"शमशाद बेगम": अवतरणों में अंतर

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'''शमशाद बेगम''' (जन्म- [[14 अप्रैल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], 2013, [[मुम्बई]]) भारतीय सिनेमा में [[हिन्दी]] फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फिल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बुझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष [[2009]] में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को [[कला]] के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए '[[पद्मभूषण]]' से सम्मानित किया था।
{{सूचना बक्सा कलाकार
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|मुख्य फ़िल्में='[[मदर इंडिया]]', '[[मुग़ल-ए-आज़म]]', 'पतंगा', 'आर पार', 'सी.आई.डी'., 'बाबुल', 'दीदार', '[[बैजू बावरा]]', 'बहार', '[[मेला (फ़िल्म)|मेला]]', 'किस्मत' आदि।
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'''शमशाद बेगम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shamshad Begum''; जन्म- [[14 अप्रैल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], [[2013]], [[मुम्बई]]) [[भारतीय सिनेमा]] में [[हिन्दी]] फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फ़िल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बूझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष [[2009]] में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को [[कला]] के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए '[[पद्मभूषण]]' से सम्मानित किया था।
==जन्म==
==जन्म==
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को [[पंजाब]] राज्य के [[अमृतसर]] में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही [[के. एल. सहगल]] की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का [[विवाह]] गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। वर्ष [[1955]] में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं।  
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को [[पंजाब]] राज्य के [[अमृतसर]] में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही [[के. एल. सहगल]] की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक़ शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म '[[देवदास (1936)|देवदास]]' चौदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का [[विवाह]] गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। वर्ष [[1955]] में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं।  
==गायन की शुरुआत==
==गायन की शुरुआत==
पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ [[लाहौर]] के [[पेशावर]] रेडियो के माध्यम से [[16 दिसम्बर]], [[1947]] को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह [[रुपया|रुपये]] पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था।
==प्रसिद्धि==
शमशाद बेगम की सम्मोहक आवाज़ ने महान् संगीतकार [[नौशाद]] और [[ओ. पी. नैय्यर]] का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था और इन्होंने फ़िल्मों में पार्श्वगायिका के रूप में इन्हें गायन का मौका दिया। इसके बाद तो शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने लोगों को इनका दीवाना बना दिया। पचास, आठ और सत्तर के दशक में शमशाद बेगम संगीत निर्देशकों की पहली पसंद बनी रहीं। शमशाद बेगम ने 'ऑल इंडिया रेडियो' के लिए भी गाया। इन्होंने अपना म्यूज़िकल ग्रुप 'द क्राउन थिएट्रिकल कंपनी ऑफ़ परफॉर्मिंग आर्ट' बनाया और इसके माध्यम से पूरे देश में अनेकों प्रस्तुतियाँ दीं। इन्होंने कुछ म्यूज़िक कंपनियों के लिए [[भक्ति]] के गीत भी गाए।<ref>{{cite web |url=http://bollywood.bhaskar.com/article/ENT-BOL-birthday-of-legend-playback-singer-shamshad-begum-4235234-NOR.html|title=शमशाद बेगम|accessmonthday= 24 अप्रैल|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज़ को 'मंदिर की घंटी' बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया।


पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ [[लाहौर]] के [[पेशावर]] रेडियो के माध्यम से [[16 दिसम्बर]], [[1947]] को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह [[रुपया|रुपये]] पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज़ को 'मंदिर की घंटी' बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया।
शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने [[सारंगी]] के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उन्होंने इन्हें अपनी शिष्या बना लिया। [[लाहौर]] के संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने इनकी जादुई आवाज़ का इस्तेमाल फ़िल्म 'खजांची' ([[1941]]) और 'खानदान' ([[1942]]) में किया। वर्ष [[1944]] में शमशाद बेगम ग़ुलाम हैदर की टीम के साथ [[मुंबई]] आ गई थीं। यहाँ इन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गाया। इन्होंने पाश्चात्य से प्रभावित पहला गीत 'मेरी जान मेरी जान सनडे के सनडे' गाकर धूम मचा दी थी। इनकी गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी। इन्हें [[लता मंगेशकर]], [[आशा भोंसले]], [[गीता दत्त]] और अमीरबाई कर्नाटकी से जरा भी कम नहीं आंका गया।
 
