"धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, | मगर तम जहां था वहीं पर खड़ा है, | ||
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक | बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक | ||
कफ़न रात का हर चमन पर पड़ा है, | |||
न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे | न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे | ||
उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! | उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ! | ||
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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! | धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ! | ||
सृजन शान्ति के वास्ते है | सृजन शान्ति के वास्ते है ज़रूरी | ||
कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये | कि हर द्वार पर रोशनी गीत गाये | ||
तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा, | तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा, |
10:48, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
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धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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