"उदय प्रकाश": अवतरणों में अंतर
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उदय प्रकाश (जन्म : 1 जनवरी, 1952) चर्चित कवि, कथाकार, पत्रकार और | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=उदय|लेख का नाम=उदय (बहुविकल्पी)}} | ||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
|चित्र=Uday-Prakash.jpg | |||
|चित्र का नाम=उदय प्रकाश | |||
|पूरा नाम=उदय प्रकाश | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[1 जनवरी]], 1952 | |||
|जन्म भूमि=गाँव- सीतापुर, [[अनूपपुर ज़िला]], [[मध्य प्रदेश]] | |||
|मृत्यु= | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|अभिभावक= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|कर्म भूमि= | |||
|कर्म-क्षेत्र=कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार | |||
|मुख्य रचनाएँ=मोहनदास (कहानी), सुनो क़ारीगर, अबूतर कबूतर (दोनो कविता) | |||
|विषय= | |||
|भाषा=[[हिन्दी]] | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा=एम.ए. | |||
|पुरस्कार-उपाधि=[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओम प्रकाश सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, मुक्तिबोध सम्मान, द्विजदेव सम्मान, वनमाली सम्मान, पहल सम्मान आदि | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान='भारतीय कृषि का इतिहास' पर महत्त्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' के नाम से 'राष्ट्रीय चैनल' के लिए निर्देशित कर चुके हैं। | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथा लेखक रहे हैं। उदय प्रकाश ने सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार '[[विजयदान देथा]]' की कहानियों पर चर्चित लघु फ़िल्में 'प्रसार भारती' के लिए निर्मित और निर्देशित की हैं। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन={{अद्यतन|12:48, 2 अक्टूबर 2011 (IST)}} | |||
}} | |||
'''उदय प्रकाश''' (जन्म :[[1 जनवरी]], 1952) चर्चित कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार हैं। उदय प्रकाश [[हिन्दी साहित्य]] और संसार के प्रतिष्ठित और चर्चित कथाकार हैं। इनकी रचनाएं न केवल भारतीय [[भाषा|भाषाओं]], बल्कि कई विदेशी भाषाओं में अनुदित होकर लोकप्रिय हुई। उदय प्रकाश की कहानियों में जहां कविताओं जैसी रवानगी और सरसता है, वहीं वे समय की विसंगतियों की ओर बहत गहराई से ध्यान आकर्षित करती हैं। | |||
* [[रूस|रूसी]], [[अंग्रेजी]], [[जापान|जापानी]], [[डच भाषा|डच]] और [[जर्मनी|जर्मन भाषा]] में उनकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है और लगभग सभी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कविता संकलनों में उनकी कविताएं संग्रहीत हैं । 2004 में हॉलैंड के प्रख्यात 'अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सव' में वे भारतीय कवि के रूप में भाग ले चुके हैं। | |||
* इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फ़िल्में भी बन चुकी हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं। | |||
*उदय प्रकाश ने सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार '[[विजयदान देथा]]' की कहानियों पर चर्चित लघु फ़िल्में 'प्रसार भारती' के लिए निर्मित और निर्देशित की हैं। 'भारतीय कृषि का इतिहास' पर महत्त्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' के नाम से 'राष्ट्रीय चैनल' के लिए निर्देशित कर चुके हैं। | |||
==जन्म स्थान== | ==जन्म स्थान== | ||
[[भारत]] के प्रख्यात कवि, कथाकार, पत्रकार और | [[भारत]] के प्रख्यात कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार उदय प्रकाश का जन्म गाँव सीतापुर [[अनूपपुर ज़िला|ज़िला अनूपपुर]], [[मध्य प्रदेश]] में [[1 जनवरी]], 1952 में हुआ था। "मैं मध्यप्रदेश के अनूपपुर ज़िले के एक छोटे से गांव सीतापुर में पैदा हुआ। आज भी वहां मिट्टी के 18 घर हैं। हमारा घर पक्का और पुराना है। गांव के पीछे एक बहुत बडी [[सोन नदी]] बहती है। जहां से सोन का उद्गम है उसी से कुछ दूर [[नर्मदा]] का उद्गम है। [[अमरकंटक]] मेरे गांव से पैदल जाएं, तो 23 किलोमीटर दूर है। मेरा जन्म 1952 में हुआ तब वहां बिजली नहीं थी। हम लोग [[लालटेन]] और ढिबरी की रोशनी में पढते थे। पुल नहीं था, इसलिए गांव के सभी लोग तैरना जानते हैं। पांचवीं कक्षा के बाद नदी को तैर कर स्कूल जाना होता था। कलम, फाउण्टेन पेन यह सब बाद में आया। हम शुरू में लकडी की पाटी पर लिखते थे छठे दर्जे से [[अंग्रेज़ी]] पढाई जाती थी। मैं जहां पर था, वहां [[छत्तीसगढ़]] था और [[मध्य प्रदेश]] का सीमान्त है। मेरा गांव छत्तीसगढ़ सीमा में है। मेरी माँ भोजपुर की और पिता जी बघेल के थे। <ref>{{cite web |url=http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/2010-April/002469.html|title=उदयप्रकाश|accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}} </ref> | ||
उदय प्रकाश शुरुआती कई नौकरियों के बाद लंबे अरसे से लेखन की स्वायत्तशासी दुनिया से जुडे हैं। | उदय प्रकाश शुरुआती कई नौकरियों के बाद लंबे अरसे से लेखन की स्वायत्तशासी दुनिया से जुडे हैं। | ||