==होली का प्रसिद्ध गीत==
==होली का प्रसिद्ध गीत==
[[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] पर यूँ तो [[हिन्दी]] फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बयायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री [[नर्गिस]] पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट [[कृष्ण]] से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के [[हृदय]] पर छा गया था।
[[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] पर यूँ तो [[हिन्दी]] फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत [[शकील बदायूँनी]] ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार [[नौशाद]] ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री [[नर्गिस]] पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट [[कृष्ण]] से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के [[हृदय]] पर छा गया था।
==प्रमुख गीत==
{| width="60%" class="bharattable-pink"
|+नादिरी बेगम के कुछ प्रमुख गीत
|-
! गीत
! फ़िल्म
|-
|'छोड़ बाबुल का घर'
|[[मदर इंडिया]]
|-
|'होली आई रे कन्हाई'
|मदर इंडिया ([[1957]])
|-
|'ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे'
|[[मदर इंडिया]]
|-
|'तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे'
|[[मुग़ल-ए-आज़म]]
|-
|'मेरे पिया गए रंगून'
|पतंगा
|-
|'कभी आर कभी पार'
|आर पार
|-
|'लेके पहला पहला प्यार'
|सी.आई.डी. ([[1956]])
|-
|'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना'
|सी.आई.डी. ([[1956]])
|-
|'बूझ मेरा क्या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे'
|सी.आई.डी. ([[1956]]) ([[1956]])
|-
|'मिलते ही आँखेंं दिल हुआ दीवाना किसी का'
|बाबुल
|-
|'बचपन के दिन भुला न देना'
|दीदार
|-
|'दूर कोई गाए'
|[[बैजू बावरा]]
|-
|'सैया दिल में आना रे'
|बहार
|-
|'मोहन की मुरलिया बाजे'
|[[मेला (1948 फ़िल्म)|मेला]] ([[1948]])
|-
|'कजरा मुहब्बत वाला'
|क़िस्मत ([[1968]])
|}
====आवाज़ का जादू====
====आवाज़ का जादू====
अपनी सुरीली आवाज़ से [[हिन्दी]] फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं।
अपनी सुरीली आवाज़ से [[हिन्दी]] फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं।
==पुरस्कार व सम्मान==
#'प्रेस्टिजियस ओ.पी. नैयर अवार्ड' - [[2009]]
#'[[पद्म भूषण]] - [[2009]]
==रोचक तथ्य==
{| class="bharattable-pink"
|+ शमशाद बेगम से संबंधित कुच रोचक तथ्य<ref>{{cite web |url=http://hindi.in.com/latest-news/movies/Facts-About-Shamshad-Begum-1816512.html?utm_source=RHS |title= क्या आप शमशाद बेगम के बारे में ये ख़ास बातें जानते हैं?|accessmonthday=26 अप्रॅल |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= इन डॉट कॉम|language=हिंदी }}</ref>
|-
! पहली ही फ़िल्म में 9 गाने
| शमशाद बेगम ने अपने गायन करियर की शुरुआत रेडियो से की। उनकी पहली हिंदी फ़िल्म ‘खजांची’ थी। फ़िल्म के सारे 9 गाने शमशाद ने गाए। उन्होंने [[16 दिसंबर]], [[1947]] को पेशावर रेडियो के लिए गाना गया। उनके इस गाने से [[ओ.पी. नैयर|ओ.पी. नैय्यर]] काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्म में गाने का मौका दिया। 50, 60 और 70 के दशक में शमशाद संगीतकारों की पसंदीदा हुआ करती थीं।
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! रिमिक्स की रानी बेगम 
