"शशि कपूर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
 
(6 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 34 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा कलाकार
{{सूचना बक्सा कलाकार
|चित्र=shashi-kapoor.jpg
|चित्र=shashi-kapoor.jpg
|पूरा नाम= शशि कपूर ( असली नाम बलबीर राज कपूर )
|पूरा नाम=बलबीर राज कपूर
|प्रसिद्ध नाम=शशि कपूर
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म= [[18 मार्च]], [[1938]]
|जन्म= [[18 मार्च]], [[1938]]
|जन्म भूमि=  
|जन्म भूमि=[[कोलकाता]], [[भारत]]
|मृत्यु=  
|मृत्यु=[[4 दिसम्बर]], [[2017]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
|अविभावक= [[पृथ्वीराज कपूर]]
|अभिभावक= [[पृथ्वीराज कपूर]] और रामसरनी कपूर
|पति/पत्नी= जेनिफर
|पति/पत्नी= जेनिफ़र केण्डेल
|संतान=
|संतान=कुणाल कपूर, करण कपूर और संजना कपूर
|कर्म भूमि=[[मुंबई]]
|कर्म भूमि=[[मुम्बई]]
|कर्म-क्षेत्र=अभिनेता
|कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]]
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=
|मुख्य फ़िल्में='वक़्त', 'जब जब फूल खिले', 'सुहाना सफर', 'माई लव', 'आ गले लग जा', 'पाप और पुण्य', 'मुहब्बत इसको कहते हैं', 'हसीना मान जायेगी', 'रूठा न करो', 'कन्यादान', 'शर्मिली', 'फ़कीरा', 'चोर मचाए शोर', 'सत्यम शिवम सुन्दरम' आदि।
|विषय=
|विषय=
|शिक्षा=
|शिक्षा=
|विद्यालय=डोन बोस्की स्कूल से पढाई पूरी की
|विद्यालय='डॉन बास्को स्कूल', [[मुम्बई]]
|पुरस्कार-उपाधि=  
|पुरस्कार-उपाधि=[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]], [[पद्म भूषण]] ([[2011]]), 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार', 'बांबे जर्नलिस्ट एशोसिएशन अवार्ड'
|प्रसिद्धि=
|प्रसिद्धि=रोमांटिक अभिनेता
|विशेष योगदान=
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|शीर्षक 1=
पंक्ति 26: पंक्ति 27:
|शीर्षक 2=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|अन्य जानकारी=अस्सी के दशक में शशि कपूर ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और 'जूनून' फ़िल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने 'कलयुग', '36 चौरंगी लेन', 'विजेता', 'उत्सव', और 'रमन' जैसी फ़िल्में बनाईं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन={{अद्यतन|13:49, 15 मार्च 2015 (IST)}}
}}
}}
'''शशि कपूर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shashi Kapoor'', जन्म- [[18 मार्च]], [[1938]], [[कोलकाता]]; मृत्यु- [[4 दिसम्बर]], [[2017]], [[मुम्बई]]) [[हिन्दी सिनेमा]] जगत के प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक थे। वे ऐसे अभिनेताओं में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने अपने सदाबहार अभिनय से लगभग चार दशक तक हिन्दी सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। कोलकाता में जन्मे शशि कपूर का असली नाम 'बलबीर राज कपूर' था। उनका रुझान बचपन से ही फ़िल्मों की ओर था और वह [[अभिनेता]] बनना चाहते थे। उनके [[पिता]] [[पृथ्वीराज कपूर]] और भाई [[राजकपूर]] तथा [[शम्मी कपूर]] पहले से ही फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता थे और प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर थे। उनके पिता अगर चाहते तो वह उन्हें लेकर फ़िल्म बना सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि शशि कपूर स्वयं ही संघर्ष करें और अपनी मेहनत से ही अभिनेता बनें। पिता की इस बात पर शशि कपूर पूरी तरह खरे उतरे थे।
==शिक्षा तथा अभिनय की शुरुआत==
अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई [[मुंबई]] के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। [[चित्र:Shashi-Kapoor.jpg|thumb|left|शशि कपूर]]उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएँ निभाईं। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' ([[1948]] ई.) और 'आवारा' ([[1951]] ई.) में भूमिकाएँ दीं। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था।
====जेनिफ़र से भेंट====
जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों [[ब्रिटेन]] की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' [[भारत]] दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी '''जेनिफ़र''' से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा। [[चित्र:Shashi-kapoor-with-family.jpg|thumb|left|शशि कपूर अपने परिवार (पुत्र- कुणाल और करन, पुत्री- संजना और पत्नी जेनिफ़र) के साथ]]इसी दौरान जेनिफ़र ने [[हिन्दी]] भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8101.html|title=मेरे जीवनसाथी/शशि कपूर-जेनिफर |accessmonthday=28 फ़रवरी|accessyear=2012|last=बच्चन|first=श्रीवास्तव|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==विवाह==
जेनिफ़र उम्र में शशि कपूर से बड़ी थीं। मजे की बात तो यह थी कि मित्र, प्रेमिका और फिर पत्नी बनने वाली यह युवती अक्सर नाटक में शशि कपूर की [[माँ]] का किरदार बखूबी निभा रही थी। दरअसल, सिंगापुर, मलाया और हांगकांग की यात्रा के दौरान दोनों को स्टेज पर न केवल काम करने का बेहतर अवसर मिला, बल्कि घूमने-फिरने का भी खूब मौक़ा मिला। जेनिफ़र के इस साथ ने जहाँ भारतीय शशि कपूर को इंग्लिश मैन बना दिया, वहीं उन्होंने शशि से भारतीय रहन-सहन और तौर-तरीकों के बारे भी में बहुत कुछ सीखा-जाना। ब्रेड की जगह चपाती खाना और बनाना भी सीखा। जब [[मुंबई]] लौटे, तो मिस्टर केण्डेल की बेटी से उनका रिश्ता पक्का हो चुका था। पिता [[पृथ्वीराज कपूर]] को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। आखिर वे उनके मित्र की बेटी थीं। [[1958]] में शशि कपूर ने 20 वर्ष की उम्र में जेनिफ़र केण्डेल से विवाह कर लिया। [[विवाह]] विधि-विधान से पृथ्वीराज कपूर के मुंबई के 'माटुंगा फ़्लैट' में हुआ।[[चित्र:Mere-Paas-Maa-Hai-Amitabh-Bachchan-Shashi-Kapoor.jpg|left|thumb|[[अमिताभ बच्चन]], [[निरुपा राय]] और शशि कपूर <br />फ़िल्म [[दीवार (फ़िल्म)|दीवार]] का एक दृश्य]]
====शुरुआती असफलता====
शशि कपूर ने नायक के रुप में सिने कैरियर की शुरुआत साल [[1961]] ई. में यश चोपडा की फ़िल्म 'धर्म पुत्र' से की थी। इसके बाद उन्हें विमल राय की फ़िल्म 'प्रेम पत्र' में भी काम करने का मौक़ा मिला, लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों ही फ़िल्में असफल साबित हुईं। इसके बाद शशि कपूर ने 'मेंहदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलीडे इन बांम्बे' जैसी फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन यह फ़िल्में भी टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गईं।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-story-28-28-101622.html|title=सदाबहार अभिनेता है शशि कपूर |accessmonthday=28 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==सफलता==
[[चित्र:Shashi-Kapoor-jab-jab-phool-khile.jpg|thumb|फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' में शशि कपूर]]
साल [[1965]] ई. शशि कपूर के सिने कैरियर का अहम साल साबित हुआ। इस साल उनकी 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत, [[संगीत]] और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी ने न सिर्फ़ अभिनेत्री नंदा को, बल्कि गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को शोहरत की बुंलदियों पर पहुँचा। इस फ़िल्म की भारी सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अखियाँ मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का, 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। फ़िल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अह्म भूमिका निभाई थी। नब्बे के दशक में 'जब जब फूल खिले' की तर्ज पर ही आमिर ख़ान और करिश्मा कपूर को लेकर 'राजा हिंदुस्तानी' बनाई गई थी।
साल 1965 मे शशि कपूर के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' रीलीज़ हुई। इस फ़िल्म में उनके साथ [[बलराज साहनी]], [[राजकुमार]] और [[सुनील दत्त]] जैसे नामी सितारे भी थे। इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद शशि कपूर की छवि रोमांटिक हीरो की बन गई और निर्माता-निर्देशकों ने अधिकतर फ़िल्मों में उनकी रूमानी छवि को भुनाया। साल 1965 से [[1976]] ई. के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में शशि कपूर ने जिन फ़िल्मों में काम किया, उनमें ज़्यादातर फ़िल्में हिट साबित हुईं, लेकिन [[अमिताभ बच्चन]] के आने के बाद परदे पर रोमांस का जादू चलाने वाले इस अभिनेता से दर्शकों ने मुंह मोड़ लिया और उनकी फ़िल्में असफल होने लगी।<ref name="mcc"/>
==फ़िल्म निर्माण कार्य==
