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====राणा कुम्भा==== | ====राणा कुम्भा==== | ||
कुम्भकरण व राणा कुम्भा के शासन काल में उसका एक रिश्तेदार रानमल काफ़ी शक्तिशाली हो गया। रानमल से ईषर्या करने वाले कुछ [[राजपूत]] सरदारों ने उसकी हत्या कर दी। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की। | कुम्भकरण व राणा कुम्भा के शासन काल में उसका एक रिश्तेदार रानमल काफ़ी शक्तिशाली हो गया। रानमल से ईषर्या करने वाले कुछ [[राजपूत]] सरदारों ने उसकी हत्या कर दी। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की। | ||
स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था। मध्य युग के शासकों में राणा कुम्भा एक | स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था। मध्य युग के शासकों में राणा कुम्भा एक महान् शासक था। वह स्वयं विद्वान् तथा [[वेद]], [[स्मृतियाँ|स्मृति]], मीमांसा, [[उपनिषद]], व्याकरण, राजनीति और [[साहित्य]] का ज्ञाता था। उसने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा [[जयदेव]] कृत ‘[[गीत गोविन्द]]’ पर 'रसिक प्रिया' नामक टीका लिखा। उसने कुम्भलगढ़ के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायीं। उसने अत्री और महेश को अपने दरबार में संरक्षण दिया था। जिन्होंने प्रसिद्ध 'विजय स्तम्भ' की रचना की थी। उसने बसन्तपुर नामक स्थान को पुनः आबाद किया। 1473 ई. में उसकी हत्या उसके पुत्र उदय ने कर दी। राजपूत सरदारों के विरोध के कारण उदय अधिक दिनो तक सत्ता-सुख नहीं भोग सका। उदय के बाद उसका छोटा भाई राजमल (1473 से 1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'राणा संग्राम सिंह' या [[राणा सांगा]] (1509 से 1528 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। 1527 ई में [[खानवा का युद्ध|खानवा के युद्ध]] में वह मुग़ल बादशाह [[बाबर]] द्वारा पराजित कर दिया गया। इसके बाद शक्तिशाली शासन के अभाव में [[जहाँगीर]] ने इसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। मेवाड़ की स्थापना राठौर वंशी शासक चुन्द ने की थी। [[जोधपुर]] की स्थापना चुन्द के पुत्र जोधा ने की थी। | ||
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मेवाड़ (आज़ादी से पूर्व)
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विवरण | मेवाड़, राजस्थान के दक्षिण मध्य में स्थित एक प्रसिद्ध रियासत थी। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद तथा चित्तौड़गढ़ ज़िले सम्मिलित थे। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | उदयपुर ज़िला |
संबंधित लेख | बनास नदी, कुंभलगढ़, चित्तौड़, हल्दीघाटी, राणा साँगा, महाराणा प्रताप, चेतक, भामाशाह |
भौगोलिक स्थिति | उत्तरी अक्षांश 25° 58' से 49° 12' तक तथा पूर्वी देशांतर 45° 51' 30' से 73° 7' तक |
अन्य जानकारी | सैकड़ों सालों तक मेवाड़ में राजपूतों का शासन रहा। गहलौत तथा सिसोदिया वंश के राजाओं ने 1200 साल तक मेवाड़ पर राज किया था। |
मेवाड़ को अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1303 ई. में गुहिलौत राजवंश के शासक रतनसिंह को पराजित कर दिल्ली सल्तनत में मिलाया। गुहिलौत वंश की एक शाखा ‘सिसोदिया वंश’ के हम्मीर देव ने मुहम्मद तुग़लक़ के समय में चित्तौड़ को जीत कर पूरे मेवाड़ को स्वतंत्र करा लिया। 1378 ई. में हम्मीर देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र क्षेत्रसिंह (1378-1405 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। क्षेत्रसिंह के बाद उसका पुत्र लक्खासिंह 1405 ई. में सिंहासन पर बैठा। लक्खासिंह की मृत्यु के बाद 1418 ई. में उसका पुत्र मोकल राजा हुआ। मोकल ने कविराज बानी विलास और योगेश्वर नामक विद्वानों को आश्रय दिया। उसके शासन काल में माना, फन्ना और विशाल नामक प्रसिद्ध शिल्पकार आश्रय पाये हुये थे। मोकल ने अनेक मन्दिरों का जीर्णोंद्धार कराया तथा एकलिंग मन्दिर के चारों तरफ़ परकोटे का भी निर्माण कराया। उसकी गुजरात शासक के विरुद्ध किये गये अभियान के समय हत्या कर दी गयी। 1431 ई. में उसकी मृत्यु के बाद राणा कुम्भा मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठा।
राणा कुम्भा
कुम्भकरण व राणा कुम्भा के शासन काल में उसका एक रिश्तेदार रानमल काफ़ी शक्तिशाली हो गया। रानमल से ईषर्या करने वाले कुछ राजपूत सरदारों ने उसकी हत्या कर दी। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की।
स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था। मध्य युग के शासकों में राणा कुम्भा एक महान् शासक था। वह स्वयं विद्वान् तथा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, राजनीति और साहित्य का ज्ञाता था। उसने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव कृत ‘गीत गोविन्द’ पर 'रसिक प्रिया' नामक टीका लिखा। उसने कुम्भलगढ़ के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायीं। उसने अत्री और महेश को अपने दरबार में संरक्षण दिया था। जिन्होंने प्रसिद्ध 'विजय स्तम्भ' की रचना की थी। उसने बसन्तपुर नामक स्थान को पुनः आबाद किया। 1473 ई. में उसकी हत्या उसके पुत्र उदय ने कर दी। राजपूत सरदारों के विरोध के कारण उदय अधिक दिनो तक सत्ता-सुख नहीं भोग सका। उदय के बाद उसका छोटा भाई राजमल (1473 से 1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'राणा संग्राम सिंह' या राणा सांगा (1509 से 1528 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। 1527 ई में खानवा के युद्ध में वह मुग़ल बादशाह बाबर द्वारा पराजित कर दिया गया। इसके बाद शक्तिशाली शासन के अभाव में जहाँगीर ने इसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। मेवाड़ की स्थापना राठौर वंशी शासक चुन्द ने की थी। जोधपुर की स्थापना चुन्द के पुत्र जोधा ने की थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख