्वितीय और लालबाई के दूसरे पुत्र थे। अपने शासनकाल के अधिकांश समय उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं रही और वह अंग्रेज़ों पर आश्रित रहे।
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| {{seealso|हेमू|ताजमहल|फ़तेहपुर सीकरी|चित्रकला मुग़ल शैली}}
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| ==आधुनिक काल==
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| ====मराठा====
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| {{main|मराठा साम्राज्य}}
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| राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य [[कन्दहार]] से [[आसाम]] की सीमा तक तथा [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर दक्षिण में [[अहमदनगर]] तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र [[जहाँगीर]] जहाँ पौत्र [[शाहजहाँ]] के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने [[ताजमहल]] का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु [[औरंगज़ेब]] ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, [[बुंदेलखण्ड]] तथा [[पंजाब]] के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए।
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| {{seealso|शिवाजी|तानाजी|अहिल्याबाई होल्कर|जाटों का इतिहास}}
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| ====अंग्रेज़====
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| [[फ़िरंगी]] लोग '''समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थे'''। [[अकबर]] से लेकर [[औरंगज़ेब]] तक '''मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्त्व नहीं समझा'''। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले [[पुर्तग़ाली]] भारत पहुँचे। उसके बाद [[डच]], [[अंग्रेज़]], [[फ्राँसीसी]] आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ़ अंग्रेज़ और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई।
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| {{seealso|वास्को द गामा}}
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| ====ईस्ट इंडिया कम्पनी====
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| {{main|ईस्ट इंडिया कम्पनी}}
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| अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने [[माहे]], [[पुदुचेरी|पांडिचेरी]] तथा [[चंद्रानगर]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में [[कर्नाटक]] की दूसरी लड़ाई छेड़ी।
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| {{seealso|मैसूर युद्ध|टीपू सुल्तान}}
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| ====पानीपत युद्ध====
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| {{मुख्य|पानीपत युद्ध}}
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| [[अहमद शाह अब्दाली]] ने 1748 से 1760 ई. के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई. में [[पानीपत]] की [[पानीपत युद्ध तृतीय|तीसरी लड़ाई]] जीत कर [[मुग़ल साम्राज्य]] का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसने दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौक़ा खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।
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| ====रेग्युलेटिंग एक्ट====
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| {{मुख्य|रेग्युलेटिंग एक्ट}}
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| बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई. में वाण्डीवाश की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई. में उनसे [[पांडेचेरी]] ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई. में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में [[बहादुर शाह प्रथम|बादशाह बहादुर शाह]] और [[शुजाउद्दौला|अवध के नवाब]] की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई. में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कॉउंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। [[वारेन हेस्टिंग्स]], जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई. में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।
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| ====गवर्नर-जनरलों का समय====
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| {{Main|गवर्नर-जनरल}}
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| कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस [[गवर्नर-जनरल|गवर्नर-जनरलों]] के हाथों में रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। [[मैसूर]] के साथ [[मैसूर युद्ध|चार लड़ाइयाँ]], मराठों के साथ तीन, बर्मा ([[म्यांमार]]) तथा [[सिख|सिखों]] के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]] के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई. तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।
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| ====प्रथम स्वतंत्रता संग्राम====
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| इस काल में [[सती प्रथा]] का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। [[राजा राममोहन राय]] ने [[सती प्रथा]] जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण [[लॉर्ड विलियम बैंटिक]] 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा। 1833 के [[चार्टर एक्ट]] के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से [[ईसाई धर्म]] का प्रचार, [[लॉर्ड डलहौज़ी]] द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें; इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई. में क्रांति के रूप में भड़क उठी।
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| {{seealso|झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|तात्या टोपे|राजा राममोहन राय|सती प्रथा}}
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| ====भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना====
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| {{main|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस}}
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| इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई.) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब [[वाइसराय]] (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधि) कहा जाने लगा। [[लॉर्ड कैनिंग]] पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई. में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई. में कलकत्ता ([[कोलकाता]]), मद्रास ([[चेन्नई]]) तथा बम्बई ([[मुम्बई]]) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई. में स्वेज़ नहर खुलने के बाद [[इंग्लैण्ड]] तथा [[यूरोप]] से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्जा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था। ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।
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| ====असहयोग और सत्याग्रह====