==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। नए युग के यथार्थ के निर्माण में उदय की कहानियों की ज़बर्दस्त भूमिका है। वैविध्यपूर्ण जीवनानुभवों से लैस उदय की कहानियों पर कदाचित जितनी असहमतियाँ और विवाद दर्ज किए गए उतनी किसी और की कहानियों पर नहीं। किन्तु सभी असहमतियों और विवादों को पीछे छोडते हुए उदय प्रकाश ने पश्चिमी मापदंड पर टिकी हिंदी आलोचना की | पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। नए युग के यथार्थ के निर्माण में उदय की कहानियों की ज़बर्दस्त भूमिका है। वैविध्यपूर्ण जीवनानुभवों से लैस उदय की कहानियों पर कदाचित जितनी असहमतियाँ और विवाद दर्ज किए गए उतनी किसी और की कहानियों पर नहीं। किन्तु सभी असहमतियों और विवादों को पीछे छोडते हुए उदय प्रकाश ने पश्चिमी मापदंड पर टिकी [[हिंदी]] आलोचना की कसौटियों के सामने सदैव एक चुनौती खड़ी की है। 'सुनो कारीगर', 'अबूतर कबूतर', 'रात में हारमोनियम' व 'एक भाषा हुआ करती है'- कविता संग्रहों और 'तिरिछ', 'दरियाई घोडा' और 'अंत में प्रार्थना', 'पालगोमरा का स्कूटर', 'दत्तात्रेय के दुख', 'पीली छतरी वाली लडकी', 'मैंगोसिल' व 'मोहनदास' जैसे कहानी संग्रहों के लेखक उदय प्रकाश ने कई लेखकों पर फ़िल्में बनाई हैं और बिज्जी की कहानियों पर धारावाहिक भी।<ref>{{cite web |url=http://www.srijangatha.com/%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%A81_2Jan2011|title=मैं कुम्हार ही हूँ, दर्जी नहीं – उदय प्रकाश|accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
;आत्मकथात्मक कृति | ;आत्मकथात्मक कृति | ||
“मोहनदास” उदय प्रकाश की आत्मकथात्मक कृति है। बहुत कम लोग जानते हैं कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं और विश्व की आधी दर्जन भाषाओं में अनूदित हो चुकी “मोहनदास” कहानी उदय प्रकाश ने तब लिखी थी, जब दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद के लिए उन्होंने इंटरव्यू दिया था और उन्हें वह नौकरी नहीं दी गयी थी। | “मोहनदास” उदय प्रकाश की '''आत्मकथात्मक कृति''' है। बहुत कम लोग जानते हैं कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं और विश्व की आधी दर्जन [[भाषा|भाषाओं]] में अनूदित हो चुकी “मोहनदास” कहानी उदय प्रकाश ने तब लिखी थी, जब [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद के लिए उन्होंने इंटरव्यू दिया था और उन्हें वह नौकरी नहीं दी गयी थी। | ||
तब उदय प्रकाश को नौकरी इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि चयन समिति के एक सदस्य को इस बात पर गहरा एतराज था कि उदय प्रकाश के पास | तब उदय प्रकाश को नौकरी इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि चयन समिति के एक सदस्य को इस बात पर गहरा एतराज था कि उदय प्रकाश के पास पी.एच.डी. की डिग्री नहीं है। हालांकि तब तक उदय प्रकाश की कहानियों और कविताओं पर देश भर के [[विश्वविद्यालय|विश्वविद्यालयों]] में आधे दर्जन से ज़्यादा पी.एच.डी. और एक दर्जन से ज़्यादा एम.फिल. की उपाधियां बांटी जा चुकी थीं। इसके अलावा कई विदेशी विश्वविद्यालयों के सिलेबस में उनकी कहानियां जगह पा चुकी थीं और वहां पढ़ायी जा रही थीं। | ||
==ब्लॉग== | ==ब्लॉग== | ||
शब्दों के अनूठे शिल्प में बुनी कविताओं और उससे भी ज्यादा अनूठे गद्य शिल्प के लिए जाने जाने वाले उदय प्रकाश का ब्लॉग की दुनिया में पदार्पण एक सुखद घटना है। | शब्दों के अनूठे शिल्प में बुनी कविताओं और उससे भी ज्यादा अनूठे गद्य शिल्प के लिए जाने जाने वाले उदय प्रकाश का ब्लॉग की दुनिया में पदार्पण एक सुखद घटना है। | ||
;सफर की शुरुआत : | ;सफर की शुरुआत : | ||
सन् 2005 में जब हिंदी में कोई ठीक से ब्लॉग का नाम भी नहीं जानता था, उदय प्रकाश ने अपने ब्लॉग की शुरुआत की, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चला। लंबे अंतराल के बाद अब फिर उस सफर की शुरुआत हुई है। जिन्होंने 'पालगोमरा का स्कूटर', 'वॉरेन हेस्टिंग्ज का सांड़' और ‘तिरिछ’ सरीखी कहानियाँ पढ़ी हैं और जो उनके लेखन से वाकिफ हैं, उन्हें ब्लॉग पर उदय जी के लिखे का | सन् 2005 में जब [[हिंदी]] में कोई ठीक से ब्लॉग का नाम भी नहीं जानता था, उदय प्रकाश ने अपने ब्लॉग की शुरुआत की, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चला। लंबे अंतराल के बाद अब फिर उस सफर की शुरुआत हुई है। जिन्होंने 'पालगोमरा का स्कूटर', 'वॉरेन हेस्टिंग्ज का सांड़' और ‘तिरिछ’ सरीखी कहानियाँ पढ़ी हैं और जो उनके लेखन से वाकिफ हैं, उन्हें ब्लॉग पर उदय जी के लिखे का ज़रूर इंतज़ार होगा। उनके ब्लॉग पर आई प्रतिक्रियाएँ भी यह बताती हैं। | ||
;खुला मंच | ;खुला मंच | ||
इस ब्लॉग की शुरुआत के पीछे उदय प्रकाश का मकसद एक ऐसे मंच की तलाश थी, जहाँ किन्हीं नियमों और प्रतिबंधों के बगैर उन्मुक्त होकर अपनी कलम को अभिव्यक्त किया जा सके, जहाँ कोई सेंसरशिप न हो, जो कि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में संभव नहीं है। उदय प्रकाश का मानना है कि एक सच्चा रचनाकार निर्बंध होकर अपने समय का सच लिखना चाहता है। पहले लेखक डायरियाँ लिखा करते थे। मुक्तिबोध की पुस्तक 'एक साहित्यिक की डायरी' बहुत प्रसिद्ध है। अब टेक्नोलॉजी ने हमें एक नया माध्यम दिया है। हिंदी में ब्लॉग की दुनिया का धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है। हमें अपनी बात व्यापक पैमाने पर लोगों तक पहुँचाने के लिए इस माध्यम का इस्तेमाल करना चाहिए। | इस ब्लॉग की शुरुआत के पीछे उदय प्रकाश का मकसद एक ऐसे मंच की तलाश थी, जहाँ किन्हीं नियमों और प्रतिबंधों के बगैर उन्मुक्त होकर अपनी कलम को अभिव्यक्त किया जा सके, जहाँ कोई सेंसरशिप न हो, जो कि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में संभव नहीं है। उदय प्रकाश का मानना है कि एक सच्चा रचनाकार निर्बंध होकर अपने समय का सच लिखना चाहता है। पहले लेखक डायरियाँ लिखा करते थे। [[मुक्तिबोध गजानन माधव|मुक्तिबोध]] की पुस्तक 'एक साहित्यिक की डायरी' बहुत प्रसिद्ध है। अब टेक्नोलॉजी ने हमें एक नया माध्यम दिया है। हिंदी में ब्लॉग की दुनिया का धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है। हमें अपनी बात व्यापक पैमाने पर लोगों तक पहुँचाने के लिए इस माध्यम का इस्तेमाल करना चाहिए। | ||
