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| {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| |चित्र=Hindi-Alphabhet.jpg | | {{इतिहास सामान्य ज्ञान नोट}} |
| |चित्र का नाम=हिंदी वर्णमाला | | {{इतिहास सामान्य ज्ञान}} |
| |विवरण='हिंदी' [[प्रांगण:मुखपृष्ठ/भारत गणराज्य|भारतीय गणराज]] की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। | | {| class="bharattable-green" width="100%" |
| |शीर्षक 1=लिपी | | |- |
| |पाठ 1=[[देवनागरी लिपि|देवनागरी]]
| | | valign="top"| |
| |शीर्षक 2=आधिकारिक भाषा | | {| width="100%" |
| |पाठ 2=[[भारत]] | | | |
| |शीर्षक 3=नियामक | | <quiz display=simple> |
| |पाठ 3=केंद्रीय हिंदी निदेशालय | | {'पेरिप्लस मैरिस एरिथ्रियन सी' के लेखक को पादौक के रूप में ज्ञात बन्दरगाह कौन-सा था?(यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-757 |
| |शीर्षक 4=भाषा–परिवार | | |type="()"} |
| |पाठ 4=[[भारोपीय भाषा परिवार]]
| | +[[अरिकमेडु]] |
| |शीर्षक 5=व्युत्पत्ति
| | -[[ताम्रलिप्ति]] |
| |पाठ 5=हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति [[संस्कृत]] शब्द सिन्धु से मानी जाती है। | | -कोकाई |
| |शीर्षक 6= | | -बारबैरिकम |
| |पाठ 6= | | |
| |शीर्षक 7=
| | {ईसा की प्रारंभिक शताब्दियों में भारतीय और पश्चिमी व्यापारियों का सबसे बड़ा व्यापारिसंगम-स्थल कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-758 |
| |पाठ 7= | | |type="()"} |
| |शीर्षक 8= | | -देडेसिया |
| |पाठ 8=
| | +एलेक्जेंड्रिया या सिकन्दरिया |
| |शीर्षक 9=
| | -तक्षशिला |
| |पाठ 9= | | -पालमायरा |
| |शीर्षक 10=
| | |
| |पाठ 10=
| | {[[भारत]] में हिन्द-यूनानी शासन की स्थापना से पूर्व सिक्कों का प्रसारण किसके द्वारा किया जाता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-759 |
| |संबंधित लेख=[[हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ]], [[आठवीं अनुसूची]], [[हिन्दी दिवस]], [[विश्व हिन्दी दिवस]], [[हिंदी पत्रकारिता दिवस]]
| | |type="()"} |
| |अन्य जानकारी=सन् [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। | | -शासकों |
| |बाहरी कड़ियाँ= | | -व्यक्तिगत व्यापारियों |
| |अद्यतन= | | -व्यापारिक निगमों |
| }}
| | +उपर्युक्त सभी |
| {{हिन्दी विषय सूची}}
| | |
| '''हिंदी''' भारतीय [[प्रांगण:मुखपृष्ठ/भारत गणराज्य|गणराज]] की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् [[1997]] में भारत की जनगणना का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए [[यूनेस्को]] द्वारा सन् [[1998]] में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]] के तत्कालीन निदेशक प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। इसकी कुछ बोलियाँ, [[मैथिली भाषा|मैथिली]] और [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[ब्रजभाषा]], [[छत्तीसगढ़ी]], [[गढ़वाली]], [[हरियाणवी]], [[कुमायूँनी बोली|कुमांऊनी]], [[मागधी]] और [[मारवाड़ी भाषा]] शामिल हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.censusindia.gov.in/Census_Data_2001/Census_Data_Online/Language/Statement1.htm |title=ABSTRACT OF SPEAKERS' STRENGTH OF LANGUAGES AND MOTHER TONGUES - 2001 |accessmonthday=15 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=census of india |language=अंग्रेज़ी }}</ref>
| | {सर्वाधिक संख्या में रोमन सिक्के कहाँ से पाए गए हैं? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-760 |
| ==विकास==
| | |type="()"} |
| {{main|हिंदी भाषा का विकास}} | | -[[केरल]] |
| ;वर्गीकरण
| | -[[तमिलनाडु]] |
| *हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है।
| | +उपर्युक्त दोनों |
| *आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विश्लिष्ट भाषा है।
| | -[[पश्चिम बंगाल|पश्चिमी बंगाल]] |
| *भाषा–परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
| | |
| *[[भारत]] में 4 भाषा–परिवार— [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, आस्ट्रिक व चीनी–तिब्बती मिलते हैं। [[भारत]] में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
| | {वह कौन प्रथम भारतीय शासक था, जिसने रोमन मुद्रा प्रणाली के अनुरूप अपने सिक्कों का प्रसारण किया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-761 |
| *हिंदी भारोपीय/ भारत [[यूरोप|यूरोपीय]] के भारतीय– [[ईरान|ईरानी]] शाखा के भारतीय आर्य (Indo–Aryan) उपशाखा से विकसित एक भाषा है।
| | |type="()"} |
| *भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में विभक्त किया जाता है।
| | -शुंग |
| ==प्राचीन हिंदी== | | -हिन्द-यूनानी |
| {{main|प्राचीन हिंदी}} | | +[[कुषाण]] |
| *मध्यदेशीय भाषा परम्परा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिंदी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में सर्वोपरी है।
| | -[[गुप्तवंश]] |
| *प्राचीन हिंदी से अभिप्राय है— अपभ्रंश– अवहट्ट के बाद की भाषा।
| | |
| *हिंदी का आदिकाल हिंदी भाषा का शिशुकाल है। यह वह काल था, जब अपभ्रंश–अवहट्ट का प्रभाव हिंदी भाषा पर मौजूद था और हिंदी की बोलियों के निश्चित व स्पष्ट स्वरूप विकसित नहीं हुए थे।
| | {[[उत्तर भारत]] के किस नगर को सर्वोत्तम रेशम उत्पादन केन्द्र माना जाता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-762 |
| ==मध्यकालीन हिंदी==
| | |type="()"} |
| {{main|मध्यकालीन हिंदी}} | | -[[तक्षशिला]] |
| मध्यकाल में हिंदी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गईं। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए— ब्रजभाषा, अवधी व खड़ी बोली। ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त मध्यकाल में खड़ी बोली के मिश्रित रूप का साहित्य में प्रयोग होता रहा। इसी खड़ी बोली का 14वीं सदी में दक्षिण में प्रवेश हुआ, अतः वहाँ पर इसका साहित्य में अधिक प्रयोग हुआ। 18वीं सदी में खड़ी बोली को मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला तथा इसके विकास को नई दिशा मिली।
| | -[[पाटलिपुत्र]] |
| [[चित्र:Hindi-Area.jpg|thumb|250px|[[भारत]] में हिंदी भाषी क्षेत्र]] | | -[[कौशाम्बी]] |
| | +[[वाराणसी]] |
| | |
| | {एक प्राचीन भारतीय राजवंश के शासकों ने उसके साम्राज्य में निवास करने वाले विभिन्न [[धर्म|धर्मों]] के लोगों द्वरापूजित 35 [[देवी]]-[[देवता|देवताओं]] की आकृतियों को अपने सिक्के पर अंकित कराया। उक्त राजवंश था: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-763 |
| | |type="()"} |
| | -[[मौर्य वंश|मौर्य]] |
| | -शक |
| | +[[कुषाण वंश|कुषाण]] |
| | -[[गुप्त राजवंश|गुप्त]] |
| | |
| | {[[भारत]] और पश्चिम एशिया के मध्य मुख्यत: स्थल मार्ग कहाँ से गुजरता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-219,प्रश्न-764 |
| | |type="()"} |
| | +[[खैबर दर्रा]] और [[काबुल]] |
| | -खैबर और [[बोलन दर्रा]] |
| | -[[तक्षशिला]], [[पेशावर]] और [[काबुल]] |
| | -[[काबुल]] और [[बामियान]] |
| | |
| | {[[मौर्योत्तर काल]] में [[पश्चिम भारत]] में व्यापार का सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-219,प्रश्न-765 |
| | |type="()"} |
| | -सुपरिक |
| | -कल्याण |
| | -[[चोल]] |
| | +[[भरुकच्छ]] |
| | |
| | {'सिन्ध-सौवीर' प्राचीन [[भारत]] में किसलिए प्रसिद्ध था?(यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-219,प्रश्न-766 |
| | |type="()"} |
| | -उत्तम तलवारों एवं कटारों के उत्पादन |
| | +घोड़ों एवं खच्चरों के व्यापार |
| | -ऊनी वस्त्र उद्योग |
| | -चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन |
| | |
| | |
| | |
| | {पतंजली के अनुसार [[मथुरा]] वस्त्र उद्योग का मुख्य केन्द्र था, कपड़े की निम्नलिखित कौन-सी किस्म वहाँ उत्पादित होती थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-219,प्रश्न-767 |
| | |type="()"} |
| | -दुकूल |
| | +सटक |
| | -क्षौम |
| | -चीनांसुक |
| | |
| | {सर्वप्रथम किस गुप्त सम्राट के समय के अभिलेख उत्तरी बंगाल से मिले थे? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-943 |
| | |type="()"} |
| | -[[चंद्रगुप्त प्रथम]] |
| | -[[चंद्रगुप्त द्वितीय]] |
| | +[[कुमारगुप्त प्रथम]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | |
| | {[[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-944 |
| | |type="()"} |
| | +[[मालवा]] |
| | -[[मगध]] |
| | -[[प्रयाग]] |
| | -उपर्युक्त में से कोई नहीं |
| | |
