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'''दुलारी''' (जन्म- [[18 अप्रॅल]], [[1928]], [[नागपुर]]; मृत्यु- [[18 जनवरी]], [[2013]], [[मुम्बई]]) भारतीय सिनेमा की जानीमानी अभिनेत्री थीं। हिंदी सिनेमा में मां का ज़िक़्र होते ही [[दुर्गा खोटे]], [[ललिता पवार]], [[लीला चिटनिस]], [[निरुपा रॉय]], [[कामिनी कौशल]] और सुलोचना जैसी अभिनेत्रियों के चेहरे ज़हन में घूमने लगते हैं। इन तमाम अभिनेत्रियों की छवि भले ही फ़िल्मी मां की हो लेकिन हिंदी सिनेमा के सुनहरी दौर के दर्शक इस बात से वाक़िफ़ हैं कि इन सभी ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर हिरोईन की थी और इनमें से कुछ का शुमार तो अपने दौर की कामयाब हिरोईनों में किया जाता था। इसी सूची में एक नाम है दुलारी का, जिन्हें आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे।
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'''दुलारी''' (जन्म- [[18 अप्रॅल]], [[1928]], [[नागपुर]]; मृत्यु- [[18 जनवरी]], [[2013]], [[मुम्बई]]) [[भारतीय सिनेमा]] की जानीमानी अभिनेत्री थीं। [[हिंदी सिनेमा]] में मां का ज़िक़्र होते ही [[दुर्गा खोटे]], [[ललिता पवार]], [[लीला चिटनिस]], [[निरुपा रॉय]], [[कामिनी कौशल]] और सुलोचना जैसी अभिनेत्रियों के चेहरे ज़हन में घूमने लगते हैं। इन तमाम अभिनेत्रियों की छवि भले ही फ़िल्मी मां की हो लेकिन हिंदी सिनेमा के सुनहरी दौर के दर्शक इस बात से वाक़िफ़ हैं कि इन सभी ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर हिरोईन की थी और इनमें से कुछ का शुमार तो अपने दौर की कामयाब हिरोईनों में किया जाता था। इसी सूची में एक नाम है दुलारी का, जिन्हें आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे।
==परिचय==
==परिचय==
अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले [[उत्तर प्रदेश]] के अवध क्षेत्र से आकर [[नागपुर]] में बस गए थे। अपने [[माता]]-[[पिता]] की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री [[अरुणा ईरानी]] के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ [[मुंबई]] आ गए। ये सन [[1930]] के दशक के शुरू का समय था।
{{main|दुलारी का परिचय}}
====अभिनय की शुरुआत====
अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले [[उत्तर प्रदेश]] के [[अवध|अवध क्षेत्र]] से आकर [[नागपुर]] में बस गए थे। अपने [[माता]]-[[पिता]] की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री [[अरुणा ईरानी]] के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ [[मुंबई]] आ गए। ये सन [[1930]] के दशक के शुरू का समय था।<ref name="a">{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/12/aan-milo-aan-milo-shyam-sanware-dulari.html |title=दुलारी |accessmonthday=15 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
कुछ सालों बाद विट्ठलराव गौतम ने अपने [[परिवार]] को भी मुंबई बुला लिया। दुलारी जी के मुताबिक़ साल [[1939]] में वे मुंबई आयीं तो उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 12 साल थी। उनकी शुरुआती पढ़ाई [[नागपुर]] में हुई थी और मुंबई आने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। दुलारी जी के मुताबिक़, [[नाटक|नाटकों]] से पिता की कोई ख़ास आमदनी न हो पाने की वजह से घर में आर्थिक तंगी बनी रहती थी। ऐसे में पिता का हाथ बंटाने के लिए वे भी अरुणा ईरानी के पिता की नाटक कंपनी ‘अल्फ़्रेड-खटाऊ’ में शामिल हो गयीं। फिर कुछ समय बाद वे दो अन्य कंपनियों ‘देसी नाटक समाज’ और ‘आर्यनैतिक’ के गुजराती नाटकों में हिस्सा लेने लगीं। यहां से उनके अभिनय जीवन की शुरुआत हुई।
==कॅरियर==
 
