"जगदीश चंद्र बोस": अवतरणों में अंतर

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'''जगदीश चंद्र बोस / J. C. Bose'''<br />
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==परिचय==
|पूरा नाम=श्री जगदीश चन्द्र बोस
श्री जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 में ढाका जिले के फरीदपुर ज़िले के माइमसिंह गांव में हुआ था, जो कि अब बंगला देश का भाग है।
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'''जगदीश चंद्र बोस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jagdish Chandra Bose'', जन्म- [[30 नवंबर]], [[1858]], मेमनसिंह गाँव, बंगाल (वर्तमान [[बांग्लादेश]]); मृत्यु- [[23 नवंबर]], [[1937]], गिरिडीह, बंगाल (वर्तमान [[बांग्लादेश]])) [[भारत]] के प्रसिद्ध भौतिकविद् तथा पादपक्रिया वैज्ञानिक थे। जगदीश चंद्र बोस ने कई महान् ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित विषयों पर आधारित हैं, जैसे- सजीव तथा निर्जीव की अभिक्रियाएँ ([[1902]]), वनस्पतियों की अभिक्रिया ([[1906]]), पौधों की प्रेरक यांत्रिकी ([[1926]]) इत्यादि।
==शिक्षा==
==शिक्षा==
ग्यारह वर्ष की आयु तक गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के बाद में ये कलकत्ता आ गये और 'सेंट जेवियर स्कूल' में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को 'भौतिक शास्त्र' के अध्ययन के लिए प्रेरित किया।
जगदीश चंद्र बोस ने ग्यारह वर्ष की आयु तक गाँव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद ये [[कोलकाता|कलकत्ता]] आ गये और 'सेंट जेवियर स्कूल' में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को 'भौतिक शास्त्र' के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा के लिए [[लंदन]] चले गए। मगर स्वास्थ्य के ख़राब रहने की वजह से इन्होंने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार छोड़ दिया और कैम्ब्रिज के 'क्राइस्ट महाविद्यालय' से बी. ए. की डिग्री ले ली।
भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ्य के खराब रहने की वजह से इन्होंने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार छोड़ दिया और कैम्ब्रिज के 'क्राइस्ट महाविद्यालय' से बी. ए. की डिग्री ले ली।
==अध्यापन==
==अध्यापन==
वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहां वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज भी हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। '''बोस के ही कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने।
जगदीश चंद्र बोस वर्ष [[1885]] में स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहाँ वह [[1915]] तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज़ शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज़ भी हो गया था। इस कर्ज़ को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र [[सत्येंद्रनाथ बोस]] आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने। प्रेसिडेंसी कॉलेज से सेवानिवृत्त होने पर [[1917]] ई. में इन्होंने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट, कलकत्ता की स्थापना की और [[1937]] तक इसके निदेशक रहे।
==प्रयोग और सफलता==
==प्रयोग और सफलता==
*जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।  
*जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।  
*लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैंगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था।  
*लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैंगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था।  
*मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।
*मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही [[1885]] में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।
*आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था।  
*आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी [[सदी]] के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था।  
*बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई।
*बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि [[1944]] में हुई।
*इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।
*इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।
=='नाइट' की उपाधि==
=='नाइट' की उपाधि==
1917 में जगदीश चंद्र बोस को "नाइट" (Knight) की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फैलो चुन लिए गए। बोस ने अपना पूरा शोधकार्य बिना किसी अच्छे (महगें) उपकरण और प्रयोगशाला के किया था, इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे। 'बोस इंस्टीट्यूट' (बोस विज्ञान मंदिर) इसी विचार से प्रेरित है जो विज्ञान में शोध कार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।
*[[1917]] में जगदीश चंद्र बोस को "नाइट" की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फैलो चुन लिए गए।  
*बोस ने अपना पूरा शोधकार्य किसी अच्छे (महगें) उपकरण और प्रयोगशाला से नहीं किया था, इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे।  
*'बोस इंस्टीट्यूट' (बोस विज्ञान मंदिर) इसी विचार से प्रेरित है जो विज्ञान में शोध कार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।
==मृत्यु==
जगदीश चंद्र बोस की [[23 नवंबर]], [[1937]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के [[गिरिडीह|गिरिडीह नगर]] में मृत्यु हुई।




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==संबंधित लेख==
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08:28, 30 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

जगदीश चंद्र बोस
पूरा नाम श्री जगदीश चन्द्र बोस
जन्म 30 नवंबर सन् 1858
जन्म भूमि मेमनसिंह गाँव बंगाल (अब बांग्लादेश)
मृत्यु 23 नवंबर, सन् 1937
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भौतिकी, जीवभौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, पुरातत्त्व, बांग्लासाहित्य, बांग्ला विज्ञानकथाएँ।
विषय भौतिकी एवं जीव विज्ञान
खोज रेडियो, मिलीमीटर तरंगें, क्रेस्कोग्राफ़
शिक्षा स्नातक
विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, क्राइस्ट महाविद्यालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन विश्वविद्यालय।
पुरस्कार-उपाधि नाइट, 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फ़ॅलोशिप
नागरिकता भारतीय-ब्रिटिश

जगदीश चंद्र बोस (अंग्रेज़ी: Jagdish Chandra Bose, जन्म- 30 नवंबर, 1858, मेमनसिंह गाँव, बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश); मृत्यु- 23 नवंबर, 1937, गिरिडीह, बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश)) भारत के प्रसिद्ध भौतिकविद् तथा पादपक्रिया वैज्ञानिक थे। जगदीश चंद्र बोस ने कई महान् ग्रंथ भी लिखे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित विषयों पर आधारित हैं, जैसे- सजीव तथा निर्जीव की अभिक्रियाएँ (1902), वनस्पतियों की अभिक्रिया (1906), पौधों की प्रेरक यांत्रिकी (1926) इत्यादि।

शिक्षा

जगदीश चंद्र बोस ने ग्यारह वर्ष की आयु तक गाँव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद ये कलकत्ता आ गये और 'सेंट जेवियर स्कूल' में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को 'भौतिक शास्त्र' के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ्य के ख़राब रहने की वजह से इन्होंने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार छोड़ दिया और कैम्ब्रिज के 'क्राइस्ट महाविद्यालय' से बी. ए. की डिग्री ले ली।

अध्यापन

जगदीश चंद्र बोस वर्ष 1885 में स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहाँ वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज़ शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज़ भी हो गया था। इस कर्ज़ को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी ज़मीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने। प्रेसिडेंसी कॉलेज से सेवानिवृत्त होने पर 1917 ई. में इन्होंने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट, कलकत्ता की स्थापना की और 1937 तक इसके निदेशक रहे।

प्रयोग और सफलता

  • जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।
  • लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैंगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था।
  • मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।
  • आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था।
  • बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई।
  • इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।

'नाइट' की उपाधि

  • 1917 में जगदीश चंद्र बोस को "नाइट" की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फैलो चुन लिए गए।
  • बोस ने अपना पूरा शोधकार्य किसी अच्छे (महगें) उपकरण और प्रयोगशाला से नहीं किया था, इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे।
  • 'बोस इंस्टीट्यूट' (बोस विज्ञान मंदिर) इसी विचार से प्रेरित है जो विज्ञान में शोध कार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।

मृत्यु

जगदीश चंद्र बोस की 23 नवंबर, 1937 को बंगाल के गिरिडीह नगर में मृत्यु हुई।


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