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{{पात्र परिचय
==रावण / Ravana==
|चित्र=Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|thumb|250px|दशानन रावण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana, Ramlila, Mathura]]
|चित्र का नाम=रावण  
रावण [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश = दस + आनन = मुख) भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है। रावण को चारों [[वेद|वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। बेला नामक वाद्य जिसे अंग्रेज़ी में वायलिन कहते हैं, रावण ने ही बनाया था।
|अन्य नाम= दशानन, लंकेश, लंकापति, दशग्रीव
 
|अवतार=
|वंश-गोत्र=
|कुल=[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार रावण [[पुलस्त्य]] मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र [[विश्रवा]] का पुत्र था।
|पिता=[[विश्रवा]]
|माता=[[कैकसी]]
|धर्म पिता=
|धर्म माता=
|पालक पिता=
|पालक माता=
|जन्म विवरण=
|समय-काल=
|धर्म-संप्रदाय=
|परिजन=
|गुरु=
|विवाह=[[मंदोदरी]]
|संतान=[[मेघनाद]]
|विद्या पारंगत=धनुर्विद्या
|रचनाएँ=
|महाजनपद=
|शासन-राज्य=
|मंत्र=
|वाहन=
|प्रसाद=
|प्रसिद्ध मंदिर=
|व्रत-वार=
|पर्व-त्योहार=
|श्रृंगार=
|अस्त्र-शस्त्र=
|निवास=[[लंका]]
|ध्वज=
|रंग-रूप=
|पूजन सामग्री=
|वाद्य=
|सिंहासन=
|प्राकृतिक स्वरूप=
|प्रिय सहचर=
|अनुचर=
|शत्रु-संहार=
|संदर्भ ग्रंथ=
|प्रसिद्ध घटनाएँ=
|अन्य विवरण=
|मृत्यु=[[रामायण]] के अंत में [[राम|श्रीराम]] के द्वारा वध
|यशकीर्ति=
|अपकीर्ति=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य बनाया भी था जिसे जो आज के बेला या [[वायलिन]] का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है जिसे अब [[रावण हत्था]] कहा जाता है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''रावण''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Ravana'') [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है। रावण [[लंका]] का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन {दश (दस) + आनन (मुख)} भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है। रावण को चारों [[वेद|वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य बनाया भी था जिसे जो आज के बेला या [[वायलिन]] का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है जिसे अब [[रावण हत्था]] कहा जाता है।
==तथ्य==
==तथ्य==
*रावण [[शिव]] भक्त था। [[कैलाश पर्वत]] को उठाने की कथा की मूर्ति [[मथुरा]] में मिली है।
*रावण [[शिव]] भक्त था। [[कैलाश पर्वत]] को उठाने की कथा की मूर्ति [[मथुरा]] में मिली है।
*रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो [[राम]] के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।  
*रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो [[राम]] के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।  
*रावण ने राम की पत्नी [[सीता]] का हरण किया था। राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया।
*रावण ने राम की पत्नी [[सीता]] का हरण किया था। राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया।
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==पौराणिक उल्लेख==
रावण रामायण का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती। देखा जाये तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्वल चरित्र को उभारने काम करता है।
* [[पद्म पुराण]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]], [[कूर्म पुराण]], [[रामायण]], [[महाभारत]], आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
==रावण का उदय==
[[पद्म पुराण]], [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत पुराण]], [[कूर्म पुराण]], [[रामायण]], [[महाभारत]], [[आनन्द रामायण]], [[दशावतारचरित]] आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।
*पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार [[हिरण्याक्ष]] एवं [[हिरण्यकशिपु]] दूसरे जन्म में रावण और [[कुंभकर्ण]] के रूप में पैदा हुए।
*पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार [[हिरण्याक्ष]] एवं [[हिरण्यकशिपु]] दूसरे जन्म में रावण और [[कुंभकर्ण]] के रूप में पैदा हुए।
*[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार रावण [[पुलस्त्य]] मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र [[विश्वश्रवा]] का पुत्र था। विश्वश्रवा की [[वरवर्णिनी]] और [[कैकसी]] नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के [[कुबेर]] को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा [[कुम्भकर्ण]] जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
*[[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार रावण [[पुलस्त्य]] मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र [[विश्रवा]] का पुत्र था। विश्रवा की वरवर्णिनी और [[कैकसी]] नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी के [[कुबेर]] को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा [[कुम्भकर्ण]] जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये।
*[[तुलसीदास]] जी के [[रामचरितमानस]] में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे [[नारद]] एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
*[[तुलसीदास]] के [[रामचरितमानस]] में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे [[नारद]] एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
==रावण के गुण==
==रावण के गुण==
*रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा [[शंकर]] भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।
*रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा [[शंकर]] भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान् था।
*[[वाल्मीकि]] उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में [[हनुमान]] का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-<br />
*[[वाल्मीकि]] उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान् विद्वान् बताते हैं। वे अपने रामायण में [[हनुमान]] का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-<br />
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।<br />
<poem>अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥<br />
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥</poem>
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही [[राम]] मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्व लक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही [[राम]] मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्व लक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-9.jpg|thumb|250px|left|रावण दहन, [[रामलीला]], [[मथुरा]]]]
*रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी [[सीता]] से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
*रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी [[सीता]] से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
*वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।
*वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।
==रावण के अवगुण==
==रावण के अवगुण==
[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-9.jpg|रावण दहन, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana Dahan, Ramlila, Mathura|thumb|200px]]
*[[वाल्मीकि]] रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर [[मंदोदरी]] विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ-तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
*वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर [[मन्दोदरी]] विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ-तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
*[[तुलसीदास]] जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठ पूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।  
*[[तुलसीदास]] जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठ पूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।
==रावण द्वारा भगवान शिव की प्रार्थना== 
 
