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'''मैसूर''' शहर, दक्षिण-मध्य [[कर्नाटक]], भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी [[भारत]] में स्थित है। यह [[चामुंडी पहाड़ी]] के पश्चिमोत्तर में 770 मीटर की ऊँचाई पर लहरदार दक्कन पठार पर [[कावेरी नदी]] व कब्बानी नदी के बीच स्थित है। 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब [[बंगलोर]] के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मैसूर भारतीय गणतंत्र में सम्मिलित एक राज्य तथा नगर है। इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम [[मुंबई]], पूर्व में [[आन्ध्र प्रदेश]], दक्षिण-पूर्व में [[तमिलनाडु]] और दक्षिण-पश्चिम में [[केरल]] राज्यों से घिरी हुई है। अपनी क्रेप सिल्क की साड़ियों, [[चंदन]] के तेल और चंदन की लकड़ी से बने सामान के लिए मशहूर यह स्थान वुडयार वंश के शासन काल में उनकी राजधानी हुआ करता था। वुडयार राजा कला और संस्कृति प्रेमी थे। अपने 150 वर्ष के शासन काल में उन्होंने इसे बहुत बढ़ावा दिया। उस दौरान मैसूर दक्षिण की सांस्कृतिक राजधानी बन गया। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी खूबसूरती क़ायम है। कर्नाटक संगीत व नृत्य का यह प्रमुख केंद्र है।
'''मैसूर''' शहर, दक्षिण-मध्य [[कर्नाटक]], भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी [[भारत]] में स्थित है। यह [[चामुंडी पहाड़ी]] के पश्चिमोत्तर में 770 मीटर की ऊँचाई पर लहरदार दक्कन पठार पर [[कावेरी नदी]] व कब्बानी नदी के बीच स्थित है। 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब [[बंगलोर]] के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मैसूर भारतीय गणतंत्र में सम्मिलित एक राज्य तथा नगर है। इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम [[मुंबई]], पूर्व में [[आन्ध्र प्रदेश]], दक्षिण-पूर्व में [[तमिलनाडु]] और दक्षिण-पश्चिम में [[केरल]] राज्यों से घिरी हुई है। अपनी क्रेप सिल्क की साड़ियों, [[चंदन]] के तेल और चंदन की लकड़ी से बने सामान के लिए मशहूर यह स्थान वुडयार वंश के शासन काल में उनकी राजधानी हुआ करता था। वुडयार राजा कला और संस्कृति प्रेमी थे। अपने 150 वर्ष के शासन काल में उन्होंने इसे बहुत बढ़ावा दिया। उस दौरान मैसूर दक्षिण की सांस्कृतिक राजधानी बन गया। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। [[कर्नाटक संगीत]] व नृत्य का यह प्रमुख केंद्र है।
====पौराणिक उल्लेख====
====पौराणिक उल्लेख====
मैसूर शहर के आस-पास की भूमि पर [[वर्षा]] के [[जल]] से भरे उथले जलाशय हैं। इस स्थान का उल्लेख [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में '[[महिष्मति]]' के रूप में हुआ है। [[मौर्य काल]], तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह 'पूरिगेरे' के नाम से विख्यात था। महिष्मंडल महिषक लोग महिष्मति, नर्मदा घाटी से प्रवास कर यहाँ पर बस गए थे। बाद में यह [[महिषासुर]] कहलाया था।  