| नए जमाने में शमशाद बेगम के जितने गानों को रिमिक्स किया गया शायद ही किसी और गायक के गानों को किया गया हो। ख़ास बात ये रही कि शमशाद का ओरिजनल गाना जितना मशहूर हुआ उतने ही हिट उनके रिमिक्स भी हुए। उनके ‘सैंया दिल में आना रे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे गानों के रिमिक्स काफ़ी लोकप्रिय हुए। ‘कजरा मोहब्बत वाला’ के रिमिक्स को तो [[सोनू निगम]] ने आवाज़ भी दी। शमशाद बेगम को इन रिमिक्स पर कोई एतराज नहीं रहा। वो इन्हें वक्त की मांग मानती थीं।
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! मोबाइल की शान शमशाद
| शमशाद बेगम के गाने आज भी कई लोगों के मोबाइल फोन की प्लेलिस्ट में मिल जाएंगे। उनकी आवाज़ का जादू है ही ऐसा। यही नहीं शमशाद के गाने रिंगटोन्स के रुप में भी हिट रहे हैं। नब्बे के दशक में उनके गाने सबसे ज्यादा डाउनलोड की गई रिंगटोन्स में शामिल थे।
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! हीरो के लिए दी आवाज़
| [[1968]] में आई फ़िल्म ‘किस्मत’ में शमशाद बेगम ने हिरोइन बबीता नहीं बल्कि हीरो [[विश्वजीत चटर्जी|विश्वजीत]] के लिए आवाज़ दी थी। फ़िल्म में विश्वजीत पर फ़िल्माए कुछ गानों में वो लड़की के भेष में थे जिसके लिए आवाज़ शमशाद की इस्तेमाल की गई।
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! पश्चिमी धुन आधारित पहला गाना 
| शमशाद ने अपनी आवाज़ की विविधता को साबित करते हुए पश्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए। उन्होंने [[सी. रामचंद्र]] द्वारा कंपोज किया हुआ गाना ‘आना मेरी जान संडे के संडे’ गाकर धूम मचा दी। ये उनका पहला पश्चिमी धुन पर आधारित गाना था।
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! 50 साल पुराना ‘कतिया करुं’
| फ़िल्म 'रॉकस्टार' का गाना ‘कतिया करूं’ काफ़ी हिट रहा था लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये गाना शमशाद के पचास साल पहले गाए गाने से प्रेरित है। मरहूम गायिका शमशाद बेगम ने ‘कतिया करूं’ को [[1963]] में गाया था। यह गाना श्वेत-श्याम पंजाबी फ़िल्म 'पिंड डि कुरही' में अभिनेत्री निशी पर फ़िल्माया गया।
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! इसलिए नहीं खिंचवाती थीं फोटो
| शमशाद बेगम को कैमरे के सामने आना पसंद नहीं था। कुछ लोगों का मानना है कि शमशाद खुद को ख़ूबसूरत नहीं मानती थीं इसलिए वो फोटो नहीं खिंचवाती थीं। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता से कभी कैमरे के सामने न आने का वादा किया था। यही वजह है कि शमशाद बेगम की बहुत कम तस्वीरें उपलब्ध हैं।
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! [[के. एल. सहगल]] की दीवानी, 17 बार देखी [[देवदास (1936)|देवदास]]
| शमशाद बेगम के. एल. सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं। उन्होंने सहगल की फ़िल्म देवदास 14 बार देखी थी। यही नहीं वो उनकी गायकी से भी काफ़ी प्रभावित थीं।
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! कई भाषाओं में गाए गाने
| शमशाद बेगम ने ‘निशान’ जैसी फ़िल्मों नें बहुभाषी गीत भी गाए। फ़िल्म ‘शबनम’ में [[सचिन देव बर्मन|बर्मन दा]] के संगीत निर्देशन में उन्होंने एक गाने में 6 भाषाओं में एक साथ गाया। वह गैर-फ़िल्मी रेकॉर्ड्स के लिए भी गाती रहीं। [[हिंदी]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[उर्दू]] और पश्तो में भी उनके कई गैर-फ़िल्मी गाने हैं।
