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'''वसंत रामजी खानोलकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasant Ramji Khanolkar'', जन्म- [[13 अप्रॅल]], [[1895]]; मृत्यु- [[29 अक्टूबर]], [[1978]]) भारतीय रोग विज्ञानी थे। उन्हें '[[भारत]] में पैथोलॉजी और चिकित्सा अनुसंधान के पिता' के रूप में जाना जाता है। वी. आर. खानोलकर ने कैंसर, रक्त समूहों और कुष्ठ रोग की महामारी के इलाज खोजने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।<br /> | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
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}}'''वसंत रामजी खानोलकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasant Ramji Khanolkar'', जन्म- [[13 अप्रॅल]], [[1895]]; मृत्यु- [[29 अक्टूबर]], [[1978]]) भारतीय रोग विज्ञानी थे। उन्हें '[[भारत]] में पैथोलॉजी और चिकित्सा अनुसंधान के पिता' के रूप में जाना जाता है। वी. आर. खानोलकर ने कैंसर, रक्त समूहों और कुष्ठ रोग की महामारी के इलाज खोजने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।<br /> | |||
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16:37, 3 जून 2021 के समय का अवतरण
वी. आर. खानोलकर
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पूरा नाम | वसंत रामजी खानोलकर |
जन्म | 13 अप्रॅल, 1895 |
मृत्यु | 29 अक्टूबर, 1978 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चिकित्सा |
विद्यालय | लंदन विश्वविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1955) |
प्रसिद्धि | भारतीय रोग विज्ञानी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | डॉ. वी. आर. खानोलकर ने कैंसर और कुष्ठ रोग पर 100 से अधिक वैज्ञानिक पत्रों पर तीन पुस्तकें प्रकाशित की थीं। |
वसंत रामजी खानोलकर (अंग्रेज़ी: Vasant Ramji Khanolkar, जन्म- 13 अप्रॅल, 1895; मृत्यु- 29 अक्टूबर, 1978) भारतीय रोग विज्ञानी थे। उन्हें 'भारत में पैथोलॉजी और चिकित्सा अनुसंधान के पिता' के रूप में जाना जाता है। वी. आर. खानोलकर ने कैंसर, रक्त समूहों और कुष्ठ रोग की महामारी के इलाज खोजने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।
- वी. आर. खानोलकर का जन्म 13 अप्रैल, 1895 को गोमांतक मराठा परिवार में हुआ था।
- उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से अपनी चिकित्सा की पढ़ाई की और 1923 में पैथोलॉजी में एम.डी. किया।
- वह अनुदान चिकित्सा और सेठ जी. एस. मेडिकल कॉलेजों में पैथोलॉजी के प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए।
- टाटा मेमोरियल अस्पताल, प्रयोगशालाओं और अनुसंधान के निदेशक के रूप में भी वी. आर. खानोलकर ने कार्य किया।
- भारत सरकार ने उन्हें चिकित्सा का राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर नियुक्त किया, जो दस वर्षों के लिए आयोजित किया गया था।
- उन्होंने 'भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र' को व्यवस्थित करने में मदद की और साल 1973 तक उसकी स्थापना से निदेशक के रूप में कार्य किया।
- डॉ. वी. आर. खानोलकर ने कैंसर और कुष्ठ रोग पर 100 से अधिक वैज्ञानिक पत्रों पर तीन पुस्तकें प्रकाशित की थीं।
- मानवता के लिये उनकी विशिष्ट सेवा को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें साल 1955 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था।
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