"नालन्दा विश्‍वविद्यालय": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nalanda-University-Bihar.jpg|thumb|300px|नालंदा विश्‍वविद्यालय, [[नालंदा]], [[बिहार]]<br /> Nalanda University, Nalanda, Bihar]]
{{सूचना बक्सा पर्यटन
*[[भारत]] में प्राचीनकाल में [[बिहार]] ज़िले में नालन्दा विश्‍वविद्यालय था, जहां देश-विदेश के छात्र शिक्षा के लिए आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं।
|चित्र=Nalanda-University-Bihar.jpg
*[[पटना]] से 90 किमी. दूर और बिहार शरीफ़ से क़रीब 12 किमी. दक्षिण, विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, नालंदा के खण्डहर स्थित हैं। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे।
|चित्र का नाम=नालन्दा विश्‍वविद्यालय
* प्रसिद्ध चीनी यात्री [[हुएन-सांग|ह्वेनसांग]] ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था।
|विवरण=देश-विदेश के छात्र शिक्षा के लिए नालन्दा विश्‍वविद्यालय आते थे। आजकल इसके [[अवशेष]] दिखलाई देते हैं।
* भगवान [[बुद्ध]] ने सम्राट [[अशोक]] को यहाँ उपदेश दिया था।
|राज्य=[[बिहार]]
* भगवान [[महावीर]] भी यहीं रहे थे।
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* प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।
|ज़िला=[[नालन्दा ज़िला]]
|निर्माता=
|स्वामित्व=
|प्रबंधक=
|निर्माण काल=450-470 ई.
|स्थापना=गुप्तकालीन [[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य|सम्राट कुमारगुप्त प्रथम]] ने 415-454 ई. पू. में नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की।
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=25.136796,85.443828&ll=25.149014,85.496979&spn=0.56437,1.352692&t=m&z=10&iwloc=near उत्तर- 25° 8' 12.47", पूर्व- 85° 26' 37.78"]
|मार्ग स्थिति=[[पटना]] से 95 किलोमीटर, [[राजगीर]] से 12 किलोमीटर, [[बोधगया]] से 90 किलोमीटर ([[गया]] होकर), [[पावापुरी]] से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
|प्रसिद्धि=
|कब जाएँ=
|कैसे पहुँचें=विमान, रेल, बस, कार आदि।
|हवाई अड्डा=पटना और गया हवाई अड्डा
|रेलवे स्टेशन=निकटवर्ती रेलवे स्‍टेशन राजगीर व नालन्दा
|बस अड्डा=
|यातायात=बस, टॅक्सी, ऑटो रिक्शा आदि
|क्या देखें=नालन्‍दा पुरातत्‍वीय संग्रहालय
|कहाँ ठहरें=होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
|क्या खायें=
|क्या ख़रीदें=
|एस.टी.डी. कोड=61194
|ए.टी.एम=लगभग सभी
|सावधानी=
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?q=Nalanda+University+Complex&hl=en&ll=25.129123,85.451531&spn=0.02475,0.045447&sll=25.221559,85.45063&sspn=0.098924,0.181789&vpsrc=6&t=m&z=15 गूगल मानचित्र]
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=क्षेत्रफल
|पाठ 1=2367 वर्ग किलोमीटर
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=अब तक के मिले अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर व्याख्यान हेतु 7 बड़े कक्ष एवं 300 छोटे कक्ष बनाये गये थे।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''नालन्दा विश्‍वविद्यालय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nalanda University'') प्राचीन [[भारत]] में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। [[बिहार]] के [[नालन्दा ज़िला|नालन्दा ज़िले]] में एक नालन्दा विश्‍वविद्यालय था, जहां देश - विदेश के छात्र शिक्षा के लिए आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं। [[पटना]] से 90 किलोमीटर दूर और [[बिहार शरीफ़]] से क़रीब 12 किलोमीटर दक्षिण में, विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, नालंदा के खण्डहर स्थित हैं। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री [[हुएन-सांग|ह्वेनसांग]] ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक [[वर्ष]] एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।  
[[चित्र:Nalanda-University-1.jpg|पुस्तकालय के पास स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय|thumb|left]]
==इतिहास==
इस विश्वविद्यालय के निर्माण के विषय में निश्चित जानकारी का अभाव है फिर भी गुप्त वंशी शासक [[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य|कुमारगुप्त]] (414-455 ई.) ने इस बौद्ध संघ को पहला दान दिया था। ह्नेनसांग के अनुसार 470 ई. में गुप्त सम्राट नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में एक सुन्दर मन्दिर निर्मित करवाकर इसमें 80 फुट ऊंची तांबे की बुद्ध प्रतिमा को स्थापित करवाया।
==विश्‍वविद्यालय की स्थापना==
==विश्‍वविद्यालय की स्थापना==
{{tocright}}
* गुप्तकालीन [[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य|सम्राट कुमारगुप्त प्रथम]] ने 415-454 ई.पू. नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की थी।
* गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई.पू. नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की थी।