रावण सत्ता के मद में मस्त होकर [[देवता|देवताओं]], [[ऋषि|ऋषियों]], [[यक्ष|यक्षों]] और [[गन्धर्व|गन्धर्वों]] को विभिन्न प्रकार से कष्ट देने लगा। एक बार उसने [[कुबेर]] पर चढ़ाई करके उसे युद्ध में पराजित कर दिया और अपनी विजय की स्मृति के रूप में कुबेर के [[पुष्पक विमान]] पर अपना अधिकार कर लिया। पुष्पक विमान का वेग मन के समान तीव्र था। वह अपने ऊपर बैठे हुए लोगों को इच्छानुसार छोटा या बड़ा रूप धारण कर सकता था। पुष्पक विमान में मणि और [[सोना|सोने]] की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं और तपाये हुये सोने के आसन बने हुए थे। उस विमान पर बैठकर जब वह 'शरवण' नाम से प्रसिद्ध सरकण्डों के विशाल वन से होकर जा रहा था तो भगवान [[शंकर]] के पार्षद [[नन्दी|नन्दीश्‍वर]] ने उसे रोकते हुए कहा कि दशग्रीव! इस वन में स्थित पर्वत पर भगवान शंकर क्रीड़ा करते हैं, इसलिये यहाँ सभी सुर, असुर, यक्ष आदि का आना निषिद्ध कर दिया गया है। नन्दीश्‍वर के वचनों से क्रोद्धित होकर रावण विमान से उतरकर भगवान शंकर की ओर चला। रावण को रोकने के लिये उससे थोड़ी दूर पर हाथ में शूल लिये नन्दी दूसरे शिव की भाँति खड़े हो गये। उनका मुख वानर जैसा था। उसे देखकर रावण ठहाके मारकर हँस पड़ा। इससे कुपित हो नन्दी बोले कि दशानन! तुमने मेरे वानर रूप की अवहेलना की है, इसलिये तुम्हारे कुल का नाश करने के लिये मेरे ही समान पराक्रमी रूप और तेज से सम्पन्न वानर उत्पन्न होंगे। रावण ने इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और बोला कि जिस पर्वत ने मेरे विमान की यात्रा में बाधा डाली है, आज मैं उसी को उखाड़ फेंकूँगा। यह कहकर उसने पर्वत के निचले भाग में हाथ डालकर उसे उठाने का प्रयत्न किया। जब पर्वत हिलने लगा तो भगवान शंकर ने उस पर्वत को अपने पैर के अँगूठे से दबा दिया। इससे रावण का हाथ बुरी तरह से दब गया और वह पीड़ा से चिल्लाने लगा। जब रावण किसी प्रकार से हाथ न निकाल सका तो रोत-रोते [[शिव|भगवान शंकर]] की स्तुति और क्षमा प्रार्थना करने लगा। उस दिन से दशग्रिव दशानन का नाम रावण रख दिया। इस पर भगवान शंकर ने उसे क्षमा कर दिया और उसकी प्रार्थना करने पर उसे एक चन्द्रहास नामक खड्ग भी दिया।
[[चित्र:Ravan-Abode-At-Lanka.jpg|thumb|250px|रावण की सोने की लंका]]
==रावण के दस सिर==
==रावण के दस सिर==
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। [[मारीच]] का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
रावण के दस सिर होने की चर्चा [[रामायण]] में आती है। वह [[कृष्ण पक्ष|कृष्णपक्ष]] की [[अमावस्या]] को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात [[शुक्लपक्ष]] की [[दशमी]] को रावण का वध होता है। [[रामचरितमानस]] में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने [[बाण अस्त्र|बाण]] से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक [[अंग]] के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। [[मारीच]] का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का [[सीता]] के समक्ष [[राम]] का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