अस्सी के दशक में शशि कपूर ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और 'जूनून' फ़िल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने 'कलयुग', '36 चौरंगी लेन', 'विजेता', 'उत्सव', और 'रमन' जैसी फ़िल्में बनाईं। हालाँकि यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा सफल नहीं हो पाईं, लेकिन इन फ़िल्मों को समीक्षकों ने काफ़ी पसंद किया। साल [[1991]] ई. में अपने मित्र अमिताभ बच्चन को लेकर उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'अजूबा' का निर्माण और निर्देशन किया। लेकिन कमज़ोर पटकथा की वजह से फ़िल्म नाकामयाब साबित हुई। हालाँकि यह फ़िल्म बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय रही।[[चित्र:Shashi-kapoor-amitabh-bachchan-shaan.jpg|thumb|left|[[अमिताभ बच्चन]] और शशि कपूर <br />फ़िल्म 'शान' का एक दृश्य]]
====सह-नायिकायें====
शशि कपूर के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी अभिनेत्री [[शर्मिला टैगोर]] के साथ काफ़ी पसंद की गई। यह जोड़ी सबसे पहले वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'वक़्त' में पसंद की गई थी। बाद में शशि कपूर और शर्मिला टैगोर ने आमने-सामने 'सुहाना सफर', 'माई लव', 'आ गले लग जा', 'पाप और पुण्य' और 'न्यू दिल्ली टाइम्स' जैसी फ़िल्मों में भी एक साथ काम किया। शशि कपूर की जोड़ी अभिनेत्री [[नन्दा]] के साथ भी काफ़ी पसंद की गई। यह जोड़ी सबसे पहले साल 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'चार दीवारी' में एक साथ नज़र आई थी। इसके बाद 'जब जब फूल खिले', 'मोहब्बत इसको कहते है', नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', 'जुआरी राजा साहब' और 'रूठा ना करो' में भी दोनो ने एक साथ काम किया था।<ref name="mcc"/>
इन सबके बीच शशि कपूर ने अपनी जोड़ी सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ भी बनाई और सफल रहे। यह जोड़ी हिट फ़िल्म 'दीवार' में एक साथ दिखाई दी थी। इस फ़िल्म में दो भाईयों के बीच टकराव को दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं। बाद में इस जोड़ी ने 'इमान धर्म', 'त्रिशूल', 'शान', 'कभी कभी', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'सुहाग', 'सिलसिला', 'नमक हलाल', 'काला पत्थर' और 'अकेला' में भी काम किया और दर्शको का मनोरंजन किया।
==प्रसिद्ध फ़िल्में==
शशि कपूर ने लगभग 200 फ़िल्मों में काम किया है। उनके करियर की कुछ अन्य फ़िल्में हैं- 'प्यार किए जा' ([[1966]]), 'हसीना मान जाएगी' ([[1968]]), 'प्यार का मौसम', 'कन्यादान' ([[1969]]), 'अभिनेत्री' ([[1970]]), 'शर्मिली' ([[1971]]), 'वचन', 'चोर मचाए शोर' ([[1974]]), 'फकीरा' ([[1978]]), 'हीरा लाल पन्ना लाल' ([[1978]]), 'सत्यंम शिवम सुंदरम' ([[1979]]), 'बेज़ुबान', 'क्रोधी', '[[क्रांति (1981 फ़िल्म)|क्रांति]]' ([[1981]]), 'घूंघरू' ([[1983]]), 'घर एक मंदिर' ([[1984]]), 'अलग अलग' ([[1985]]), 'इलज़ाम ([[1986]]), 'सिंदूर' ([[1987]]) और 'फर्ज की जंग' ([[1989]]) आदि।<ref name="mcc"/> नब्बे के दशक में स्वास्थ्य ख़राब रहने के कारण शशि कपूर ने फ़िल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया। साल [[1998]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'जिन्ना' उनके सिने कैरियर की अंतिम फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी।
==सम्मान तथा पुरस्कार==
[[चित्र:Shashi-Kapoor-1.jpg|thumb|वृद्धावस्था में शशि कपूर]]
* शशि कपूर को फ़िल्मफ़ेयर 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है।
* इसके अलावा शशि कपूर को 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का, 'बांबे जर्नलिस्ट एशोसिएशन अवार्ड', [[1984]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'न्यू दिल्ली टाइम्स' के लिए 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और 'बांबे फ़िल्म जर्नलिस्ट एशोसिएशन' ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और साल [[1993]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'मुहाफिज़' के लिए 'स्पेशल ज्यूरी' का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।
* [[भारत सरकार]] ने सन [[2011]] में इनको [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया।
==मृत्यु==
शशि कपूर का निधन [[4 दिसम्बर]], [[2017]] को [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ।