*नालंदा [[संस्कृत]] शब्‍द 'नालम् + दा' से बना है। संस्‍कृत में 'नालम' का अर्थ '[[कमल]]' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम् + दा यानी कमल देने वाली, ज्ञान देने वाली। कालक्रम से यहाँ महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम 'नालंदा महाविहार' रखा गया।
*नालंदा [[संस्कृत]] शब्‍द 'नालम् + दा' से बना है। संस्‍कृत में 'नालम' का अर्थ 'कमल' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम् + दा यानी कमल देनेवाली, ज्ञान देनेवाली। कालक्रम से यहाँ महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम नालंदा महाविहार रखा गया।
[[चित्र:Buddhist-Nalanda-University.jpg|thumb|left|सरिपुत्ता स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय]]
*महाराज शकादित्य (सम्भवत: गुप्तवंशीय सम्राट कुमार गुप्त, 415-455 ई.) ने इस जगह को विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी अन्य राजाओं ने यहाँ अनेक विहारों और विश्वविद्यालय के भवनों का निर्माण करवाया। इनमें से गुप्त सम्राट बालादित्य ने 470 ई. में यहाँ एक सुंदर मंदिर बनवाकर भगवान बुद्ध की 80 फीट की प्रतिमा स्थापित की थी।
*महाराज शकादित्य, सम्भवत: गुप्तवंशीय सम्राट कुमार गुप्त, 415-455 ई., ने इस जगह को [[विश्वविद्यालय]] के रूप में विकसित किया। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी अन्य राजाओं ने यहाँ अनेक विहारों और विश्वविद्यालय के भवनों का निर्माण करवाया। इनमें से गुप्त सम्राट बालादित्य ने 470 ई. में यहाँ एक सुंदर मंदिर बनवाकर [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] की 80 फीट की प्रतिमा स्थापित की थी।
* नालन्दा विश्‍वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जावा, चीन, तिब्बत, श्रीलंका व कोरिया आदि के छात्र आते थे।
* नालन्दा विश्‍वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जावा, [[चीन]], [[तिब्बत]], [[श्रीलंका]] व कोरिया आदि के छात्र आते थे।
* जब ह्वेनसांग [[भारत]] आया था उस समय नालन्दा विश्‍वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। इसके प्रख्यात अध्यापकों शीलभद्र ,धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, दिकनाग, ज्ञानचन्द्र, नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग, धर्मकीर्ति आदि थे।
* जब [[ह्वेनसांग]] [[भारत]] आया था उस समय नालन्दा विश्‍वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। इसके प्रख्यात अध्यापकों शीलभद्र ,धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, [[स्थिरमति बौद्धाचार्य|स्थिरमति]], प्रभामित्र, जिनमित्र, [[दिङ्नाग आचार्य|दिकनाग]], ज्ञानचन्द्र, [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]], [[वसुबन्धु बौद्धाचार्य|वसुबन्धु]], [[असंग बौद्धाचार्य|असंग]], [[धर्मकीर्ति बौद्धाचार्य|धर्मकीर्ति]] आदि थे।
*विदेशी यात्रियों के वर्णन के अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने की उत्तम व्यवस्था थी। उल्लेख मिलता है कि यहाँ आठ शालाएं और 300 कमरे थे। कई खंडों में विद्यालय तथा छात्रावास थे। प्रत्येक खंड में छात्रों के स्नान लिए सुंदर तरणताल थे जिनमें नीचे से ऊपर जल लाने का प्रबंध था। शयनस्थान पत्थरों के बने थे। जब नालन्दा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई तब उसकी विशालता और भव्यता का ज्ञान हुआ। यहाँ के भवन विशाल, भव्य और सुंदर थे। कलात्मकता तो इनमें भरी पड़ी थी। यहाँ तांबे एवं पीतल की बुद्ध की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं।
*विदेशी यात्रियों के वर्णन के अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने की उत्तम व्यवस्था थी। उल्लेख मिलता है कि यहाँ आठ शालाएं और 300 कमरे थे। कई खंडों में विद्यालय तथा छात्रावास थे। प्रत्येक खंड में छात्रों के स्नान लिए सुंदर तरणताल थे जिनमें नीचे से ऊपर जल लाने का प्रबंध था। शयनस्थान पत्थरों के बने थे। जब नालन्दा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई तब उसकी विशालता और भव्यता का ज्ञान हुआ। यहाँ के भवन विशाल, भव्य और सुंदर थे। कलात्मकता तो इनमें भरी पड़ी थी। यहाँ तांबे एवं पीतल की बुद्ध की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं।
* इस विश्‍वविद्यालय में [[पालि भाषा|पालि]] भाषा में शिक्षण कार्य होता था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था।
* इस विश्‍वविद्यालय में [[पालि भाषा|पालि]] भाषा में शिक्षण कार्य होता था। 12वीं शती में [[बख़्तियार ख़िलजी]] के आक्रमण से यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था।
*पहले यहाँ केवल एक बौद्ध विहार बना था जो धीरे-धीरे एक महान विद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। इस विश्वविद्यालय को गुप्त तथा मौखरी नरेशों तथा कान्यकुब्जाधिप हर्ष से निरंतर अर्थ सहायता और संरक्षण प्राप्त होता रहा  
