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सत्यनारायण शास्त्री
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पूरा नाम | सत्यनारायण शास्त्री |
जन्म | 1887 ई. |
जन्म भूमि | काशी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 23 सितम्बर, 1969 |
मृत्यु स्थान | काशी |
कर्म भूमि | भारत |
प्रसिद्धि | चिकित्सक |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | सन 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सत्यनारायण शास्त्री जी को अपना निजी चिकित्सक नियुक्त किया था। शास्त्रीजी उनकी मृत्यु तक उनके निजी चिकित्सक रहे। |
अन्य जानकारी | 1955 में सत्यनारायण शास्त्री 'पद्म भूषण' के अलंकरण से विभूषित किये गए थे, किन्तु 1967 में हिन्दी आंदोलन के समय आपने इस अलंकरण का त्याग कर दिया। |
सत्यनारायण शास्त्री (अंग्रेज़ी: Satyanarayan Shastri, जन्म- 1887 ई., काशी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 सितम्बर, 1969) आधुनिक आयुर्वेद जगत के प्रख्यात पंडित और चिकित्साशास्त्री थे। आयुर्वेद की धवल परंपरा को सजीव बनाए रखने के लिए आपने जीवन भर कार्य किया। सन 1950 ई. में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के ये निजी चिकित्सक नियुक्त हुए थे। सत्यनारायण शास्त्री जी को वर्ष 1954 में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।
जन्म तथा शिक्षा
सत्यनारायण शास्त्री जी का जन्म सन 1887 ई. (संवत 1944 की माघ कृष्ण गणेश चतुर्थी) में उनकी ननिहाल, काशी (वर्तमान बनारस) के अगस्तकुंडा मोहल्ले में हुआ था। 8 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने भाषा, गणित आदि विषयों का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। महामहोपाध्याय पंडित गंगाधर शास्त्री तथा महामहोपाध्याय शिवकुमार शास्त्री से आपने साहित्य, न्याय, विविध दर्शनों तथा अन्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया था। इन्होंने ज्योतिविंद जयमंगल ज्योतिषी से ज्योतिष का, योगिराज शिवदयाल शास्त्री से योग, वेदांग एवं तंत्र कवि राज धर्मदास से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की थी।[1]
कार्यक्षेत्र
सन 1925 में सत्यनारायण शास्त्री 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राध्यापक नियुक्त हुए। बाद में 1938 ई. में वे इसके प्रधानाचार्य हो गए। 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' में आण्युर्वेद विभाग खुलने पर वहाँ सम्मानित विभागाध्यक्ष और बाद में प्राचार्य नियुक्त हुए।
राजेन्द्र प्रसाद के निजी चिकित्सक
सन 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सत्यनारायण शास्त्री जी को अपना निजी चिकित्सक नियुक्त किया था। शास्त्रीजी उनकी मृत्यु तक उनके निजी चिकित्सक रहे। इस रूप में भी उन्होंने आयुर्वेद जगत का गौरववर्धन किया।
विभिन्न पदों पर कार्य
सत्यनारायण शास्त्री 'अखिल भारतीय सरयूपारीण पंडित परिषद' और 'काशी शास्त्रार्थ महासभा' के अध्यक्ष, 'काशी विद्वत्परिषद' और 'विद्वत्प्रतिनिधि सभा' के संरक्षक भी थे। ये 'वाराणसेय शास्त्रार्थ महाविद्यालय' के स्थायी अध्यक्ष और 'अर्जुन दर्शनानंद आयुर्वेद महाविद्यालय', वाराणसी के संस्थापक भी थे। 1938 ई. में आप हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में 'भारतीय चिकित्सा परिषद' के सदस्य चुने गए थे। काशी की परंपरा के अनुसार प्रारंभ से ही सत्यनारायण शास्त्री जी ग़रीब तथा असहाय विद्यार्थियों को सहायता देकर घर पर ही उन्हें विद्यादान देते रहे।[1]
सम्मान तथा त्याग
सन 1955 में सत्यनारायण शास्त्री 'पद्म भूषण' के अलंकरण से विभूषित किये गए। आपको यह उपाधि भारत सरकार द्वारा संस्कृत और आयुर्वेद के प्रति की गई सेवाओं के लिए प्रदान की गई थी, किन्तु 1967 में हिन्दी आंदोलन के समय जब नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने हिन्दी सेवी विद्वानों से सरकारी अलंकरण के त्याग का अनुरोध किया, तब आपने भी अलंकरण का त्याग कर दिया।
नाड़ी ज्ञान
नाड़ी ज्ञान तथा रोग निदान के आप अन्यतम आचार्य थे। रोगी की नाड़ी देखकर ही रोग और उसके स्वरूप का सटीक निदान तत्काल कर देना सत्यनारायण शास्त्री जी की सबसे बड़ी विशेषता थी।
निधन
सत्यनारायण शास्त्री का निधन 23 सितम्बर, 1969 में मंगलवार के दिन 82 वर्ष की आयु में अगस्तकुंडा स्थित निवास स्थान पर हुआ। मृत्यु से कुछ देर पूर्व उन्होंने कहा था कि- "अब त्रयोदशी हो गई, अच्छा मुहूर्त आ गया है।" आपने पद्मासन लगाकर बैठने की कोशिश की, किन्तु यह संभव न हो पाने के कारण आपने प्राणायाम किया और कुछ श्लोकों का उच्चारण करते हुए प्राण त्याग दिए।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 सत्यनारायण शास्त्री (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2015।
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