"पावापुरी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Jal-Mandir-Pawapuri.jpg|thumb|250px|[[जल मंदिर]], पावापुरी]]
'''पावापुरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pawapuri'') [[पटना]]-[[राँची]] मार्ग पर एक [[गाँव]] है, जो जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। [[जैन धर्म|जैन]] मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर [[महावीर स्वामी]] ने [[मोक्ष]] प्राप्त किया था। जहाँ महावीर स्वामी ने मोक्ष पाया था, वहां 'थल मंदिर' और जहां वे जलाए गए थे, वहां 'जल मंदिर' बना है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=562, परिशिष्ट 'ग'|url=}}</ref>
==स्थिति==
==स्थिति==
[[पाटलिपुत्र|पटना]] से 104 किमी. और [[नालन्दा]] से 25 किमी दूरी पर स्थित है। यहीं [[जैन]] धर्म के प्रवर्तक [[महावीर]] जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहां का जल मन्दिर, मनियार मठ तथा वेनुवन दर्शनीय स्थल हैं। स्मिथ के अनुसार पावापुरी ज़िला पटना (बिहार) में स्थित है।
[[बिहारशरीफ़]] से 8 किमी दक्षिण-पूर्व पावापुरी जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहीं [[जैन]] धर्म के प्रवर्तक [[महावीर]] जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। [[पाटलिपुत्र|पटना]] से 104 किलोमीटर और [[नालन्दा]] से 25 किमी दूरी पर स्थित है।  यहाँ का जल मन्दिर, मनियार मठ तथा वेनुवन दर्शनीय स्थल हैं। स्मिथ के अनुसार पावापुरी ज़िला पटना (बिहार) में स्थित है।
==प्राचीन नाम==
==प्राचीन नाम==
13वीं शती ई. में जिनप्रभसूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम '''अपापा''' बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान बिहार शरीफ रेलस्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान राजगृह से दस मील दूर है। महावीर के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। स्तूप से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है।
13वीं शती ई. में जिनप्रभसूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम '''अपापा''' बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान [[बिहार]] शरीफ़ रेलवे स्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान [[राजगृह]] से दस मील दूर है। महावीर के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। [[स्तूप]] से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईंटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है।


कर्निघम, ऐशेंट ज्याग्रेफी ऑव इंडिया<ref>ऐशेंट ज्याग्रेफी आफ इंडिया पृष्ठ 49</ref> के मत में जिसका आधार शायद बुद्धचरित<ref>बुद्धचरित 25, 52</ref> में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन कुशीनगर के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम बुद्ध के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी।
[[कनिंघम]]<ref>ऐशेंट ज्याग्रेफी आफ इंडिया पृष्ठ 49</ref> के मत में जिसका आधार शायद [[बुद्धचरित]]<ref>बुद्धचरित 25, 52</ref> में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन [[कुशीनगर]] के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम [[बुद्ध]] के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी।
==उब्भटक==  
==सभागृह==  
महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है।
महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है।
==अंतिम समय==
==अंतिम समय==
जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी। बुद्धचरित<ref>बुद्धचरित 25,50</ref>
जीवन के अंतिम समय में [[बुद्ध|तथागत]] ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी।<ref>बुद्धचरित 25,50</ref>
==फ़ाज़िलपुर==
==फ़ाज़िलपुर==
कालाईल ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। <ref>ऐशेंट ज्याग्रेफी ऑव इंडिया पृष्ठ 714</ref> जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्षकाल बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है।  
कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। <ref>ऐशेंट ज्याग्रेफी ऑव इंडिया पृष्ठ 714</ref> जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी।
==पर्यटन==
यहाँ कमल तालाब के बीच [[जल मंदिर]] विश्व प्रसिद्ध है। सोमशरण मंदिर, मोक्ष मंदिर और नया मन्दिर भी दर्शनीय हैं।




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11:58, 8 मई 2018 के समय का अवतरण

जल मंदिर, पावापुरी

पावापुरी (अंग्रेज़ी: Pawapuri) पटना-राँची मार्ग पर एक गाँव है, जो जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। जैन मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर महावीर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त किया था। जहाँ महावीर स्वामी ने मोक्ष पाया था, वहां 'थल मंदिर' और जहां वे जलाए गए थे, वहां 'जल मंदिर' बना है।[1]

स्थिति

बिहारशरीफ़ से 8 किमी दक्षिण-पूर्व पावापुरी जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहीं जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। पटना से 104 किलोमीटर और नालन्दा से 25 किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ का जल मन्दिर, मनियार मठ तथा वेनुवन दर्शनीय स्थल हैं। स्मिथ के अनुसार पावापुरी ज़िला पटना (बिहार) में स्थित है।

प्राचीन नाम

13वीं शती ई. में जिनप्रभसूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम अपापा बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान बिहार शरीफ़ रेलवे स्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान राजगृह से दस मील दूर है। महावीर के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। स्तूप से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईंटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है।

कनिंघम[2] के मत में जिसका आधार शायद बुद्धचरित[3] में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन कुशीनगर के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम बुद्ध के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी।

सभागृह

महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है।

अंतिम समय

जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी।[4]

फ़ाज़िलपुर

कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। [5] जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा जैन संघ की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी।

पर्यटन

यहाँ कमल तालाब के बीच जल मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। सोमशरण मंदिर, मोक्ष मंदिर और नया मन्दिर भी दर्शनीय हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 562, परिशिष्ट 'ग' |
  2. ऐशेंट ज्याग्रेफी आफ इंडिया पृष्ठ 49
  3. बुद्धचरित 25, 52
  4. बुद्धचरित 25,50
  5. ऐशेंट ज्याग्रेफी ऑव इंडिया पृष्ठ 714

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