| | {गुप्त संवत् (319-320) को प्रारंभ करने का श्रेय किसे दिया जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-945 |
| | |type="()"} |
| | -श्रीगुप्त |
| | +[[चंद्रगुप्त प्रथम]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | -कुमारगुप्त |
| | |
| | {[[हरिषेण]] किस शासक का दरबारी [[कवि]] था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-946 |
| | |type="()"} |
| | +[[समुद्रगुप्त]] |
| | -[[अशोक]] |
| | -[[कनिष्क]] |
| | -[[चंद्रगुप्त द्वितीय]] |
| | |
| | {[[गुप्त काल]] को [[प्राचीन भारत]] का क्लासिकल युग क्यों कहा जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-947 |
| | |type="()"} |
| | -व्यापार में अभूतपूर्ण प्रगति के कारण। |
| | +[[कला]] एवं [[साहित्य]] के क्षेत्र के अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचने के कारण। |
| | -प्रचुर मात्रा में स्वर्ण सिक्के चिलाये जाने के कारण |
| | -उपर्युक्त सभी के कारण |
| | |
| | {धन्वंतरी निम्न में से किसके कारण प्रसिद्ध थे: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-948 |
| | |type="()"} |
| | -गणितज्ञ होने के कारण |
| | +[[आयुर्वेद]] के विद्वान एवं चिकित्सक होने के कारण |
| | -[[ज्योतिष]] का प्रसिद्ध विद्वान के कारण |
| | -प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ होने के कारण |
| | |
| | {[[गुप्त काल]] का प्रसिद्ध खगोलशास्त्री कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-949 |
| | |type="()"} |
| | -[[भास्कराचार्य]] |
| | -[[वराहमिहिर]] |
| | +[[आर्यभट्ट]] |
| | -[[ब्रह्मगुप्त]] |
| | |
| | {[[गुप्त काल]] में [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] की [[काँस्य]] निर्मित प्रतिमा कहाँ से प्राप्त हुई है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-950 |
| | |type="()"} |
| | +[[सुल्तानगंज]] |
| | -[[बोधगया]] |
| | -[[अजंता]] |
| | -[[मथुरा]] |
| | |
| | {[[सती प्रथा]] का पहला उल्लेख कहाँ से मिलता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-951 |
| | |type="()"} |
| | -भीतरगांव लेख से |
| | -विलसंड स्तंभलेख से |
| | +एरण अभिलेख से |
| | -भितरी स्तंभलेख से |
| | |
| | |
| | |
| | {[[गुप्त वंश]] के किस शासक ने हूणों को परास्त किया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-652 |
| | |type="()"} |
| | +[[स्कन्दगुप्त]] |
| | -[[चंद्रगुप्त द्वितीय]] |
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| | -[[रामगुप्त]] |
| | |
| | {शतपथ ब्राह्मण में शिव को निम्नलिखित में से किस नाम से जाना जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-860 |
| | |type="()"} |
| | -गिरित्र |
| | -कपर्दिन |
| | +सहस्त्राक्ष |
| | -शतरुद्रिय |
| | |
| | {[[कालिदास]] के किस [[ग्रंथ]] में प्रत्यभिज्ञा दर्शन का निरूपण हुआ था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-861 |
| | |type="()"} |
| | -[[रघुवंश]] |
| | -[[कुमारसम्भव]] |
| | +[[अभिज्ञान शाकुंतलम्|अभिज्ञान शाकुंतलम]] |
| | -[[मेघदूत]] |
| | |
| | {निम्नलिखित में से कौन-सा स्थल 'त्रिमूर्ति' के लिए विख्यात है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-862 |
| | |type="()"} |
| | -[[अजंता]] |
| | -[[एलोरा]] |
| | +एलिफेण्टा |
| | -इनमें से कोई नहीं |
| | |
| | {[[संगम युग]] में प्रांतों को मंडलम में विभाजित किया गया था और मंडलम का भी उपविभाजन निम्नलिखित में से किसमें हुआ था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-863 |
| | |type="()"} |
| | +नाडु |
| | -कुर्रम |
| | -कोट्टम |
| | -उर |
| | |
| | {निम्नलिखित में से कौन-सी रचना संगम-युगीन मदुराई नगर का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत करती है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-864 |
| | |type="()"} |
| | +मणिमेकलै |
| | -[[शिलप्पादिकारम]] |
| | -कुराल अथवा तिरुकुराल |
| | -पत्तप्पाट्टु |
| | |
| | {[[संगम युग]] में 'वरियम' शब्द किसका सूचक था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-865 |
| | |type="()"} |
| | -[[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को अनुदान में दिए गए राजस्व मुक्त ग्राम। |
| | +राजस्व प्रदान करने वाली क्षेत्रीय इकाई। |
| | -भू-राजस्व वसूल करने वाला प्रभारी अधिकारी। |
| | -ग्रामसभाओं की प्रबंधक समिति। |
| | |
| | {निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र राज्य की आय का एक स्त्रोत नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-866 |
| | |type="()"} |
| | -राजकीय सम्पत्ति तथा राजकोष |
| | -राज्य व्यापार |
| | -मार्ग-शुल्क और सीमा-शुल्क |
| | +दीवानी मुकदमों पर (स्टाम्प) न्याय-शुल्क |
| | |
| | {[[संगम युग]] में [[भारत]] द्वारा आयातित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु क्या थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-867 |
| | |type="()"} |
| | +[[सोना]] और [[चाँदी]] |
| | -मृदभाण्ड एवं काँच के बर्तन |
| | -[[मदिरा]] एवं दासियाँ |
| | -[[घोड़ा|घोड़े]] |
| | |
| | {निम्नलिखित में कौन-सा राजवंश [[संगम युग|परवर्ती संगम युग]] में चेर राजाओं के साथ निरंतर युद्ध में लगा रहा? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-868 |
| | |type="()"} |
| | -[[चोल राजवंश|चोल]] |
| | +[[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्य]] |
| | -[[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु]] |
| | -[[पल्लव]] |
| | |
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| ==आधुनिक हिंदी==
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| *हिंदी के आधुनिक काल तक आते–आते ब्रजभाषा जनभाषा से काफ़ी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप जनभाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे–धीरे लेने लगी। अंग्रेज़ी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरम्भ कर दिया।
| |
| *हिंदी के आधुनिक काल में प्रारम्भ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। 20वीं सदी के आते–आते खड़ी बोली गद्य–पद्य दोनों की ही साहित्यिक भाषा बन गई।
| |
| *इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। फलतः खड़ी बोली साहित्य की सर्वप्रमुख भाषा बन गयी।
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| ==खड़ी बोली==
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| [[चित्र:Kolaz-hindi-writer-poet.jpg|thumb|प्रमुख हिंदी साहित्यकारों की एक झलक]]
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| ====भारतेन्दु पूर्व युग====
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| खड़ी बोली गद्य के आरम्भिक रचनाकारों में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के बाहर दो रचनाकारों— सदासुख लाल 'नियाज' (सुखसागर) व [[इंशा अल्ला ख़ाँ]] (रानी केतकी की कहानी) तथा फ़ोर्ट विलियम कॉलेज, [[कलकत्ता]] के दो भाषा मुंशियों— [[लल्लू लालजी]] (प्रेम सागर) व सदल मिश्र (नासिकेतोपाख्यान) के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु पूर्व युग में मुख्य संघर्ष हिंदी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों— राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिन्द' व राजा लक्ष्मण सिंह ने हिंदी के स्वरूप निर्धारण के सवाल पर दो सीमान्तों का अनुगमन किया। राजा शिव प्रसाद ने हिंदी का गँवारुपन दूर कर उसे उर्दू–ए–मुअल्ला बना दिया तो राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिंदी का समर्थन किया।
| |
| ====भारतेन्दु युग====
| |
| (1850 ई.–[[1900]] ई.)
| |
| इन दोनों के बीच सर्वमान्य हिंदी गद्य की प्रतिष्ठा कर गद्य साहित्य की विविध विधाओं का ऐतिहासिक कार्य भारतेन्दु युग में हुआ। हिंदी सही मायने में [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेन्दु]] के काल में 'नई चाल में ढली' और उनके समय में ही हिंदी के गद्य के बहुमुखी रूप का सूत्रपात हुआ। उन्होंने न केवल स्वयं रचना की बल्कि अपना एक लेखक मंडल भी तैयार किया, जिसे 'भारतेन्दु मंडल' कहा गया। भारतेन्दु युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि गद्य रचना के लिए खड़ी बोली को माध्यम के रूप में अपनाकर युगानुरूप स्वस्थ दृष्टिकोण का परिचय दिया। लेकिन पद्य रचना के मसले में ब्रजभाषा या खड़ी बोली को अपनाने के सवाल पर विवाद बना रहा, जिसका अन्त द्विवेदी के युग में जाकर हुआ।
| |
| ====द्विवेदी युग====
| |
| ([[1900]] ई.–[[1920]] ई.)