*पहले यहाँ केवल एक [[बौद्ध]] विहार बना था जो धीरे-धीरे एक महान् विद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। इस विश्वविद्यालय को गुप्त तथा मौखरी नरेशों तथा 'कान्यकुब्जाधिप' [[हर्षवर्धन|हर्ष]] से निरंतर अर्थ सहायता और संरक्षण प्राप्त होता रहा  
*युवानच्वांग के पश्चात भी अगले 30 वर्षों में नालंदा में प्रायः ग्यारह चीनी और कोरियायी यात्री आए थे।  
*[[युवानच्वांग]] के पश्चात् भी अगले 30 वर्षों में नालंदा में प्रायः ग्यारह चीनी और कोरियायी यात्री आए थे।  
*नालन्दा विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने ज्ञान एवं विद्या के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। इनका चरित्र सर्वथा उज्जवल और दोषरहित था। छात्रों के लिए कठोर नियम था। जिनका पालन करना आवश्यक था। चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन, धर्म और साहित्य का अध्ययन किया था। उसने दस वर्षों तक यहाँ अध्ययन किया। उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सरल नहीं था। यहाँ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के लिए पहले छात्र को परीक्षा देनी होती थी। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था। विश्वविद्यालय के छ: द्वार थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। प्रवेश से पहले वो छात्रों की वहीं परीक्षा लेता था। इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था तथा अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। यहाँ से स्नातक करने वाले छात्र का हर जगह सम्मान होता था।
*नालन्दा विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने ज्ञान एवं विद्या के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। इनका चरित्र सर्वथा उज्ज्वल और दोषरहित था। छात्रों के लिए कठोर नियम था। जिनका पालन करना आवश्यक था। चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में [[बौद्ध दर्शन]], धर्म और साहित्य का अध्ययन किया था। उसने दस वर्षों तक यहाँ अध्ययन किया। उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सरल नहीं था। यहाँ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के लिए पहले छात्र को परीक्षा देनी होती थी। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था। विश्वविद्यालय के छ: द्वार थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। प्रवेश से पहले वो छात्रों की वहीं परीक्षा लेता था। इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था तथा अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। यहाँ से स्नातक करने वाले छात्र का हर जगह सम्मान होता था।
* [[चीन]] में इत्सिंग और हुइली और कोरिया से हाइनीह, यहाँ आने वाले विदेशी यात्रियों में मुख्य है। 630 ई. में जब युवानच्वांग यहाँ आए थे तब यह विश्वविद्यालय अपने चरमोत्कर्ष पर था। इस समय यहाँ दस सहस्त्र विद्यार्थी और एक सहस्त्र आचार्य थे।
*[[चीन]] में इत्सिंग और हुइली और कोरिया से हाइनीह, यहाँ आने वाले विदेशी यात्रियों में मुख्य है। 630 ई. में जब युवानच्वांग यहाँ आए थे तब यह विश्वविद्यालय अपने चरमोत्कर्ष पर था। इस समय यहाँ दस सहस्त्र विद्यार्थी और एक सहस्त्र आचार्य थे।
[[चित्र:Central-Temple-Nalanda-University.jpg|thumb|left|सरिपुत्ता स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय]]
* विद्यार्थियों का प्रवेश नालंदा विश्वविद्यालय में काफ़ी कठिनाई से होता था क्योंकि केवल उच्चकोटि के विद्यार्थियों को ही प्रविष्ट किया जाता था।
* विद्यार्थियों का प्रवेश नालंदा विश्वविद्यालय में काफ़ी कठिनाई से होता था क्योंकि केवल उच्चकोटि के विद्यार्थियों को ही प्रविष्ट किया जाता था।
* शिक्षा की व्यवस्था महास्थविर के नियंत्रण में थी। शीलभद्र उस समय यहाँ के प्रधानाचार्य थे। ये प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान थे। यहाँ के अन्य ख्यातिप्राप्त आचार्यों में नागार्जुन, पदमसंभव (जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया), शांतिरक्षित और दीपकर, ये सभी बौद्ध धर्म के इतिहास में प्रसिद्ध हैं।
* शिक्षा की व्यवस्था महास्थविर के नियंत्रण में थी। शीलभद्र उस समय यहाँ के प्रधानाचार्य थे। ये प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् थे। यहाँ के अन्य ख्यातिप्राप्त आचार्यों में [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]], [[पद्मसंभव बौद्धाचार्य|पदमसंभव]], जिन्होंने [[तिब्बत]] में [[बौद्ध धर्म]] का प्रचार किया, [[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शांतिरक्षित]] और [[दीपङ्कर श्रीज्ञान बौद्धाचार्य|दीपंकर]], ये सभी [[बौद्ध धर्म]] के इतिहास में प्रसिद्ध हैं।
* नालंदा 7वीं शती मे तथा उसके पश्चात कई सौ वर्षों तक एशिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था। यहाँ अध्ययन के लिए चीन के अतिरिक्त चंपा, कंबोज, जावा, सुमात्रा, ब्रह्मदेश, तिब्बत, लंका और ईरान आदि देशों के विद्यार्थी आते थे और विद्यालय में प्रवेश पाकर अपने को धन्य मानते थे।
