"साँसों के मुसाफिर -गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर
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कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है, | कोई नहीं पराया, सारी धरती एक बसेरा है, | ||
इसका | इसका ख़ैमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है, | ||
श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो, | श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो, | ||
सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है? | सभी मछरियाँ एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है? | ||
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गलियाँ गाँव गुँजाता चल, | गलियाँ गाँव गुँजाता चल, | ||
पथ-पथ फूल बिछाता चल, | पथ-पथ फूल बिछाता चल, | ||
हर | हर दरवाज़ा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल। | ||
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।। | राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।। | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 57: | ||
धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में, | धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में, | ||
जंजीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी | जंजीरें कट गई, मगर आज़ाद नहीं इन्सान अभी | ||
दुनिया भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में, | |||
सोई किरन जगाता चल, | सोई किरन जगाता चल, |
14:27, 31 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
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इसको भी अपनाता चल, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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