| |
| खड़ी बोली और [[हिंदी साहित्य]] के सौभाग्य से [[1903]] ई. में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादन का भार सम्भाला। वे सरल और शुद्ध भाषा के प्रयोग के हिमायती थे। वे लेखकों की [[वर्तनी (हिंदी)|वर्तनी]] अथवा त्रुटियों का संशोधन स्वयं करते चलते थे। उन्होंने हिंदी के परिष्कार का बीड़ा उठाया और उसे बख़ूबी अन्जाम दिया। गद्य तो भारतेन्दु युग से ही सफलतापूर्वक खड़ी बोली में लिखा जा रहा था, अब पद्य की व्यावहारिक भाषा भी एकमात्र खड़ी बोली प्रतिष्ठित होनी लगी। इस प्रकार ब्रजभाषा, जिसके साथ में 'भाषा' शब्द जुड़ा हुआ है, अपने क्षेत्र में सीमित हो गई अर्थात् 'बोली' बन गई। इसके मुक़ाबले में खड़ी बोली, जिसके साथ 'बोली' शब्द लगा है, 'भाषा बन गई', और इसका सही नाम हिंदी हो गया। अब खड़ी बोली [[दिल्ली]] के आसपास की [[मेरठ]]–जनपदीय बोली नहीं रह गई, अपितु यह समस्त उत्तरी भारत के साहित्य का माध्यम बन गई। द्विवेदी युग में साहित्य रचना की विविध विधाएँ विकसित हुई।। [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]], [[श्याम सुन्दर दास]], पद्म सिंह शर्मा, माधव प्रसाद मिश्र, पूर्णसिंह, [[चन्द्रधर शर्मा गुलेरी]] आदि के अवदान विशेषतः उल्लेखनीय हैं। <br />
| |
| इसी दौरान वर्ष [[1918]] में [[इन्दौर]] में गांधी जी की अध्यक्षता में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' आयोजित हुआ और उसी में पारित एक प्रस्ताव के द्वारा हिन्दी [[राष्ट्रभाषा]] मानी गयी। इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद [[दक्षिण भारत]] में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये ''[[दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा]]'' की भी स्थापना हुई जिसका मुख्यालय [[मद्रास]] में था।<ref>{{cite web |url=http://www.hindisahityasamiti.com/webforms/EventDtls.aspx?id=24|title= गांधीजी की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य सम्मलेन का 8वां अधिवेशन सन 1918 में |accessmonthday=4 जून |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= सर्व सेवा संघ प्रकाशन वाश्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर |language=हिंदी }}</ref>
| |
|
| |
|
| ====छायावाद युग====
| | {[[संगम युग]] में 'कोडै' क्या था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-913 |
| ([[1920]] ई.–[[1936]] ई. एवं उसके बाद)
| | |type="()"} |
| साहित्यिक खड़ी बोली के विकास में छायावाद युग का योगदान काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। [[जयशंकर प्रसाद|प्रसाद]], [[सुमित्रानंदन पंत|पंत]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|निराला]], [[महादेवी वर्मा]] और राम कुमार आदि ने महती योगदान किया। इनकी रचनाओं को देखते हुए यह कोई नहीं कह सकता कि खड़ी बोली सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त करने में ब्रजभाषा से कम समर्थ है। हिंदी में अनेक भाषायी गुणों का समावेश हुआ। अभिव्यजंना की विविधता, बिंबों की लाक्षणिकता, रसात्मक लालित्य छायावाद युग की भाषा की अन्यतम विशेषताएँ हैं। हिंदी काव्य में छायावाद युग के बाद प्रगतिवाद युग ([[1936]] ई.–[[1946]] ई.) प्रयोगवाद युग (1943) आदि आए। इस दौर में खड़ी बोली का काव्य भाषा के रूप में उत्तरोत्तर विकास होता गया।
| | +उपहार प्रदान करने वाली संस्था |
| | -ऊँची भूमि |
| | -रमणीय पर्वतीय स्थल |
| | -जनसभा |
|
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| पद्य के ही नहीं, गद्य के सन्दर्भ में भी छायावाद युग साहित्यिक खड़ी बोली के विकास का स्वर्ण युग था। कथा साहित्य (उपन्यास व कहानी) में [[प्रेमचंद]], नाटक में [[जयशंकर प्रसाद]], आलोचना में आचार्य [[रामचंद्र शुक्ल]] ने जो भाषा–शैलियाँ और मर्यादाएँ स्थापित कीं, उनका अनुसरण आज भी किया जा रहा है। गद्य साहित्य के क्षेत्र में इनके महत्त्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गद्य–साहित्य के विभिन्न विधाओं के इतिहास में कालों का नामकरण इनके नाम को केन्द्र में रखकर ही किया गया है। जैसे उपन्यास के इतिहास में प्रेमचंद– पूर्व युग, प्रेमचंद युग, प्रेमचंदोत्तर युग; नाटक के इतिहास में प्रसाद– पूर्व युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग; आलोचना के इतिहास में शुक्ल– पूर्व युग, शुक्ल युग, शुक्लोत्तर युग।
| | {[[संगम युग]] में विनिमय की दर निश्चित नहीं थी, परंतु दो वस्तुओं का आपसी विनियम बराबर मात्रा में होता था, वे वस्तुएँ थी: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-914 |
| | |type="()"} |
| | -[[मछली]] और [[नमक]] |
| | -[[धान]] और [[मछली]] |
| | -[[दाल]] और [[नमक]] |
| | +[[धान]] और [[नमक]] |
| | |
| | {आरम्भिक तमिल लेखों पर किन [[भाषा|भाषाओं]] का प्रभाव नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-915 |
| | |type="()"} |
| | -[[संस्कृत]] |
| | -[[प्राकृत]] |
| | -[[पालि]] |
| | +[[कन्नड़]] |
| | |
| | {[[संगम युग]] में 'वेत्वी' का अर्थ था: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-916 |
| | |type="()"} |
| | -पशुओं की चोरी |
| | -पशुओं के लिए युद्ध |
| | +[[गाय]] का हरण |
| | -गाय के लिए युद्ध |
| | |
| | {[[संगम युग]] में संगम [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में वर्णित नगर 'वसव समुद्र' हैं: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-917 |
| | |type="()"} |
| | +[[मद्रास]] |
| | -[[मदुरै]] |
| | -कावेरीपट्टनम |
| | -मुसिरी |
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| ==हिंदी के विभिन्न नाम या रूप==
| | {[[तमिल]] [[काव्य]] में आगम वर्ग की कविताएँ: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-918 |
| ====हिन्दवी====
| | |type="()"} |
| हिन्दवी को हिन्दुई, जबान–ए–हिन्द, देहलवी नामों से भी जाना जाता है। मध्यकाल में मध्यदेश के हिन्दुओं की भाषा, जिसमें अरबी–फ़ारसी शब्दों का अभाव है। (सर्वप्रथम [[अमीर ख़ुसरो]] (1253-1325) ने मध्य देश की भाषा के लिए हिन्दवी, हिंदी शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने देशी भाषा हिन्दवी, हिंदी के प्रचार–प्रसार के लिए एक फ़ारसी–हिंदी कोश 'ख़ालिक बारी' की रचना की, जिसमें हिन्दवी शब्द 30 बार, हिंदी शब्द 5 बार देशी भाषा के लिए प्रयुक्त हुआ है।)
| | -प्रेम संबंधी है। |
| ====भाषा====
| | -राजाओं की प्रशंसा में हैं। |
| भाषा को भाखा भी कहा जाता है। विद्यापति, [[कबीर]], [[तुलसी]], [[केशवदास]] आदि ने भाषा शब्द का प्रयोग हिंदी के लिए किया है। (19वीं सदी के प्रारम्भ तक इस शब्द का प्रयोग होता रहा। फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में नियुक्त हिंदी अध्यापकों को 'भाषा मुंशी' के नाम से अभिहित करना इसी बात का सूचक है।)
| | -[[प्रकृति]] की प्रशंसा हैं। |
| ====रेख्ता==== | | +[[शिव|भगवान शिव]] की प्रशंसा में हैं। |
| मध्यकाल में [[मुसलमान|मुसलमानों]] में प्रचलित अरबी–फ़ारसी शब्दों से मिश्रित कविता की भाषा। (जैसे– मीर, [[मिर्ज़ा ग़ालिब]] की रचनाएँ)
| | |
| ====दक्खिनी====
| | {[[गुप्त]] किसके सामंत थे? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-919 |
| इसे दक्कनी नाम से भी जाना जाता है। मध्यकाल में दक्कन के मुसलमानों के द्वारा फ़ारसी लिपि में लिखी जाने वाली भाषा। (हिंदी में गद्य रचना परम्परा की शुरुआत करने का श्रेय दक्कनी हिंदी के रचनाकारों को ही है। दक्कनी हिंदी को उत्तर भारत में लाने का श्रेय प्रसिद्ध शायर वली दक्कनी (1688-1741) को है। वह मुग़ल शासक मुहम्मद शाह 'रंगीला' के शासन काल में [[दिल्ली]] पहुँचा और उत्तरी भारत में दक्कनी हिंदी को लोकप्रिय बनाया।)
| | |type="()"} |
| ====खड़ी बोली====
| | -[[मौर्य वंश|मौर्यों के]] |
| खड़ी बोली की तीन शैलियाँ हैं—
| | +[[कुषाण वंश|कुषाणों के]] |
| #हिंदी, शुद्ध हिंदी, उच्च हिंदी, नागरी हिंदी, आर्यभाषा– नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली (जैसे—जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ)।
| | -[[सातवाहन वंश|सातवाहनों के]] |
| #उर्दू, जबान–ए–उर्दू, जबान–ए–उर्दू–मुअल्ला— फ़ारसी लिपि में लिखित अरबी—फ़ारसी बहुल खड़ी बोली।
| | -उपर्युक्त में से कोई नहीं |
| #हिन्दुस्तानी— हिंदी और उर्दू का मिश्रित रूप व आमजन द्वारा प्रयुक्त (जैसे–[[प्रेमचंद]] की रचनाएँ)।<ref>13वीं सदी से 18वीं सदी तक हिंदी–उर्दू में कोई मौलिक भेद नहीं था।</ref>
| | |
| ==हिंदी के विभिन्न अर्थ==
| | {[[गुप्त वंश]] का संस्थापक कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-920 |
| ====भाषा शास्त्रीय अर्थ====
| | |type="()"} |
| नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली।
| | -[[घटोत्कच गुप्त|घटोत्कचगुप्त]] |
| ====संवैधानिक/क़ानूनी अर्थ====
| | -[[चंद्रगुप्त प्रथम|चंद्रगुप्त प्रथम ने]] |
| संविधान के अनुसार हिंदी भारत संघ की राजभाषा या अधिकृत भाषा तथा अनेक राज्यों की राजभाषा है।
| | +[[श्रीगुप्त]] |
| ====सामान्य अर्थ====
| | -[[रामगुप्त]] |
| समस्त हिंदी भाषी क्षेत्र की परिनिष्ठित भाषा अर्थात् शासन, शिक्षा, साहित्य, व्यापार आदि की भाषा।
| | |
| ====व्यापक अर्थ====
| | {[[गुप्त वंश]] के किस शासन ने सर्वप्रथम महाधिराज की उपाधि धारण की? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-921 |
| आधुनिक युग में हिंदी को केवल खड़ी बोली में ही सीमित नहीं किया जा सकता। हिंदी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिंदी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं।