*इस दिग्गज अभिनेता के निधन पर [[नरेंद्र मोदी|प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी]] ने श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया- "शशि कपूर की बहुमुखी प्रतिभा उनकी फिल्मों और थिएटर में देखी जा सकती है। उनके शानदार अभिनय को आने वाली पीढ़ियों के लिए याद किया जाएगा। उनके निधन से दुःखी उनके [[परिवार]] और प्रशंसकों के लिए सांत्वनाएं।"<ref>{{cite web |url= http://hindi.timesnownews.com/bollywood/article/bollywood-vetran-actor-shashi-kapoor-died-at-age-of-79/139296|title= शशि कपूर की अंतिम व‍िदाई, अस्‍पताल से घर पहुंचा पार्थ‍िव शरीर|accessmonthday=05 दिसम्बर |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=timesnownews.com |language=हिंदी }}</ref>
*[[पश्चिम बंगाल]] की [[मुख्यमंत्री]] [[ममता बनर्जी]] ने शशि कपूर को महान करार देते हुए उनके निधन पर शोक जताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि- "इस अभिनेता को कई पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। मैं उनके निधन से दु:खी हूं।"
*[[रामनाथ कोविंद|राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद]] ने लिखा- "जाने-माने अभिनेता शशि कपूर के देहांत की खबर सुनकर बहुत दु:ख हुआ। निर्माता के तौर पर सार्थक सिनेमा में उनका सहयोग उल्लेखनीय है। उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं।"
*शशि कपूर के निधन की खबर सुनते ही महानायक [[अमिताभ बच्चन]] उन्हें श्रंद्धाजलि देने पहुंचे। देर रात [[ऐश्वर्या राय|ऐश्वर्या]]-[[अभिषेक बच्चन|अभिषेक]] के साथ अमिताभ बच्चन उनके मुंबई स्थित घर पहुंचे। शशि कपूर के साथ '[[दीवार (फ़िल्म)|दीवार]]', 'सुहाग', '[[त्रिशूल (फ़िल्म)|त्रिशूल]]' जैसी फिल्मों में साथ काम कर चुके अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर उन्हें याद किया। "हम जिंदगी को अपनी कहां तक सम्भालते, इस कीमती किताब का [[काग़ज़]] खराब था" रूमी जाफ़री की इस पंक्ति के साथ अमिताभ ने उन्हें श्रंद्धाजलि दी। अपने ब्लॉग पर अमिताभ बच्चन ने शशि कपूर से जुड़ी कई यादें साझा कीं। अमिताभ बच्चन ने उन्हें पहली बार मैगज़ीन पर देखने से लेकर पहली मुलाकात और आगे के सफर को याद किया। बच्चन जी ने बताया कि शशि कपूर की यादस्त बेहद शानदार थी। शशि कपूर को उन्होंने अपना खूबसूरत दोस्त, समधि बताया। ब्लॉग में अमिताभ ने इस बात का भी जिक्र किया कि शशि कपूर उन्हें 'बबुआ' बुलाते थे। 60 के दशक में जब अमिताभ बच्चन फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे थे, तब उन्होंने शशि कपूर की तस्वीर को पहली बार देखा था। मैगज़ीन में उनकी शानदार तस्वीर छपी थी और साथ ही लिखा था कि राज और शम्मी कपूर के छोटे भाई जल्द ही डेब्यू करने जा रहे हैं। इसे पढ़कर अभिनेता बनने की चाहत रखने वाले अमिताभ बच्चन के मन में ख्याल आया था- "यदि आसपास ऐसे आदमी हों, तो मेरा कोई चांस नहीं।"<ref>{{cite web |url= https://khabar.ndtv.com/news/bollywood/amitabh-bachchan-tribute-to-shashi-kapoor-1783644|title= मुझे बबुआ कहकर बुलाते थे शशि कपूर, अमिताभ बच्चन ने ब्लॉग लिखकर दी श्रद्धांजलि|accessmonthday=05 दिसम्बर |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=khabar.ndtv.com|language=हिंदी }}</ref>
*अभिनेता [[अजय देवगन]] ने ट्वीट किया- "शशि कपूर जी आपको भुलाया नहीं जा सकता।"
*अभिनेता [[अक्षय कुमार]] ने लिखा- "सिनेमा में आपका उल्लेखनीय योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।"
*क्रिकेटर [[वीरेंद्र सहवाग]] ने शशि कपूर का लोकप्रिय डायलॉग 'मेरे पास मां है' ट्वीट कर उन्होंने श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि- "आप आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।"<ref>{{cite web |url= http://www.bbc.com/hindi/social-42221319|title= शशि कपूर की मृत्यु|accessmonthday=05 दिसम्बर |accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=timesnownews.com |language=हिंदी }}</ref>
==समाचार==
; 23 मार्च, 2015 सोमवार
====शशि कपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार की घोषणा====
[[भारत सरकार]] ने 23 मार्च, 2015 को मशहूर फ़िल्म अभिनेता और निर्माता शशि कपूर को फ़िल्मों में उनके योगदान के लिए [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] देने की घोषणा की। शशि कपूर के भतीजे मशहूर अभिनेता ऋषि कपूर ने कहा, "वो कपूर परिवार के तीसरे सदस्य हैं जिन्हें ये पुरस्कार मिला है। मेरे दादा [[पृथ्वीराज कपूर]], मेरे पिता [[राज कपूर]] को और अब मेरे चाचा [[शशि कपूर]] को ये पुरस्कार मिला है।"
ऋषि कपूर ने कहा, "मैं अपने परिवार की तरफ़ से भारत सरकार और भारत की जनता का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने हमारे योगदान को सराहा है।" अभिनेता के रूप में 'जब जब फूल खिले', 'आ गले लग जा', 'रोटी, कपड़ा और मकान', 'शर्मीली', '[[दीवार (फ़िल्म)|दीवार]]', 'कभी कभी' और 'सिलसिला' उनकी प्रमुख फ़िल्में रहीं।
; समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2015/03/150323_shashi_kapoor_dada_saheb_falke_award_rns बीबीसी]
*[http://aajtak.intoday.in/story/shashi-kapoor-chosen-for-the-prestigious-dada-saheb-phalke-award-1-804560.html आजतक]
*[http://khabar.ndtv.com/news/filmy/shashi-kapoor-to-receive-dadasaheb-phalke-award-748980 एनडीटीवी इंडिया]


