"दिया जलता रहा -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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<poem>जी उठे शायद शलभ इस आस में | <poem> | ||
जी उठे शायद शलभ इस आस में | |||
रात भर रो रो, दिया जलता रहा। | रात भर रो रो, दिया जलता रहा। | ||
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आग अपनी भी न जाती थी सही, | आग अपनी भी न जाती थी सही, | ||
लग रहा था कल्प-सा हर एक पल | लग रहा था कल्प-सा हर एक पल | ||
बन गयी थीं सिसकियाँ | बन गयी थीं सिसकियाँ साँसें विकल, | ||
पर न जाने क्यों उमर की डोर में | पर न जाने क्यों उमर की डोर में | ||
प्राण बँध तिल तिल सदा गलता रहा ? | प्राण बँध तिल तिल सदा गलता रहा ? |
08:52, 17 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
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जी उठे शायद शलभ इस आस में |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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