* नालंदा 7वीं शती में तथा उसके पश्चात् कई सौ वर्षों तक [[एशिया]] का सर्वश्रेष्ठ [[विश्वविद्यालय]] था। यहाँ अध्ययन के लिए [[चीन]] के अतिरिक्त [[चंपा]], [[कंबोज]], जावा, सुमात्रा, ब्रह्मदेश, [[तिब्बत]], [[लंका]] और [[ईरान]] आदि देशों के विद्यार्थी आते थे और विद्यालय में प्रवेश पाकर अपने को धन्य मानते थे।
*नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिये गये दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।
*नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिये गये दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।
* नालंदा के विद्यार्थियों के द्वारा ही सारी एशिया में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विस्तृत प्रचार व प्रसार हुआ था। यहाँ के विद्यार्थियों और विद्वानों की मांग एशिया के सभी देशों में थी और उनका सर्वत्रादर होता था। तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर भदंत शांतिरक्षित और पद्मसंभव तिब्बत गए थे और वहाँ उन्होंने संस्कृत, बौद्ध साहित्य और भारतीय संस्कृति का प्रचार करने में अप्रतिम योग्यता दिखाई थी।
[[चित्र:Temple-Ruins-Nalanda.jpg|thumb|250px|नालन्दा विश्‍वविद्यालय में मन्दिर के अवशेष]]
* नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्सा शास्त्र, अथर्ववेद तथा सांख्य से संबधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्त्र विद्वान आचार्यों में से सौ ऐसे थे जो सूत्र और शास्त्र जानते थे, पांच सौ, 3 विषयों में पारंगत थे और बीस, 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।
* नालंदा के विद्यार्थियों के द्वारा ही [[एशिया]] में भारतीय सभ्यता एवं [[संस्कृति]] का विस्तृत प्रचार व प्रसार हुआ था। यहाँ के विद्यार्थियों और विद्वानों की मांग [[एशिया]] के सभी देशों में थी और उनका सर्वत्रादर होता था। [[तिब्बत]] के राजा के निमंत्रण पर भदंत शांतिरक्षित और पद्मसंभव तिब्बत गए थे और वहाँ उन्होंने [[संस्कृत]], [[बौद्ध साहित्य]] और [[भारतीय संस्कृति]] का प्रचार करने में अप्रतिम योग्यता दिखाई थी।
* नालंदा विश्वविद्यालाय के तीन महान पुस्तकालय थे-  
* नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्सा शास्त्र, [[अथर्ववेद]] तथा सांख्य से संबंधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्त्र विद्वान् आचार्यों में से सौ ऐसे थे जो सूत्र और शास्त्र जानते थे, पांच सौ, 3 विषयों में पारंगत थे और बीस, 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।
==पुस्तकालय==
नालंदा विश्वविद्यालाय के तीन महान् पुस्तकालय थे-  
#रत्नोदधि,
#रत्नोदधि,
#रत्नसागर और
#रत्नसागर  
#रत्नरंजक।  
#रत्नरंजक।  
* इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए युवानच्वांग ने लिखा है कि 'इनकी सतमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर एवं बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रंथ थे।' इनमें से अनेकों की प्रतिलिपियां युवानच्वांग ने की थी।
[[चित्र:Nalanda-University.jpg|thumb|स्तूप और मंदिर, नालन्दा विश्‍वविद्यालय]]
* जैन ग्रंथ सूत्रकृतांग में नालंदा के हस्तियान नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है।
इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए [[युवानच्वांग]] ने लिखा है कि 'इनकी सतमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर एवं आकर्षक बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित [[ग्रंथ]] थे।' इनमें से अनेकों की प्रतिलिपियां युवानच्वांग ने की थी। जैन ग्रंथ 'सूत्रकृतांग' में नालंदा के 'हस्तियान' नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है। 1303 ई. में [[मुसलमान|मुसलमानों]] के [[बिहार]] और [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] पर आक्रमण के समय, नालंदा को भी उसके प्रकोप का शिकार बनना पड़ा। यहाँ के सभी भिक्षुओं को आक्रांताओं ने मौत के घाट उतार दिया। मुसलमानों ने नालंदा के जगत् प्रसिद्ध पुस्तकालय को जलाकर भस्मसात कर दिया और यहाँ की सतमंजिली भव्य इमारतों और सुंदर भवनों को नष्ट-भ्रष्ट करके [[खंडहर]] बना दिया। इस प्रकार भारतीय विद्या, [[संस्कृति]] और सभ्यता के घर नालंदा को जिसकी सुरक्षा के बारे में संसार की कठोर वास्तविकताओं से दूर रहने वाले यहाँ के भिक्षु विद्वानों ने शायद कभी नहीं सोचा था, एक ही आक्रमण के झटके ने धूल में मिला दिया।
* 1303 ई. में मुसलमानों के [[बिहार]] और [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] पर आक्रमण के समय, नालदा को भी उसके प्रकोप का शिकार बनना पड़ा। यहाँ के सभी भिक्षुओं को आक्रांताओं में मौत के घाट उतार दिया। मुसलमानों ने नालंदा के जगत प्रसिद्ध पुस्तकालय को जला कर भस्मसात कर दिया और यहाँ की सतमंजिली, भव्य इमारतों और सुंदर भवनों को नष्ट-भ्रष्ट करके खंडहर बना दिया। इस प्रकार भारतीय विद्या, संस्कृति, और सभ्यता के घर नालंदा को जिसकी सुरक्षा के बारे में संसार की कठोर वास्तविकताओं से दूर रहने वाले यहाँ के भिक्षु विद्वानों ने शायद कभी नहीं सोचा था, एक ही आक्रमण के झटके ने धूल में मिला दिया।  


==उत्खनन==
अब तक हुए उत्खनन में मिले अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर व्याख्यान हेतु 7 बड़े कक्ष एवं 300 छोटे कक्ष बनाये गये थे। विद्यार्थियों के रहने के लिए छात्रावासों की सुविधा थी। शैलेन्द्र शासक बालपुत्र देव ने तत्कालीन मगध नरेश देवपाल की अनुमति से नालन्दा में जावा से आये भिक्षुओं के निवास के लिए एक विहार का निर्माण करवाया था। यहां हस्तलिखित ग्रंथों का एक नौ मंजिला 'धर्मगज' नामक पुस्तकालय था जो तीन बड़े भवन रत्नसागर रत्नोदधि एवं रत्नरंजक नाम से विभाजित था।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
पंक्ति 53: पंक्ति 85:
*[http://www.kaverinews.com/article.php?id=371 बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल]  
*[http://www.kaverinews.com/article.php?id=371 बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल]  
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{प्राचीन विश्वविद्यालय}}
{{प्राचीन विश्वविद्यालय}}{{विश्वविद्यालय}}{{बिहार के पर्यटन स्थल}}{{गुप्त काल}}
{{बिहार के पर्यटन स्थल}}
{{गुप्त काल}}
[[Category:बिहार]]
[[Category:बिहार]]
[[Category:गुप्त काल]]
[[Category:गुप्त काल]]
पंक्ति 62: पंक्ति 92:
[[Category:बिहार के पर्यटन स्थल]]
[[Category:बिहार के पर्यटन स्थल]]
[[Category:बिहार के ऐतिहासिक स्थान]]
[[Category:बिहार के ऐतिहासिक स्थान]]
[[Category:विश्वविद्यालय]]
[[Category:विश्वविद्यालय]][[Category:शिक्षा कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
__INDEX__
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__NOTOC__

