"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-4 से 9": अवतरणों में अंतर

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*[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4|अध्याय चौथा]] का यह चौथे से नौवाँ खण्ड है।
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
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इन खण्डों के पहले छह खण्डों में जाबाल-पुत्र सत्यकाम की कथा है। एक बार सत्यकाम ने अपनी माता जाबाला से कहा-'माता! मैं ब्रह्मचारी बनकर [[गुरुकुल]] में रहना चाहता हूं। मुझे बतायें कि मेरा गोत्र क्या है?'<br />
|चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
माता ने उत्तर दिया-'मैं युवावस्था में विभिन्न घरों में सेविका का कार्य करती थी। वहां किसके संसर्ग से तुम्हारा जन्म हुआ, मैं नहीं जानती, परन्तु मेरा नाम [[जाबाला]] है और तुम्हारा नाम सत्यकाम है। अत: तू सत्यकाम जाबाला के नाम से जाना जायेगा।'<br />
|विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है।
सत्यकाम ने हारिद्रुमत [[गौतम]] के पास जाकर कहा-'हे भगवन! मैं आपके पास ब्रह्मचर्यपूर्वक शिक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।'<br />
|शीर्षक 1=अध्याय
गौतम ने जब उससे उसका गोत्र पूछा, तो उसने अपने जन्म की साफ-साफ कथा बता दी। गौतम उसके सत्य से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे चार सौ गौंए देकर चराने के कार्य पर लगा दिया। साथ ही यह भी कहा कि जब एक हज़ार गौएं हो जायें, तब वह आश्रम में लौटे।<br />
|पाठ 1=चौथा
सत्यकाम वर्षों तक उन गौओं के साथ वन में भ्रमण करता रहा। जब एक हज़ार गौएं हो गयीं, तब एक वृषभ ने उससे कहा-'सत्यकाम! तुमने इतनी गौ-सेवा की है, अत: तुम ब्रह्म के चार पदों को जानने योग्य हो गये हो। देखो, यह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण व उत्तर दिशा 'प्रकाशमान ब्रह्म' की चार कलाएं हैं। वह 'प्रकाशवान ब्रह्म' इन चारों कलाओं में एक पाद है। इस प्रकार जानने वाला साधक ब्रह्म के प्रकाशवान स्वरूप की उपासना करता है। अब ब्रह्म के दूसरे पाद के बारे में तुम्हें अग्निदेव बतायेंगे।'<br />
|शीर्षक 2=कुल खण्ड
सत्यकाम गौएं लेकर गुरुदेव के आश्रम की ओर चल दिया। मार्ग में उसने अग्नि प्रज्वलित की। तब अग्नि ने कहा-'सत्यकाम! अनन्त ब्रह्म की- पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक और समुद्र- चार कलाएं हैं। हे सौम्य! ब्रह्म का दूसरा पाद 'अनन्त ब्रह्म' है। अब ब्रह्म के तीसरे पाद के विषय में तुम्हें हंस बतायेगा।'<br />
|पाठ 2=17 (सत्रह)
दूसरे दिन सत्यकाम गौओं को लेकर आचार्यकुल की ओर चल पड़ा। सांयकाल वह रूका और अग्नि प्रज्वलित की, तो हंस उड़कर वहां आया और बोला-'हे सत्यकाम! अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा और विद्युत, ब्रह्म की ये चार कलाएं हैं। ब्रह्म का तीसरा पाद यह 'ज्योतिष्मान' है। जो ज्योतिष्मान संज्ञक चतुष्कल पाद की उपासना करता है, वह इसी लोक में यश और कीर्ति को प्राप्त करता है। अब चौथे पद के बारे में तुम्हें जल-पक्षी बतायेगा।'<br />
|शीर्षक 3=सम्बंधित वेद
अगले दिन वह आचार्यकुल की ओर आगे बढ़ा, तो सन्ध्या समय जल-पक्षी उसके पास आकर बोला-'सत्यकाम! प्राण, चक्षु, कान और मन, ब्रह्म की चार कलाएं हैं। ब्रह्म का चतुष्काल पाद यह आयतनवान (आश्रयमयुक्त) संज्ञक हैं इस आयतनवान संज्ञक की उपासना करने वाला विद्वान ब्रह्म के इसी रूप को प्राप्त कर लेता है।'<br />
|पाठ 3=[[सामवेद]]
जब सत्यकाम आचार्यकुल पहुंचा, तो आचार्य [[गौतम]] ने उससे कहा-'हे सौम्य! तुम ब्रह्मवेत्ता के रूप में दीप्तिमान हो रहे हो। तुम्हें किसने उपदेश दिया?'<br />
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सत्यकाम ने बता दिया और उनसे उपदेश पाने की कामना की। तब आचार्य ने सत्यकाम को उपदेश दिया-'हे सत्यकाम! भगवद्-स्वरूप ऋषियों के मुख से जानी गयी विद्या ही उपयुक्त सार्थकता को प्राप्त होती है।'
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[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4|अध्याय चार]] का यह चौथे से नौवाँ खण्ड है। इन खण्डों के पहले छह खण्डों में जाबाल-पुत्र सत्यकाम की [[कथा]] है।


एक बार सत्यकाम ने अपनी माता जाबाला से कहा- 'माता! मैं ब्रह्मचारी बनकर [[गुरुकुल]] में रहना चाहता हूं। मुझे बतायें कि मेरा [[गोत्र]] क्या है?'