{{दाँयाबक्सा|पाठ='निजी स्वतंत्रता के आधुनिक विचार के लिए भी ब्लॉग की दुनिया में जगह है। ब्लॉग के माध्यम से कितने सार्थक काम और बहसें हो रही हैं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ब्लॉग लेखक को एक निजी किस्म की स्वतंत्रता देता है। उस स्पेस का इस्तेमाल लेखक अपने तरीके से निर्बंध होकर कर सकता है।'|विचारक=उदय प्रकाश}} | {{दाँयाबक्सा|पाठ='निजी स्वतंत्रता के आधुनिक विचार के लिए भी ब्लॉग की दुनिया में जगह है। ब्लॉग के माध्यम से कितने सार्थक काम और बहसें हो रही हैं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ब्लॉग लेखक को एक निजी किस्म की स्वतंत्रता देता है। उस स्पेस का इस्तेमाल लेखक अपने तरीके से निर्बंध होकर कर सकता है।'|विचारक=उदय प्रकाश}} | ||
हिंदी में ब्लॉगिंग के भविष्य के बारे में उदय प्रकाश का कहना है कि यदि यह माध्यम और सस्ता होकर बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुँचता है तो आने वाले कुछ वर्षों में ब्लॉगिंग के कुछ बड़े नतीजे भी सामने आ सकते हैं। यह ज्यादा सार्थक रूप में गंभीर सामाजिक और वैचारिक बहसों का मंच बन सकता है। जिस | हिंदी में ब्लॉगिंग के भविष्य के बारे में उदय प्रकाश का कहना है कि यदि यह माध्यम और सस्ता होकर बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुँचता है तो आने वाले कुछ [[वर्ष|वर्षों]] में ब्लॉगिंग के कुछ बड़े नतीजे भी सामने आ सकते हैं। यह ज्यादा सार्थक रूप में गंभीर सामाजिक और वैचारिक बहसों का मंच बन सकता है। जिस तेज़ीके साथ इंटरनेट और ब्लॉग का हिंदी में प्रसार हो रहा है, इस बात की पूरी संभावना हो सकती है। | ||
फिलहाल आप मुक्तिबोध से लेकर असद जैदी और कुँवर नारायण तक की कविताएँ उदय प्रकाश के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। मुक्तिबोध की एक शानदार अप्रकाशित कविता 'अगर तुम्हें सच्चाई का | फिलहाल आप मुक्तिबोध से लेकर 'असद जैदी' और '[[कुँवर नारायण]]' तक की कविताएँ उदय प्रकाश के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। मुक्तिबोध की एक शानदार अप्रकाशित कविता 'अगर तुम्हें सच्चाई का शौक़ है' का आनंद उदय प्रकाश के ब्लॉग पर उठाया जा सकता है।<ref>{{cite web |url= http://uday-prakash.blogspot.com/|title=उदय प्रकाश|accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
;मोहनदास | ;मोहनदास | ||
मोहनदास कहानी आज़ादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद | मोहनदास कहानी आज़ादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद दिलाती है कि सत्ता केंद्रिक व्यवस्था में एक निर्बल, सत्ताहीन और ग़रीब मनुष्य की अस्मिता तक उससे छीनी जा सकती है। पर यह कहानी प्रतिकार की, प्रतिरोध की कहानी नहीं है। इस कहानी को '''उत्तर आधुनिक कहानी''' के रूप में भी देखा और सराहा गया है। 'वर्तिका फ़िल्म्स' के लिए 'मज़हर कामरान' ने इस पर फ़िल्म बनाई है, जिसकी पटकथा, संवाद आदि ओम निश्चल ने लिखे हैं। हालाँकि फ़िल्म उस संवेदना को तो नहीं छू पाती, जिसे लक्ष्य कर कहानी लिखी गयी थी, लेकिन कहानी आज के हालात में एक मनुष्य की नियति का आख्यान तो रचती ही है। | ||
;कहानी | ;कहानी | ||
कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है। कहानी को सम्मान कभी मिला ही नहीं। शायद यह एक पुनर्विचार है हमारे समय के विद्वानों का जिन्होंने कहानी को वह प्रतिष्ठा दी है जिसकी वह हकदार रही है। चेखव ने तो कहानियाँ ही लिखीं, उपन्यास नहीं लिखे। | कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है। कहानी को सम्मान कभी मिला ही नहीं। शायद यह एक पुनर्विचार है हमारे समय के विद्वानों का जिन्होंने कहानी को वह प्रतिष्ठा दी है जिसकी वह हकदार रही है। चेखव ने तो कहानियाँ ही लिखीं, उपन्यास नहीं लिखे। [[प्रेमचंद]] अपनी कहानियों से ही लोकमान्य में जाने गए, [[गोदान]] आदि उपन्यासों से नहीं। '''निर्मल वर्मा''' की पहचान भी प्राथमिक तौर पर कहानी से ही बनी। तो इस समय के परिदृश्य कें केंद्र में कहानी है। | ||
;आलोचना | ;आलोचना | ||
हिंदी का अभिजन यानी इलीट वर्ग कहानी के निहितार्थ में नहीं जाता, वह युक्तियों के बारे में बात करता है। चंद्रकांता संतति की लोकप्रियता की क्या वजह है। कोई आलोचना आप उस पर दिखा सकते हैं जिससे प्रेरित होकर पाठकों ने उसे पढा हो। इस आख्यान की भी आख़िर अपनी कलायुक्तियाँ हैं जिनका जादू पाठक पर असर करता है। हम देशी विदेशी आलोचकों पर नजर डालें तो पाते हैं, उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। आलोचना का मक़सद मूल्यों का संधान करना है। यह | [[हिंदी]] का अभिजन यानी इलीट वर्ग कहानी के निहितार्थ में नहीं जाता, वह युक्तियों के बारे में बात करता है। [[चंद्रकांता संतति]] की लोकप्रियता की क्या वजह है। कोई आलोचना आप उस पर दिखा सकते हैं जिससे प्रेरित होकर पाठकों ने उसे पढा हो। इस आख्यान की भी आख़िर अपनी कलायुक्तियाँ हैं जिनका जादू पाठक पर असर करता है। हम देशी विदेशी आलोचकों पर नजर डालें तो पाते हैं, उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। आलोचना का मक़सद मूल्यों का संधान करना है। यह बड़ी साधना का काम है। [[भारत]] देश की [[संस्कृति]]-सभ्यता में एक से एक बडे कथाकार मौज़ूद हैं। पर हिंदी के बौद्धिक वर्ग के पास उस तैयारी का अभाव है जो किसी भी रचना के मूल्याँकन में प्रवृत्त होने की प्राथमिक योग्यता है। | ||
;मूलत | ;मूलत कवि | ||
मैं मूलत: कवि ही हूँ। इसको मैं भी जानता हूँ और बाक़ी लोग भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मज़ाक़ में कहा | मैं मूलत: कवि ही हूँ। इसको मैं भी जानता हूँ और बाक़ी लोग भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मज़ाक़ में कहा करता हूँ कि मैं एक ऐसा कुम्हार हूँ जिसने धोख़े से कभी एक कमीज़ सिल दी और अब उसे सब दर्जी कह रहे हैं। सच यह है कि मैं कुम्हार ही हूँ।<ref>{{cite web |url=http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/2010-April/002469.html|title=उदय प्रकाश|accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