{{main|दुलारी का फ़िल्मी कॅरियर}}
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की मशहूर फ़िल्म ‘झूला’ ([[1941]]) दुलारी जी की पहली फ़िल्म थी जिसमें वे आश्रम में रहने वाली लड़की की महज़ एक सीन की एक छोटी से भूमिका में नज़र आयी थीं। उन्हीं दिनों उन्हें सेठ यूसुफ़ फ़ज़लभाई के ‘नेशनल स्टूडियो’ में 100 रुपए महिने के वेतन पर नौकरी मिल गयी। दुलारी जी ने इस बैनर की फ़िल्मों ‘रोटी’, ‘अपना पराया’ और ‘जवानी’ (सभी [[1942]]) में छोटी छोटी भूमिकाएं कीं। दुलारी जी के मुताबिक़, ‘फ़िल्म ‘जवानी’ में मैं फ़िल्म की हिरोईन हुस्नबानो की सहेली बनी थी, जिनके साथ मुझे एक गीत पर डांस करना था। लेकिन डांस करना मुझे आता ही नहीं था। ये एक ऐसी कमी थी, जिसने आख़िर तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा’।
==फ़िल्मी कॅरियर==
‘नेशनल स्टूडियो’ को [[सोहराब मोदी]] की कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ ने ख़रीदा तो उन्होंने दुलारी जी को 7 साल के लिए नौकरी पर रखना चाहा। लेकिन कांट्रेक्ट की कुछ शर्तें मंज़ूर न होने की वजह से दुलारी जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘हमारी बात’ में उन्होंने हीरो जयराज की छोटी बहन की भूमिका की तो ‘अमर पिक्चर्स’ की ‘आदाब अर्ज़’ में वे बतौर सहनायिका नज़र आयीं, जिसमें उनके हीरो गायक मुकेश थे। ये दोनों ही फ़िल्में साल [[1943]] में बनी थीं।
‘नेशनल स्टूडियो’ को [[सोहराब मोदी]] की कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ ने ख़रीदा तो उन्होंने दुलारी जी को 7 साल के लिए नौकरी पर रखना चाहा। लेकिन कांट्रेक्ट की कुछ शर्तें मंज़ूर न होने की वजह से दुलारी जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘हमारी बात’ में उन्होंने हीरो जयराज की छोटी बहन की भूमिका की तो ‘अमर पिक्चर्स’ की ‘आदाब अर्ज़’ में वे बतौर सहनायिका नज़र आयीं, जिसमें उनके हीरो गायक मुकेश थे। ये दोनों ही फ़िल्में साल [[1943]] में बनी थीं।
====प्रमुख फ़िल्में====
‘घर’, ‘कुलकलंक’ (दोनों [[1945]]), ‘अहिंसा’, ‘ब्लैक मार्केट’, ‘नमक’, ‘पति सेवा’, ‘रंगीन कहानी’ (सभी [[1947]]) जैसी फ़िल्मों में दुलारी जी ने छोटी-बड़ी भूमिकाएं कीं, लेकिन ये तमाम फ़िल्में कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पायीं। उस दौरान कुछ [[गुजराती भाषा|गुजराती]] फ़िल्में भी उन्होंने कीं। दुलारी जी को सही मायनों में पहचान मिली साल [[1947]] में बनी ‘फ़िल्मिस्तान’ की हिट फ़िल्म ‘शहनाई’ से। इस फ़िल्म में उन्होंने हिरोईन ‘रेहाना’ की बड़ी बहन की भूमिका की थी और इसमें उनके नायक अभिनेता [[महमूद]] के पिता मुमताज़ अली थे। [[हिंदी सिनेमा]] में पाश्चात्य संगीत का इस्तेमाल भी पहली बार फ़िल्म ‘शहनाई’ में ही किया गया था।
दुलारी जी के मुताबिक़, "[[सी.रामचन्द्र]] द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ‘शहनाई’ के, ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीतों पर डांस करना मेरे लिए इतना तकलीफ़देह साबित हुआ कि मुझे कसम खानी पड़ी कि मैं अब कभी भी डांस वाली भूमिकाएं नहीं करूंगी।" ‘गुणसुंदरी’, ‘मिट्टी के खिलौने’, ‘नाव’ (सभी [[1948]]), ‘ननद भौजाई’, ‘शायर’ (दोनों [[1949]]), ‘अपनी छाया’, ‘मन का मीत’ (दोनों [[1950]]), ‘अलबेला’ ([[1951]]), ‘अंजाम’, ‘भूलेभटके’, ‘वीर अर्जुन’ (सभी [[1952]]) जैसी फ़िल्में करने के बाद दुलारी जी साल [[1953]] में बनी फ़िल्म ‘पापी’ में एक अहम भूमिका में नज़र आयीं। ‘रणजीत मूवीटोन’ के बैनर में बनी ‘पापी’ राजकपूर की दोहरी भूमिका वाली अकेली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म की दो हिरोईनों में से एक नरगिस थीं तो दूसरी दुलारी। साल [[1953]] में ही रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘जीवन ज्योति’ में भी दुलारी जी के अभिनय को काफ़ी पसंद किया गया था।
दुलारी जी का कहना था, "मेरी उम्र [[विवाह|शादी]] के लायक हो चुकी थी, लेकिन हमारे [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण]] समाज में दहेज की ज़बर्दस्त मांग थी और घर के माली हालात अभी भी कोई बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसे में मेरे [[माता]]-[[पिता]] को मेरे लिए अपने समाज से बाहर का रिश्ता स्वीकारना पड़ा। [[मराठा]] ख़ानदान के मेरे पति जगन्नाथ भीखाजी जगताप फ़िल्मोद्योग के जाने-माने साऊंड रेकॉर्डिस्ट थे। साल [[1951]] में शादी होने के बाद क़रीब 10 दस सालों तक मैंने बहुत कम काम किया। उस दौरान ‘देवदास’ ([[1955]]), ‘ज़िंदगी के मेले’ ([[1956]]), ‘एक गांव की कहानी’, ‘जॉनी वॉकर’, ‘पेईंग गेस्ट’ (तीनों [[1957]]), ‘कवि कालीदास’, ‘संतान’ ([[1959]]) जैसी मेरी सिर्फ़ 13-14 फ़िल्में ही रिलीज़ हुईं। और फिर साल [[1961]] में बनी गुजराती फ़िल्म ‘चुंडड़ी अणे चोखा’ से मैंने अपने कॅरियर की दूसरी पारी शुरू की’।
====फ़िल्मी दुनिया से अलविदा====
====फ़िल्मी दुनिया से अलविदा====
[[चित्र:Dulari-1.JPG|thumb|left|250px|अभिनेत्री दुलारी]]
अगले क़रीब 35 सालों में दुलारी जी ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘मुझे जीने दो’ ‘अपने हुए पराए’ ‘आए दिन बहार के’, ‘अनुपमा’, ‘तीसरी क़सम’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘चिराग़’, ‘इंतक़ाम’, ‘आन मिलो सजना’, ‘हीर रांझा’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘कारवां’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेईमान’, ‘सीता और गीता’, ‘राजा रानी’, ‘अमीर ग़रीब’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘दो जासूस’, ‘आहुती’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘बीवी ओ बीवी’, ‘नसीब’, ‘रॉकी’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ और धर्माधिकारी जैसी क़रीब 135 फ़िल्मों में छोटी-बड़ी चरित्र भूमिकाओं में नज़र आयीं। और फिर एक रोज़ उन्होंने ख़ामोशी से फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।
अगले क़रीब 35 सालों में दुलारी जी ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘मुझे जीने दो’ ‘अपने हुए पराए’ ‘आए दिन बहार के’, ‘अनुपमा’, ‘तीसरी क़सम’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘चिराग़’, ‘इंतक़ाम’, ‘आन मिलो सजना’, ‘हीर रांझा’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘कारवां’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेईमान’, ‘सीता और गीता’, ‘राजा रानी’, ‘अमीर ग़रीब’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘दो जासूस’, ‘आहुती’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘बीवी ओ बीवी’, ‘नसीब’, ‘रॉकी’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ और धर्माधिकारी जैसी क़रीब 135 फ़िल्मों में छोटी-बड़ी चरित्र भूमिकाओं में नज़र आयीं। और फिर एक रोज़ उन्होंने ख़ामोशी से फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।