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माता ने उत्तर दिया- 'मैं युवावस्था में विभिन्न घरों में सेविका का कार्य करती थी। वहां किसके संसर्ग से तुम्हारा जन्म हुआ, मैं नहीं जानती, परन्तु मेरा नाम [[जाबाल|जाबाला]] है और तुम्हारा नाम [[सत्यकाम]] है। अत: तू सत्यकाम जाबाला के नाम से जाना जायेगा।'
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
सत्यकाम ने हारिद्रुमत [[गौतम]] के पास जाकर कहा- 'हे भगवन! मैं आपके पास ब्रह्मचर्यपूर्वक शिक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।'
 
गौतम ने जब उससे उसका गोत्र पूछा, तो उसने अपने जन्म की साफ-साफ कथा बता दी। गौतम उसके सत्य से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे चार सौ गौंए देकर चराने के कार्य पर लगा दिया। साथ ही यह भी कहा कि जब एक हज़ार गौएं हो जायें, तब वह आश्रम में लौटे।
 
सत्यकाम वर्षों तक उन गौओं के साथ वन में भ्रमण करता रहा। जब एक हज़ार गौएं हो गयीं, तब एक वृषभ ने उससे कहा- 'सत्यकाम! तुमने इतनी गौ-सेवा की है, अत: तुम ब्रह्म के चार पदों को जानने योग्य हो गये हो। देखो, यह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण व उत्तर दिशा 'प्रकाशमान ब्रह्म' की चार कलाएं हैं। वह 'प्रकाशवान ब्रह्म' इन चारों कलाओं में एक पाद है। इस प्रकार जानने वाला साधक ब्रह्म के प्रकाशवान स्वरूप की उपासना करता है। अब ब्रह्म के दूसरे पाद के बारे में तुम्हें अग्निदेव बतायेंगे।'
 
सत्यकाम गौएं लेकर गुरुदेव के आश्रम की ओर चल दिया। मार्ग में उसने [[अग्नि देवता|अग्नि]] प्रज्वलित की। तब अग्नि ने कहा- 'सत्यकाम! अनन्त ब्रह्म की- [[पृथ्वी]], अन्तरिक्ष, द्युलोक और [[समुद्र]]- चार कलाएं हैं। हे सौम्य! ब्रह्म का दूसरा पाद 'अनन्त ब्रह्म' है। अब ब्रह्म के तीसरे पाद के विषय में तुम्हें हंस बतायेगा।'
 
दूसरे दिन सत्यकाम गौओं को लेकर आचार्यकुल की ओर चल पड़ा। सांयकाल वह रुका और अग्नि प्रज्वलित की, तो हंस उड़कर वहां आया और बोला- 'हे सत्यकाम! अग्नि, [[सूर्य]], [[चन्द्रमा]] और विद्युत, ब्रह्म की ये चार कलाएं हैं। ब्रह्म का तीसरा पाद यह 'ज्योतिष्मान' है। जो ज्योतिष्मान संज्ञक चतुष्कल पाद की उपासना करता है, वह इसी लोक में यश और कीर्ति को प्राप्त करता है। अब चौथे पद के बारे में तुम्हें जल-पक्षी बतायेगा।'
 
अगले दिन वह आचार्यकुल की ओर आगे बढ़ा, तो सन्ध्या समय जल-पक्षी उसके पास आकर बोला- 'सत्यकाम! प्राण, चक्षु, कान और मन, ब्रह्म की चार कलाएं हैं। ब्रह्म का चतुष्काल पाद यह आयतनवान (आश्रयमयुक्त) संज्ञक हैं इस आयतनवान संज्ञक की उपासना करने वाला विद्वान् ब्रह्म के इसी रूप को प्राप्त कर लेता है।'
 
जब सत्यकाम आचार्यकुल पहुंचा, तो आचार्य [[गौतम]] ने उससे कहा-'हे सौम्य! तुम ब्रह्मवेत्ता के रूप में दीप्तिमान हो रहे हो। तुम्हें किसने उपदेश दिया?'
 