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! [[ओ. पी. नैयर]] की ‘टेंपल बेल’ 
| फ़िल्मी दुनिया में शमशाद को गाने का मौका देने संगीतकार ओ.पी नैय्यर उन्हें ‘टेंपल बेल’ कहते थे। नैय्यर शमशाद की आवाज़ की तुलना मंदिर में बजने वाली घंटियों की आवाज़ से करते थे। शमशाद की गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी और उन्होंने [[लता मंगेशकर]], [[आशा भोंसले]], [[गीता दत्त]] और अमीरबाई कर्नाटकी के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई थी।
|}
==निधन==
==निधन==
[[भारतीय सिनेमा]] में अपनी सुरीली आवाज़ से लोगों का दिल जीत लेने वाली मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम का निधन [[23 अप्रैल]], [[2013]] को [[मुम्बई]] में हो गया। शमशान बेगम ने [[हिन्दी]] फिल्म जगत से भले ही कई वर्ष पहले दूरियाँ बना ली थीं, किंतु अपने पूरे कैरियर में बेशुमार और प्रसिद्ध गानों को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने न जाने कितने ही अनगिनत गानों को अपनी आवाज़ से सजाकर हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया। उनकी बेटी उषा का कहना था कि- "मेरी माँ हमेशा यही कहती थीं की मेरी मौत के बाद मेरे अंतिम संस्कार के बाद ही किसी को बताना कि मैं अब इस दुनिया से जा चुकी हूँ, और मैं कहीं नहीं जाउँगी जहाँ से आई थी, वहीं वापस जा रही हूँ, मैं सदा सबके साथ हूँ। ये खनकी आवाज़ अब अपनी जुबान से गाये गए गानों से ही सबके दिलों को सुकून देगी।"<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/hindi/News/pramukh-samachar/shamshad-begam/154359.html|title=गायिका शमशाद बेगम का निधन|accessmonthday=24 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
[[भारतीय सिनेमा]] में अपनी सुरीली आवाज़ से लोगों का दिल जीत लेने वाली मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम का निधन [[23 अप्रैल]], [[2013]] को [[मुम्बई]] में हो गया। शमशान बेगम ने [[हिन्दी]] फ़िल्म जगत से भले ही कई वर्ष पहले दूरियाँ बना ली थीं, किंतु अपने पूरे कैरियर में बेशुमार और प्रसिद्ध गानों को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने न जाने कितने ही अनगिनत गानों को अपनी आवाज़ से सजाकर हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया। उनकी बेटी उषा का कहना था कि- "मेरी माँ हमेशा यही कहती थीं की मेरी मौत के बाद मेरे अंतिम संस्कार के बाद ही किसी को बताना कि मैं अब इस दुनिया से जा चुकी हूँ, और मैं कहीं नहीं जाउँगी जहाँ से आई थी, वहीं वापस जा रही हूँ, मैं सदा सबके साथ हूँ। ये खनकी आवाज़ अब अपनी जुबान से गाये गए गानों से ही सबके दिलों को सुकून देगी।"<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/hindi/News/pramukh-samachar/shamshad-begam/154359.html|title=गायिका शमशाद बेगम का निधन|accessmonthday=24 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
==निधन का समाचार विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें==
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2013/04/130424_shamshadbegum_ks.shtml बीबीसी हिंदी]
*[http://aajtak.intoday.in/story/singer-shamshad-begum-dies-at-94-1-728346.html आजतक]
*[http://hindi.webdunia.com/news-national/%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-1130424019_1.htm वेबदुनिया हिंदी]
 