====ब्रह्मा से वरदान====
रावण ने अपने इष्टदेव [[ब्रह्मा]] से वरदान प्राप्त किया था। कथा के अनुसार तपस्या के बल पर [[कुबेर]] को देवताओं का कोषाध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ। यह जानकर रावण की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गयी। इसके बाद उसने तपस्या करने की ठान ली। रावण के साथ [[कुंभकर्ण]] और [[विभीषण]] भी ब्रह्मा की तपस्या करने के लिए तैयार हो गये। तीनों ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने रावण से वरदान मांगने को कहा। इसके बाद रावण ने अपने लिये सदैव अजर, अमर होने का वरदान मांगा। इससे ब्रह्मा जी असमंजस में डूब गये। कारण यह था कि मृत्युलोक में जिसका जन्म हुआ है, उसका मरण सुनिश्चित है। इसके बाद उसने ब्रह्मा से यह वरदान मांगा कि वह केवल मनुष्य के हाथों से मारा जाये। जंगली जीव से उसकी मृत्यु न हो पाये। ब्रह्मा ने तथास्तु कह कर रावण को वरदान दे दिया। इसके बाद कुंभकरण ने छह माह की नींद मांगी। विभीषण ने प्रभु की [[भक्ति]] मांगी। सबको मन चाहा वरदान मिल गया। ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद तीनों अति प्रसन्न हुए।
==रावण और वेदवती==
एक दिन जब रावण [[हिमालय]] के प्रदेश में भ्रमण कर रहा था, तब उसने अमित तेजस्वी ब्रह्मर्षि कुशध्वज की कन्या वेदवती को तपस्या करते देखा। रावण उसे देखकर वहीं मुग्ध हो गया और उसके पास आकर उसका परिचय लिया और अविवाहित रहने का कारण पूछा। वेदवती ने अपना परिचय देने के बाद बताया कि मेरे पिता विष्णु से मेरा [[विवाह]] करना चाहते थे। इससे क्रोद्धित होकर मेरी कामना करने वाले दैत्यराज शम्भु ने विष्णु का सोते समय वध कर दिया। उनकी मृत्यु पर मेरी माता भी दुःखी हो गई और चिता में प्रविष्ट हो गई। तब से मैं अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिये भगवान [[विष्णु]] की तपस्या कर रही हूँ। उन्हीं को मैंने अपना पति मान लिया है। पहले रावण ने वेदवती को बातों में फुसलाने की कोशिश की, फिर उसने जबरदस्ती करने के लिये उसके केश पकड़ लिए। वेदवती ने रावण द्वारा पकड़े हुए केश को काट दिया। फिर यह कहती हुई [[अग्नि]] में प्रविष्ट हो गई कि दुष्ट! तूने मेरा अपमान किया है। इस समय तो मैं यह शरीर त्याग रही हूँ, परन्तु तेरा विनाश करने के लिए फिर जन्म लूँगी। अगले जन्म में वह अयोनिजा कन्या के रूप में जन्म लेकर किसी धर्मात्मा की पुत्री बनी। वह कन्या [[कमल]] के रूप में उत्पन्न हुई। उस सुन्दर कान्ति वाली कमल कन्या को एक दिन रावण अपने महलों में ले आया। उसे देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि राजन्! यदि यह कमल कन्या आपके घर में रही तो आपके और आपके कुल के विनाश का कारण बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में फेंक दिया। वहाँ से वह भूमि को प्राप्त होकर राजा [[जनक]] के यज्ञमण्डप के मध्यवर्ती भूभाग में जा पहुँची। वहाँ राजा द्वारा हल से जोती जाने वाली भूमि से वह कन्या फिर प्राप्त हुई। वही वेदवती [[सीता]] के रूप में राम की पत्‍नी बनी और अंत में सीता ही रावण के कुल के विनाश का कारण बनी।