==प्रकाशित कृतियाँ== | ==प्रकाशित कृतियाँ== | ||
{| width="100%" class="bharattable-pink" | |||
|-valign="top" | |||
| | |||
;कविता संग्रह : | ;कविता संग्रह : | ||
#सुनो क़ारीगर | #सुनो क़ारीगर | ||
#अबूतर कबूतर | #अबूतर कबूतर | ||
#रात में हारमोनियम | #रात में हारमोनियम | ||
#एक भाषा हुआ करती है | #एक भाषा हुआ करती है | ||
#कवि ने कहा | #कवि ने कहा | ||
;अनुवाद | |||
#इंदिरा गांधी की आख़िरी लड़ाई | |||
#कला अनुभव | |||
#लाल घास पर नीले घोड़े | |||
#रोम्यां रोलां का भारत | |||
| | |||
;कथा साहित्य: | ;कथा साहित्य: | ||
#दरियाई घोड़ा | #दरियाई घोड़ा | ||
#तिरिछ | #तिरिछ | ||
#दत्तात्रेय के दुख | #दत्तात्रेय के दुख | ||
#और अंत में प्रार्थना | #और अंत में प्रार्थना | ||
#पालगोमरा का स्कूटर | #पालगोमरा का स्कूटर | ||
#अरेबा | #अरेबा | ||
पंक्ति 46: | पंक्ति 92: | ||
#मैंगोसिल | #मैंगोसिल | ||
#पीली छतरी वाली लड़की | #पीली छतरी वाली लड़की | ||
| | |||
;निबंध और आलोचना संग्रह | ;निबंध और आलोचना संग्रह | ||
#नयी सदी का पंचतंत्र | #नयी [[सदी]] का [[पंचतंत्र]] | ||
#ईश्वर की आंख | #ईश्वर की आंख | ||
; | ;कृतियों का मंचन | ||
# | #तिरिछ<ref>प्रथम मंचन - राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रसन्ना के निर्देशन में।</ref> | ||
#लाल घास पर नीले घोड़े (अनुवाद)<ref> प्रथम मंचन - प्रसन्ना के निर्देशन में।</ref> | |||
#लाल घास पर नीले घोड़े | #वॉरेन हेस्टिंग्स का सान्ड पर नाटक<ref> प्रथम मंचन - अरविन्द गौड़ के निर्देशन में, अस्मिता नाटय संस्था द्वारा किया गया। यह नाटक [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] के '''भारत रंग महोत्सव''' व '''इन्डिया हैबिटैट सेन्टर''' में भी आयोजित हुआ है। 2001 से अब तक लगभग 80 प्रदर्शन हो चुके हैं।</ref> | ||
# | #और अंत में [[प्रार्थना]]<ref>प्रथम मंचन - अरुण पाण्डेय के निर्देशन में।</ref> | ||
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;अन्य भाषाओं में अनुवाद | ;अन्य भाषाओं में अनुवाद | ||
#Short Shorts Long Shots<ref> Translated by Robert A. Hueckstedt, Publisher Katha, New Delhi</ref> | #Short Shorts Long Shots<ref> Translated by Robert A. Hueckstedt, Publisher Katha, New Delhi</ref> | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 110: | ||
#Und am Ende ein Gebet<ref>Translated by Andre Penz</ref> | #Und am Ende ein Gebet<ref>Translated by Andre Penz</ref> | ||
#Der golden Gurtel<ref>Translated by Lothar Lutze</ref> | #Der golden Gurtel<ref>Translated by Lothar Lutze</ref> | ||
|} | |||
*उपरोक्त के अतिरिक्त इतालो कॉल्विनो, नेरूदा, येहुदा अमिचाई, फर्नांदो पसोवा, कवाफ़ी, लोर्का, ताद्युश रोज़ेविच, ज़ेग्जेव्येस्की, अलेक्सांद्र ब्लॉक आदि रचनाकारों के अनुवाद | |||
==सम्मान== | ==सम्मान== | ||
*1980 में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित, ओम प्रकाश सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, मुक्तिबोध सम्मान, साहित्यकार सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। | *[[1980]] में अपनी [[कविता]] 'तिब्बत' के लिए 'भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार' से सम्मानित, 'ओम प्रकाश सम्मान', 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार', 'मुक्तिबोध सम्मान', 'साहित्यकार सम्मान' प्राप्त कर चुके हैं। | ||
*2004 में | *[[2004]] में हॉलैंड के प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सव में वे भारतीय कवि के रूप में हिस्सा ले चुके हैं। | ||
*2010 में कहानी मोहन दास के लिये साहित्य अकादमी | *[[2010]] में 'कहानी मोहन दास' के लिये '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]'।<ref>{{cite web |url=http://www.anubhuti-hindi.org/kavi/u/udayprakash/index.htm |title=उदय प्रकाश |accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
{| class="bharattable-pink" | |||
|-valign="top" | |||
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* भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार | |||
* ओम प्रकाश सम्मान | |||
* श्रीकांत वर्मा पुरस्कार | |||
* मुक्तिबोध सम्मान | |||
* साहित्यकार सम्मान | |||
* द्विजदेव सम्मान | |||
* वनमाली सम्मान | |||
| | |||
* पहल सम्मान | |||
* SAARC Writers Award | |||
== | * PEN Grant for the translation of The Girl with the Golden Parasol, Trans. Jason Grunebaum | ||
* कृष्णबलदेव वैद सम्मान | |||
* महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार, 'तिरिछ अणि इतर कथा' अनु. जयप्रकाश सावंत | |||
* 2010 का [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], ('मोहन दास' के लिये) | |||
|} | |||
==उदय प्रकाश के कथन== | |||
<div style="width:100%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> | |||
{| width="100%" | |||
|+ style="background:#FAD9E1; border:thin solid #aaaaaa;"| उदय प्रकाश के कथन | |||
|} | |||
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{| class="bharattable-pink" border="1" width="98%" | |||
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*मैं मूलत: कवि हूं। मैंने बहुत सारी कविताएं लिखीं और चित्र भी बनाए हैं। मैंने कॉलेज समय में एक कहानी लिखी थी जो बहुत लोकप्रिय हुई। मैं समझता हूं कि कहानी के पाठक अधिक होते हैं और वह ज़्यादा लोगों तक पहुंचती है। उसे लोकप्रियता अधिक मिलती है। मैं लगभग इसी तरह का एक कुम्हार हूं जिसने कमीज सिल दी, तो लोग उसे दर्जी समझने लगे। लोग फिर सुराही लेने उसके पास नहीं जाएंगे, जबकि कुम्हार जानता है कि [[मिट्टी]] का काम वह ज़्यादा अच्छे तरीके से कर सकता है और उसमें ही ज़्यादा आनंद मिलता है। मेरे साथ यही है कि कवि होते हुए भी कहानी लिखकर समाज की सेवा कर रहा हूं। वरिष्ठ कवि [[केदारनाथ सिंह]] ने एक बार कहा भी है कि मेरी कहानियां दरअसल मेरी कविताओं का ही विस्तार हैं। कहानियां लिखते हुए मुझे भी नहीं लगता कि मैं कहानियां लिख रहा हूं, बल्कि जो काव्यात्मक संवेदना कविता में नहीं आ रही वह कहानियों में आ रही है। निर्मल वर्मा और ऎसे कई कहानीकारों के साथ भी लगभग यही रहा। उनकी कहानियां पढते हुए ऎसा लगता है जैसे कविताएं पढ रहे हैं। मैं कहानी लिखते हुए भी कवि हूं और कवि सदा कवि ही रहता है। | |||
* | *[[जर्मनी|जर्मन]] लोगों की [[भारत]] में गहरी रुचि है। मेरे व्याख्यान विभिन्न विषयों पर थे, लेकिन इंडोलोजी मुख्य विषय रहा। वहां भारत के [[नगरीकरण]] को लेकर बडी जिज्ञासाएं हैं। अपने प्रवास के दौरान मुझे कई छोटे-बडे 23 शहर-[[कस्बा|कस्बों]] और गांवों में व्याख्यान देने का मौक़ा मिला। मैंने यहां अपनी कहानी 'और अंत में प्रार्थना' को अपनी तरह से पढा तो लोगों ने ऎसा अनुभव किया जैसे यह उनके अतीत की कहानी हो, क्योंकि वहां के लोग भी 1943-45 में ऎसी ही बर्बरता से गुजरे हैं। कुछ संकेत वैश्विक होते हैं। मेरे कहानी संग्रह 'और अंत में प्रार्थना' को अवार्ड मिला है। इसका जर्मनी में अनुवाद वहीं के 29-30 साल के युवा लेखक आन्द्रे पेई ने किया है। | ||
*जीवन में आप जितना डूबेंगे उतना ही अच्छा लिख पाएंगे और ज़्यादा लोगों तक पहुंचेंगे। कोई चीज़ लिखना बिना जीवन जिए संभव नहीं है, क्योंकि इससे ही अनुभव-संसार बढता है। अगर आप अपने समय के मनुष्य के संकट और उसके यथार्थ को व्यक्त करेंगे जिसमें हर कोई जी रहा है, तो वह [[साहित्य]] अवश्य ही लोकप्रिय होगा। अगर साहित्य किसी बाज़ार या एक सीमित वर्ग को ध्यान में रखकर लिखा जा रहा है, तो बात अलग है। अगर कोई बडा उद्देश्य सामने रखकर साहित्य लिखा जाएगा तो उसका सम्मान होगा। | |||
*जीवन में आप जितना डूबेंगे उतना ही अच्छा लिख पाएंगे और | |||
*'मोहनदास' अपने समय के प्रश्नों को कुरेदता है। मोहनदास एक सचमुच का पात्र है। वह आज भी है एक दलित व्यक्ति पूरी मेहनत के साथ पढ-लिखकर मेरिट से आगे बढता है, लेकिन हमारी लोकतांत्रिक स्थितियों में आज भी ऎसे व्यक्तियों के लिए कोई ठिकाना नहीं है। एक नकली मोहनदास नौकरी पा लेता है और असली मोहनदास दर-दर भटकने को मजबूर है। ऎसे ही मैंने हर कृति में समय के सच और विडंबनाओं के बीच जीवन जीने की मजबूरियों को उद्घाटित किया है। | *'मोहनदास' अपने समय के प्रश्नों को कुरेदता है। मोहनदास एक सचमुच का पात्र है। वह आज भी है एक दलित व्यक्ति पूरी मेहनत के साथ पढ-लिखकर मेरिट से आगे बढता है, लेकिन हमारी लोकतांत्रिक स्थितियों में आज भी ऎसे व्यक्तियों के लिए कोई ठिकाना नहीं है। एक नकली मोहनदास नौकरी पा लेता है और असली मोहनदास दर-दर भटकने को मजबूर है। ऎसे ही मैंने हर कृति में समय के सच और विडंबनाओं के बीच जीवन जीने की मजबूरियों को उद्घाटित किया है। | ||
*'पीली छतरी वाली लडकी' का अनुवाद 29-30 वर्ष के एक युवा अमरीकन लेखक जीसोन ग्रूनबाम ने किया। इस अनुवाद के लिए उन्हें वर्ष 2005 का पेन यू.एस.ए. अनुवाद कोश सम्मान मिला। शिकागो | *'पीली छतरी वाली लडकी' का अनुवाद 29-30 वर्ष के एक युवा अमरीकन लेखक जीसोन ग्रूनबाम ने किया। इस अनुवाद के लिए उन्हें [[वर्ष]] 2005 का पेन यू.एस.ए. अनुवाद कोश सम्मान मिला। [[शिकागो]] में इस उपन्यास का लोकार्पण हुआ और इसे काफ़ी लोकप्रियता मिली। छात्र तो हर जगह इसे पसन्द करते हैं, क्योंकि प्रेम तो वैश्विक है। जीसोन हाल ही भारत आए तो उन्होंने बताया कि वे मेरे कहानी संग्रह 'मेंगोसिल' का अनुवाद कर रहे हैं। | ||
*अंग्रेजी में हम देखते हैं कि जो कुछ भी नहीं है उसी भाषा में सब अवार्ड मिलते चले जाते हैं। इस बार एक अच्छी बात यह हुई कि | *[[अंग्रेजी]] में हम देखते हैं कि जो कुछ भी नहीं है उसी भाषा में सब अवार्ड मिलते चले जाते हैं। इस बार एक अच्छी बात यह हुई कि साहित्य का तीसरा अवार्ड मेरी कृति 'और अंत में प्रार्थना' को मिला, जबकि इसमें अरविन्द अडिगा का अंग्रेजी उपन्यास भी था जिसे छठवां स्थान मिला। इससे हम कह सकते हैं कि चीनियों से तो हम काफ़ी पीछे रहे लेकिन [[हिन्दी साहित्य]] ने अंग्रेजी को काफ़ी पीछे छोड दिया है। | ||
साहित्य का तीसरा अवार्ड मेरी कृति 'और अंत में प्रार्थना' को मिला, जबकि इसमें अरविन्द अडिगा का अंग्रेजी उपन्यास भी था जिसे छठवां स्थान मिला। इससे हम कह सकते हैं कि चीनियों से तो हम | |||
*कहने वाले कह रहे हैं कि आने वाला समय हिन्दी भाषा को नष्ट और भ्रष्ट कर रहा है, तो ऎसा कुछ नहीं है। हिन्दी भारत की | *कहने वाले कह रहे हैं कि आने वाला समय [[हिन्दी भाषा]] को नष्ट और भ्रष्ट कर रहा है, तो ऎसा कुछ नहीं है। हिन्दी भारत की ताकत रही है। हर परिवर्तन को आत्मसात करना उसे आता है और जो रखने योग्य नहीं है उसे बाहर करना भी आता है। हिन्दी लगातार समृद्ध हो रही है। हिन्दी भारतीय भाषाओं, बोलियों और विश्व की भाषाओं से तमाम तरह के शब्द, व्यंजनाएं, [[कहावत लोकोक्ति मुहावरे|मुहावरे]] और बहुत सारी चीज़ें ले रही है। | ||
ताकत रही है। हर परिवर्तन को आत्मसात करना उसे आता है और जो रखने योग्य नहीं है उसे बाहर करना भी आता है। हिन्दी लगातार समृद्ध हो रही है। हिन्दी भारतीय भाषाओं, बोलियों और विश्व की भाषाओं से तमाम तरह के शब्द, व्यंजनाएं, मुहावरे और बहुत सारी | |||