मैसूर शहर के आस-पास की भूमि पर [[वर्षा]] के [[जल]] से भरे उथले जलाशय हैं। इस स्थान का उल्लेख [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] में '[[महिष्मति]]' के रूप में हुआ है। [[मौर्य काल]], तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह 'पूरिगेरे' के नाम से विख्यात था। महिष्मंडल महिषक लोग महिष्मति, नर्मदा घाटी से प्रवास कर यहाँ पर बस गए थे। बाद में यह [[महिषासुर]] कहलाया था।  
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यहाँ का ताप साधारणत: ऊँचा रहता है। औसत ताप 27° सेल्सियस है। तापांतर आंतरिक भाग में अधिक रहता है। [[वर्षा]] पश्चिमी घाट के पश्चिम में अधिक (375 सेंमी. से अधिक) एवं पूर्व के वृष्टिछाया प्रदेश में कम (50 सेंमी. से कम) होती है। अधिकांश: वर्षा दक्षिण-पूर्वी मानसून से होती है। यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति सदाबहार के जंगल हैं, जिनसे सागौन, [[चंदन]], राजबुड आदि की लकड़ी प्राप्त होती है। वनाच्छादित क्षेत्र 12,000 वर्ग मील है, जो संपूर्ण क्षेत्र का 17 प्रतिशत है।<ref name="IWPH"/>
यहाँ का ताप साधारणत: ऊँचा रहता है। औसत ताप 27° सेल्सियस है। तापांतर आंतरिक भाग में अधिक रहता है। [[वर्षा]] पश्चिमी घाट के पश्चिम में अधिक (375 सेंमी. से अधिक) एवं पूर्व के वृष्टिछाया प्रदेश में कम (50 सेंमी. से कम) होती है। अधिकांश: वर्षा दक्षिण-पूर्वी मानसून से होती है। यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति सदाबहार के जंगल हैं, जिनसे सागौन, [[चंदन]], राजबुड आदि की लकड़ी प्राप्त होती है। वनाच्छादित क्षेत्र 12,000 वर्ग मील है, जो संपूर्ण क्षेत्र का 17 प्रतिशत है।<ref name="IWPH"/>
====कृषि====
====कृषि====
53.5 प्रतिशतक्षेत्र में खेती होती है तथा 71.2% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। मुख्य फसलें [[धान]], [[ज्वार]], [[गेहूँ]], दलहन [[मूँगफली]], [[कपास]] आदि हैं। वागाती खेती में [[कहवा]], [[चाय]] तथा [[रबर]] का उत्पादन होता है। पशुपालन भी महत्वपूर्ण है। मैसूर में लगभग 10 लाख रुपये के मूल्य की [[मछली|मछलियाँ]] प्रति वर्ष पकड़ी जाती हैं। तुंगभद्रा एवं घाटप्रभा आदि 14 बहुउद्देश्यीय सिंचाई योजनाएँ आ रही हैं।<ref name="IWPH"/>
53.5 प्रतिशतक्षेत्र में खेती होती है तथा 71.2% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। मुख्य फसलें [[धान]], [[ज्वार]], [[गेहूँ]], दलहन [[मूँगफली]], [[कपास]] आदि हैं। वागाती खेती में [[कहवा]], [[चाय]] तथा [[रबर]] का उत्पादन होता है। पशुपालन भी महत्त्वपूर्ण है। मैसूर में लगभग 10 लाख रुपये के मूल्य की [[मछली|मछलियाँ]] प्रति वर्ष पकड़ी जाती हैं। तुंगभद्रा एवं घाटप्रभा आदि 14 बहुउद्देश्यीय सिंचाई योजनाएँ आ रही हैं।<ref name="IWPH"/>
====खनिज पदार्थ====
====खनिज पदार्थ====
सोना हट्टी एवं कामत श्रेणियों में, [[बेंगलुरु]] एवं [[चिकमंगलूर]] में ऐस्वेस्टस तथा [[लोहा]] और [[मैंगनीज़]], [[ताँबा]], [[बॉक्साइट]], [[गंधक]] आदि अन्य क्षेत्रों में मिलते हैं। [[कोयला]] एवं खनिज तेल का अभाव है, जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। यह अधिकांशत: शारावती, [[भद्रा नदी|भद्रा]] एवं [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा]] जलविद्युत योजनाओं से प्राप्त होती है।<ref name="IWPH"/>  