दुलारी जी का कहना था, "बढ़ती उम्र के साथ बिगड़ती सेहत का असर मेरे काम पर भी पड़ने लगा था। साल [[1989]] में बनी फ़िल्म ‘सूर्या’ के एक सीन में मुझे 200 जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ के साथ दौड़ना था। निर्देशक इस्माईल श्रॉफ़ के एक्शन कहते ही मैंने दौड़ना शुरू किया। लेकिन गठिया की बीमारी की वजह से मैं कुछ ही दूर जाकर गिर पड़ी। जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ मेरे पीछे दौड़ी चली आ रही थी। अभिनेता सलीम ग़ौस ने, जो मेरे बेटे की भूमिका में थे, बहुत मुश्किल से मुझे कुचले जाने से बचाया, और इस प्रयास में उन्हें भी हल्की चोटें आयीं। ऐसे में मैंने रिटायरमेंट ले लेना ही बेहतर समझा। फिर कई साल बाद निर्देशक गुड्डू धनोवा के आग्रह पर उनकी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में एक भूमिका की। इस तरह साल [[1997]] में रिलीज़ हुई ‘ज़िद्दी’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।"
दुलारी जी का कहना था, "बढ़ती उम्र के साथ बिगड़ती सेहत का असर मेरे काम पर भी पड़ने लगा था। साल [[1989]] में बनी फ़िल्म ‘सूर्या’ के एक सीन में मुझे 200 जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ के साथ दौड़ना था। निर्देशक इस्माईल श्रॉफ़ के एक्शन कहते ही मैंने दौड़ना शुरू किया। लेकिन गठिया की बीमारी की वजह से मैं कुछ ही दूर जाकर गिर पड़ी। जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ मेरे पीछे दौड़ी चली आ रही थी। अभिनेता सलीम ग़ौस ने, जो मेरे बेटे की भूमिका में थे, बहुत मुश्किल से मुझे कुचले जाने से बचाया, और इस प्रयास में उन्हें भी हल्की चोटें आयीं। ऐसे में मैंने रिटायरमेंट ले लेना ही बेहतर समझा। फिर कई साल बाद निर्देशक गुड्डू धनोवा के आग्रह पर उनकी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में एक भूमिका की। इस तरह साल [[1997]] में रिलीज़ हुई ‘ज़िद्दी’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।"<ref name="a"/>
==मृत्यु==
==मृत्यु==
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दुलारी जी के पति का निधन साल [[1972]] में हुआ। उनकी इकलौती बेटी की शादी हो चुकी थी। अभिनय से सन्यास लेने के बाद कुछ समय तो वे [[मुंबई]] में अकेली रहीं। फिर साल [[2002]] में अपनी बेटी के पास [[इंदौर]] चली गयीं। उनके ससुराल पक्ष के कई क़रीबी रिश्तेदार और उनकी सबसे अच्छी सहेली अभिनेत्री पूर्णिमा मुंबई में रहते हैं, इसलिए अक्सर उनका मुंबई आना-जाना होता रहता था। दुलारी जी पिछले काफ़ी समय से अल्ज़ाईमर की बीमारी से पीड़ित थीं और [[महाराष्ट्र]] के ही किसी शहर में वृद्धाश्रम में रह रही थीं। 85 साल की दुलारी जी को [[दिसंबर]] [[2012]] के आख़िरी [[सप्ताह]] में [[पूना]] के एक अस्पताल में आई.सी.यू. में दाख़िल कराया गया था, जहां [[18 जनवरी]], [[2013]] की सुबह क़रीब 10 बजे उनका देहांत हो गया।
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==संबंधित लेख==
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07:37, 18 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

