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==मृत्यु==
उस्ताद राशिद ख़ान की मृत्यु [[9 जनवरी]], [[2024]] को [[कोलकाता]], [[पश्चिम बंगाल]] में हुई। जानकारी के मुताबिक राशिद ख़ान लंबे समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। उनका इलाज कोलकाता के एक अस्पताल में चल रहा था। हालांकि कुछ दिनों तक उनकी हालत गंभीर बताई गई थी, जिसके बाद उन्हें [[ऑक्सीजन]] सपोर्ट पर रखा गया था लेकिन 55 साल की उम्र में राशिद ख़ान कैंसर से जंग हार गए और हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गए।
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06:24, 12 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

राशिद ख़ान
उस्ताद राशिद ख़ान
उस्ताद राशिद ख़ान
पूरा नाम उस्ताद राशिद ख़ान
जन्म 1 जुलाई 1966
जन्म भूमि बदायूं, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 9 जनवरी, 2024
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 2022

महा संगीत सम्मान, 2012
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006
पद्मश्री, 2006

प्रसिद्धि शास्त्रीय गायक एवं संगीतकार
नागरिकता भारतीय
घराना रामपुर-सहस्वान
अन्य जानकारी उस्ताद राशिद ख़ान ने 11 साल की उम्र में दिल्ली में पहला प्रोग्राम पेश कर दिया था, लेकिन वह संगीतकार नहीं बनना चाहते थे। वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन परिवार की परंपरा से वह दूर नहीं रह पाए।
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उस्ताद राशिद ख़ान (अंग्रेजी: Ustad Rasid Khan, जन्म: 1 जुलाई, 1966; मृत्यु- 9 जनवरी, 2024) भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार थे। वे रामपुर-सहस्वान घराने से थे। उनके सुर जब छिड़ते थे तो हर कोई दीवाना हो जाता है। वह संगीत की साधना कुछ यूं करते थे कि लोग अपनी सुध-बुध खो देते थे। वैसे तो राशिद ख़ान को हिंदुस्तानी संगीत में ख्याल गायिकी के लिए जाना जाता था, लेकिन ठुमरी, भजन और तराना में भी उनसे टक्कर लेने वाला कोई नहीं हुआ। वर्ष 2006 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी उस्ताद राशिद ख़ान को वर्ष 2006 में ही मिला।

परिचय

उस्ताद राशिद ख़ान का जन्म 1 जुलाई 1966 को बदायूं, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह ग़ुलाम मुश्तफा ख़ान के भतीजे थे। उन्होंने अपने संगीत की शिक्षा अपने मामा निसार हुसैन ख़ान से ग्रहण की थी।

क्रिकेटर बनने की चाह

यूं तो उस्ताद राशिद ख़ान ने 11 साल की उम्र में दिल्ली में अपना पहला प्रोग्राम पेश कर दिया था, लेकिन वह संगीतकार नहीं बनना चाहते थे। दरअसल, वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन अपने परिवार की परंपरा से वह दूर नहीं रह पाए। वहीं, गजल और कुछ प्रोग्राम देखने के बाद संगीत के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ गई। उस्ताद राशिद ख़ान रामपुर-सहसवान घराना से ताल्लुक रखते थे। वह उस्ताद इनायत हुसैन ख़ान साहब के परपोते और गुलाम मुस्तफा ख़ान के भतीजे थे। हालांकि, उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने मामा निसार हुसैन ख़ान से ली थी। इसके अलावा उस्ताद गुलाम मुस्तफा ख़ान से भी गुर सीखे। यह शिक्षा-दीक्षा उस वक्त ही शुरू हो गई थी, जब उस्ताद राशिद ख़ान महज छह साल के थे।[1]

बेहद खास अंदाज

उस्ताद राशिद ख़ान ने शुद्ध भारतीय संगीत को हल्की संगीत शैलियों के साथ संयोजित करने का भी प्रयोग किया। इनमें नीना पिया (अमीर खुसरो के गाने) के साथ सूफी फ्यूजन रिकॉर्ड करने से लेकर पश्चिमी वाद्य यंत्र लुई बैंक्स के साथ प्रयोगात्मक संगीत कार्यक्रम करना तक शामिल है। इसके अलावा वह सितार वादक शाहिद परवेज और अन्य के साथ भी अपने संगीत के करतब दिखा चुके थे। उस्ताद राशिद ख़ान ने बॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी आवाज का जादू दिखाया। फ़िल्म 'हम दिल दे चुके सनम' का 'अलबेलो सजन आयो रे' और 'जब वी मेट' का 'आओगे जब तुम हो साजना' उनके हुनर के चंद नगीनों में शामिल हैं।