| | |type="()"} |
| ==हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास==
| | -[[श्रीगुप्त |श्रीगुप्त ने]] |
| {{main|हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास}} | | +[[चंद्रगुप्त प्रथम|चंद्रगुप्त प्रथम ने]] |
| *राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है—समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात् आमजन की भाषा (जनभाषा)। जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन–जन के विचार–विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।
| | -[[घटोत्कच गुप्त|घटोत्कचगुप्त]] |
| *राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद सम्पर्क की आवश्यकता की उपज होती है। वैसे तो सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ होती हैं, किन्तु राष्ट्र की जनता जब स्थानीय एवं तत्कालिक हितों व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।
| | -[[समुद्रगुप्त|समुद्रगुप्त ने]] |
| *स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। भारत के सन्दर्भ में इस आवश्यकता की पूर्ति हिंदी ने की। यही कारण है कि हिंदी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान<ref>विशेषतः 1900 ई.-1947 ई.</ref> राष्ट्रभाषा बनी।
| | |
| * राष्ट्रभाषा शब्द कोई संवैधानिक शब्द नहीं है, बल्कि यह प्रयोगात्मक, व्यावहारिक व जनमान्यता प्राप्त शब्द है।
| | {मेहरौली का स्तम्भ लेख किस शासक से संबंधित है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-923 |
| * राष्ट्रभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोड़ने का काम करती है अर्थात् राष्ट्रभाषा की प्राथमिक शर्त देश में विभिन्न समुदायों के बीच भावनात्मक एकता स्थापित करना है।
| | |type="()"} |
| ==राष्ट्रभाषा आंदोलन से सम्बन्धित व्यक्तित्व==
| | +[[चंद्रगुप्त द्वितीय]] |
| ====बंगाल====
| | -[[चंद्रगुप्त मौर्य]] |
| {| class="bharattable-pink" border="1" width="25%" style="margin:5px; float:right"
| | -[[अशोक]] |
| |+ हिंदी के लिए महापुरुष कथन
| | -[[समुद्रगुप्त]] |
| |-
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| | हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।<br /> '''[[चन्द्रबली पाण्डेय]]''' | |
| |-
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| <poem>है भव्य [[भारत]] ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
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| हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥ <br />'''[[मैथिलीशरण गुप्त]]'''</poem>
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| |-
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| | जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। <br />'''[[महात्मा गाँधी]]'''
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| |- | |
| | हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के [[हृदय]] और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है। <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
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| |-
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| | हिंदी को [[गंगा]] नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा। <br />'''[[विनोबा भावे]]'''
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| |-
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| | हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है। <br />'''सुभाष चन्द्र बसु'''
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| |-
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| | हिंदी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं। <br />'''[[हज़ारीप्रसाद द्विवेदी]]'''
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| |} | |
| [[राजा राममोहन राय]], [[केशवचंद्र सेन]], नवीन चंद्र राय, [[ईश्वर चंद्र विद्यासागर]], तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', [[सुभाषचंद्र बोस]] ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।') [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] ('यदि हम प्रत्येक भारतीय के नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, तो हमें राष्ट्रभाषा के रूप में इस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश के सबसे बड़े भू–भाग में बोली जाती है और जिसे स्वीकार करने की सिफ़ारिश महात्मा गाँधीजी ने हम लोगों से की है।') रामानंद चटर्जी, [[सरोजिनी नायडू]], शारदा चरण मित्र, आचार्य क्षिति मोहन सेन ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जो अनुष्ठान हुए हैं, उनको मैं संस्कृति का राजसूय यज्ञ समझता हूँ।') आदि। | |
| ====महाराष्ट्र====
| |
| [[बाल गंगाधर तिलक]] ('यह आंदोलन [[उत्तर भारत]] में केवल एक सर्वमान्य [[लिपि]] के प्रचार के लिए नहीं है। यह तो उस आंदोलन का एक अंग है, जिसे मैं एक राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है, क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्त्वपूर्ण अंग है। अतएव यदि आप किसी राष्ट्र के लोगों को एक–दूसरे के निकट लाना चाहें तो सबके लिए समान भाषा से बढ़कर सशक्त अन्य कोई बल नहीं है।'), एन. सी. केलकर, डॉ. भण्डारकर, वी. डी. सावरकर, [[गोपाल कृष्ण गोखले]], गाडगिल, [[काका कालेलकर]] आदि। | |
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| ====पंजाब====
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| [[लाला लाजपत राय]], श्रद्धाराम फिल्लौरी आदि।
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| ====गुजरात====
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| [[दयानंद सरस्वती]], [[महात्मा गाँधी]], [[वल्लभभाई पटेल]], [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ('हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना नहीं है, वह तो है ही।') आदि।
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| ====दक्षिण भारत====
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| *[[सी. राजगोपालाचारी]], टी. विजयराघवाचार्य ('हिन्दुस्तान की सभी जीवित और प्रचलित भाषाओं में मुझे हिंदी ही राष्ट्रभाषा बनने के लिए सबसे अधिक योग्य दिखाई पड़ती है।'),
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| *सी. पी. रामास्वामी अय्यर ('देश के विभिन्न भागों के निवासियों के व्यवहार के लिए सर्वसुगम और व्यापक तथा एकता स्थापित करने के साधन के रूप में हिंदी का ज्ञान आवश्यक है।')
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| *अनन्त शयनम आयगर ('हिंदी ही उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाली समर्थ भाषा है।')
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| *[[एस. निजलिंगप्पा]] ('दक्षिण की भाषाओं ने संस्कृत से बहुत कुछ लेन–देन किया है, इसलिए उसी परम्परा में आई हुई हिंदी बड़ी सरलता से राष्ट्रभाषा होने के लायक़ है।')
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| *रंगनाथ रामचंद्र दिवाकर ('जो राष्ट्रप्रेमी है, उसे राष्ट्रभाषा प्रेमी होना चाहिए।')
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| *के. टी. भाष्यम, आर. वेंकटराम शास्त्री, एन. सुन्दरैया आदि।
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| अन्य—[[मदनमोहन मालवीय]], [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] ('हिंदी का प्रहरी'), [[राजेन्द्र प्रसाद]], सेठ गोविन्द दास आदि।
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| ====महात्मा गाँधी के विचार====
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| #'करोड़ों लोगों को [[अंग्रेज़ी]] की शिक्षा देना उन्हें ग़ुलामी में डालने जैसा है। [[लॉर्ड मैकाले|मैकाले]] ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच ग़ुलामी की बुनियाद थी'।<ref>हिन्द स्वराज, 1909</ref>
| |
| #"अंग्रेज़ी भाषा हमारे राष्ट्र के पाँव में बेड़ी बनकर पड़ी हुई है।" भारतीय विद्यार्थी को अंग्रेज़ी के मार्फ़त ज्ञान अर्जित करने पर कम से कम 6 वर्ष अधिक बर्बाद करने पड़ते हैं। यदि हमें एक विदेशी भाषा पर अधिकार पाने के लिए जीवन के अमूल्य वर्ष लगा देने पड़ें, तो फिर और क्या हो सकता है'। ([[1914]])
| |
| #'जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने [[कविता]] की हो, वह अत्यन्त पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा ठहर नहीं सकती'। ([[1916]])
| |
| #'हिंदी ही हिन्दुस्तान के शिक्षित समुदाय की सामान्य भाषा हो सकती है, यह बात निर्विवाद सिद्ध है। जिस स्थान को अंग्रेज़ी भाषा आजकल लेने का प्रयत्न कर रही है और जिसे लेना उसके लिए असम्भव है, वही स्थान हिंदी को मिलना चाहिए, क्योंकि हिंदी का उस पर पूर्ण अधिकार है। यह स्थान अंग्रेज़ी को नहीं मिल सकता, क्योंकि वह विदेशी भाषा है और हमारे लिए बड़ी कठिन है'। ([[1917]])
| |
| #'हिंदी भाषा वह भाषा है जिसको उत्तर में [[हिन्दू]] व [[मुसलमान]] बोलते हैं और जो [[नागरी लिपि|नागरी]] और फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है। यह हिंदी एकदम संस्कृतमयी नहीं है और न ही वह एकदम फ़ारसी शब्दों से लदी है'। ([[1918]])
| |
| #'हिंदी और उर्दू नदियाँ हैं और हिन्दुस्तानी सागर है। हिंदी और [[उर्दू]] दोनों को आपस में झगड़ना नहीं चाहिए। दोनों का मुक़ाबला तो अंग्रेज़ी से है'।