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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
पंक्ति 19: पंक्ति 149:
*[http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8/%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8/167282 मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम]
*[http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8/%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8/167282 मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/03/130328_sanjay_dutt_javednaqvi_akd.shtml जद्दन बाई के तराने]
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/03/130328_sanjay_dutt_javednaqvi_akd.shtml जद्दन बाई के तराने]
*[http://www.p7news.com/top-news/8190-legendary-singer-shamshad-begum-passes-away.html मशहूर गायिका शमशाद बेगम का निधन]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पार्श्वगायक}}
{{पार्श्वगायक}}
[[Category:गायिका]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:संगीत कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]]
[[Category:गायिका]][[Category:सिनेमा]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:संगीत कोश]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]]
__INDEX__
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__NOTOC__

05:18, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

शमशाद बेगम
शमशाद बेगम
शमशाद बेगम
पूरा नाम शमशाद बेगम
जन्म 14 अप्रैल, 1919
जन्म भूमि अमृतसर, पंजाब
मृत्यु 23 अप्रैल, 2013
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पार्श्वगायन
मुख्य फ़िल्में 'मदर इंडिया', 'मुग़ल-ए-आज़म', 'पतंगा', 'आर पार', 'सी.आई.डी'., 'बाबुल', 'दीदार', 'बैजू बावरा', 'बहार', 'मेला', 'किस्मत' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण' (2009)
प्रसिद्धि हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध पार्श्वगायिका
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसम्बर, 1947 को लोगों के सामने आई।

शमशाद बेगम (अंग्रेज़ी: Shamshad Begum; जन्म- 14 अप्रैल, 1919, पंजाब; मृत्यु- 23 अप्रैल, 2013, मुम्बई) भारतीय सिनेमा में हिन्दी फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फ़िल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बूझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। वर्ष 2009 में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को कला के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।

जन्म

शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को पंजाब राज्य के अमृतसर में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही के. एल. सहगल की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फ़िल्में देखने का शौक़ शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का विवाह गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। वर्ष 1955 में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं।

गायन की शुरुआत

पहली बार शमशाद बेगम की आवाज़ लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसम्बर, 1947 को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज़ के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह रुपये पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफ़ोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था।

प्रसिद्धि

शमशाद बेगम की सम्मोहक आवाज़ ने महान् संगीतकार नौशाद और ओ. पी. नैय्यर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था और इन्होंने फ़िल्मों में पार्श्वगायिका के रूप में इन्हें गायन का मौका दिया। इसके बाद तो शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने लोगों को इनका दीवाना बना दिया। पचास, आठ और सत्तर के दशक में शमशाद बेगम संगीत निर्देशकों की पहली पसंद बनी रहीं। शमशाद बेगम ने 'ऑल इंडिया रेडियो' के लिए भी गाया। इन्होंने अपना म्यूज़िकल ग्रुप 'द क्राउन थिएट्रिकल कंपनी ऑफ़ परफॉर्मिंग आर्ट' बनाया और इसके माध्यम से पूरे देश में अनेकों प्रस्तुतियाँ दीं। इन्होंने कुछ म्यूज़िक कंपनियों के लिए भक्ति के गीत भी गाए।[1] मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज़ को 'मंदिर की घंटी' बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया।

शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उन्होंने इन्हें अपनी शिष्या बना लिया। लाहौर के संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने इनकी जादुई आवाज़ का इस्तेमाल फ़िल्म 'खजांची' (1941) और 'खानदान' (1942) में किया। वर्ष 1944 में शमशाद बेगम ग़ुलाम हैदर की टीम के साथ मुंबई आ गई थीं। यहाँ इन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गाया। इन्होंने पाश्चात्य से प्रभावित पहला गीत 'मेरी जान मेरी जान सनडे के सनडे' गाकर धूम मचा दी थी। इनकी गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी। इन्हें लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी से जरा भी कम नहीं आंका गया।

होली का प्रसिद्ध गीत

भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली पर यूँ तो हिन्दी फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बदायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया। फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री नर्गिस पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- "होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी"। इस गीत में गोपियाँ नटखट कृष्ण से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के हृदय पर छा गया था।