सोना हट्टी एवं कामत श्रेणियों में, [[बेंगलुरु]] एवं [[चिकमंगलूर]] में ऐस्वेस्टस तथा [[लोहा]] और [[मैंगनीज़]], [[ताँबा]], [[बॉक्साइट]], [[गंधक]] आदि अन्य क्षेत्रों में मिलते हैं। [[कोयला]] एवं खनिज तेल का अभाव है, जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। यह अधिकांशत: शारावती, [[भद्रा नदी|भद्रा]] एवं [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा]] जलविद्युत योजनाओं से प्राप्त होती है।<ref name="IWPH"/>  
==सांस्कृतिक राजधानी==
==सांस्कृतिक राजधानी==
[[कर्नाटक]] की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले मैसूर के नाम से कई ख़ास चीजें जुड़ी हुई हैं- मैसूर मल्लिगे (विशेष पुष्प), मैसूर के रेशमी वस्त्र, राजमहल, मैसूर पाक (मिष्टान्न), मैसूर पेटा (पगड़ी), मैसूर विल्यदले (पान) तथा और भी बहुत-सारी चीज़ें। ये सब कुछ मैसूर और इसके जीवन की पहचान हैं लेकिन ये पहचान तब तक अधूरी रहती हैं जब तक इस शहर में पिछले 400 वर्षों से लगातार मनाए जा रहे [[मैसूर दशहरा|दशहरा]] उत्सव की बात न की जाए। यह मैसूर को राज्य के अन्य जिलों और शहरों से अलग करता है। पूर्व में इसे '[[नवरात्रि]]' के नाम से ही जाना जाता था लेकिन वाडेयार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार के समय में इसे दशहरा कहने का चलन शुरू हुआ। [[भारत]] ही नहीं, कई बाहरी देशों में भी इस उत्सव की बढ़ती लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष राज्य सरकार ने इसे राज्योत्सव (नाद हब्बा) का दर्जा दिया है।
[[कर्नाटक]] की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले मैसूर के नाम से कई ख़ास चीजें जुड़ी हुई हैं- मैसूर मल्लिगे (विशेष पुष्प), मैसूर के रेशमी वस्त्र, राजमहल, मैसूर पाक (मिष्टान्न), मैसूर पेटा (पगड़ी), मैसूर विल्यदले (पान) तथा और भी बहुत-सारी चीज़ें। ये सब कुछ मैसूर और इसके जीवन की पहचान हैं लेकिन ये पहचान तब तक अधूरी रहती हैं जब तक इस शहर में पिछले 400 वर्षों से लगातार मनाए जा रहे [[मैसूर दशहरा|दशहरा]] उत्सव की बात न की जाए। यह मैसूर को राज्य के अन्य ज़िलों और शहरों से अलग करता है। पूर्व में इसे '[[नवरात्रि]]' के नाम से ही जाना जाता था लेकिन वाडेयार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार के समय में इसे दशहरा कहने का चलन शुरू हुआ। [[भारत]] ही नहीं, कई बाहरी देशों में भी इस उत्सव की बढ़ती लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष राज्य सरकार ने इसे राज्योत्सव (नाद हब्बा) का दर्जा दिया है।
====मैसूर का दशहरा====  
====मैसूर का दशहरा====  
[[चित्र:Jambu-Savari-Maysor-Dasara.jpg|thumb|320px|[[मैसूर दशहरा|मैसूर दशहरे]] में जम्बू सवारी]]
[[चित्र:Jambu-Savari-Maysor-Dasara.jpg|thumb|320px|[[मैसूर दशहरा|मैसूर दशहरे]] में जम्बू सवारी]]
{{Main|मैसूर का दशहरा}}
{{Main|मैसूर का दशहरा}}