08:25, 13 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

नालन्दा विश्‍वविद्यालय
नालन्दा विश्‍वविद्यालय
नालन्दा विश्‍वविद्यालय
विवरण देश-विदेश के छात्र शिक्षा के लिए नालन्दा विश्‍वविद्यालय आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं।
राज्य बिहार
ज़िला नालन्दा ज़िला
निर्माण काल 450-470 ई.
स्थापना गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई. पू. में नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की।
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 25° 8' 12.47", पूर्व- 85° 26' 37.78"
मार्ग स्थिति पटना से 95 किलोमीटर, राजगीर से 12 किलोमीटर, बोधगया से 90 किलोमीटर (गया होकर), पावापुरी से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कैसे पहुँचें विमान, रेल, बस, कार आदि।
हवाई अड्डा पटना और गया हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन निकटवर्ती रेलवे स्‍टेशन राजगीर व नालन्दा
यातायात बस, टॅक्सी, ऑटो रिक्शा आदि
क्या देखें नालन्‍दा पुरातत्‍वीय संग्रहालय
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 61194
ए.टी.एम लगभग सभी
गूगल मानचित्र
क्षेत्रफल 2367 वर्ग किलोमीटर
अन्य जानकारी अब तक के मिले अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर व्याख्यान हेतु 7 बड़े कक्ष एवं 300 छोटे कक्ष बनाये गये थे।

नालन्दा विश्‍वविद्यालय (अंग्रेज़ी: Nalanda University) प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। बिहार के नालन्दा ज़िले में एक नालन्दा विश्‍वविद्यालय था, जहां देश - विदेश के छात्र शिक्षा के लिए आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं। पटना से 90 किलोमीटर दूर और बिहार शरीफ़ से क़रीब 12 किलोमीटर दक्षिण में, विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, नालंदा के खण्डहर स्थित हैं। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।

पुस्तकालय के पास स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय

इतिहास

इस विश्वविद्यालय के निर्माण के विषय में निश्चित जानकारी का अभाव है फिर भी गुप्त वंशी शासक कुमारगुप्त (414-455 ई.) ने इस बौद्ध संघ को पहला दान दिया था। ह्नेनसांग के अनुसार 470 ई. में गुप्त सम्राट नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में एक सुन्दर मन्दिर निर्मित करवाकर इसमें 80 फुट ऊंची तांबे की बुद्ध प्रतिमा को स्थापित करवाया।