 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
{{फ़िल्म निर्माता और निर्देशक}}{{अभिनेता}}
[[Category:अभिनेता]][[Category:फ़िल्म निर्देशक]][[Category:सिनेमा]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:अभिनेता]][[Category:अभिनेता]]
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]

05:20, 18 मार्च 2018 के समय का अवतरण

शशि कपूर
पूरा नाम बलबीर राज कपूर
प्रसिद्ध नाम शशि कपूर
जन्म 18 मार्च, 1938
जन्म भूमि कोलकाता, भारत
मृत्यु 4 दिसम्बर, 2017
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी कपूर
पति/पत्नी जेनिफ़र केण्डेल
संतान कुणाल कपूर, करण कपूर और संजना कपूर
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'वक़्त', 'जब जब फूल खिले', 'सुहाना सफर', 'माई लव', 'आ गले लग जा', 'पाप और पुण्य', 'मुहब्बत इसको कहते हैं', 'हसीना मान जायेगी', 'रूठा न करो', 'कन्यादान', 'शर्मिली', 'फ़कीरा', 'चोर मचाए शोर', 'सत्यम शिवम सुन्दरम' आदि।
विद्यालय 'डॉन बास्को स्कूल', मुम्बई
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्म भूषण (2011), 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार', 'बांबे जर्नलिस्ट एशोसिएशन अवार्ड'
प्रसिद्धि रोमांटिक अभिनेता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अस्सी के दशक में शशि कपूर ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और 'जूनून' फ़िल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने 'कलयुग', '36 चौरंगी लेन', 'विजेता', 'उत्सव', और 'रमन' जैसी फ़िल्में बनाईं।
अद्यतन‎

शशि कपूर (अंग्रेज़ी: Shashi Kapoor, जन्म- 18 मार्च, 1938, कोलकाता; मृत्यु- 4 दिसम्बर, 2017, मुम्बई) हिन्दी सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक थे। वे ऐसे अभिनेताओं में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने अपने सदाबहार अभिनय से लगभग चार दशक तक हिन्दी सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। कोलकाता में जन्मे शशि कपूर का असली नाम 'बलबीर राज कपूर' था। उनका रुझान बचपन से ही फ़िल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राजकपूर तथा शम्मी कपूर पहले से ही फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता थे और प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर थे। उनके पिता अगर चाहते तो वह उन्हें लेकर फ़िल्म बना सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि शशि कपूर स्वयं ही संघर्ष करें और अपनी मेहनत से ही अभिनेता बनें। पिता की इस बात पर शशि कपूर पूरी तरह खरे उतरे थे।

