"कथनी-करणी का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर
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जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै | जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल। | ||
पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै | पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥ | ||
पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद। | |||
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥ | |||
मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग। | |||
राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥ | |||
`कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई। | |||
बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाई॥ | |||
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। | |||
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ | |||
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड। | |||
जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥ | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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05:33, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल। |
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