==शुक तथा सारण==
जब [[राम|श्रीराम]] [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर [[लंका]] पहुँच गये थे, तब रावण ने '[[शुक (गुप्तचर)|शुक]]' और '[[सारण (गुप्तचर)|सारण]]' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा, "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।" रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी [[राक्षस]] वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे [[विभीषण]] की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके। विभीषण ने उन दोनों को पकड़कर [[राम]] के सम्मुख करते हुये कहा, "हे राघव! ये दोनों गुप्तचर रावण के मन्त्री 'शुक' और 'सारण' हैं, जो हमारे कटक में गुप्तचरी करते पकड़े गये हैं।" राम के सामने जाकर दोनों राक्षस थर-थर काँपते हुये बोले, "हे राजन्! हम राक्षसराज रावण के सेवक हैं। उन्हीं की आज्ञा से आपके बल का पता लगाने के लिये आये थे। हम उनकी आज्ञा के दास हैं, इसलिये उनका आदेश पालन करने के लिये विवश हैं। राजभक्ति के कारण हमें ऐसा करना पड़ा है। इसमें हमारा कोई दोष नहीं है।" उनके ये निश्चल वचन सुन कर रामचन्द्र बोले, "हे मन्त्रियों! हम तुम्हारे सत्य भाषण से बहुत प्रसन्न हैं। तुमने यदि हमारी शक्ति देख ली है, तो जाओ। यदि अभी कुछ और देखना शेष हो तो भली-भाँति देख लो। हम तुम्हें कोई दण्ड नहीं देंगे। [[आर्य]] लोग शस्त्रहीन व्यक्ति पर वार नहीं करते। अत: तुम अपना कार्य पूरा करके निर्भय हो [[लंका]] को लौट जाओ। तुम साधारण गुप्तचर नहीं, रावण के मन्त्री हो। इसलिये उससे कहना, जिस बल के भरोसे पर तुमने मेरी [[सीता]] का हरण किया है, उस बल का परिचय अपने भाइयों, पुत्रों तथा सेना के साथ हमें रणभूमि में देना। कल सूर्योदय होते ही अन्धकार की भाँति तुम्हारी सेना का विनाश भी आरम्भ हो जायेगा।"<ref>{{cite web |url=http://pkhedar.uiwap.com/Ramayan/6_1|title=युद्धकाण्ड-2, सेतुबन्धन|accessmonthday=18 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==रावण के पुत्र==
लंकापति रावण के सात पुत्रों का उल्लेख मिलता है जो निम्नलिखित हैं-<ref name="speakingtree">{{cite web |url=http://www.speakingtree.in/allslides/how-many-sons-ravana-had|title=How many sons Ravana had? |accessmonthday=10 अगस्त |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= speakingtree|language=अंग्रेज़ी }}</ref>
# [[मेघनाद]] 
# [[प्रहस्त]]
# [[अतिकाय]]
# [[अक्षयकुमार]]
# [[देवान्तक]]
# [[नारान्तक]]
# [[त्रिशिरा]]
==शिवताण्डवस्तोत्रम्==
==शिवताण्डवस्तोत्रम्==
{|
{|
पंक्ति 77: पंक्ति 145:
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .<br />
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .<br />
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं<br />
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं<br />
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ..
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. 9..


अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी<br />
अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी<br />
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br />
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्<br />
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br />
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं<br />
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 1०..
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 10..


जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br />
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-<br />
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तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां<br />
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लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 15..
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चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-12.jpg|रावण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Ravana, Ramlila, Mathura
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चित्र:Sita-Haran-Ramlila-Mathura-5.jpg|[[सीता]] हरण, [[रामलीला]], [[मथुरा]]<br /> Kidnapping of Sita, Ramlila, Mathura
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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संक्षिप्त परिचय
रावण
रावण
रावण
अन्य नाम दशानन, लंकेश, लंकापति, दशग्रीव
कुल वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था।
पिता विश्रवा
माता कैकसी
विवाह मंदोदरी
संतान मेघनाद
विद्या पारंगत धनुर्विद्या
निवास लंका
मृत्यु रामायण के अंत में श्रीराम के द्वारा वध
अन्य जानकारी संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य बनाया भी था जिसे जो आज के बेला या वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है जिसे अब रावण हत्था कहा जाता है।

रावण (अंग्रेज़ी:Ravana) रामायण का एक विशेष पात्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था (साधारण से दस गुणा अधिक मस्तिष्क शक्ति), जिसके कारण उसका नाम दशानन {दश (दस) + आनन (मुख)} भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः रावण को बुरा कहा गया है। रावण को चारों वेदों का ज्ञाता कहा गया है। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक वाद्य बनाया भी था जिसे जो आज के बेला या वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है जिसे अब रावण हत्था कहा जाता है।

तथ्य

  • रावण शिव भक्त था। कैलाश पर्वत को उठाने की कथा की मूर्ति मथुरा में मिली है।
  • रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।
  • रावण ने राम की पत्नी सीता का हरण किया था। राम ने रावण को युद्ध में मार कर सीता को छुड़ाया।

पौराणिक उल्लेख

रावण के गुण

  • रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान् था।
  • वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान् विद्वान् बताते हैं। वे अपने रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं-

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्व लक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"

रावण दहन, रामलीला, मथुरा
  • रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
  • वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

रावण के अवगुण

  • वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर मंदोदरी विलाप करते हुये कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ-तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
  • तुलसीदास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे हठ पूर्वक बैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।