शिक्षा तथा अभिनय की शुरुआत

अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई मुंबई के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया था।

शशि कपूर

उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएँ निभाईं। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' (1948 ई.) और 'आवारा' (1951 ई.) में भूमिकाएँ दीं। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था।

जेनिफ़र से भेंट

जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों ब्रिटेन की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' भारत दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी जेनिफ़र से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा।

शशि कपूर अपने परिवार (पुत्र- कुणाल और करन, पुत्री- संजना और पत्नी जेनिफ़र) के साथ

इसी दौरान जेनिफ़र ने हिन्दी भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे।[1]

विवाह

जेनिफ़र उम्र में शशि कपूर से बड़ी थीं। मजे की बात तो यह थी कि मित्र, प्रेमिका और फिर पत्नी बनने वाली यह युवती अक्सर नाटक में शशि कपूर की माँ का किरदार बखूबी निभा रही थी। दरअसल, सिंगापुर, मलाया और हांगकांग की यात्रा के दौरान दोनों को स्टेज पर न केवल काम करने का बेहतर अवसर मिला, बल्कि घूमने-फिरने का भी खूब मौक़ा मिला। जेनिफ़र के इस साथ ने जहाँ भारतीय शशि कपूर को इंग्लिश मैन बना दिया, वहीं उन्होंने शशि से भारतीय रहन-सहन और तौर-तरीकों के बारे भी में बहुत कुछ सीखा-जाना। ब्रेड की जगह चपाती खाना और बनाना भी सीखा। जब मुंबई लौटे, तो मिस्टर केण्डेल की बेटी से उनका रिश्ता पक्का हो चुका था। पिता पृथ्वीराज कपूर को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। आखिर वे उनके मित्र की बेटी थीं। 1958 में शशि कपूर ने 20 वर्ष की उम्र में जेनिफ़र केण्डेल से विवाह कर लिया। विवाह विधि-विधान से पृथ्वीराज कपूर के मुंबई के 'माटुंगा फ़्लैट' में हुआ।

अमिताभ बच्चन, निरुपा राय और शशि कपूर
फ़िल्म दीवार का एक दृश्य

शुरुआती असफलता

शशि कपूर ने नायक के रुप में सिने कैरियर की शुरुआत साल 1961 ई. में यश चोपडा की फ़िल्म 'धर्म पुत्र' से की थी। इसके बाद उन्हें विमल राय की फ़िल्म 'प्रेम पत्र' में भी काम करने का मौक़ा मिला, लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों ही फ़िल्में असफल साबित हुईं। इसके बाद शशि कपूर ने 'मेंहदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलीडे इन बांम्बे' जैसी फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन यह फ़िल्में भी टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गईं।[2]

सफलता

फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' में शशि कपूर

साल 1965 ई. शशि कपूर के सिने कैरियर का अहम साल साबित हुआ। इस साल उनकी 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी ने न सिर्फ़ अभिनेत्री नंदा को, बल्कि गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को शोहरत की बुंलदियों पर पहुँचा। इस फ़िल्म की भारी सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अखियाँ मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का, 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। फ़िल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अह्म भूमिका निभाई थी। नब्बे के दशक में 'जब जब फूल खिले' की तर्ज पर ही आमिर ख़ान और करिश्मा कपूर को लेकर 'राजा हिंदुस्तानी' बनाई गई थी। साल 1965 मे शशि कपूर के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' रीलीज़ हुई। इस फ़िल्म में उनके साथ बलराज साहनी, राजकुमार और सुनील दत्त जैसे नामी सितारे भी थे। इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद शशि कपूर की छवि रोमांटिक हीरो की बन गई और निर्माता-निर्देशकों ने अधिकतर फ़िल्मों में उनकी रूमानी छवि को भुनाया। साल 1965 से 1976 ई. के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में शशि कपूर ने जिन फ़िल्मों में काम किया, उनमें ज़्यादातर फ़िल्में हिट साबित हुईं, लेकिन अमिताभ बच्चन के आने के बाद परदे पर रोमांस का जादू चलाने वाले इस अभिनेता से दर्शकों ने मुंह मोड़ लिया और उनकी फ़िल्में असफल होने लगी।[2]

फ़िल्म निर्माण कार्य

अस्सी के दशक में शशि कपूर ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और 'जूनून' फ़िल्म बनाई। इसके बाद उन्होंने 'कलयुग', '36 चौरंगी लेन', 'विजेता', 'उत्सव', और 'रमन' जैसी फ़िल्में बनाईं। हालाँकि यह फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा सफल नहीं हो पाईं, लेकिन इन फ़िल्मों को समीक्षकों ने काफ़ी पसंद किया। साल 1991 ई. में अपने मित्र अमिताभ बच्चन को लेकर उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'अजूबा' का निर्माण और निर्देशन किया। लेकिन कमज़ोर पटकथा की वजह से फ़िल्म नाकामयाब साबित हुई। हालाँकि यह फ़िल्म बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय रही।

