"तुम दीवाली बन कर -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा! | ||
इस | इस क़दर बढ रही है बेबसी बहारों की | ||
फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है, | ||
इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा | इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा | ||
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जब खेल रही है सारी धरती लहरों से | जब खेल रही है सारी धरती लहरों से | ||
तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है! | तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है! | ||
संसार जल रहा है जब | संसार जल रहा है जब दु:ख की ज्वाला में | ||
तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है! | तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है! | ||
मिटते मानव और मानवता की रक्षा में | मिटते मानव और मानवता की रक्षा में |
14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो, |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |