"अंतिम बूँद -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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<poem>अंतिम बूँद बची मधु | <poem> | ||
मधु की लाली से रहता था | अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में। | ||
मधु की लाली से रहता था जहाँ विहँसता सदा सवेरा, | |||
मरघट है वह मदिरालय अब घिरा मौत का सघन अंधेरा, | मरघट है वह मदिरालय अब घिरा मौत का सघन अंधेरा, | ||
दूर गए वे पीने वाले जो मिट्टी के जड़ प्याले में | दूर गए वे पीने वाले जो मिट्टी के जड़ प्याले में, | ||
डुबो दिया करते थे हँसकर भाव हृदय का 'मेरा-तेरा', | डुबो दिया करते थे हँसकर भाव हृदय का 'मेरा - तेरा', | ||
रूठा वह | रूठा वह साक़ी भी जिसने लहराया मधु - सिन्धु नयन में। | ||
अंतिम बूँद बची मधु | |||
अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | |||
अब न गूंजती है कानों में पायल की मादक ध्वनि छम छम, | अब न गूंजती है कानों में पायल की मादक ध्वनि छम छम, | ||
अब न चला करता है सम्मुख जन्म-मरण सा प्यालों का क्रम, | अब न चला करता है सम्मुख जन्म - मरण सा प्यालों का क्रम, | ||
अब न ढुलकती है अधरों से अधरों पर मदिरा की धारा, | अब न ढुलकती है अधरों से अधरों पर मदिरा की धारा, | ||
जिसकी गति में बह जाता था, भूत भविष्यत का सब भय, भ्रम, | जिसकी गति में बह जाता था, भूत भविष्यत का सब भय, भ्रम, | ||
टूटे वे भुजबंधन भी अब मुक्ति स्वयं बंधती थी जिन में। | टूटे वे भुजबंधन भी अब मुक्ति स्वयं बंधती थी जिन में। | ||
जीवन की अंतिम आशा सी एक बूँद जो | |||
जीवन की अंतिम आशा सी एक बूँद जो बाक़ी केवल, | |||
संभव है वह भी न रहे जब ढुलके घट में काल-हलाहल, | संभव है वह भी न रहे जब ढुलके घट में काल-हलाहल, | ||
यह भी संभव है कि यही मदिरा की अंतिम बूँद सुनहली | यह भी संभव है कि यही मदिरा की अंतिम बूँद सुनहली, | ||
ज्वाला बन कर | ज्वाला बन कर ख़ाक बना दे जीवन के विष की कटु हलचल, | ||
क्योंकि आखिरी बूँद छिपाकर अंगारे रखती दामन में | क्योंकि आखिरी बूँद छिपाकर अंगारे रखती दामन में | ||
अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन | अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | ||
जब तक | |||
जब तक बाक़ी एक बूँद है तब तक घट में भी मादकता, | |||
मधु से धुलकर ही तो निखरा करती प्याले की सुन्दरता, | मधु से धुलकर ही तो निखरा करती प्याले की सुन्दरता, | ||
जब तक जीवित आस एक भी तभी तलक साँसों में भी गति, | जब तक जीवित आस एक भी तभी तलक साँसों में भी गति, | ||
आकर्षण से हीन कभी क्या जी पाई जग में मानवता? | आकर्षण से हीन कभी क्या जी पाई जग में मानवता? | ||
नींद खुला करती जीवन की आकर्षण की छाँह शरण में। | नींद खुला करती जीवन की आकर्षण की छाँह शरण में। | ||
अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन | अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | ||
आज हृदय में जाग उठी है वह व्याकुल तृष्णा यौवन की, | आज हृदय में जाग उठी है वह व्याकुल तृष्णा यौवन की, | ||
इच्छा होती है पी डालूं बूँद आखिरी भी जीवन की, | इच्छा होती है पी डालूं बूँद आखिरी भी जीवन की, | ||
अधरों तक ले जाकर प्याला किन्तु सोच यह रुक जाता हूँ, | अधरों तक ले जाकर प्याला किन्तु सोच यह रुक जाता हूँ, | ||
इसके बाद चलेगी कैसे गति प्राणों के श्वास-पवन | इसके बाद चलेगी कैसे गति प्राणों के श्वास-पवन की, | ||
और कौन होगा साथी जो बहलाए मन दिन दुर्दिन में। | और कौन होगा साथी जो बहलाए मन दिन दुर्दिन में। | ||
अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | ||
मानव! यह वह बूँद कि जिस पर जीवन का सर्वस्व निछावर, | मानव! यह वह बूँद कि जिस पर जीवन का सर्वस्व निछावर, | ||
इसकी मादकता के सम्मुख लज्जित मुग्धा का मधु-केशर, | इसकी मादकता के सम्मुख लज्जित मुग्धा का मधु-केशर, | ||
यह वह सुख की साँस | यह वह सुख की साँस आख़िरी जिसके सम्मुख हेय अमरता, | ||
यह वह जीवन ज्योति-किरण जो चीर दिया करती तम का घर, | यह वह जीवन ज्योति-किरण जो चीर दिया करती तम का घर, | ||
अस्तु इसे पी जा मुस्कुराकर मुस्काए चिर तृषा मरण में। | अस्तु इसे पी जा मुस्कुराकर मुस्काए चिर तृषा मरण में। | ||
अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में॥ | ||
किन्तु जरा रुक ऐसे ही यह बूँद मधुरतम मत पी जाना | |||
इसमें वह मादकता है जो पीकर | किन्तु जरा रुक ऐसे ही यह बूँद मधुरतम मत पी जाना, | ||
इसमें वह मादकता है जो पीकर जग बनता दीवाना, | |||
इससे इसमें वह जीवन विष की एक बूँद तू और मिला ले, | इससे इसमें वह जीवन विष की एक बूँद तू और मिला ले, | ||
सीख सके जिससे हँस हँसकर मधु के संग विष भी अपनाना, | सीख सके जिससे हँस हँसकर मधु के संग विष भी अपनाना, |
05:23, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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अंतिम बूँद बची मधु की अब जर्जर प्यासे घट जीवन में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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