रावण द्वारा भगवान शिव की प्रार्थना

रावण सत्ता के मद में मस्त होकर देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों को विभिन्न प्रकार से कष्ट देने लगा। एक बार उसने कुबेर पर चढ़ाई करके उसे युद्ध में पराजित कर दिया और अपनी विजय की स्मृति के रूप में कुबेर के पुष्पक विमान पर अपना अधिकार कर लिया। पुष्पक विमान का वेग मन के समान तीव्र था। वह अपने ऊपर बैठे हुए लोगों को इच्छानुसार छोटा या बड़ा रूप धारण कर सकता था। पुष्पक विमान में मणि और सोने की सीढ़ियाँ बनी हुई थीं और तपाये हुये सोने के आसन बने हुए थे। उस विमान पर बैठकर जब वह 'शरवण' नाम से प्रसिद्ध सरकण्डों के विशाल वन से होकर जा रहा था तो भगवान शंकर के पार्षद नन्दीश्‍वर ने उसे रोकते हुए कहा कि दशग्रीव! इस वन में स्थित पर्वत पर भगवान शंकर क्रीड़ा करते हैं, इसलिये यहाँ सभी सुर, असुर, यक्ष आदि का आना निषिद्ध कर दिया गया है। नन्दीश्‍वर के वचनों से क्रोद्धित होकर रावण विमान से उतरकर भगवान शंकर की ओर चला। रावण को रोकने के लिये उससे थोड़ी दूर पर हाथ में शूल लिये नन्दी दूसरे शिव की भाँति खड़े हो गये। उनका मुख वानर जैसा था। उसे देखकर रावण ठहाके मारकर हँस पड़ा। इससे कुपित हो नन्दी बोले कि दशानन! तुमने मेरे वानर रूप की अवहेलना की है, इसलिये तुम्हारे कुल का नाश करने के लिये मेरे ही समान पराक्रमी रूप और तेज से सम्पन्न वानर उत्पन्न होंगे। रावण ने इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और बोला कि जिस पर्वत ने मेरे विमान की यात्रा में बाधा डाली है, आज मैं उसी को उखाड़ फेंकूँगा। यह कहकर उसने पर्वत के निचले भाग में हाथ डालकर उसे उठाने का प्रयत्न किया। जब पर्वत हिलने लगा तो भगवान शंकर ने उस पर्वत को अपने पैर के अँगूठे से दबा दिया। इससे रावण का हाथ बुरी तरह से दब गया और वह पीड़ा से चिल्लाने लगा। जब रावण किसी प्रकार से हाथ न निकाल सका तो रोत-रोते भगवान शंकर की स्तुति और क्षमा प्रार्थना करने लगा। उस दिन से दशग्रिव दशानन का नाम रावण रख दिया। इस पर भगवान शंकर ने उसे क्षमा कर दिया और उसकी प्रार्थना करने पर उसे एक चन्द्रहास नामक खड्ग भी दिया।

रावण की सोने की लंका

रावण के दस सिर

रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।

ब्रह्मा से वरदान

रावण ने अपने इष्टदेव ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था। कथा के अनुसार तपस्या के बल पर कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ। यह जानकर रावण की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गयी। इसके बाद उसने तपस्या करने की ठान ली। रावण के साथ कुंभकर्ण और विभीषण भी ब्रह्मा की तपस्या करने के लिए तैयार हो गये। तीनों ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने रावण से वरदान मांगने को कहा। इसके बाद रावण ने अपने लिये सदैव अजर, अमर होने का वरदान मांगा। इससे ब्रह्मा जी असमंजस में डूब गये। कारण यह था कि मृत्युलोक में जिसका जन्म हुआ है, उसका मरण सुनिश्चित है। इसके बाद उसने ब्रह्मा से यह वरदान मांगा कि वह केवल मनुष्य के हाथों से मारा जाये। जंगली जीव से उसकी मृत्यु न हो पाये। ब्रह्मा ने तथास्तु कह कर रावण को वरदान दे दिया। इसके बाद कुंभकरण ने छह माह की नींद मांगी। विभीषण ने प्रभु की भक्ति मांगी। सबको मन चाहा वरदान मिल गया। ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद तीनों अति प्रसन्न हुए।

रावण और वेदवती

एक दिन जब रावण हिमालय के प्रदेश में भ्रमण कर रहा था, तब उसने अमित तेजस्वी ब्रह्मर्षि कुशध्वज की कन्या वेदवती को तपस्या करते देखा। रावण उसे देखकर वहीं मुग्ध हो गया और उसके पास आकर उसका परिचय लिया और अविवाहित रहने का कारण पूछा। वेदवती ने अपना परिचय देने के बाद बताया कि मेरे पिता विष्णु से मेरा विवाह करना चाहते थे। इससे क्रोद्धित होकर मेरी कामना करने वाले दैत्यराज शम्भु ने विष्णु का सोते समय वध कर दिया। उनकी मृत्यु पर मेरी माता भी दुःखी हो गई और चिता में प्रविष्ट हो गई। तब से मैं अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिये भगवान विष्णु की तपस्या कर रही हूँ। उन्हीं को मैंने अपना पति मान लिया है। पहले रावण ने वेदवती को बातों में फुसलाने की कोशिश की, फिर उसने जबरदस्ती करने के लिये उसके केश पकड़ लिए। वेदवती ने रावण द्वारा पकड़े हुए केश को काट दिया। फिर यह कहती हुई अग्नि में प्रविष्ट हो गई कि दुष्ट! तूने मेरा अपमान किया है। इस समय तो मैं यह शरीर त्याग रही हूँ, परन्तु तेरा विनाश करने के लिए फिर जन्म लूँगी। अगले जन्म में वह अयोनिजा कन्या के रूप में जन्म लेकर किसी धर्मात्मा की पुत्री बनी। वह कन्या कमल के रूप में उत्पन्न हुई। उस सुन्दर कान्ति वाली कमल कन्या को एक दिन रावण अपने महलों में ले आया। उसे देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि राजन्! यदि यह कमल कन्या आपके घर में रही तो आपके और आपके कुल के विनाश का कारण बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में फेंक दिया। वहाँ से वह भूमि को प्राप्त होकर राजा जनक के यज्ञमण्डप के मध्यवर्ती भूभाग में जा पहुँची। वहाँ राजा द्वारा हल से जोती जाने वाली भूमि से वह कन्या फिर प्राप्त हुई। वही वेदवती सीता के रूप में राम की पत्‍नी बनी और अंत में सीता ही रावण के कुल के विनाश का कारण बनी।

