"चौंको मत मेरे दोस्त -कन्हैयालाल नंदन": अवतरणों में अंतर
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चौंको मत मेरे दोस्त | चौंको मत मेरे दोस्त | ||
अब | अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती। | ||
पांच साल का रहा होऊँगा मैं, | पांच साल का रहा होऊँगा मैं, | ||
जब मैंने चलती हुई रेलगाड़ी पर से | जब मैंने चलती हुई रेलगाड़ी पर से | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
जवाब में मैंने देखा था कि | जवाब में मैंने देखा था कि | ||
मेरे पिताजी की आँखें चमकी थीं। | मेरे पिताजी की आँखें चमकी थीं। | ||
और वे मुस्करा कर बोले थे,बेटा! | और वे मुस्करा कर बोले थे, बेटा! | ||
पेड़ अपनी | पेड़ अपनी ज़मीन नहीं छोड़ते। | ||
और तब मेरे बालमन में एक दूसरा सवाल उछला था | और तब मेरे बालमन में एक दूसरा सवाल उछला था | ||
कि पेड़ ज़मीन को नहीं छोड़ते | कि पेड़ ज़मीन को नहीं छोड़ते | ||
पंक्ति 60: | पंक्ति 60: | ||
एक बार, | एक बार, | ||
मुझसे और कहा था कि | मुझसे और कहा था कि | ||
बेटा ,मैंने अपने जीवन भर | बेटा, मैंने अपने जीवन भर | ||
अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी | अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी | ||
हो सके तो तुम भी न छोड़ना। | हो सके तो तुम भी न छोड़ना। | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 66: | ||
जिसे मेरे पिता ने देखा था। | जिसे मेरे पिता ने देखा था। | ||
रफ़्तार की उस पहली साक्षी से लेकर | |||
इन पचास सालों के बीच की यात्राओं में | इन पचास सालों के बीच की यात्राओं में | ||
मैंने | मैंने हज़ारों किलोमीटर ज़मीन अपने पैरों | ||
के नीचे से सरकते देखी है। | के नीचे से सरकते देखी है। | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 74: | ||
ज़मीन का दामन थामकर दौड़ते हुए भी | ज़मीन का दामन थामकर दौड़ते हुए भी | ||
अपनी यात्रा के हर पड़ाव पर नयी ज़मीन से ही पड़ा है पाला | अपनी यात्रा के हर पड़ाव पर नयी ज़मीन से ही पड़ा है पाला | ||
ज़मीन जिसे अपनी कह | ज़मीन जिसे अपनी कह सके, | ||
उसने कोई रास्ता नहीं निकाला। | उसने कोई रास्ता नहीं निकाला। | ||
कैसे कहूँ कि | कैसे कहूँ कि | ||
विरसे में मैंने यात्राएँ ही पाया है | विरसे में मैंने यात्राएँ ही पाया है | ||
और पिता का वचन जब-जब मुझे याद आया है | और पिता का वचन जब-जब मुझे याद आया है | ||
मैंने अपनी | मैंने अपनी ज़मीन के मोह में सहा है | ||
वापसी यात्राओं का दर्द। | वापसी यात्राओं का दर्द। | ||
और देखा | और देखा | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 95: | ||
सुनकर चौंको मत मेरे दोस्त! | सुनकर चौंको मत मेरे दोस्त! | ||
अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती। | अब ज़मीन किसी का इंतज़ार नहीं करती। | ||
खुद | खुद ब खुद खिसक जाने के इंतज़ार में रहती है | ||
ज़मीन की इयत्ता अब इसी में सिमट गयी है | ज़मीन की इयत्ता अब इसी में सिमट गयी है | ||
कि कैसे वह | कि कैसे वह | ||
पंक्ति 112: | पंक्ति 112: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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13:30, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
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चौंको मत मेरे दोस्त |
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