अमिताभ बच्चन और शशि कपूर
फ़िल्म 'शान' का एक दृश्य

सह-नायिकायें

शशि कपूर के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के साथ काफ़ी पसंद की गई। यह जोड़ी सबसे पहले वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'वक़्त' में पसंद की गई थी। बाद में शशि कपूर और शर्मिला टैगोर ने आमने-सामने 'सुहाना सफर', 'माई लव', 'आ गले लग जा', 'पाप और पुण्य' और 'न्यू दिल्ली टाइम्स' जैसी फ़िल्मों में भी एक साथ काम किया। शशि कपूर की जोड़ी अभिनेत्री नन्दा के साथ भी काफ़ी पसंद की गई। यह जोड़ी सबसे पहले साल 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'चार दीवारी' में एक साथ नज़र आई थी। इसके बाद 'जब जब फूल खिले', 'मोहब्बत इसको कहते है', नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', 'जुआरी राजा साहब' और 'रूठा ना करो' में भी दोनो ने एक साथ काम किया था।[2] इन सबके बीच शशि कपूर ने अपनी जोड़ी सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ भी बनाई और सफल रहे। यह जोड़ी हिट फ़िल्म 'दीवार' में एक साथ दिखाई दी थी। इस फ़िल्म में दो भाईयों के बीच टकराव को दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं। बाद में इस जोड़ी ने 'इमान धर्म', 'त्रिशूल', 'शान', 'कभी कभी', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'सुहाग', 'सिलसिला', 'नमक हलाल', 'काला पत्थर' और 'अकेला' में भी काम किया और दर्शको का मनोरंजन किया।

प्रसिद्ध फ़िल्में

शशि कपूर ने लगभग 200 फ़िल्मों में काम किया है। उनके करियर की कुछ अन्य फ़िल्में हैं- 'प्यार किए जा' (1966), 'हसीना मान जाएगी' (1968), 'प्यार का मौसम', 'कन्यादान' (1969), 'अभिनेत्री' (1970), 'शर्मिली' (1971), 'वचन', 'चोर मचाए शोर' (1974), 'फकीरा' (1978), 'हीरा लाल पन्ना लाल' (1978), 'सत्यंम शिवम सुंदरम' (1979), 'बेज़ुबान', 'क्रोधी', 'क्रांति' (1981), 'घूंघरू' (1983), 'घर एक मंदिर' (1984), 'अलग अलग' (1985), 'इलज़ाम (1986), 'सिंदूर' (1987) और 'फर्ज की जंग' (1989) आदि।[2] नब्बे के दशक में स्वास्थ्य ख़राब रहने के कारण शशि कपूर ने फ़िल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया। साल 1998 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जिन्ना' उनके सिने कैरियर की अंतिम फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई थी।

सम्मान तथा पुरस्कार

वृद्धावस्था में शशि कपूर
  • शशि कपूर को फ़िल्मफ़ेयर 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है।
  • इसके अलावा शशि कपूर को 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का, 'बांबे जर्नलिस्ट एशोसिएशन अवार्ड', 1984 में प्रदर्शित फ़िल्म 'न्यू दिल्ली टाइम्स' के लिए 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और 'बांबे फ़िल्म जर्नलिस्ट एशोसिएशन' ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और साल 1993 में प्रदर्शित फ़िल्म 'मुहाफिज़' के लिए 'स्पेशल ज्यूरी' का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।
  • भारत सरकार ने सन 2011 में इनको पद्म भूषण से सम्मानित किया।

मृत्यु

शशि कपूर का निधन 4 दिसम्बर, 2017 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ।