*मैं मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के एक छोटे से गांव सीतापुर में पैदा हुआ। आज भी वहां मिट्टी के 18 घर हैं। हमारा घर पक्का और पुराना है। गांव के पीछे एक बहुत बडी सोन नदी बहती है। जहां से सोन का उद्गम है उसी से कुछ दूर नर्मदा का उद्गम है। अमरकंटक मेरे गांव से पैदल जाएं, तो 23 किलोमीटर दूर है। मेरा जन्म 1952 में हुआ तब वहां बिजली नहीं थी। हम लोग लालटेन और ढिबरी की रोशनी में पढते थे। पुल नहीं था, इसलिए गांव के सभी लोग तैरना जानते हैं। पांचवीं कक्षा के बाद नदी को तैर कर स्कूल जाना होता था। कलम, फाउण्टेन पेन यह सब बाद में आया। हम शुरू में लकडी की पाटी पर लिखते थे छठे दर्जे से | *मैं [[मध्यप्रदेश]] के [[अनूपपुर ज़िला|अनूपपुर जिले]] के एक छोटे से गांव सीतापुर में पैदा हुआ। आज भी वहां मिट्टी के 18 घर हैं। हमारा घर पक्का और पुराना है। गांव के पीछे एक बहुत बडी [[सोन नदी]] बहती है। जहां से सोन का उद्गम है उसी से कुछ दूर [[नर्मदा]] का उद्गम है। [[अमरकंटक]] मेरे गांव से पैदल जाएं, तो 23 किलोमीटर दूर है। मेरा जन्म 1952 में हुआ तब वहां बिजली नहीं थी। हम लोग [[लालटेन]] और ढिबरी की रोशनी में पढते थे। पुल नहीं था, इसलिए गांव के सभी लोग तैरना जानते हैं। पांचवीं कक्षा के बाद नदी को तैर कर स्कूल जाना होता था। कलम, फाउण्टेन पेन यह सब बाद में आया। हम शुरू में लकडी की पाटी पर लिखते थे छठे दर्जे से [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] पढाई जाती थी। मैं जहां पर था, वहां [[छत्तीसगढ़]] था और मध्य प्रदेश का सीमान्त है। मेरा गांव छत्तीसगढ़ सीमा में है। मेरी माँ भोजपुर की और पिताजी बघेल के थे। | ||
जहां पर था, वहां | |||
*'मेंगोसिल' मेरे इर्द-गिर्द घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है। एक सफाई कर्मचारी के परिवार में 45 साल की उम्र में पहली संतान पैदा हुई तो बहुत खुशी हुई, लेकिन कुछ समय बाद एक वज्रपात सा हुआ कि बच्चे का सिर असंतुलित रूप से बडा हो रहा है। बताया गया कि वह जीवित नहीं रहेगा। ज्यों-ज्यों बच्चा बडा होता गया तो घर की चिंताएं बढती गई, लेकिन उसका दिमाग बहुत तेज था। वह | *'मेंगोसिल' मेरे इर्द-गिर्द घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है। एक सफाई कर्मचारी के परिवार में 45 साल की उम्र में पहली संतान पैदा हुई तो बहुत खुशी हुई, लेकिन कुछ समय बाद एक वज्रपात सा हुआ कि बच्चे का सिर असंतुलित रूप से बडा हो रहा है। बताया गया कि वह जीवित नहीं रहेगा। ज्यों-ज्यों बच्चा बडा होता गया तो घर की चिंताएं बढती गई, लेकिन उसका दिमाग बहुत तेज था। वह जगत् की सब चीजों को समझता था। घर के लोगों की उपेक्षा के बावजूद उसकी [[माँ|मां]] जीवन के सारे सुख उसके लिए जुटाने में लगी थी। इस बीच घर में ध्यान हटाने के लिए नए बच्चे के जन्म लेने की घटना होती है। यह कथा विसंगतियों पर बुनी गई है जिसमें संवेदना को विशेष रूप से उभारा गया है।<ref>{{cite web |url=http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/2010-April/002469.html|title=उदय प्रकाश |accessmonthday=1 अक्टूबर|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
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*[http://padhte-padhte.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html उदय प्रकाश की कहानी 'अनावरण'] | *[http://padhte-padhte.blogspot.com/2011/01/blog-post_17.html उदय प्रकाश की कहानी 'अनावरण'] | ||
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उदय | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- उदय (बहुविकल्पी) |
उदय प्रकाश
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पूरा नाम | उदय प्रकाश |
जन्म | 1 जनवरी, 1952 |
जन्म भूमि | गाँव- सीतापुर, अनूपपुर ज़िला, मध्य प्रदेश |
कर्म-क्षेत्र | कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार |
मुख्य रचनाएँ | मोहनदास (कहानी), सुनो क़ारीगर, अबूतर कबूतर (दोनो कविता) |
भाषा | हिन्दी |
शिक्षा | एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, ओम प्रकाश सम्मान, श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, मुक्तिबोध सम्मान, द्विजदेव सम्मान, वनमाली सम्मान, पहल सम्मान आदि |
विशेष योगदान | 'भारतीय कृषि का इतिहास' पर महत्त्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' के नाम से 'राष्ट्रीय चैनल' के लिए निर्देशित कर चुके हैं। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथा लेखक रहे हैं। उदय प्रकाश ने सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार 'विजयदान देथा' की कहानियों पर चर्चित लघु फ़िल्में 'प्रसार भारती' के लिए निर्मित और निर्देशित की हैं। |
अद्यतन | 12:48, 2 अक्टूबर 2011 (IST)
|
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
उदय प्रकाश (जन्म :1 जनवरी, 1952) चर्चित कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार हैं। उदय प्रकाश हिन्दी साहित्य और संसार के प्रतिष्ठित और चर्चित कथाकार हैं। इनकी रचनाएं न केवल भारतीय भाषाओं, बल्कि कई विदेशी भाषाओं में अनुदित होकर लोकप्रिय हुई। उदय प्रकाश की कहानियों में जहां कविताओं जैसी रवानगी और सरसता है, वहीं वे समय की विसंगतियों की ओर बहत गहराई से ध्यान आकर्षित करती हैं।
- रूसी, अंग्रेजी, जापानी, डच और जर्मन भाषा में उनकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है और लगभग सभी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कविता संकलनों में उनकी कविताएं संग्रहीत हैं । 2004 में हॉलैंड के प्रख्यात 'अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सव' में वे भारतीय कवि के रूप में भाग ले चुके हैं।
