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[[मेघनाद साहा]] सन [[1923]] से सन [[1938]] तक [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्राध्यापक रहे। इसके उपरान्त वे जीवन पर्यन्त [[1956]] में अपनी मृत्यु तक [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] में विज्ञान फैकल्टी के प्राध्यापक एवं डीन रहे। सन [[1927]] में वे रॉयल सोसाइटी के सदस्य बने। [[1934]] की भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वे अध्यक्ष थे।
[[मेघनाद साहा]] सन [[1923]] से सन [[1938]] तक [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्राध्यापक रहे। इसके उपरान्त वे जीवन पर्यन्त [[1956]] में अपनी मृत्यु तक [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] में विज्ञान फैकल्टी के प्राध्यापक एवं डीन रहे। सन [[1927]] में वे रॉयल सोसाइटी के सदस्य बने। [[1934]] की भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वे अध्यक्ष थे।
==योगदान==
==योगदान==
[[मेघनाद साहा]] [[भारत]] के महान खगोल वैज्ञानिक थे। [[खगोल विज्ञान]] के क्षेत्र में उनका अविस्मरणीय योगदान है। उनके द्वारा प्रतिपादित तापीय आयनीकरण<ref>थर्मल आयोनाइजेश</ref> के सिद्धांत को खगोल विज्ञान में तारकीय वायुमंडल के जन्म और उसके रासायनिक संगठन की जानकारी का आधार माना जा सकता है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनके अनुसंधानों का प्रभाव दूरगामी रहा और बाद में किए गए कई शोध उनके सिद्धातों पर ही आधारित थे। साहा समीकरण ने सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और यह समीरकरण तारकीय वायुमंडल के विस्तृत अध्ययन का आधार बना। एक खगोल वैज्ञानिक के साथ-साथ मेघनाद साहा स्वतंत्रता सेनानि भी थे। भारतीय कैलेंडर के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
[[मेघनाद साहा]] [[भारत]] के महान् खगोल वैज्ञानिक थे। [[खगोल विज्ञान]] के क्षेत्र में उनका अविस्मरणीय योगदान है। उनके द्वारा प्रतिपादित तापीय आयनीकरण<ref>थर्मल आयोनाइजेश</ref> के सिद्धांत को खगोल विज्ञान में तारकीय वायुमंडल के जन्म और उसके रासायनिक संगठन की जानकारी का आधार माना जा सकता है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनके अनुसंधानों का प्रभाव दूरगामी रहा और बाद में किए गए कई शोध उनके सिद्धातों पर ही आधारित थे। साहा समीकरण ने सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और यह समीरकरण तारकीय वायुमंडल के विस्तृत अध्ययन का आधार बना। एक खगोल वैज्ञानिक के साथ-साथ मेघनाद साहा स्वतंत्रता सेनानि भी थे। भारतीय कैलेंडर के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
==उपलब्धियाँ==
==उपलब्धियाँ==
साहा को [[भारत सरकार]] द्वारा देश के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में प्रचलित [[पंचांग|पंचागों]] में सुधारों के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति ने इन विभिन्नताओं और विरोधाभास को दूर करने की दिशा में काम किया।<ref>{{cite web |url=http://www.itshindi.com/meghnad-saha.html |title=मेघनाद साहा की जीवनी |accessmonthday= 22 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=itshindi.com |language=हिंदी }}</ref> उन्होंने निम्न उपलब्धियों को प्राप्त किया था-
साहा को [[भारत सरकार]] द्वारा देश के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में प्रचलित [[पंचांग|पंचागों]] में सुधारों के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति ने इन विभिन्नताओं और विरोधाभास को दूर करने की दिशा में काम किया।<ref>{{cite web |url=http://www.itshindi.com/meghnad-saha.html |title=मेघनाद साहा की जीवनी |accessmonthday= 22 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=itshindi.com |language=हिंदी }}</ref> उन्होंने निम्न उपलब्धियों को प्राप्त किया था-

