"दाग -राजेश जोशी": अवतरणों में अंतर
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हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | हर बार इतना आसान नहीं होता अपने दागों के बारे में बताना | ||
कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान | कितने दाग़ हैं जिन्हें कहने में लड़खड़ा जाती है जबान | ||
अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए | अपने को बचाने के लिए कितनी बार किए ग़लत समझौते | ||
ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ताकतवार के आगे कितनी चिरौरी की | ||
आँख के सामने होते अन्याय को देख कर भी चीखे नहीं | आँख के सामने होते अन्याय को देख कर भी चीखे नहीं |
14:20, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
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मेरी कमीज़ की आस्तीन पर कई दाग़ हैं ग्रीस और आइल के |
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
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