प्रमुख गीत

नादिरी बेगम के कुछ प्रमुख गीत
गीत फ़िल्म
'छोड़ बाबुल का घर' मदर इंडिया
'होली आई रे कन्हाई' मदर इंडिया (1957)
'ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हाँक रे' मदर इंडिया
'तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे' मुग़ल-ए-आज़म
'मेरे पिया गए रंगून' पतंगा
'कभी आर कभी पार' आर पार
'लेके पहला पहला प्यार' सी.आई.डी. (1956)
'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' सी.आई.डी. (1956)
'बूझ मेरा क्या नाम रे, नदी किनारे गाँव रे' सी.आई.डी. (1956) (1956)
'मिलते ही आँखेंं दिल हुआ दीवाना किसी का' बाबुल
'बचपन के दिन भुला न देना' दीदार
'दूर कोई गाए' बैजू बावरा
'सैया दिल में आना रे' बहार
'मोहन की मुरलिया बाजे' मेला (1948)
'कजरा मुहब्बत वाला' क़िस्मत (1968)

आवाज़ का जादू

अपनी सुरीली आवाज़ से हिन्दी फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं।

पुरस्कार व सम्मान

  1. 'प्रेस्टिजियस ओ.पी. नैयर अवार्ड' - 2009
  2. 'पद्म भूषण - 2009

रोचक तथ्य

शमशाद बेगम से संबंधित कुच रोचक तथ्य[2]
पहली ही फ़िल्म में 9 गाने शमशाद बेगम ने अपने गायन करियर की शुरुआत रेडियो से की। उनकी पहली हिंदी फ़िल्म ‘खजांची’ थी। फ़िल्म के सारे 9 गाने शमशाद ने गाए। उन्होंने 16 दिसंबर, 1947 को पेशावर रेडियो के लिए गाना गया। उनके इस गाने से ओ.पी. नैय्यर काफ़ी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फ़िल्म में गाने का मौका दिया। 50, 60 और 70 के दशक में शमशाद संगीतकारों की पसंदीदा हुआ करती थीं।
रिमिक्स की रानी बेगम नए जमाने में शमशाद बेगम के जितने गानों को रिमिक्स किया गया शायद ही किसी और गायक के गानों को किया गया हो। ख़ास बात ये रही कि शमशाद का ओरिजनल गाना जितना मशहूर हुआ उतने ही हिट उनके रिमिक्स भी हुए। उनके ‘सैंया दिल में आना रे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे गानों के रिमिक्स काफ़ी लोकप्रिय हुए। ‘कजरा मोहब्बत वाला’ के रिमिक्स को तो सोनू निगम ने आवाज़ भी दी। शमशाद बेगम को इन रिमिक्स पर कोई एतराज नहीं रहा। वो इन्हें वक्त की मांग मानती थीं।
मोबाइल की शान शमशाद शमशाद बेगम के गाने आज भी कई लोगों के मोबाइल फोन की प्लेलिस्ट में मिल जाएंगे। उनकी आवाज़ का जादू है ही ऐसा। यही नहीं शमशाद के गाने रिंगटोन्स के रुप में भी हिट रहे हैं। नब्बे के दशक में उनके गाने सबसे ज्यादा डाउनलोड की गई रिंगटोन्स में शामिल थे।
हीरो के लिए दी आवाज़ 1968 में आई फ़िल्म ‘किस्मत’ में शमशाद बेगम ने हिरोइन बबीता नहीं बल्कि हीरो विश्वजीत के लिए आवाज़ दी थी। फ़िल्म में विश्वजीत पर फ़िल्माए कुछ गानों में वो लड़की के भेष में थे जिसके लिए आवाज़ शमशाद की इस्तेमाल की गई।
पश्चिमी धुन आधारित पहला गाना शमशाद ने अपनी आवाज़ की विविधता को साबित करते हुए पश्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए। उन्होंने सी. रामचंद्र द्वारा कंपोज किया हुआ गाना ‘आना मेरी जान संडे के संडे’ गाकर धूम मचा दी। ये उनका पहला पश्चिमी धुन पर आधारित गाना था।
