"तिमिर ढलेगा -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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यह जो रात चुरा बैठी है चांद सितारों की तरुणाई, | यह जो रात चुरा बैठी है चांद सितारों की तरुणाई, | ||
बस तब तक कर ले मनमानी जब तक कोई किरन न आई, | बस तब तक कर ले मनमानी जब तक कोई किरन न आई, | ||
खुलते ही पलकें फूलों की, बजते ही भ्रमरों की वंशी | खुलते ही पलकें फूलों की, बजते ही भ्रमरों की वंशी, | ||
छिन्न-भिन्न होगी यह स्याही जैसे तेज धार से काई, | छिन्न-भिन्न होगी यह स्याही जैसे तेज धार से काई, | ||
तम के पांव नहीं होते, वह चलता थाम ज्योति का अंचल | तम के पांव नहीं होते, वह चलता थाम ज्योति का अंचल | ||
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मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! | मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! | ||
सिर्फ भूमिका है बहार की यह आंधी- | सिर्फ भूमिका है बहार की यह आंधी-पतझरों वाली, | ||
किसी सुबह की ही | किसी सुबह की ही मंज़िल है रजनी बुझे सितारों वाली, | ||
उजड़े घर ये सूने आंगन, रोते नयन, सिसकते सावन, | उजड़े घर ये सूने आंगन, रोते नयन, सिसकते सावन, | ||
केवल वे हैं बीज कि जिनसे उगनी है गेहूं की बाली, | केवल वे हैं बीज कि जिनसे उगनी है गेहूं की बाली, | ||
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है मेरा विश्वास अटल, तुम डांड़ हटा दो, पाल गिरा दो, | है मेरा विश्वास अटल, तुम डांड़ हटा दो, पाल गिरा दो, | ||
बीच समुन्दर एक दिवस मिलने आयेगा स्वयं किनारा, | बीच समुन्दर एक दिवस मिलने आयेगा स्वयं किनारा, | ||
मन की गति पग-गति बन जाये तो फिर | मन की गति पग-गति बन जाये तो फिर मंज़िल कौन कठिन है? | ||
मेरे लक्ष्य निराश न हो, फिर जग बदलेगा, मग बदलेगा! | मेरे लक्ष्य निराश न हो, फिर जग बदलेगा, मग बदलेगा! | ||
मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! | मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! | ||
जीवन क्या?-तम भरे नगर में किसी रोशनी की पुकार है, | जीवन क्या? - तम भरे नगर में किसी रोशनी की पुकार है, | ||
ध्वनि जिसकी इस पार और प्रतिध्वनि जिसकी दूसरे पार है, | ध्वनि जिसकी इस पार और प्रतिध्वनि जिसकी दूसरे पार है, | ||
सौ सौ बार मरण ने सीकर होंठ इसे चाहा चुप करना, | सौ सौ बार मरण ने सीकर होंठ इसे चाहा चुप करना, | ||
पर देखा हर बार बजाती यह बैठी कोई सितार है, | पर देखा हर बार बजाती यह बैठी कोई सितार है, | ||
स्वर मिटता है नहीं, सिर्फ उसकी | स्वर मिटता है नहीं, सिर्फ उसकी आवाज़ बदल जाती है। | ||
मेरे गीत उदास न हो, हर तार बजेगा, कंठ खुलेगा! | मेरे गीत उदास न हो, हर तार बजेगा, कंठ खुलेगा! | ||
मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! | मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! |
14:18, 3 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
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मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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