विश्‍वविद्यालय की स्थापना

  • गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई.पू. नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की थी।
  • नालंदा संस्कृत शब्‍द 'नालम् + दा' से बना है। संस्‍कृत में 'नालम' का अर्थ 'कमल' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम् + दा यानी कमल देने वाली, ज्ञान देने वाली। कालक्रम से यहाँ महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम 'नालंदा महाविहार' रखा गया।
सरिपुत्ता स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय
  • महाराज शकादित्य, सम्भवत: गुप्तवंशीय सम्राट कुमार गुप्त, 415-455 ई., ने इस जगह को विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी अन्य राजाओं ने यहाँ अनेक विहारों और विश्वविद्यालय के भवनों का निर्माण करवाया। इनमें से गुप्त सम्राट बालादित्य ने 470 ई. में यहाँ एक सुंदर मंदिर बनवाकर भगवान बुद्ध की 80 फीट की प्रतिमा स्थापित की थी।
  • नालन्दा विश्‍वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जावा, चीन, तिब्बत, श्रीलंका व कोरिया आदि के छात्र आते थे।
  • जब ह्वेनसांग भारत आया था उस समय नालन्दा विश्‍वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। इसके प्रख्यात अध्यापकों शीलभद्र ,धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, दिकनाग, ज्ञानचन्द्र, नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग, धर्मकीर्ति आदि थे।
  • विदेशी यात्रियों के वर्णन के अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने की उत्तम व्यवस्था थी। उल्लेख मिलता है कि यहाँ आठ शालाएं और 300 कमरे थे। कई खंडों में विद्यालय तथा छात्रावास थे। प्रत्येक खंड में छात्रों के स्नान लिए सुंदर तरणताल थे जिनमें नीचे से ऊपर जल लाने का प्रबंध था। शयनस्थान पत्थरों के बने थे। जब नालन्दा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई तब उसकी विशालता और भव्यता का ज्ञान हुआ। यहाँ के भवन विशाल, भव्य और सुंदर थे। कलात्मकता तो इनमें भरी पड़ी थी। यहाँ तांबे एवं पीतल की बुद्ध की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं।
  • इस विश्‍वविद्यालय में पालि भाषा में शिक्षण कार्य होता था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था।
  • पहले यहाँ केवल एक बौद्ध विहार बना था जो धीरे-धीरे एक महान् विद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। इस विश्वविद्यालय को गुप्त तथा मौखरी नरेशों तथा 'कान्यकुब्जाधिप' हर्ष से निरंतर अर्थ सहायता और संरक्षण प्राप्त होता रहा
  • युवानच्वांग के पश्चात् भी अगले 30 वर्षों में नालंदा में प्रायः ग्यारह चीनी और कोरियायी यात्री आए थे।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने ज्ञान एवं विद्या के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। इनका चरित्र सर्वथा उज्ज्वल और दोषरहित था। छात्रों के लिए कठोर नियम था। जिनका पालन करना आवश्यक था। चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन, धर्म और साहित्य का अध्ययन किया था। उसने दस वर्षों तक यहाँ अध्ययन किया। उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सरल नहीं था। यहाँ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के लिए पहले छात्र को परीक्षा देनी होती थी। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था। विश्वविद्यालय के छ: द्वार थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। प्रवेश से पहले वो छात्रों की वहीं परीक्षा लेता था। इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था तथा अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। यहाँ से स्नातक करने वाले छात्र का हर जगह सम्मान होता था।
  • चीन में इत्सिंग और हुइली और कोरिया से हाइनीह, यहाँ आने वाले विदेशी यात्रियों में मुख्य है। 630 ई. में जब युवानच्वांग यहाँ आए थे तब यह विश्वविद्यालय अपने चरमोत्कर्ष पर था। इस समय यहाँ दस सहस्त्र विद्यार्थी और एक सहस्त्र आचार्य थे।
सरिपुत्ता स्तूप, नालन्दा विश्‍वविद्यालय
  • विद्यार्थियों का प्रवेश नालंदा विश्वविद्यालय में काफ़ी कठिनाई से होता था क्योंकि केवल उच्चकोटि के विद्यार्थियों को ही प्रविष्ट किया जाता था।
  • शिक्षा की व्यवस्था महास्थविर के नियंत्रण में थी। शीलभद्र उस समय यहाँ के प्रधानाचार्य थे। ये प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् थे। यहाँ के अन्य ख्यातिप्राप्त आचार्यों में नागार्जुन, पदमसंभव, जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया, शांतिरक्षित और दीपंकर, ये सभी बौद्ध धर्म के इतिहास में प्रसिद्ध हैं।
  • नालंदा 7वीं शती में तथा उसके पश्चात् कई सौ वर्षों तक एशिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था। यहाँ अध्ययन के लिए चीन के अतिरिक्त चंपा, कंबोज, जावा, सुमात्रा, ब्रह्मदेश, तिब्बत, लंका और ईरान आदि देशों के विद्यार्थी आते थे और विद्यालय में प्रवेश पाकर अपने को धन्य मानते थे।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिये गये दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।
नालन्दा विश्‍वविद्यालय में मन्दिर के अवशेष
  • नालंदा के विद्यार्थियों के द्वारा ही एशिया में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विस्तृत प्रचार व प्रसार हुआ था। यहाँ के विद्यार्थियों और विद्वानों की मांग एशिया के सभी देशों में थी और उनका सर्वत्रादर होता था। तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर भदंत शांतिरक्षित और पद्मसंभव तिब्बत गए थे और वहाँ उन्होंने संस्कृत, बौद्ध साहित्य और भारतीय संस्कृति का प्रचार करने में अप्रतिम योग्यता दिखाई थी।
  • नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्सा शास्त्र, अथर्ववेद तथा सांख्य से संबंधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्त्र विद्वान् आचार्यों में से सौ ऐसे थे जो सूत्र और शास्त्र जानते थे, पांच सौ, 3 विषयों में पारंगत थे और बीस, 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।

पुस्तकालय

नालंदा विश्वविद्यालाय के तीन महान् पुस्तकालय थे-

  1. रत्नोदधि,
  2. रत्नसागर
  3. रत्नरंजक।
स्तूप और मंदिर, नालन्दा विश्‍वविद्यालय

इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए युवानच्वांग ने लिखा है कि 'इनकी सतमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर एवं आकर्षक बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रंथ थे।' इनमें से अनेकों की प्रतिलिपियां युवानच्वांग ने की थी। जैन ग्रंथ 'सूत्रकृतांग' में नालंदा के 'हस्तियान' नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है। 1303 ई. में मुसलमानों के बिहार और बंगाल पर आक्रमण के समय, नालंदा को भी उसके प्रकोप का शिकार बनना पड़ा। यहाँ के सभी भिक्षुओं को आक्रांताओं ने मौत के घाट उतार दिया। मुसलमानों ने नालंदा के जगत् प्रसिद्ध पुस्तकालय को जलाकर भस्मसात कर दिया और यहाँ की सतमंजिली भव्य इमारतों और सुंदर भवनों को नष्ट-भ्रष्ट करके खंडहर बना दिया। इस प्रकार भारतीय विद्या, संस्कृति और सभ्यता के घर नालंदा को जिसकी सुरक्षा के बारे में संसार की कठोर वास्तविकताओं से दूर रहने वाले यहाँ के भिक्षु विद्वानों ने शायद कभी नहीं सोचा था, एक ही आक्रमण के झटके ने धूल में मिला दिया।

उत्खनन

अब तक हुए उत्खनन में मिले अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर व्याख्यान हेतु 7 बड़े कक्ष एवं 300 छोटे कक्ष बनाये गये थे। विद्यार्थियों के रहने के लिए छात्रावासों की सुविधा थी। शैलेन्द्र शासक बालपुत्र देव ने तत्कालीन मगध नरेश देवपाल की अनुमति से नालन्दा में जावा से आये भिक्षुओं के निवास के लिए एक विहार का निर्माण करवाया था। यहां हस्तलिखित ग्रंथों का एक नौ मंजिला 'धर्मगज' नामक पुस्तकालय था जो तीन बड़े भवन रत्नसागर रत्नोदधि एवं रत्नरंजक नाम से विभाजित था।


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