शुक तथा सारण

जब श्रीराम समुद्र पर सेतु बाँधकर लंका पहुँच गये थे, तब रावण ने 'शुक' और 'सारण' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा, "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।" रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी राक्षस वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे विभीषण की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके। विभीषण ने उन दोनों को पकड़कर राम के सम्मुख करते हुये कहा, "हे राघव! ये दोनों गुप्तचर रावण के मन्त्री 'शुक' और 'सारण' हैं, जो हमारे कटक में गुप्तचरी करते पकड़े गये हैं।" राम के सामने जाकर दोनों राक्षस थर-थर काँपते हुये बोले, "हे राजन्! हम राक्षसराज रावण के सेवक हैं। उन्हीं की आज्ञा से आपके बल का पता लगाने के लिये आये थे। हम उनकी आज्ञा के दास हैं, इसलिये उनका आदेश पालन करने के लिये विवश हैं। राजभक्ति के कारण हमें ऐसा करना पड़ा है। इसमें हमारा कोई दोष नहीं है।" उनके ये निश्चल वचन सुन कर रामचन्द्र बोले, "हे मन्त्रियों! हम तुम्हारे सत्य भाषण से बहुत प्रसन्न हैं। तुमने यदि हमारी शक्ति देख ली है, तो जाओ। यदि अभी कुछ और देखना शेष हो तो भली-भाँति देख लो। हम तुम्हें कोई दण्ड नहीं देंगे। आर्य लोग शस्त्रहीन व्यक्ति पर वार नहीं करते। अत: तुम अपना कार्य पूरा करके निर्भय हो लंका को लौट जाओ। तुम साधारण गुप्तचर नहीं, रावण के मन्त्री हो। इसलिये उससे कहना, जिस बल के भरोसे पर तुमने मेरी सीता का हरण किया है, उस बल का परिचय अपने भाइयों, पुत्रों तथा सेना के साथ हमें रणभूमि में देना। कल सूर्योदय होते ही अन्धकार की भाँति तुम्हारी सेना का विनाश भी आरम्भ हो जायेगा।"[1]

रावण के पुत्र

लंकापति रावण के सात पुत्रों का उल्लेख मिलता है जो निम्नलिखित हैं-[2]

  1. मेघनाद
  2. प्रहस्त
  3. अतिकाय
  4. अक्षयकुमार
  5. देवान्तक
  6. नारान्तक
  7. त्रिशिरा

शिवताण्डवस्तोत्रम्

जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. 1..

जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. 2..

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. 3..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. 4..

सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. 5..

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. 6..

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … 7..

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. 8..

प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. 9..

अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम्
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. 10..

जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. 11..

दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. 12..

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मन्त्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. 13..

इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम्
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. 14..

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. 15..

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युद्धकाण्ड-2, सेतुबन्धन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 अक्टूबर, 2013।
  2. How many sons Ravana had? (अंग्रेज़ी) speakingtree। अभिगमन तिथि: 10 अगस्त, 2016।

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