[[सत्यकाम]] ने बता दिया और उनसे उपदेश पाने की कामना की। तब आचार्य ने सत्यकाम को उपदेश दिया- 'हे सत्यकाम! भगवद्-स्वरूप ऋषियों के मुख से जानी गयी विद्या ही उपयुक्त सार्थकता को प्राप्त होती है।'
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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{{छान्दोग्य उपनिषद}}
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 खण्ड-4 से 9
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय चौथा
कुल खण्ड 17 (सत्रह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय चार का यह चौथे से नौवाँ खण्ड है। इन खण्डों के पहले छह खण्डों में जाबाल-पुत्र सत्यकाम की कथा है।

एक बार सत्यकाम ने अपनी माता जाबाला से कहा- 'माता! मैं ब्रह्मचारी बनकर गुरुकुल में रहना चाहता हूं। मुझे बतायें कि मेरा गोत्र क्या है?'

माता ने उत्तर दिया- 'मैं युवावस्था में विभिन्न घरों में सेविका का कार्य करती थी। वहां किसके संसर्ग से तुम्हारा जन्म हुआ, मैं नहीं जानती, परन्तु मेरा नाम जाबाला है और तुम्हारा नाम सत्यकाम है। अत: तू सत्यकाम जाबाला के नाम से जाना जायेगा।'

सत्यकाम ने हारिद्रुमत गौतम के पास जाकर कहा- 'हे भगवन! मैं आपके पास ब्रह्मचर्यपूर्वक शिक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।'

गौतम ने जब उससे उसका गोत्र पूछा, तो उसने अपने जन्म की साफ-साफ कथा बता दी। गौतम उसके सत्य से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे चार सौ गौंए देकर चराने के कार्य पर लगा दिया। साथ ही यह भी कहा कि जब एक हज़ार गौएं हो जायें, तब वह आश्रम में लौटे।

सत्यकाम वर्षों तक उन गौओं के साथ वन में भ्रमण करता रहा। जब एक हज़ार गौएं हो गयीं, तब एक वृषभ ने उससे कहा- 'सत्यकाम! तुमने इतनी गौ-सेवा की है, अत: तुम ब्रह्म के चार पदों को जानने योग्य हो गये हो। देखो, यह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण व उत्तर दिशा 'प्रकाशमान ब्रह्म' की चार कलाएं हैं। वह 'प्रकाशवान ब्रह्म' इन चारों कलाओं में एक पाद है। इस प्रकार जानने वाला साधक ब्रह्म के प्रकाशवान स्वरूप की उपासना करता है। अब ब्रह्म के दूसरे पाद के बारे में तुम्हें अग्निदेव बतायेंगे।'

सत्यकाम गौएं लेकर गुरुदेव के आश्रम की ओर चल दिया। मार्ग में उसने अग्नि प्रज्वलित की। तब अग्नि ने कहा- 'सत्यकाम! अनन्त ब्रह्म की- पृथ्वी, अन्तरिक्ष, द्युलोक और समुद्र- चार कलाएं हैं। हे सौम्य! ब्रह्म का दूसरा पाद 'अनन्त ब्रह्म' है। अब ब्रह्म के तीसरे पाद के विषय में तुम्हें हंस बतायेगा।'

दूसरे दिन सत्यकाम गौओं को लेकर आचार्यकुल की ओर चल पड़ा। सांयकाल वह रुका और अग्नि प्रज्वलित की, तो हंस उड़कर वहां आया और बोला- 'हे सत्यकाम! अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा और विद्युत, ब्रह्म की ये चार कलाएं हैं। ब्रह्म का तीसरा पाद यह 'ज्योतिष्मान' है। जो ज्योतिष्मान संज्ञक चतुष्कल पाद की उपासना करता है, वह इसी लोक में यश और कीर्ति को प्राप्त करता है। अब चौथे पद के बारे में तुम्हें जल-पक्षी बतायेगा।'

अगले दिन वह आचार्यकुल की ओर आगे बढ़ा, तो सन्ध्या समय जल-पक्षी उसके पास आकर बोला- 'सत्यकाम! प्राण, चक्षु, कान और मन, ब्रह्म की चार कलाएं हैं। ब्रह्म का चतुष्काल पाद यह आयतनवान (आश्रयमयुक्त) संज्ञक हैं इस आयतनवान संज्ञक की उपासना करने वाला विद्वान् ब्रह्म के इसी रूप को प्राप्त कर लेता है।'

जब सत्यकाम आचार्यकुल पहुंचा, तो आचार्य गौतम ने उससे कहा-'हे सौम्य! तुम ब्रह्मवेत्ता के रूप में दीप्तिमान हो रहे हो। तुम्हें किसने उपदेश दिया?'

सत्यकाम ने बता दिया और उनसे उपदेश पाने की कामना की। तब आचार्य ने सत्यकाम को उपदेश दिया- 'हे सत्यकाम! भगवद्-स्वरूप ऋषियों के मुख से जानी गयी विद्या ही उपयुक्त सार्थकता को प्राप्त होती है।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

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