  • इस दिग्गज अभिनेता के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया- "शशि कपूर की बहुमुखी प्रतिभा उनकी फिल्मों और थिएटर में देखी जा सकती है। उनके शानदार अभिनय को आने वाली पीढ़ियों के लिए याद किया जाएगा। उनके निधन से दुःखी उनके परिवार और प्रशंसकों के लिए सांत्वनाएं।"[3]
  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शशि कपूर को महान करार देते हुए उनके निधन पर शोक जताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि- "इस अभिनेता को कई पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। मैं उनके निधन से दु:खी हूं।"
  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लिखा- "जाने-माने अभिनेता शशि कपूर के देहांत की खबर सुनकर बहुत दु:ख हुआ। निर्माता के तौर पर सार्थक सिनेमा में उनका सहयोग उल्लेखनीय है। उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं।"
  • शशि कपूर के निधन की खबर सुनते ही महानायक अमिताभ बच्चन उन्हें श्रंद्धाजलि देने पहुंचे। देर रात ऐश्वर्या-अभिषेक के साथ अमिताभ बच्चन उनके मुंबई स्थित घर पहुंचे। शशि कपूर के साथ 'दीवार', 'सुहाग', 'त्रिशूल' जैसी फिल्मों में साथ काम कर चुके अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर उन्हें याद किया। "हम जिंदगी को अपनी कहां तक सम्भालते, इस कीमती किताब का काग़ज़ खराब था" रूमी जाफ़री की इस पंक्ति के साथ अमिताभ ने उन्हें श्रंद्धाजलि दी। अपने ब्लॉग पर अमिताभ बच्चन ने शशि कपूर से जुड़ी कई यादें साझा कीं। अमिताभ बच्चन ने उन्हें पहली बार मैगज़ीन पर देखने से लेकर पहली मुलाकात और आगे के सफर को याद किया। बच्चन जी ने बताया कि शशि कपूर की यादस्त बेहद शानदार थी। शशि कपूर को उन्होंने अपना खूबसूरत दोस्त, समधि बताया। ब्लॉग में अमिताभ ने इस बात का भी जिक्र किया कि शशि कपूर उन्हें 'बबुआ' बुलाते थे। 60 के दशक में जब अमिताभ बच्चन फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे थे, तब उन्होंने शशि कपूर की तस्वीर को पहली बार देखा था। मैगज़ीन में उनकी शानदार तस्वीर छपी थी और साथ ही लिखा था कि राज और शम्मी कपूर के छोटे भाई जल्द ही डेब्यू करने जा रहे हैं। इसे पढ़कर अभिनेता बनने की चाहत रखने वाले अमिताभ बच्चन के मन में ख्याल आया था- "यदि आसपास ऐसे आदमी हों, तो मेरा कोई चांस नहीं।"[4]
  • अभिनेता अजय देवगन ने ट्वीट किया- "शशि कपूर जी आपको भुलाया नहीं जा सकता।"
  • अभिनेता अक्षय कुमार ने लिखा- "सिनेमा में आपका उल्लेखनीय योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।"
  • क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने शशि कपूर का लोकप्रिय डायलॉग 'मेरे पास मां है' ट्वीट कर उन्होंने श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि- "आप आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।"[5]

समाचार

23 मार्च, 2015 सोमवार

शशि कपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार की घोषणा

भारत सरकार ने 23 मार्च, 2015 को मशहूर फ़िल्म अभिनेता और निर्माता शशि कपूर को फ़िल्मों में उनके योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की। शशि कपूर के भतीजे मशहूर अभिनेता ऋषि कपूर ने कहा, "वो कपूर परिवार के तीसरे सदस्य हैं जिन्हें ये पुरस्कार मिला है। मेरे दादा पृथ्वीराज कपूर, मेरे पिता राज कपूर को और अब मेरे चाचा शशि कपूर को ये पुरस्कार मिला है।" ऋषि कपूर ने कहा, "मैं अपने परिवार की तरफ़ से भारत सरकार और भारत की जनता का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने हमारे योगदान को सराहा है।" अभिनेता के रूप में 'जब जब फूल खिले', 'आ गले लग जा', 'रोटी, कपड़ा और मकान', 'शर्मीली', 'दीवार', 'कभी कभी' और 'सिलसिला' उनकी प्रमुख फ़िल्में रहीं।

समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बच्चन, श्रीवास्तव। मेरे जीवनसाथी/शशि कपूर-जेनिफर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2012।
  2. 2.0 2.1 2.2 2.3 सदाबहार अभिनेता है शशि कपूर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2012।
  3. शशि कपूर की अंतिम व‍िदाई, अस्‍पताल से घर पहुंचा पार्थ‍िव शरीर (हिंदी) timesnownews.com। अभिगमन तिथि: 05 दिसम्बर, 2017।
  4. मुझे बबुआ कहकर बुलाते थे शशि कपूर, अमिताभ बच्चन ने ब्लॉग लिखकर दी श्रद्धांजलि (हिंदी) khabar.ndtv.com। अभिगमन तिथि: 05 दिसम्बर, 2017।
  5. शशि कपूर की मृत्यु (हिंदी) timesnownews.com। अभिगमन तिथि: 05 दिसम्बर, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख