"कबीर कहा गरबियो -कबीर": अवतरणों में अंतर
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[[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के | [[कबीरदास]] कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के पश्चात् जैसे पलाश पत्र-पुष्प-विहीन होकर ठूँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही यह शरीर भी यौवन-विहीन होकर कंकाल मात्र रह जाता है। | ||
07:42, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
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कबीर कहा गरबियो, इस जोवन की आस। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! यौवन पर गर्व करना व्यर्थ है। यह क्षणभंगुर है। पलाश के फूल के समान इसकी बहार थोड़े दिनों के लिए है। जैसे यह फूल थोड़े ही दिनों में मुरझाकर गिर जाता है, वैसे ही जवानी की प्रफुल्लता भी अल्प दिनों की होती है। कुछ दिनों के पश्चात् जैसे पलाश पत्र-पुष्प-विहीन होकर ठूँठ मात्र रह जाता है, वैसे ही यह शरीर भी यौवन-विहीन होकर कंकाल मात्र रह जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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