- इनकी कई कहानियों के नाट्यरूपंतर और सफल मंचन हुए हैं। 'उपरांत' और 'मोहन दास' के नाम से इनकी कहानियों पर फीचर फ़िल्में भी बन चुकी हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उदय प्रकाश स्वयं भी कई टी.वी.धारावाहिकों के निर्देशक-पटकथाकार रहे हैं।
- उदय प्रकाश ने सुप्रसिद्ध राजस्थानी कथाकार 'विजयदान देथा' की कहानियों पर चर्चित लघु फ़िल्में 'प्रसार भारती' के लिए निर्मित और निर्देशित की हैं। 'भारतीय कृषि का इतिहास' पर महत्त्वपूर्ण पंद्रह कड़ियों का सीरियल 'कृषि-कथा' के नाम से 'राष्ट्रीय चैनल' के लिए निर्देशित कर चुके हैं।
जन्म स्थान
भारत के प्रख्यात कवि, कथाकार, पत्रकार और फ़िल्मकार उदय प्रकाश का जन्म गाँव सीतापुर ज़िला अनूपपुर, मध्य प्रदेश में 1 जनवरी, 1952 में हुआ था। "मैं मध्यप्रदेश के अनूपपुर ज़िले के एक छोटे से गांव सीतापुर में पैदा हुआ। आज भी वहां मिट्टी के 18 घर हैं। हमारा घर पक्का और पुराना है। गांव के पीछे एक बहुत बडी सोन नदी बहती है। जहां से सोन का उद्गम है उसी से कुछ दूर नर्मदा का उद्गम है। अमरकंटक मेरे गांव से पैदल जाएं, तो 23 किलोमीटर दूर है। मेरा जन्म 1952 में हुआ तब वहां बिजली नहीं थी। हम लोग लालटेन और ढिबरी की रोशनी में पढते थे। पुल नहीं था, इसलिए गांव के सभी लोग तैरना जानते हैं। पांचवीं कक्षा के बाद नदी को तैर कर स्कूल जाना होता था। कलम, फाउण्टेन पेन यह सब बाद में आया। हम शुरू में लकडी की पाटी पर लिखते थे छठे दर्जे से अंग्रेज़ी पढाई जाती थी। मैं जहां पर था, वहां छत्तीसगढ़ था और मध्य प्रदेश का सीमान्त है। मेरा गांव छत्तीसगढ़ सीमा में है। मेरी माँ भोजपुर की और पिता जी बघेल के थे। [1] उदय प्रकाश शुरुआती कई नौकरियों के बाद लंबे अरसे से लेखन की स्वायत्तशासी दुनिया से जुडे हैं।
कार्यक्षेत्र
पिछले दो दशकों में प्रकाशित उदय प्रकाश की कहानियों ने कथा साहित्य के परंपरागत पाठ को अपने आख्यान और कल्पनात्मक विन्यास से पूरी तरह बदल दिया है। नए युग के यथार्थ के निर्माण में उदय की कहानियों की ज़बर्दस्त भूमिका है। वैविध्यपूर्ण जीवनानुभवों से लैस उदय की कहानियों पर कदाचित जितनी असहमतियाँ और विवाद दर्ज किए गए उतनी किसी और की कहानियों पर नहीं। किन्तु सभी असहमतियों और विवादों को पीछे छोडते हुए उदय प्रकाश ने पश्चिमी मापदंड पर टिकी हिंदी आलोचना की कसौटियों के सामने सदैव एक चुनौती खड़ी की है। 'सुनो कारीगर', 'अबूतर कबूतर', 'रात में हारमोनियम' व 'एक भाषा हुआ करती है'- कविता संग्रहों और 'तिरिछ', 'दरियाई घोडा' और 'अंत में प्रार्थना', 'पालगोमरा का स्कूटर', 'दत्तात्रेय के दुख', 'पीली छतरी वाली लडकी', 'मैंगोसिल' व 'मोहनदास' जैसे कहानी संग्रहों के लेखक उदय प्रकाश ने कई लेखकों पर फ़िल्में बनाई हैं और बिज्जी की कहानियों पर धारावाहिक भी।[2]
- आत्मकथात्मक कृति
“मोहनदास” उदय प्रकाश की आत्मकथात्मक कृति है। बहुत कम लोग जानते हैं कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं और विश्व की आधी दर्जन भाषाओं में अनूदित हो चुकी “मोहनदास” कहानी उदय प्रकाश ने तब लिखी थी, जब दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद के लिए उन्होंने इंटरव्यू दिया था और उन्हें वह नौकरी नहीं दी गयी थी। तब उदय प्रकाश को नौकरी इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि चयन समिति के एक सदस्य को इस बात पर गहरा एतराज था कि उदय प्रकाश के पास पी.एच.डी. की डिग्री नहीं है। हालांकि तब तक उदय प्रकाश की कहानियों और कविताओं पर देश भर के विश्वविद्यालयों में आधे दर्जन से ज़्यादा पी.एच.डी. और एक दर्जन से ज़्यादा एम.फिल. की उपाधियां बांटी जा चुकी थीं। इसके अलावा कई विदेशी विश्वविद्यालयों के सिलेबस में उनकी कहानियां जगह पा चुकी थीं और वहां पढ़ायी जा रही थीं।
ब्लॉग
शब्दों के अनूठे शिल्प में बुनी कविताओं और उससे भी ज्यादा अनूठे गद्य शिल्प के लिए जाने जाने वाले उदय प्रकाश का ब्लॉग की दुनिया में पदार्पण एक सुखद घटना है।
- सफर की शुरुआत
सन् 2005 में जब हिंदी में कोई ठीक से ब्लॉग का नाम भी नहीं जानता था, उदय प्रकाश ने अपने ब्लॉग की शुरुआत की, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चला। लंबे अंतराल के बाद अब फिर उस सफर की शुरुआत हुई है। जिन्होंने 'पालगोमरा का स्कूटर', 'वॉरेन हेस्टिंग्ज का सांड़' और ‘तिरिछ’ सरीखी कहानियाँ पढ़ी हैं और जो उनके लेखन से वाकिफ हैं, उन्हें ब्लॉग पर उदय जी के लिखे का ज़रूर इंतज़ार होगा। उनके ब्लॉग पर आई प्रतिक्रियाएँ भी यह बताती हैं।
- खुला मंच
इस ब्लॉग की शुरुआत के पीछे उदय प्रकाश का मकसद एक ऐसे मंच की तलाश थी, जहाँ किन्हीं नियमों और प्रतिबंधों के बगैर उन्मुक्त होकर अपनी कलम को अभिव्यक्त किया जा सके, जहाँ कोई सेंसरशिप न हो, जो कि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में संभव नहीं है। उदय प्रकाश का मानना है कि एक सच्चा रचनाकार निर्बंध होकर अपने समय का सच लिखना चाहता है। पहले लेखक डायरियाँ लिखा करते थे। मुक्तिबोध की पुस्तक 'एक साहित्यिक की डायरी' बहुत प्रसिद्ध है। अब टेक्नोलॉजी ने हमें एक नया माध्यम दिया है। हिंदी में ब्लॉग की दुनिया का धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है। हमें अपनी बात व्यापक पैमाने पर लोगों तक पहुँचाने के लिए इस माध्यम का इस्तेमाल करना चाहिए।
हिंदी में ब्लॉगिंग के भविष्य के बारे में उदय प्रकाश का कहना है कि यदि यह माध्यम और सस्ता होकर बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुँचता है तो आने वाले कुछ वर्षों में ब्लॉगिंग के कुछ बड़े नतीजे भी सामने आ सकते हैं। यह ज्यादा सार्थक रूप में गंभीर सामाजिक और वैचारिक बहसों का मंच बन सकता है। जिस तेज़ीके साथ इंटरनेट और ब्लॉग का हिंदी में प्रसार हो रहा है, इस बात की पूरी संभावना हो सकती है।