दुलारी विषय सूची
दुलारी
दुलारी
दुलारी
पूरा नाम दुलारी
अन्य नाम अम्बिका (मूल नाम)
जन्म 18 अप्रॅल, 1928
जन्म भूमि नागपुर, महाराष्ट्र
मृत्यु 18 जनवरी, 2013
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक विट्ठलराव गौतम डाकतार
पति/पत्नी जगन्नाथ भीखाजी जगताप
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में ‘रोटी’, 'शहनाई', ‘अलबेला’, 'पापी, ‘जीवन ज्योति’, देवदास, ‘आए दिन बहार के’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘आन मिलो सजना’, ‘कारवां’, ‘सीता और गीता’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ आदि।
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की मशहूर फ़िल्म ‘झूला’ (1941) दुलारी जी की पहली फ़िल्म थी, जिसमें वे आश्रम में रहने वाली लड़की की महज़ एक सीन की एक छोटी से भूमिका में नज़र आयी थीं।
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दुलारी (जन्म- 18 अप्रॅल, 1928, नागपुर; मृत्यु- 18 जनवरी, 2013, मुम्बई) भारतीय सिनेमा की जानीमानी अभिनेत्री थीं। हिंदी सिनेमा में मां का ज़िक़्र होते ही दुर्गा खोटे, ललिता पवार, लीला चिटनिस, निरुपा रॉय, कामिनी कौशल और सुलोचना जैसी अभिनेत्रियों के चेहरे ज़हन में घूमने लगते हैं। इन तमाम अभिनेत्रियों की छवि भले ही फ़िल्मी मां की हो लेकिन हिंदी सिनेमा के सुनहरी दौर के दर्शक इस बात से वाक़िफ़ हैं कि इन सभी ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर हिरोईन की थी और इनमें से कुछ का शुमार तो अपने दौर की कामयाब हिरोईनों में किया जाता था। इसी सूची में एक नाम है दुलारी का, जिन्हें आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। दुलारी ने भी शुरुआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे।

