"चैतन्य महाप्रभु का विवाह": अवतरणों में अंतर
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निमाई ([[चैतन्य महाप्रभु]]) बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। इन्होंने कुछ समय तक [[नादिया]] में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। | निमाई ([[चैतन्य महाप्रभु]]) बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। इन्होंने कुछ समय तक [[नादिया]] में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। | ||
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13:43, 6 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
चैतन्य महाप्रभु का विवाह
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पूरा नाम | चैतन्य महाप्रभु |
अन्य नाम | विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर |
जन्म | 18 फ़रवरी सन् 1486 (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा) |
जन्म भूमि | नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | सन् 1534 |
मृत्यु स्थान | पुरी, उड़ीसा |
अभिभावक | जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी |
पति/पत्नी | लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया |
कर्म भूमि | वृन्दावन, मथुरा |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
निमाई (चैतन्य महाप्रभु) बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम उम्र में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया।
प्रथम विवाह
निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद् चिंतन में लीन रहकर राम व कृष्ण का स्तुति गान करने लगे थे। 15-16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई।
द्वितीय विवाह
वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब निमाई किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया। उनके बड़े भाई विश्वरूप ने बाल्यावस्था में ही सन्न्यास ले लिया था, अत: न चाहते हुए भी चैतन्य को अपनी माता की सुरक्षा के लिए चौबीस वर्ष की अवस्था तक गृहस्थ आश्रम का पालन करना पड़ा। कहा जाता है कि इनका विवाह वल्लभाचार्य की सुपुत्री से हुआ था।
चैतन्य महाप्रभु का विवाह |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- चैतन्य महाप्रभु
- गौरांग ने आबाद किया कृष्ण का वृन्दावन
- Gaudiya Vaishnava
- Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)
- Gaudiya History
- Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna
- Gaudiya Vaishnavas
- चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय
- परिचय- चैतन्य महाप्रभु
- जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)
- श्री संत चैतन्य महाप्रभु
- चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को
- Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)
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