| |
| #'अंग्रेज़ों के व्यामोह से पिंड छुड़ाना स्वराज्य का एक अनिवार्य अंग है'।
| |
| #'मैं यदि तानाशाह होता (मेरा बस चलता तो) आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा देना बंद कर देता, सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएँ अपनाने पर मजबूर कर देता। जो आनाकानी करते, उन्हें बर्ख़ास्त कर देता। मैं पाठ्य–पुस्तकों की तैयारी का इंतज़ार नहीं करूँगा, वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे अपने आप ही चली आएगी। यह एक ऐसी बुराई है, जिसका तुरन्त ही इलाज होना चाहिए'।
| |
| #'मेरी मातृभाषा में कितनी ही ख़ामियाँ क्यों न हों, मैं इससे इसी तरह से चिपटा रहूँगा, जिस तरह से बच्चा अपनी माँ की छाती से, जो मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है। अगर अंग्रेज़ी उस जगह को हड़पना चाहती है, जिसकी वह हक़दार नहीं है, तो मैं उससे सख़्त नफ़रत करूँगा। वह कुछ लोगों के सीखने की वस्तु हो सकती है, लाखों–करोड़ों की नहीं'।
| |
| #'लिपियों में सबसे अव्वल दरजे की लिपि नागरी को ही मानता हूँ। मैं मानता हूँ कि नागरी और उर्दू लिपि के बीच अंत में जीत नागरी लिपि की ही होगी'।
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| ==राजभाषा के रूप में विकास==
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| ====राजभाषा क्या है====
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| {{Main|राजभाषा}}
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| #राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है— राज–काज की भाषा। जो भाषा देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह 'राजभाषा' कहलाती हैं राजाओं–नवाबों के ज़माने में इसे 'दरबारी भाषा' कहा जाता था।
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| #राजभाषा सरकारी काम–काज चलाने की आवश्यकता की उपज होती है।
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| #स्वशासन आने के पश्चात् राजभाषा की आवश्कता होती है। प्रायः राष्ट्रभाषा ही स्वशासन आने के पश्चात् [[राजभाषा]] बन जाती है। भारत में भी राष्ट्रभाषा हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
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| #राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है। हिंदी को [[14 सितंबर]] [[1949]] ई. को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया। इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को '[[हिंदी दिवस]]' के रूप में मनाया जाता है।
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| #राजभाषा देश को अपने प्रशासनिक लक्ष्यों के द्वारा राजनीतिक–आर्थिक इकाई में जोड़ने का काम करती है। अर्थात् राजभाषा की प्राथमिक शर्त राजनीतिक प्रशासनिक एकता क़ायम करना है।
| |
| #राजभाषा का प्रयोग क्षेत्र सीमित होता है, यथा—वर्तमान समय में भारत सरकार के कार्यालयों एवं कुछ राज्यों- हिंदी क्षेत्र के राज्यों में राज–काज हिंदी में होता है। अन्य राज्य सरकारें अपनी–अपनी भाषा में कार्य करती हैं, हिंदी में नहीं; [[महाराष्ट्र]] [[मराठी भाषा|मराठी]] में, [[पंजाब]] [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] में, [[गुजरात]] [[गुजराती भाषा|गुजराती]] में आदि।
| |
| #राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है, स्वभाषा या परभाषा। जैसे, मुग़ल शासक [[अकबर]] के समय से लेकर मैकाले के काल तक फ़ारसी राजभाषा तथा मैकाले के काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक अंग्रेज़ी राजभाषा थी जो कि विदेशी भाषा थी। जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया जो कि स्वभाषा है।
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| #राजभाषा का एक निश्चित मानक स्वरूप होता है, जिसके साथ छेड़छाड़ या प्रयोग नहीं किया जा सकता।
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| ==आठवीं अनुसूची==
| | {[[गुप्तोत्तर काल]] के बारे में निम्न में से क्या तात्पर्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1000 |
| {{Main|आठवीं अनुसूची}}
| | |type="()"} |
| आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ ([[असमिया भाषा|असमिया]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], हिंदी, [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]]) थीं। बाद में सिंधी को तत्पश्चात् कोंकणी, [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]]<ref>21वाँ संशोधन, 1967 ई.</ref>, [[नेपाली भाषा|नेपाली]] को शामिल किया गया <ref>71वाँ संशोधन, 1992 ई.</ref>, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त [[बोडो भाषा|बोडो]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] को शामिल किया गया<ref>92वाँ संशोधन, 2003</ref> और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं।
| | -इस [[काल]] में गाँव भी अपनी मुद्रा जारी करने लगे। |
| ==हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ== | | -ग्रामीण समुदायों के भूमि संबंधी अधिकारों का ह्रास हुआ। |
| {{Main|हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ}}
| | -एक नये भूमिधर वर्ग का उदय हुआ एवं व्यापार का पतन हुआ। |
| *'''हिंदी भाषी क्षेत्र/हिंदी क्षेत्र/हिंदी पट्टी'''— हिंदी पश्चिम में [[अम्बाला]] ([[हरियाणा]]) से लेकर पूर्व में [[पूर्णिया]] ([[बिहार]]) तक तथा उत्तर में [[बद्रीनाथ]]–[[केदारनाथ ज्योतिर्लिंग|केदारनाथ]] ([[उत्तराखंड]]) से लेकर दक्षिण में [[खंडवा]] ([[मध्य प्रदेश]]) तक बोली जाती है। इसे हिंदी भाषी क्षेत्र या हिंदी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत 9 राज्य- [[उत्तर प्रदेश]], [[उत्तराखंड]], [[बिहार]], [[झारखंड]], [[मध्य प्रदेश]], [[छत्तीसगढ़]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] व [[हिमाचल प्रदेश]] तथा 1 केन्द्र शासित प्रदेश ([[राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली]]) आते हैं। इस क्षेत्र में भारत की कुल जनसंख्या के 43% लोग रहते हैं।
| | +राष्ट्रकूटों ने सैनिकों को भूमि अनुदान नहीं दिया। |
| ====उपभाषाएँ व बोलियाँ====
| | |
| *'''बोली'''— एक छोटे क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा बोली कहलाती है। बोली में साहित्य रचना नहीं होती है।
| | {किस इतिहासकार ने [[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] सामाजिक, आर्थिक संगठन एवं संरचना के लिए सामंतवाद शब्द का प्रयोग किया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1001 |
| *'''उपभाषा'''— अगर किसी बोली में साहित्य रचना होने लगती है और क्षेत्र का विकास हो जाता है तो वह बोली न रहकर उपभाषा बन जाती है।
| | |type="()"} |
| *'''भाषा'''— साहित्यकार जब उस भाषा को अपने साहित्य के द्वारा परिनिष्ठित सर्वमान्य रूप प्रदान कर देते हैं तथा उसका और क्षेत्र विस्तार हो जाता है तो वह भाषा कहलाने लगती है।
| | -[[ए. एस. अल्तेकर]] |
| *एक भाषा के अंतर्गत कई उपभाषाएँ होती हैं तथा एक उपभाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ होती हैं।
| | +[[आर. एस. शर्मा]] |
| *सर्वप्रथम एक अंग्रेज़ प्रशासनिक अधिकारी जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने [[1927]] ई. में अपनी पुस्तक 'भारतीय भाषा सर्वेक्षण' में हिंदी का उपभाषाओं व बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। चटर्जी ने पहाड़ी भाषाओं को छोड़ दिया है। वह इन्हें भाषाएँ नहीं मानते।
| | -[[के. पी. जायसवाल]] |
| *[[धीरेन्द्र वर्मा]] का वर्गीकरण मुख्यतः [[सुनीति कुमार चटर्जी]] के वर्गीकरण पर ही आधारित है। केवल उसमें कुछ ही संशोधन किए गए हैं। जैसे— उसमें पहाड़ी भाषाओं को शामिल किया गया है।
| | -इनमें से कोई नहीं |
| *इनके अलावा कई विद्वानों ने अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। आज इस बात को लेकर आम सहमति है कि हिंदी जिस भाषा–समूह का नाम है, उसमें 5 उपभाषाएँ और 17 बोलियाँ हैं।
| | |
| हिंदी क्षेत्र की समस्त बोलियों को 5 वर्गों में बाँटा गया है। इन वर्गों को उपभाषा कहा जाता है। इन उपभाषाओं के अंतर्गत ही हिंदी की 17 बोलियाँ आती हैं।<ref>एक भाषा विद्वान के अनुसार, शुद्ध भाषा–वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी की दो मुख्य उपभाषाएँ हैं—पश्चिमी हिंदी व पूर्वी हिंदी।</ref>
| | {[[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] भूमि व्यवस्था के बारे में कौन-सा कथन सत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1002 |
| ==प्रमुख खड़ी बोलियों का संक्षिप्त परिचय==
| | |type="()"} |
| ====कौरवी या खड़ी बोली====
| | -अर्थव्यवस्था कृषि मूलक थी। |
| {{main|कौरवी बोली}}
| | -राज सत्ता भू-सम्पत्ति से घनिष्ठ रूप से संबद्ध हो गयी। |
| *'''मूल नाम'''— कौरवी
| | -अभिलेखों में सामूहिक स्वामित्व के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। |
| *'''साहित्यिक भाषा बनने के बाद पड़ा नाम'''— खड़ी बोली
| | +उपर्युक्त सभी |
| *'''अन्य नाम'''— बोलचाल की हिन्दुस्तानी, सरहिंदी, वर्नाक्यूलर खड़ी बोली आदि।
| |
| *'''केन्द्र'''— [[कुरु महाजनपद|कुरु जनपद]] अर्थात् [[मेरठ]]– [[दिल्ली]] के आसपास का क्षेत्र। खड़ी बोली एक बड़े भूभाग में बोली जाती है। अपने ठेठ रूप में यह मेरठ, [[बिजनौर]], [[मुरादाबाद]], रामपुर, [[सहारनपुर]], [[देहरादून]] और [[अम्बाला]] ज़िलों में बोली जाती है। इनमें मेरठ की खड़ी बोली आदर्श और मानक मानी जाती है।
| |