पारंपरिक उत्साह और धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला यह आसुरी शक्तियों पर देवत्व के विजय का दस दिवसीय उत्सव हर वर्ष [[अक्टूबर]] महीने में मनाया जाता है। दशहरे की परंपरा का इतिहास मध्यकालीन [[दक्षिण भारत 1565-1615|दक्षिण भारत]] के अद्वितीय [[विजयनगर साम्राज्य]] के समय से शुरू होता है। हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा 12-13 वीं शताब्दी में स्थापित इस साम्राज्य में दशहरा उत्सव मनाया जाता था। इसकी राजधानी [[हम्पी]] के दौरे पर पहुंचे कई विदेशी पर्यटकों ने अपने संस्मरणों तथा यात्रा वृत्तान्तों में इस विषय में लिखा है। इनमें डोमिंगोज पेज, फर्नाओ नूनिज और रॉबर्ट सीवेल जैसे पर्यटक भी शामिल हैं। इन लेखकों ने हम्पी में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव के बारे में काफी विस्तार से लिखा है। विजयनगर शासकों की यही परंपरा वर्ष 1399 में मैसूर पहुंची जब [[गुजरात]] के [[द्वारका]] से पुरगेरे (मैसूर का प्राचीन नाम) पहुंचे दो भाइयों यदुराय और कृष्णराय ने वाडेयार राजघराने की नींव डाली। यदुराय इस राजघराने के पहले शासक बने। उनके पुत्र चामराज वाडेयार प्रथम ने पुरगेरे का नाम 'मैसूर' रखा। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य की अधीनता भी स्वीकार की। वाडेयार राजाओं के दशहरा उत्सवों से आज के उत्सवों का चेहरा काफी अलग हो चुका है। अब यह एक अन्तरराष्ट्रीय उत्सव बन गया है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से मैसूर पहुंचने वाले पर्यटक दशहरा गतिविधियों की विविधताओं को देख दंग रह जाते हैं। तेज रोशनी में नहाया मैसूर महल, फूलों और पत्तियों से सजे चढ़ावे, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद, गोम्बे हब्बा और विदेशी मेहमानों से लेकर जम्बो सवारी तक हर बात उन्हें ख़ास तौर पर आकर्षित करती है। हालांकि बदलते समय के साथ [[भारत]] के धार्मिक अनुष्ठानों से प्रमुख कारक के रूप में धर्म की बातें दूर होती जा रही हैं लेकिन सजग पर्यटक चाहे तो दशहरा उत्सव में धर्म का अंश घरेलू आयोजनों में आज भी देख सकता है।<ref>{{cite web |url=http://dakshinbharatrashtramat.blogspot.in/2008/09/blog-post_24.html |title=चार शताब्दी पुरानी है मैसूर दशहरे की भव्य परंपरा |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दक्षिण भारत राष्ट्रमत |language= हिंदी}}</ref>
पारंपरिक उत्साह और धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला यह आसुरी शक्तियों पर देवत्व के विजय का दस दिवसीय उत्सव हर वर्ष [[अक्टूबर]] महीने में मनाया जाता है। दशहरे की परंपरा का इतिहास मध्यकालीन [[दक्षिण भारत 1565-1615|दक्षिण भारत]] के अद्वितीय [[विजयनगर साम्राज्य]] के समय से शुरू होता है। हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा 12-13 वीं शताब्दी में स्थापित इस साम्राज्य में दशहरा उत्सव मनाया जाता था। इसकी राजधानी [[हम्पी]] के दौरे पर पहुंचे कई विदेशी पर्यटकों ने अपने संस्मरणों तथा यात्रा वृत्तान्तों में इस विषय में लिखा है। इनमें डोमिंगोज पेज, [[फरनाओ नुनीज|फर्नाओ नूनिज]] और रॉबर्ट सीवेल जैसे पर्यटक भी शामिल हैं। इन लेखकों ने हम्पी में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव के बारे में काफ़ी विस्तार से लिखा है। विजयनगर शासकों की यही परंपरा वर्ष 1399 में मैसूर पहुंची जब [[गुजरात]] के [[द्वारका]] से पुरगेरे (मैसूर का प्राचीन नाम) पहुंचे दो भाइयों यदुराय और कृष्णराय ने वाडेयार राजघराने की नींव डाली। यदुराय इस राजघराने के पहले शासक बने। उनके पुत्र चामराज वाडेयार प्रथम ने पुरगेरे का नाम 'मैसूर' रखा। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य की अधीनता भी स्वीकार की। वाडेयार राजाओं के दशहरा उत्सवों से आज के उत्सवों का चेहरा काफ़ी अलग हो चुका है। अब यह एक अन्तरराष्ट्रीय उत्सव बन गया है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से मैसूर पहुंचने वाले पर्यटक दशहरा गतिविधियों की विविधताओं को देख दंग रह जाते हैं। तेज रोशनी में नहाया मैसूर महल, फूलों और पत्तियों से सजे चढ़ावे, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद, गोम्बे हब्बा और विदेशी मेहमानों से लेकर जम्बो सवारी तक हर बात उन्हें ख़ास तौर पर आकर्षित करती है। हालांकि बदलते समय के साथ [[भारत]] के धार्मिक अनुष्ठानों से प्रमुख कारक के रूप में धर्म की बातें दूर होती जा रही हैं लेकिन सजग पर्यटक चाहे तो दशहरा उत्सव में धर्म का अंश घरेलू आयोजनों में आज भी देख सकता है।<ref>{{cite web |url=http://dakshinbharatrashtramat.blogspot.in/2008/09/blog-post_24.html |title=चार शताब्दी पुरानी है मैसूर दशहरे की भव्य परंपरा |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=दक्षिण भारत राष्ट्रमत |language= हिंदी}}</ref>


==यातायात और परिवहन==
==यातायात और परिवहन==
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==उद्योग और व्यापार==
==उद्योग और व्यापार==
मैसूर एक महत्त्वपूर्ण निर्माण एवं व्यापारिक केंद्र है। मैसूर में सूती एवं रेशमी वस्त्र, [[चावल]], तेल की मिलें, [[चंदन]] का तेल और रसायनिक उर्वरक उद्योग हैं। शहर के उद्योगों को बिजली पूर्व में स्थित शिवसमुद्रम के निकट पनबिजली गृह से मिलती है। मैसूर के कुटीर उद्योगों में बुनाई, [[तंबाकू]], कॉफ़ी प्रसंस्करण और बीड़ी निर्माण शामिल हैं। यह क्षेत्र हाथीदांत, [[धातु]] और लकड़ी की अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। [[चित्र:Mysore-Palace-2.jpg|thumb|250px|left|मैसूर का [[महाराजा पैलेस मैसूर|महाराजा पैलेस]]]] रेलवे स्टेशन के पास स्थित बाज़ार स्थानीय [[कृषि]] उत्पादों के लिए संग्रहण केंद्र का काम करता है। मैसूर में [[काला रंग|काली]] [[मिट्टी]] के विशाल भूभाग पर कपास उगाया जाता है। यहाँ से चावल, मोटा अनाज और तिलहन का निर्यात किया जाता है। मैसूर की सरकारी सिल्क फैक्टरी में मैसूर की सिल्क की साड़ियाँ बनती हैं। रेशमी वस्त्र, चमड़े, आभूषण, टोकरी, रस्सी, चंदन, हाथीदांत की वस्तुएँ आदि के [[कुटीर उद्योग]] तथा वस्त्र उद्योग श्रेंगलूरू मैसूर, बल्लारि आदि में, लोहे एवं इस्पात का उद्योग भद्रावती में, सीमेंट शाहाबाद एवं भद्रावती में, दियासलाई शिवमोगा में, ऊनी एवं रंशमी वस्त्र [[बेंगळूरू]] एवं मैंसूर में, [[काग़ज़|काग़ज़]] भद्रावती में तथा टेलीफोन, हवाई जहाज आदि के उद्योग बेंगळूरू में हैं।