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मेघनाथ साहा विषय सूची
मेघनाथ साहा की उपलब्धियाँ
मेघनाथ साहा
मेघनाथ साहा
पूरा नाम मेघनाथ साहा
जन्म 6 अक्टूबर, 1893
जन्म भूमि पूर्वी बंगाल
मृत्यु 16 फ़रवरी, 1956
अभिभावक जगन्नाथ साहा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र विज्ञान में अनुसन्धान और प्रोफ़ेसर
खोज तारों के ताप और वर्णक्रम के निकट संबंध के भौतकीय कारणों की खोज।
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
शिक्षा बी.एस.सी., एम.एस.सी.
विद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि भौतिक वैज्ञानिक
विशेष योगदान इनके अथक प्रयत्नों से ही भारत में भौतिक विज्ञान को बड़ा प्रोत्साहन मिला था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी मेघनाथ साहा ने वर्ष 1956 में कोलकाता में 'इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर फ़िजिक्स' की स्थापना की और उसके निदेशक बने थे।

मेघनाद साहा सन 1923 से सन 1938 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे। इसके उपरान्त वे जीवन पर्यन्त 1956 में अपनी मृत्यु तक कोलकाता विश्वविद्यालय में विज्ञान फैकल्टी के प्राध्यापक एवं डीन रहे। सन 1927 में वे रॉयल सोसाइटी के सदस्य बने। 1934 की भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वे अध्यक्ष थे।

योगदान

मेघनाद साहा भारत के महान् खगोल वैज्ञानिक थे। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनका अविस्मरणीय योगदान है। उनके द्वारा प्रतिपादित तापीय आयनीकरण[1] के सिद्धांत को खगोल विज्ञान में तारकीय वायुमंडल के जन्म और उसके रासायनिक संगठन की जानकारी का आधार माना जा सकता है। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनके अनुसंधानों का प्रभाव दूरगामी रहा और बाद में किए गए कई शोध उनके सिद्धातों पर ही आधारित थे। साहा समीकरण ने सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और यह समीरकरण तारकीय वायुमंडल के विस्तृत अध्ययन का आधार बना। एक खगोल वैज्ञानिक के साथ-साथ मेघनाद साहा स्वतंत्रता सेनानि भी थे। भारतीय कैलेंडर के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।

उपलब्धियाँ

साहा को भारत सरकार द्वारा देश के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में प्रचलित पंचागों में सुधारों के लिए गठित समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति ने इन विभिन्नताओं और विरोधाभास को दूर करने की दिशा में काम किया।[2] उन्होंने निम्न उपलब्धियों को प्राप्त किया था-

  1. साहा समीकरण का प्रतिपादन
  2. थर्मल आयोनाइजेशन का सिद्धांत
  3. साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान तथा इण्डियन एसोसियेशन फ़ॉर द कल्टिवेशन ऑफ़ साईन्स की स्थापना।
  4. हैली धूमकेतु पर किये गए महत्वपूर्ण शोधों में भी मेघनाथ साहा का नाम भी आता है।
  5. वर्ष 1952 में मेघनाद साहा संसदीय चुनावों में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और बड़े अंतर से चुनाव जीता।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मान

मेघनाथ साहा संसद के भी सदस्य थे। उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे। 34 वर्ष की उम्र में ही वे लंदन की 'रॉयल एशियाटिक सोसायटी' के फ़ैलो चुने गए। 1934 में उन्होंने 'भारतीय विज्ञान कांग्रेस' की अध्यक्षता की। भारत सरकार ने कलैण्डर सुधार के लिए जो समिति गठित की थी, उसके अध्यक्ष भी मेघनाथ साहा ही थे। डॉ. साहा ने पाँच महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की भी रचना की थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. थर्मल आयोनाइजेश
  2. मेघनाद साहा की जीवनी (हिंदी) itshindi.com। अभिगमन तिथि: 22 जून, 2017।

संबंधित लेख

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