| *'''बोलने वालों की संख्या'''— 1.5 से 2 करोड़
| |
| *'''साहित्य'''— मूल कौरवी में लोक–साहित्य उपलब्ध है, जिसमें गीत, गीत–नाटक, लोक कथा, गप्प, पहेली आदि हैं।
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| *'''विशेषता'''— आज की हिंदी मूलतः कौरवी पर ही आधारित है।
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| *'''नमूना'''— कोई बादसा था। साब उसके दो राण्याँ थीं। वो एक रोज़ अपनी रान्नी से केने लगा मेरे समान ओर कोइ बादसा है बी? तो बड़ी बोल्ले के राजा तुम समान ओर कोन होगा। छोटी से पुच्छा तो किह्या कि एक बिजाण सहर हे उसके किल्ले में जितनी तुम्हारी सारी हैसियत है उतनी एक ईंट लगी है। ओ इसने मेरी कुच बात नई रक्खी इसको तग्मार्ती (निर्वासित) करना चाइए। उस्कू तग्मार्ती कर दिया। ओर बड़ी कू सब राज का मालक कर दिया।
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| ====ब्रजभाषा====
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| {{main|ब्रजभाषा}} | |
| *'''केन्द्र'''— [[मथुरा]]
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| *'''बोलने वालों की संख्या'''— 3 करोड़
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| *देश के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में ब्रजभाषा बोली जाती है, जिसे 'ताज्जुबेकी ब्रजभाषा' कहा जाता है।
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| *'''साहित्य'''— कृष्ण भक्ति काव्य की एकमात्र भाषा, लगभग सारा [[रीतिकाल|रीतिकाल साहित्य]]। साहित्यिक दृष्टि से हिंदी भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण बोली। साहित्यिक महत्त्व के कारण ही इसे ब्रजबोली नहीं ब्रजभाषा की संज्ञा दी जाती है। मध्यकाल में इस भाषा ने अखिल भारतीय विस्तार पाया। बंगाल में इस भाषा से बनी भाषा का नाम 'ब्रज बुलि' पड़ा। आधुनिक काल तक इस भाषा में साहित्य सृजन होता रहा। पर परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि ब्रजभाषा साहित्यिक सिंहासन से उतार दी गई और उसका स्थान खड़ी बोली ने ले लिया।
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| *'''रचनाकार'''— भक्तिकालीन– [[सूरदास]], [[नन्ददास]] आदि।
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| '''रीतिकाल'''— [[बिहारी लाल|बिहारी]], [[मतिराम]], [[भूषण]], [[देव (कवि)|देव]] आदि।
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| '''आधुनिक कालीन'''— [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]], जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' आदि।
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| *'''नमूना'''— एक मथुरा जी के चौबे हे (थे), जो डिल्ली सैहर कौ चलै। गाड़ी वारे बनिया से चौबेजी की भेंट है गई। तो वे चौबे बोले, अर भइया सेठ, कहाँ जायगो। वौ बोलो, महराजा डिल्ली जाऊँगो। तो चौबे बोले, भइया हमऊँ बैठाल्लेय। बनिया बोलो, चार रूपा चलिंगे भाड़े के। चौबे बोले, अच्छा भइया चारी दिंगे।
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| ====अवधी==== | |
| {{main|अवधी भाषा}}
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| *'''केन्द्र'''— [[अयोध्या]]/अवध
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| *'''बोलने वालों की संख्या'''— 2 करोड़
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| *देश के बाहर फीजी में अवधी बोलने वाले लोग हैं।
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| *'''साहित्य'''— सूफ़ी काव्य, रामभक्ति काव्य। अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
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| *'''रचनाकार'''— सूफ़ी कवि— मुल्ला दाउद ('चंदायन'), [[मलिक मुहम्मद जायसी|जायसी]] ('[[पद्मावत -जायसी|पद्मावत]]'), क़ुत्बन ('मृगावती'), उसमान ('चित्रावली'), रामभक्त कवि— [[तुलसीदास]] ('[[रामचरितमानस]]')।
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| *'''नमूना'''— एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा। सबेरे जब सोय के उठै तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मज़ाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत।
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| ====भोजपुरी====
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| {{main|भोजपुरी भाषा}}
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| *'''केन्द्र'''— [[भोजपुर मध्य प्रदेश|भोजपुर]]
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| *'''बोलने वालों की संख्या'''— 3.5 करोड़ (बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी प्रदेश की बोलियों में सबसे अधिक बोली जाने वाली बोली)।
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| *इस बोली का प्रसार भारत के बाहर [[सूरीनामी हिंदी|सूरीनाम]], [[फिजी हिन्दी|फिजी]], [[मॉरिशसी हिन्दी|मॉरिशस]], गयाना, त्रिनिडाड में है। इस दृष्टि से भोजपुरी अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की बोली है।
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| *'''साहित्य'''— भोजपुरी में लिखित साहित्य नहीं के बराबर है। मूलतः भोजपुरी भाषी साहित्यकार मध्यकाल में ब्रजभाषा व अवधी में तथा आधुनिक काल में हिंदी में लेखन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है।
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| *'''रचनाकार'''— [[भिखारी ठाकुर]] (उपनाम— 'भोजपुरी का शेक्सपीयर', 'भोजपुरी का भारतेन्दु')।
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| *'''सिनेमा'''— [[सिनेमा|सिनेमा जगत]] में भोजपुरी ही हिंदी की वह बोली है, जिसमें सबसे अधिक फ़िल्में बनती हैं।
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| *'''नमूना'''— काहे दस–दस पनरह–पनरह हज़ार के भीड़ होला ई नाटक देखें ख़ातिर। मालूम होतआ कि एही नाटक में पबलिक के रस आवेला।
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| ====मैथिली====
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| {{main|मैथिली भाषा}}
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| *'''लिपि'''— तिरहुता व देवनागरी
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| *'''केन्द्र'''— मिथिला या विदेह या तिरहुत
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| *'''बोलने वालों की संख्या'''— 1.5 करोड़
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| *'''साहित्य'''— साहित्य की दृष्टि से [[मैथिली भाषा|मैथिली]] बहुत सम्पन्न है।
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| *'''रचनाकार'''— [[विद्यापति]] (पदावली)— यदि ब्रजभाषा को [[सूरदास]] ने, अवधी को [[तुलसीदास]] ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया तो मैथिली को [[विद्यापति]] ने, हरिमोहन झा (उपन्यास— कन्यादान, द्विरागमन, कहानी संग्रह—एकादशी, 'खट्टर काकाक तरंग'), [[नागार्जुन]] (मैथिली में 'यात्री' नाम से लेखन; उपन्यास— पारो, कविता संग्रह— 'कविक स्वप्न', 'पत्रहीन नग्न गाछ'), राजकमल चौधरी ('स्वरगंघा') आदि।
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| *'''आठवीं अनुसूची में स्थान'''— 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, [[2003]] के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान दिया गया। मैथिली हिंदी क्षेत्र की बोलियों में से 8वीं अनुसूची में स्थान पाने वाली एकमात्र बोली है।
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| *'''नमूना'''— [[पटना]] किए एलऽह? पटना एलिअइ नोकरी करैले।
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| भेटलह नोकरी? नाकरी कत्तौ नइ भेटल।
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| गाँ में काज नइ भेटइ छलऽह? भेटै छलै, रूपैयाबला नइ, अऽनबला।
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| तखन एलऽ किऐ? रिनियाँ तङ केलकइ, तै।
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| कत्ते रीन छऽह? चाइर बीस।
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| सूद कत्ते लइ छऽह? दू पाइ महिनबारी।
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| ==देवनागरी लिपि==
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| {{Main|देवनागरी लिपि}}
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| [[भारत]] में सर्वाधिक प्रचलित लिपि जिसमें [[संस्कृत]], हिंदी और [[मराठी भाषा|मराठी]] भाषाएँ लिखी जाती हैं। इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 453 ई. में जैन ग्रंथों में मिलता है। 'नागरी' नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ लोग इसका कारण नगरों में प्रयोग को बताते हैं। यह अपने आरंभिक रूप में [[ब्राह्मी लिपि]] के नाम से जानी जाती थी। इसका वर्तमान रूप नवी-दसवीं शताब्दी से मिलने लगता है। भाषा विज्ञान की शब्दावली में यह 'अक्षरात्मक' लिपि कहलाती है। यह विश्व में प्रचलित सभी लिपियों की अपेक्षा अधिक पूर्णतर है। इसके लिखित और उच्चरित रूप में कोई अंतर नहीं पड़ता है। प्रत्येक ध्वनि संकेत यथावत लिखा जाता है। | |
| *देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएँ लिखीं जाती हैं। [[संस्कृत]], [[पालि भाषा|पालि]], हिंदी, [[मराठी भाषा|मराठी]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]], गढ़वाली, [[बोडो भाषा|बोडो]], अंगिका, मगही, [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसे नागरी लिपि भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और [[उर्दू]] भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।
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| *इसमें कुल '''52 अक्षर हैं, जिसमें 14 [[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] और 38 [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]]''' हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-ऊष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर ([[काशी]]) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।<ref name="dev">{{cite web |url=http://vimisahitya.wordpress.com/2008/09/02/dewanaagaree_parichay/ |title=हिंदी साहित्य |accessmonthday=28 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिंदी]] }}</ref>
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| ==नागरी लिपि==
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| {{main|नागरी लिपि}}
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| *'''पश्चिमी शाखा'''- देवनागरी, राजस्थानी, गुजराती, महाजनी, कैथी।
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| *'''पूर्वी शाखा'''- [[बांग्ला लिपि]], असमी, उड़िया।
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| ==हिंदी व्याकरण==
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| {{मुख्य|व्याकरण (व्यावहारिक)}}
| |
| जिस विद्या से किसी [[भाषा]] के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति का ज्ञान होता है, उसे 'व्याकरण' कहते हैं।
| |
| ====वर्णमाला==== | |
| {{मुख्य|वर्णमाला (व्याकरण)}}
| |
| [[हिंदी भाषा]] में जितने वर्णों का प्रयोग होता है, उन वर्णों के समूह को 'वर्णमाला' कहा जाता है।
| |
| ====हिंदी वर्णमाला====
| |
| {{मुख्य|हिंदी वर्णमाला (व्याकरण)}}
| |
| हिंदी भाषा में जितने वर्ण प्रयुक्त होते हैं, उन वर्णों के समूह को 'हिंदी-वर्णमाला' कहा जाता है।
| |
| ====शब्द====
| |
| {{मुख्य|शब्द (व्याकरण)}}
| |
| *वर्ण-समूह या ध्वनि-समूह को 'शब्द' कहते हैं।
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| *शब्द दो प्रकार के होते हैं- [[सार्थक शब्द (व्याकरण)|सार्थक]] और [[निरर्थक शब्द (व्याकरण)|निरर्थक]]।
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| ====संज्ञा====
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| {{मुख्य|संज्ञा (व्याकरण)}}
| |
| *यह सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है।
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| *जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और इसका रूप भी बदल जाता है।
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| ====सर्वनाम====
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| {{मुख्य|सर्वनाम}}
| |
| *संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं।
| |
| *संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।
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| ====विशेषण====
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| {{मुख्य|विशेषण}}
| |
| संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द ‘विशेषण’ कहलाते हैं।
| |
| ====क्रिया====
| |
| {{मुख्य|क्रिया}}
| |
| *जिन शब्दों से किसी कार्य या व्यापार के होने या किए जाने का बोध होता है उन्हें क्रिया कहते हैं।
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| *जैसे- उठना, बैठना, सोना जागना।
| |
| ====क्रियाविशेषण====
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| {{मुख्य|क्रियाविशेषण}}
| |
| जिन अविकारी शब्दों से क्रिया की विशेषता का बोध होता है वे क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
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| ====कारक====
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| {{मुख्य|कारक}}
| |
| कारक शब्द का अर्थ है क्रिया को करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला।
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| ====काल====
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| {{मुख्य|काल}}
| |
| क्रिया के व्यापार का समय सूचित करने वाले क्रिया रूप को 'काल' कहते हैं।
| |
| ====संधि====
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| {{मुख्य|संधि}}
| |
| *दो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार होता है, वह संधि कहलाता है।
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| *जैसे- देव+ आलय= देवालय, मन:+ योग= मनोयोग
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| ====उपवाक्य====
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| {{मुख्य|उपवाक्य}}
| |
| *यदि किसी एक वाक्य में एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं तो वह वाक्य उपवाक्यों में बँट जाता है।
| |
| *उसमें जितनी भी समापिका क्रियाएँ होती हैं उतने ही उपवाक्य होते हैं।
| |
| ====वचन====
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| {{मुख्य|वचन (हिंदी)}}
| |
| *विकारी शब्दों के जिस रूप से संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।
| |
| *वैसे तो शब्दों का संज्ञा भेद विविध प्रकार का होता है, परन्तु व्याकरण में उसके एक और अनेक भेद प्रचलित हैं।
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| ====वर्तनी====
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| {{मुख्य|वर्तनी (हिंदी)}}
| |
| *लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं।
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| *इसे हिज्जे भी कहा जाता है।
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| ====उपसर्ग====
| |
| {{मुख्य|उपसर्ग}}
| |
| *वे शब्दांश जो यौगिक शब्द बनाते समय पहले लगते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं।
| |
| *जैसे- प्रति= प्रतिनिधि, प्रतिकूल, प्रतिष्ठा, प्रत्यक्ष।
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| ====रस====
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| {{मुख्य|रस}}
| |
| *रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
| |
| *रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण [[तत्व]]' माना जाता है।
| |
| ====अलंकार====
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| {{मुख्य|अलंकार}}
| |
| *अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, 'आभूषण'। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।
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| *[[हिंदी]] के कवि [[केशवदास]] एक अलंकारवादी हैं।
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| ====छन्द====
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| {{मुख्य|छन्द}}
| |
| *वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं।
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| *छंद का सर्वप्रथम उल्लेख '[[ऋग्वेद]]' में मिलता है।
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| ==हिंदी का मानकीकरण==
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| {{Main|हिंदी का मानकीकरण}}
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| ====मानक भाषा====
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| *मानक का अभिप्राय है—आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित। भाषा का जो रूप उस भाषा के प्रयोक्ताओं के अलावा अन्य भाषा–भाषियों के लिए आदर्श होता है, जिसके माध्यम से वे उस भाषा को सीखते हैं, जिस भाषा–रूप का व्यवहार पत्राचार, शिक्षा, सरकारी काम–काज एवं सामाजिक–सांस्कृतिक आदान–प्रदान में समान स्तर पर होता है, वह उस भाषा का मानक रूप कहलाता है।
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| *मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह प्रतिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है, जिसका प्रयोग वहाँ के शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।
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| *किसी भाषा का बोलचाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना, उसका 'मानकीकरण' कहलाता है।
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| ==अखिल भारतीयता का इतिहास==
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| {{मुख्य|हिंदी की अखिल भारतीयता का इतिहास}}
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| हिंदी 'शब्द' का प्रयोग [[हरियाणा]] से लेकर [[बिहार]] तक प्रचलित बाँगरु, [[कौरवी बोली|कौरवी]], [[ब्रजभाषा]], कनौजी, [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]] आदि कई भाषाओं के लिए किया जाता है, किंतु वर्तमान शताब्दी में व्यवहार की दृष्टि से इसका अर्थ खड़ीबोली हो गया है। हिंदी के रूप में यही खड़ीबोली भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत संपर्क भाषा है तथा हिंदी भाषी राज्यों में राजभाषा है। भौगोलिक दृष्टि से विचार करने पर यह [[दिल्ली]], हरियाणा तथा [[उत्तर प्रदेश]] के [[मुरादाबाद]], [[बिजनौर]], [[मेरठ]] आदि थोड़े से ज़िलों तक सीमित भाषा है, जो शताब्दियों तक ब्रजभाषा और अवधी की तुलना में उपेक्षितप्राय रही है और ऐतिहासिक कारणों के प्रसाद से ही यह न केवल आधुनिक युग में [[भारत]] से बाहर के कई देशों में फैल गई है, वरन सुदूर अतीत से ही अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करती रही है।