50 साल पुराना ‘कतिया करुं’ फ़िल्म 'रॉकस्टार' का गाना ‘कतिया करूं’ काफ़ी हिट रहा था लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये गाना शमशाद के पचास साल पहले गाए गाने से प्रेरित है। मरहूम गायिका शमशाद बेगम ने ‘कतिया करूं’ को 1963 में गाया था। यह गाना श्वेत-श्याम पंजाबी फ़िल्म 'पिंड डि कुरही' में अभिनेत्री निशी पर फ़िल्माया गया।
इसलिए नहीं खिंचवाती थीं फोटो शमशाद बेगम को कैमरे के सामने आना पसंद नहीं था। कुछ लोगों का मानना है कि शमशाद खुद को ख़ूबसूरत नहीं मानती थीं इसलिए वो फोटो नहीं खिंचवाती थीं। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता से कभी कैमरे के सामने न आने का वादा किया था। यही वजह है कि शमशाद बेगम की बहुत कम तस्वीरें उपलब्ध हैं।
के. एल. सहगल की दीवानी, 17 बार देखी देवदास शमशाद बेगम के. एल. सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं। उन्होंने सहगल की फ़िल्म देवदास 14 बार देखी थी। यही नहीं वो उनकी गायकी से भी काफ़ी प्रभावित थीं।
कई भाषाओं में गाए गाने शमशाद बेगम ने ‘निशान’ जैसी फ़िल्मों नें बहुभाषी गीत भी गाए। फ़िल्म ‘शबनम’ में बर्मन दा के संगीत निर्देशन में उन्होंने एक गाने में 6 भाषाओं में एक साथ गाया। वह गैर-फ़िल्मी रेकॉर्ड्स के लिए भी गाती रहीं। हिंदी, पंजाबी, उर्दू और पश्तो में भी उनके कई गैर-फ़िल्मी गाने हैं।
ओ. पी. नैयर की ‘टेंपल बेल’  फ़िल्मी दुनिया में शमशाद को गाने का मौका देने संगीतकार ओ.पी नैय्यर उन्हें ‘टेंपल बेल’ कहते थे। नैय्यर शमशाद की आवाज़ की तुलना मंदिर में बजने वाली घंटियों की आवाज़ से करते थे। शमशाद की गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी और उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई थी।

निधन

भारतीय सिनेमा में अपनी सुरीली आवाज़ से लोगों का दिल जीत लेने वाली मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम का निधन 23 अप्रैल, 2013 को मुम्बई में हो गया। शमशान बेगम ने हिन्दी फ़िल्म जगत से भले ही कई वर्ष पहले दूरियाँ बना ली थीं, किंतु अपने पूरे कैरियर में बेशुमार और प्रसिद्ध गानों को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने न जाने कितने ही अनगिनत गानों को अपनी आवाज़ से सजाकर हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया। उनकी बेटी उषा का कहना था कि- "मेरी माँ हमेशा यही कहती थीं की मेरी मौत के बाद मेरे अंतिम संस्कार के बाद ही किसी को बताना कि मैं अब इस दुनिया से जा चुकी हूँ, और मैं कहीं नहीं जाउँगी जहाँ से आई थी, वहीं वापस जा रही हूँ, मैं सदा सबके साथ हूँ। ये खनकी आवाज़ अब अपनी जुबान से गाये गए गानों से ही सबके दिलों को सुकून देगी।"[3]

निधन का समाचार विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शमशाद बेगम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2013।
  2. क्या आप शमशाद बेगम के बारे में ये ख़ास बातें जानते हैं? (हिंदी) इन डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2013।
  3. गायिका शमशाद बेगम का निधन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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