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| {{मुख्य|असहयोग आंदोलन}}
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| इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे [[मोहनदास करमचंद गाँधी]] के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये [[रौलट एक्ट]] जैसे दमनकारी क़ानूनों तथा [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक में [[ऊधमसिंह]] ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं। जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] और [[भगतसिंह]] जैसे महान क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह [[असहयोग आंदोलन]] को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में [[नमक सत्याग्रह]] आंदोलन शुरू कर दिया।
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| ====द्वितीय विश्वयुद्ध====
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| सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई. में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई. तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा [[संयुक्त राज्य अमरीका|अमरीका]] की सहायता से [[ब्रिटेन]] युद्ध जीत गया। [[गाँधी जी]] के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।
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| ====सम्प्रदायिक दंगे====
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| कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई. में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय [[लॉर्ड वेवेल]] अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई. में लॉर्ड वेवेल ने [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।
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| ==स्वाधीनता और उसके बाद==
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| भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई. के शुरू में [[लॉर्ड वेवेल]] के स्थान पर [[लॉर्ड माउंटबेटेन]] वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफ़सरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री [[एटली]] के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, [[बलूचिस्तान]], [[सिंध]], [[पश्चिमी पंजाब]], [[बांग्ला देश|पूर्वी बंगाल]] तथा [[पश्चिम बंगाल]] के मुस्लिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।
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| ====गांधी जी की हत्या====
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| {{मुख्य|महात्मा गाँधी}}
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| स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा [[मौलाना अबुलकलाम आज़ाद]] का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई. को [[नाथूराम गोडसे]] नामक हिन्दू ने [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाहकी भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लॉर्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।
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| ====रियासतों का विलय====
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| अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—[[कश्मीर]] तथा [[हैदराबाद रियासत|हैदराबाद]] ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई. में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर [[श्रीनगर]] सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्रवाई के फलस्वरूप वह 1948 ई. में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री [[सरदार पटेल|सरदार बल्लभ भाई पटेल]] की मुख्य भूमिका रही।
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| {{seealso|सरदार पटेल}}
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| ====संघ राज्यों का विलय====
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| [[भारतीय संविधान सभा]] के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। [[राजेन्द्र प्रसाद|डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद]] को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई. में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधानमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और [[चीन]] से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। [[फ्राँस]] ने 1951 ई. में [[चंद्रनगर]] शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई. में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ ([[पुदुचेरी|पांडिचेरी]], [[कारीकल]], [[माहे]] तथा [[युन्नान]]) भी भारत को सौंप दीं। [[पुर्तग़ाल]] ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ ([[गोवा]], [[दमन और दीव]]) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई. में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा<ref>1975 ई. में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।</ref>। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।
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| ==इतिहास तिथि क्रम==
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| {{इतिहास तिथि क्रम सूची1}}
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| *[http://www.shangrilagifts.org/hp/indus.html Comparison of Indus Valley Harappan]
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| *[http://ancientscripts.com/indus.html Indus Script]
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| *[http://vimitihas.wordpress.com/2008/08/16/sindhu_sabhyata सिंधुघाटी सभ्यता]
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| *[http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%83-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A5%81-%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE विलुप्त होती सिन्धु घाटी की सभ्यता]
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| *[http://hindi.indiawaterportal.org/node/20398 सिंधु घाटी सभ्यता]
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| *[http://incredible-india.biz/hn/history/ivc सिंधु घाटी सभ्यता]
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| {{लेख प्रगति
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| |आधार= | |
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| |शोध=
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| }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| | <references/> |
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| {{प्रांगण लेख इतिहास}}
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| ==संबंधित लेख==
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| {{भारत के राज्यों का इतिहास}}
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| [[Category:इतिहास]]
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| [[Category:इतिहास कोश]]
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