मैसूर एक महत्त्वपूर्ण निर्माण एवं व्यापारिक केंद्र है। मैसूर में सूती एवं रेशमी वस्त्र, [[चावल]], तेल की मिलें, [[चंदन]] का तेल और रसायनिक उर्वरक उद्योग हैं। शहर के उद्योगों को बिजली पूर्व में स्थित [[शिवसमुद्रम]] के निकट पनबिजली गृह से मिलती है। मैसूर के कुटीर उद्योगों में बुनाई, [[तंबाकू]], कॉफ़ी प्रसंस्करण और बीड़ी निर्माण शामिल हैं। यह क्षेत्र हाथीदांत, [[धातु]] और लकड़ी की अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। [[चित्र:Mysore-Palace-2.jpg|thumb|250px|left|मैसूर का [[महाराजा पैलेस मैसूर|महाराजा पैलेस]]]] रेलवे स्टेशन के पास स्थित बाज़ार स्थानीय [[कृषि]] उत्पादों के लिए संग्रहण केंद्र का काम करता है। मैसूर में [[काला रंग|काली]] [[मिट्टी]] के विशाल भूभाग पर कपास उगाया जाता है। यहाँ से चावल, मोटा अनाज और तिलहन का निर्यात किया जाता है। मैसूर की सरकारी सिल्क फैक्टरी में मैसूर की सिल्क की साड़ियाँ बनती हैं। रेशमी वस्त्र, चमड़े, आभूषण, टोकरी, रस्सी, चंदन, हाथीदांत की वस्तुएँ आदि के [[कुटीर उद्योग]] तथा वस्त्र उद्योग श्रेंगलूरू मैसूर, बल्लारि आदि में, लोहे एवं इस्पात का उद्योग भद्रावती में, सीमेंट शाहाबाद एवं भद्रावती में, दियासलाई शिवमोगा में, ऊनी एवं रंशमी वस्त्र [[बेंगळूरू]] एवं मैंसूर में, [[काग़ज़|काग़ज़]] भद्रावती में तथा टेलीफोन, हवाई जहाज आदि के उद्योग बेंगळूरू में हैं।
==शिक्षण संस्थान==
==शिक्षण संस्थान==
[[चित्र:Mysore-University-2.jpg|thumb| [[मैसूर विश्वविद्यालय]]]]  
[[चित्र:Mysore-University-2.jpg|thumb| [[मैसूर विश्वविद्यालय]]]]  
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# वाडेयार राजघराने के वर्तमान उत्तराधिकारी श्रीकांतदत्त नरसिंहराज वाडेयार का निजी संग्रहालय।
# वाडेयार राजघराने के वर्तमान उत्तराधिकारी श्रीकांतदत्त नरसिंहराज वाडेयार का निजी संग्रहालय।


विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी संग्रहालयों में काफी प्रभावशाली ढंग से इतिहास को संजोकर रखने का प्रयास किया किया गया है लेकिन इस समय जरूरत इस बात की है कि इन संग्रहालयों में रखी समृद्ध धरोहरों कों भी मैसूर आने वाले पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाए।<ref>{{cite web |url=http://dakshinbharatrashtramat.blogspot.in/2009/08/blog-post_31.html |title=संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= दक्षिण भारत राष्ट्रमत|language=हिंदी }} </ref>
विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी संग्रहालयों में काफ़ी प्रभावशाली ढंग से इतिहास को संजोकर रखने का प्रयास किया किया गया है लेकिन इस समय ज़रूरत इस बात की है कि इन संग्रहालयों में रखी समृद्ध धरोहरों कों भी मैसूर आने वाले पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाए।<ref>{{cite web |url=http://dakshinbharatrashtramat.blogspot.in/2009/08/blog-post_31.html |title=संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= दक्षिण भारत राष्ट्रमत|language=हिंदी }} </ref>


==पर्यटन==
==पर्यटन==
[[चित्र:Nandi-Chamundi-Hill.jpg|thumb|250px|[[चामुंडी पर्वत]] पर [[नन्दी]] की मूर्ति]]
[[चित्र:Nandi-Chamundi-Hill.jpg|thumb|250px|[[चामुंडी पर्वत]] पर [[नन्दी]] की मूर्ति]]
{{main|मैसूर पर्यटन}}
{{main|मैसूर पर्यटन}}
मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। यह एक पर्यटन स्थल भी है। मैसूर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। मैसूर में क़िले, पहाड़ियाँ एवं झीलें भी हैं। [[मैसूर महल|मैसूर महलों]], बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। मैसूर महलों, बग़ीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी खूबसूरती क़ायम है। कर्नाटक संगीत व नृत्य का यह प्रमुख केंद्र है। पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में [[होयसल वंश]] द्वारा र्निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है।
मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। यह एक पर्यटन स्थल भी है। मैसूर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। मैसूर में क़िले, पहाड़ियाँ एवं झीलें भी हैं। [[मैसूर महल|मैसूर महलों]], बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। मैसूर महलों, बग़ीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। [[कर्नाटक संगीत]] [[नृत्य कला|नृत्य]] का यह प्रमुख केंद्र है। पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में [[होयसल वंश]] द्वारा र्निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है।
====पुराना क़िला====
====पुराना क़िला====
18वीं शताब्दी में यूरोपीय शैली में पुन:निर्मित एक पुराना क़िला, मैसूर के मध्य में स्थित है। क़िले के दायरे में महाराजा महल (1897 ई.) है, जिसमें हाथीदांत व [[सोना|सोने]] से निर्मित सिंहासन है।
18वीं शताब्दी में यूरोपीय शैली में पुन:निर्मित एक पुराना क़िला, मैसूर के मध्य में स्थित है। क़िले के दायरे में महाराजा महल (1897 ई.) है, जिसमें हाथीदांत व [[सोना|सोने]] से निर्मित सिंहासन है।

10:52, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

मैसूर मैसूर पर्यटन मैसूर ज़िला
मैसूर
महाराजा पैलेस, मैसूर
महाराजा पैलेस, मैसूर
विवरण मैसूर शहर, दक्षिण-मध्य कर्नाटक, भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी भारत में स्थित है।
राज्य कर्नाटक
ज़िला मैसूर
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 12°3', पूर्व- 76°65'
मार्ग स्थिति मैसूर शहर सड़क द्वारा बैंगलोर से 139 किलोमीटर, हम्पी से 400 किलोमीटर, दिल्ली से 2,230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा मैसूर हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन मैसूर रेलवे स्टेशन
बस अड्डा मैसूर सिटी बस अड्डा
यातायात ऑटो रिक्शा, बस, टैम्पो, साइकिल रिक्शा
क्या देखें मैसूर पर्यटन
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
क्या खायें मैसूर पाक, रागी और अक्की रोटी, इडली सांभर, मसाला पुरी
क्या ख़रीदें सिल्क की साड़ियाँ, चंदन की लकड़ी के सामान
एस.टी.डी. कोड 0821
ए.टी.एम लगभग सभी
गूगल मानचित्र
भाषा कन्नड़ भाषा, अंग्रेज़ी, तमिल, हिन्दी
अन्य जानकारी 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब मैसूर बंगलोर के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