फिलहाल आप मुक्तिबोध से लेकर 'असद जैदी' और 'कुँवर नारायण' तक की कविताएँ उदय प्रकाश के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। मुक्तिबोध की एक शानदार अप्रकाशित कविता 'अगर तुम्हें सच्चाई का शौक़ है' का आनंद उदय प्रकाश के ब्लॉग पर उठाया जा सकता है।[3]
- मोहनदास
मोहनदास कहानी आज़ादी के लगभग साठ साल बाद के हालात का आकलन करती है। यह उस अंतिम व्यक्ति की कहानी है जो बार-बार याद दिलाती है कि सत्ता केंद्रिक व्यवस्था में एक निर्बल, सत्ताहीन और ग़रीब मनुष्य की अस्मिता तक उससे छीनी जा सकती है। पर यह कहानी प्रतिकार की, प्रतिरोध की कहानी नहीं है। इस कहानी को उत्तर आधुनिक कहानी के रूप में भी देखा और सराहा गया है। 'वर्तिका फ़िल्म्स' के लिए 'मज़हर कामरान' ने इस पर फ़िल्म बनाई है, जिसकी पटकथा, संवाद आदि ओम निश्चल ने लिखे हैं। हालाँकि फ़िल्म उस संवेदना को तो नहीं छू पाती, जिसे लक्ष्य कर कहानी लिखी गयी थी, लेकिन कहानी आज के हालात में एक मनुष्य की नियति का आख्यान तो रचती ही है।
- कहानी
कहानी एक कठिन विधा है, भले ही उपन्यास से आकार में यह छोटी होती है और कविता की तुलना में यह गद्य का आश्रय लेती है। फिर भी कविता और उपन्यास के बीच की यह विधा बहुत आसान नहीं है। कहानी को सम्मान कभी मिला ही नहीं। शायद यह एक पुनर्विचार है हमारे समय के विद्वानों का जिन्होंने कहानी को वह प्रतिष्ठा दी है जिसकी वह हकदार रही है। चेखव ने तो कहानियाँ ही लिखीं, उपन्यास नहीं लिखे। प्रेमचंद अपनी कहानियों से ही लोकमान्य में जाने गए, गोदान आदि उपन्यासों से नहीं। निर्मल वर्मा की पहचान भी प्राथमिक तौर पर कहानी से ही बनी। तो इस समय के परिदृश्य कें केंद्र में कहानी है।
- आलोचना
हिंदी का अभिजन यानी इलीट वर्ग कहानी के निहितार्थ में नहीं जाता, वह युक्तियों के बारे में बात करता है। चंद्रकांता संतति की लोकप्रियता की क्या वजह है। कोई आलोचना आप उस पर दिखा सकते हैं जिससे प्रेरित होकर पाठकों ने उसे पढा हो। इस आख्यान की भी आख़िर अपनी कलायुक्तियाँ हैं जिनका जादू पाठक पर असर करता है। हम देशी विदेशी आलोचकों पर नजर डालें तो पाते हैं, उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। आलोचना का मक़सद मूल्यों का संधान करना है। यह बड़ी साधना का काम है। भारत देश की संस्कृति-सभ्यता में एक से एक बडे कथाकार मौज़ूद हैं। पर हिंदी के बौद्धिक वर्ग के पास उस तैयारी का अभाव है जो किसी भी रचना के मूल्याँकन में प्रवृत्त होने की प्राथमिक योग्यता है।
- मूलत कवि
मैं मूलत: कवि ही हूँ। इसको मैं भी जानता हूँ और बाक़ी लोग भी जानते हैं। मैं तो अक्सर मज़ाक़ में कहा करता हूँ कि मैं एक ऐसा कुम्हार हूँ जिसने धोख़े से कभी एक कमीज़ सिल दी और अब उसे सब दर्जी कह रहे हैं। सच यह है कि मैं कुम्हार ही हूँ।[4]
प्रकाशित कृतियाँ
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- उपरोक्त के अतिरिक्त इतालो कॉल्विनो, नेरूदा, येहुदा अमिचाई, फर्नांदो पसोवा, कवाफ़ी, लोर्का, ताद्युश रोज़ेविच, ज़ेग्जेव्येस्की, अलेक्सांद्र ब्लॉक आदि रचनाकारों के अनुवाद
सम्मान
- 1980 में अपनी कविता 'तिब्बत' के लिए 'भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार' से सम्मानित, 'ओम प्रकाश सम्मान', 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार', 'मुक्तिबोध सम्मान', 'साहित्यकार सम्मान' प्राप्त कर चुके हैं।
- 2004 में हॉलैंड के प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सव में वे भारतीय कवि के रूप में हिस्सा ले चुके हैं।
- 2010 में 'कहानी मोहन दास' के लिये 'साहित्य अकादमी पुरस्कार'।[16]
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उदय प्रकाश के कथन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उदयप्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
- ↑ मैं कुम्हार ही हूँ, दर्जी नहीं – उदय प्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
- ↑ उदय प्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
- ↑ उदय प्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
- ↑ प्रथम मंचन - राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रसन्ना के निर्देशन में।
- ↑ प्रथम मंचन - प्रसन्ना के निर्देशन में।
- ↑ प्रथम मंचन - अरविन्द गौड़ के निर्देशन में, अस्मिता नाटय संस्था द्वारा किया गया। यह नाटक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के भारत रंग महोत्सव व इन्डिया हैबिटैट सेन्टर में भी आयोजित हुआ है। 2001 से अब तक लगभग 80 प्रदर्शन हो चुके हैं।
- ↑ प्रथम मंचन - अरुण पाण्डेय के निर्देशन में।
- ↑ Translated by Robert A. Hueckstedt, Publisher Katha, New Delhi
- ↑ Translated by Robert A. Hueckstedt, Publisher, Srishti, New Delhi
- ↑ Translated by Jason Grunebaum, Publisher, Penguin India
- ↑ Translated by Pratik Kanjilal, Publisher, Little Magazine, New Delhi
- ↑ Translated by Ines Fornell, Heinz Werner Wessler and Reinhald Schein
- ↑ Translated by Andre Penz
- ↑ Translated by Lothar Lutze
- ↑ उदय प्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
- ↑ उदय प्रकाश (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 1 अक्टूबर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- हिंदी की लड़ाई अपने ही सांस्थानिक ढांचों से है: उदय प्रकाश
- मोहनदास
- चाक्षुषभाषा के रचनाकार उदयप्रकाश
- पुरस्कार पाकर बहुत खुश नहीं हैं उदय प्रकाश!
- उदय प्रकाश नहीं थे पहली पसंद
- उदयप्रकाश की रचनाएँ
- उदय प्रकाश का कहानीपाठ और आलाकमान की बातें
- उदय प्रकाश की कहानी 'अनावरण'
संबंधित लेख
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