परिचय

अभिनेत्री दुलारी का जन्म 18 अप्रॅल सन 1928 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। दुलारी जी के अनुसार, उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र से आकर नागपुर में बस गए थे। अपने माता-पिता की दुलारी जी पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यूँ तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया था, लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री अरुणा ईरानी के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वे उस कंपनी के साथ मुंबई आ गए। ये सन 1930 के दशक के शुरू का समय था।[1]

कॅरियर

‘नेशनल स्टूडियो’ को सोहराब मोदी की कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ ने ख़रीदा तो उन्होंने दुलारी जी को 7 साल के लिए नौकरी पर रखना चाहा। लेकिन कांट्रेक्ट की कुछ शर्तें मंज़ूर न होने की वजह से दुलारी जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘हमारी बात’ में उन्होंने हीरो जयराज की छोटी बहन की भूमिका की तो ‘अमर पिक्चर्स’ की ‘आदाब अर्ज़’ में वे बतौर सहनायिका नज़र आयीं, जिसमें उनके हीरो गायक मुकेश थे। ये दोनों ही फ़िल्में साल 1943 में बनी थीं।

फ़िल्मी दुनिया से अलविदा

अभिनेत्री दुलारी

अगले क़रीब 35 सालों में दुलारी जी ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘मुझे जीने दो’ ‘अपने हुए पराए’ ‘आए दिन बहार के’, ‘अनुपमा’, ‘तीसरी क़सम’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘चिराग़’, ‘इंतक़ाम’, ‘आन मिलो सजना’, ‘हीर रांझा’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘कारवां’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेईमान’, ‘सीता और गीता’, ‘राजा रानी’, ‘अमीर ग़रीब’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘दो जासूस’, ‘आहुती’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘बीवी ओ बीवी’, ‘नसीब’, ‘रॉकी’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ और धर्माधिकारी जैसी क़रीब 135 फ़िल्मों में छोटी-बड़ी चरित्र भूमिकाओं में नज़र आयीं। और फिर एक रोज़ उन्होंने ख़ामोशी से फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।

दुलारी जी का कहना था, "बढ़ती उम्र के साथ बिगड़ती सेहत का असर मेरे काम पर भी पड़ने लगा था। साल 1989 में बनी फ़िल्म ‘सूर्या’ के एक सीन में मुझे 200 जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ के साथ दौड़ना था। निर्देशक इस्माईल श्रॉफ़ के एक्शन कहते ही मैंने दौड़ना शुरू किया। लेकिन गठिया की बीमारी की वजह से मैं कुछ ही दूर जाकर गिर पड़ी। जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ मेरे पीछे दौड़ी चली आ रही थी। अभिनेता सलीम ग़ौस ने, जो मेरे बेटे की भूमिका में थे, बहुत मुश्किल से मुझे कुचले जाने से बचाया, और इस प्रयास में उन्हें भी हल्की चोटें आयीं। ऐसे में मैंने रिटायरमेंट ले लेना ही बेहतर समझा। फिर कई साल बाद निर्देशक गुड्डू धनोवा के आग्रह पर उनकी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में एक भूमिका की। इस तरह साल 1997 में रिलीज़ हुई ‘ज़िद्दी’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।"[1]

मृत्यु

दुलारी जी के पति का निधन साल 1972 में हुआ। उनकी इकलौती बेटी की शादी हो चुकी थी। अभिनय से सन्यास लेने के बाद कुछ समय तो वे मुंबई में अकेली रहीं। फिर साल 2002 में अपनी बेटी के पास इंदौर चली गयीं। उनके ससुराल पक्ष के कई क़रीबी रिश्तेदार और उनकी सबसे अच्छी सहेली अभिनेत्री पूर्णिमा मुंबई में रहते हैं, इसलिए अक्सर उनका मुंबई आना-जाना होता रहता था। दुलारी जी पिछले काफ़ी समय से अल्ज़ाईमर की बीमारी से पीड़ित थीं और महाराष्ट्र के ही किसी शहर में वृद्धाश्रम में रह रही थीं। 85 साल की दुलारी जी को दिसंबर 2012 के आख़िरी सप्ताह में पूना के एक अस्पताल में आई.सी.यू. में दाख़िल कराया गया था, जहां 18 जनवरी, 2013 की सुबह क़रीब 10 बजे उनका देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 दुलारी (हिंदी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2017।

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