पंडित भीमसेन जोशी ने तारीफ

उस्ताद राशिद ख़ान की तारीफ पंडित भीमसेन जोशी ने बेहद खास अंदाज में की थी। उन्होंने राशिद ख़ान को भारतीय संगीत का भविष्य बताया था। दरअसल, राशिद ख़ान की गायकी रामपुर-सहसवान गायकी (गायन की शैली) ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखती थी। इसमें मध्यम गति, पूर्ण कंठ स्वर और जटिल लयबद्ध गायकी शामिल है। राशिद ख़ान ने धीरे-धीरे अपने चाचा गुलाम मुस्तफा ख़ान की शैली में अपने विलम्ब विचारों में स्पष्टता जोड़ दी। इसके अलावा सरगम और टंकारी के इस्तेमाल में असाधारण कौशल विकसित किया। वह आमिर ख़ान और भीमसेन जोशी की शैली से प्रभावित थे। वह अपने गुरु की तरह गायन में माहिर थे, लेकिन गाते अपने अंदाज में थे।[1]

जब पड़ी लात

उस्ताद राशिद ख़ान जैसे इतने बेहतरीन फनकार को एक बार लात भी पड़ी, वह भी कार्यक्रम से ठीक पहले। इस पूरे मामले का खुलासा खुद उस्ताद राशिद ख़ान ने किया था। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि एक प्रोग्राम से पहले वह सुस्ती के मूड में थे। इससे उनके मामा और गुरु निसान हुसैन ख़ान बेहद नाराज हो गए। उन्होंने उस्ताद राशिद ख़ान को जोरदार लात मार दी। उस्ताद राशिद ने बताया था कि इसके बाद उन्होंने अपनी सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस दी थी।[1]

कॅरियर

राशिद ख़ान ने अपने कॅरियर की शुरुआत महज 11 वर्ष की उम्र से की थी। उन्होंने अपना पहला सिंगिंग कंसर्ट महज ग्यारह वर्ष की उम्र में किया था। ये रामपुर-सहस्वान घराने से ताल्लुकात रखते हैं। वह तराना में पूर्ण पारंगत हैं। वह हमेशा संगीत के साथ नये-नये प्रयोग करते रहते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में बेहद बेहतरीन गानों में अपनी आवाज़ का संगीत दिया हैं जिसे दर्शकों और आलोचकों द्वारा बेहद सराहा गया है। साथ ही उस्ताद आमिर ख़ाँ और पंडित भीमसेन जोशी से उन्होंने संगीत की नई शैली सीखी।

सम्मान एवं पुरस्कार

मृत्यु

उस्ताद राशिद ख़ान की मृत्यु 9 जनवरी, 2024 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुई। जानकारी के मुताबिक राशिद ख़ान लंबे समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। उनका इलाज कोलकाता के एक अस्पताल में चल रहा था। हालांकि कुछ दिनों तक उनकी हालत गंभीर बताई गई थी, जिसके बाद उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था लेकिन 55 साल की उम्र में राशिद ख़ान कैंसर से जंग हार गए और हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गए।

उस्ताद राशिद ख़ान ने फ़्ल्म इंडस्ट्री में कई हिट गाने दिए। उनके टॉप गानों की बात करें तो उन्होंने इंडस्ट्री में 'तोरे बिना मोहे चैन' नहीं जैसा सुपरहिट गाना गाया था। वहीं शाहरुख़ ख़ान की फिल्म 'माई नेम इज ख़ान' में भी गाना गाया। वह 'राज 3', 'कादंबरी', 'शादी में जरूर आना', 'मंटो' से लेकर 'मीटिन मास' जैसी फिल्मों में गाने गा चुके थे। वहीं उनके एक हिट गाने में 'जब वी मेट' का 'आओगे जब तुम ओ साजना' भी शामिल है जिसे आज भी लोग बड़े चाव से सुनते हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जब लात खाने के बाद उस्ताद राशिद खान ने दी बेस्ट परफॉर्मेंस (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2023।
  2. नहीं रहे 'आओगे जब तुम ओ साजना' फेम सिंगर राशिद खान (हिंदी) indiatv.in। अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2024।

बाहरी कड़ियाँ

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