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| ==अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय==
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| {{Main|महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय}}
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| [[चित्र:Mahatma Gandhi International Hindi University.jpg|[[महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय]], वर्धा |thumb|250px]]
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| महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[वर्धा ज़िला|वर्धा ज़िले]] में स्थित है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार ने [[संसद]] द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा की है। इस अधिनियम को [[भारत]] के राजपत्र में [[8 जनवरी]] सन् [[1997]] को प्रकाशित किया गया। यह अधिनियम शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से [[हिंदी भाषा]] और [[साहित्य]] का संवर्धन एवं विकास करने हेतु एक शैक्षणिक विश्वविद्यालय की स्थापना करता है, जिससे हिंदी बेहतर कार्यदक्षता प्राप्त कर प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय भाषा बने। साथ ही विभिन्न ज्ञानानुशासनों में मौलिक सृजन हिंदी भाषा के माध्यम से हो सके तथा विश्व की अन्य भाषाओं में विद्यमान ज्ञान संपदा का अनुवाद हिंदी भाषा में किया जा सके।<ref>{{cite web |url=http://www.hindivishwa.org/index_s.php |title=महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय |accessmonthday=04 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ज्ञान शांति मैत्री |language=[[हिंदी]]}}</ref>
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| ==समाचार==
| | {[[गुप्त काल]] के 18 करों में वह प्रमुख कर कौन-सा था, जो 16 से 25 प्रतिशत तक वसूला जाता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1003 |
| ====हिंदी सुधारने के लिए अंग्रेज़ी शब्दों की छूट====
| | |type="()"} |
| ; 13 अक्टूबर, 2011 गुरुवार
| | -भोग |
| आज़ादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को [[राजभाषा]] से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह [[उर्दू]], [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]], सामान्य हिंदी और [[अंग्रेज़ी]] के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के ख़िलाफ़ खड़ा करती है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के '''इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ़्ट, फीस, क़ानून, अदालत, मुक़दमा, दफ़्तर, एफ़आईआर जैसे अंग्रेज़ी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।'''
| | -भूतवातप्रत्याय |
| | +उद्रंग |
| | -प्रणय |
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|
| ====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें====
| | {[[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में प्रयुक्त "आभ्यांतर सिद्ध" से ध्वनित होता है: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1004 |
| *[http://www.bhaskar.com/article/NAT-in-government-offices-will-now-hinglish-2498483.html दैनिक भास्कर डॉट कॉम]
| | |type="()"} |
| *'हिन्दुस्तान' दैनिक समाचार पत्र, दिनांक 13 अक्टूबर, 2011 पृष्ठ संख्या- 14
| | +फौजदारी एवं दीवानी मामले |
| | -सामंतों की कार्य प्रणाली |
| | -दो सामंतों के मध्य विवाद |
| | -इनमें से कोई नहीं |
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| ====दुनिया के 80 करोड़ लोग जानते हैं हिंदी====
| | {निम्नलिखित [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में से किसके [[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] भू-राजस्व व्यवस्था पर प्रकाश नहीं पड़ता: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1005 |
| ; 20 सितम्बर, 2012 गुरुवार
| | |type="()"} |
| [[भारत]] की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा इसे [[नेपाल]], मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, [[दक्षिण अफ्रीका]], कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी ख़ासी संख्या है। इसके आलावा [[इंग्लैंड]], [[अमेरिका]], मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे ख़ासे लोग हैं। | | -[[हर्षचरति |हर्षचरति]] |
| ====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें====
| | -अपराजितापृच्छा |
| *[http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-264287.html लाइव हिन्दुस्तान]
| | -राजतरंगिणी |
| *[http://hindi.webdunia.com/nri-specialnews/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-1120920028_1.htm वेबदुनिया हिन्दी]
| | +काव्यादर्श |
| ====ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी हिंदी==== | |
| [[चित्र:Julia-Gillard.jpg|thumb|ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड]] | |
| ; 29 अक्टूबर, 2012 सोमवार
| |
| [[ऑस्ट्रेलिया]] के स्कूलों में हिंदी और अन्य प्रमुख एशियाई भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। [[भारत]] और अन्य एशियाई देशों से संबंध मजबूत बनाने के लिए यह रणनीति तय की गई है। ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने नई नीति का पहला खाका रखते हुए कहा, "जिस समय ऑस्ट्रेलिया बदल रहा था उसी समय एशिया में भी बदलाव हो रहा था, इस सदी में चाहे जो मिले, यह निश्चित ही [[एशिया]] को नेतृत्व में फिर से लाएगा। एशिया के उत्थान को कोई नहीं रोक सकता। यह तेज हो रहा है।" प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने एशियन सेंचुरी व्हाइट पेपर जारी करते हुए इसकी घोषणा की। गिलार्ड ने कहा कि शुरुआत स्कूलों, प्रशिक्षण केंद्रों से करना होगी। हरेक स्कूल एशिया के किसी स्कूल के साथ जुड़ेगा और एक प्रमुख एशियाई भाषा हिंदी, मंदारिन, जापानी या इंडोनेशियन सीखने की पहल करेगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की कोशिश करना होगी। अब पहले जैसा नहीं चलेगा। गिलार्ड ने कहा कि इस सदी में एशिया के बड़ी ताकत बनने की संभावना है। विश्व में यह क्षेत्र नेतृत्व की भूमिका में होगा।
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| ====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें====
| | {[[गुप्त काल|गुप्तकालीन]] भू-माप के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1006 |
| *[http://www.bhaskar.com/article/INT-hindi-to-be-taught-in-australian-schools-3983411-NOR.html दैनिक भास्कर]
| | |type="()"} |
| *[http://dainiktribuneonline.com/2012/10/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F-2/ दैनिक ट्रिब्यून]
| | -गुप्त काल में भूमि 'हस्त' से नापी जाती थी। |
| *[http://www.dw.de/%E0%A4%91%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80/a-16338765 डी. डब्ल्यू.]
| | -हस्त से बड़ी इकाई धनु थी। |
| | -भूमि माप हेतु सरकंडों का उपयोग किया जाता था। |
| | +उपयुक्त सभी |
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| | {[[गुप्तत्तोर काल|गुप्तत्तोरकालीन]] करों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य हैं? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1007 |
| | |type="()"} |
| | -परहीनक पशुओं द्वारा की गई हानि की क्षतिपूर्ति के रूप में लिया जाता था। |
| | -राजकीय भूमि पर कृषि कर सीता कहलाता था। |
| | -अवल्गक सेनाभक्त की तरह का ही एक कर था। |
| | +हलिराकर हलवाईयों पर लगने वाला कर था। |
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}} | | {[[गुप्त काल]] में प्रशासनिक इकाइयों का सही क्रमागर स्तर निम्न में से कौन व्यक्त करता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1008 |
| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
| | |type="()"} |
| {{Refbox}}{{top}}
| | +भुक्ति, विषय, पेठ, ग्राम |
| ==बाहरी कड़ियाँ==
| | -विषय, भुक्ति, पेठ, ग्राम |
| *[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
| | -पेठ, विषय, भुक्ति, ग्राम |
| *[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
| | -भुक्ति, पेठ, वुषय, ग्राम |
| *[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
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| *[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
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| *[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
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| ==संबंधित लेख==
| | {[[गुप्त काल]] में बड़े पैमाने पर जारी सोने के सिक्के का वास्तविक स्त्रोत निम्न में से क्या है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1010 |
| {{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}} | | |type="()"} |
| [[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]] | | -रोम के साथ जारी लाभदायक व्यापार |
| [[Category:हिन्दी भाषा]]
| | -कोलार की खान पर अधिकार |
| [[Category:जनगणना अद्यतन]]
| | +पूर्ववर्ती युग के व्यापार से संचित स्वर्ग |
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| | -शकों से छीना गया मुद्रा भण्डार |
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