मैसूर शहर, दक्षिण-मध्य कर्नाटक, भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी भारत में स्थित है। यह चामुंडी पहाड़ी के पश्चिमोत्तर में 770 मीटर की ऊँचाई पर लहरदार दक्कन पठार पर कावेरी नदी व कब्बानी नदी के बीच स्थित है। 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब बंगलोर के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मैसूर भारतीय गणतंत्र में सम्मिलित एक राज्य तथा नगर है। इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम मुंबई, पूर्व में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु और दक्षिण-पश्चिम में केरल राज्यों से घिरी हुई है। अपनी क्रेप सिल्क की साड़ियों, चंदन के तेल और चंदन की लकड़ी से बने सामान के लिए मशहूर यह स्थान वुडयार वंश के शासन काल में उनकी राजधानी हुआ करता था। वुडयार राजा कला और संस्कृति प्रेमी थे। अपने 150 वर्ष के शासन काल में उन्होंने इसे बहुत बढ़ावा दिया। उस दौरान मैसूर दक्षिण की सांस्कृतिक राजधानी बन गया। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। कर्नाटक संगीत व नृत्य का यह प्रमुख केंद्र है।

पौराणिक उल्लेख

मैसूर शहर के आस-पास की भूमि पर वर्षा के जल से भरे उथले जलाशय हैं। इस स्थान का उल्लेख महाकाव्य महाभारत में 'महिष्मति' के रूप में हुआ है। मौर्य काल, तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह 'पूरिगेरे' के नाम से विख्यात था। महिष्मंडल महिषक लोग महिष्मति, नर्मदा घाटी से प्रवास कर यहाँ पर बस गए थे। बाद में यह महिषासुर कहलाया था।

इतिहास

मैसूर शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्राचीनतम शासक कदम्ब वंश के थे, जिनका उल्लेख टॉल्मी ने किया है। कदम्बों को चेरों, पल्लवों और चालुक्यों से युद्ध करना पड़ा था। 12वीं शताब्दी में जाकर मैसूर का शासन कदम्बों के हाथों से होयसलों के हाथों में आया, जिन्होंने द्वारसमुद्र अथवा आधुनिक हलेबिड को अपनी राजधानी बनाया था। होयसल राजा रायचन्द्र से ही अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने मैसूर जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित किया था। इसके उपरान्त मैसूर विजयनगर राज्य में सम्मिलित कर लिया गया और उसके विघटन के उपरान्त 1610 ई. में वह पुन: स्थानीय हिन्दू राजा के अधिकार में आ गया था।

टीपू सुल्तान

इस राजवंश के चौथे उत्तराधिकारी चिक्क देवराज ने मैसूर की शक्ति और सत्ता में उल्लेखनीय वृद्धि की। किन्तु 18वीं शताब्दी के मध्य में उसका राजवंश हैदरअली द्वारा अपदस्थ कर दिया गया था और उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने 1799 ई. तक उस पर राज्य किया। टीपू की पराजय और मृत्यु के उपरान्त विजयी अंग्रेज़ों ने मैसूर को संरक्षित राज्य बनाकर वहाँ एक पाँच वर्षीय बालक कृष्णराज वाडियर को सिंहासन पर बैठाया था। कृष्णराज अत्यंत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ, 1821 ई. में ब्रिटिश सरकार ने शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया, परंतु 1867 ई. में कृष्ण के उत्तराधिकारी चाम राजेन्द्र को पुन: शासन सौंप दिया। उस समय से इस सुशासित राज्य का 1947 ई. में भारतीय संघ में विलय कर दिया गया।

मैसूर-युद्ध

1761 ई. में हैदर अली ने मैसूर में हिन्दू शासक के ऊपर नियंत्रण स्थापित कर लिया। निरक्षर होने के बाद भी हैदर की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता अद्वितीय थी। उसके फ़्राँसीसियों से अच्छे सम्बन्ध थे। हैदर अली की योग्यता, कूटनीतिक सूझबूझ एवं सैनिक कुशलता से मराठे, निज़ाम एवं अंग्रेज़ ईर्ष्या करते थे। हैदर अली ने अंग्रेज़ों से भी सहयोग माँगा था, परन्तु अंग्रेज़ इसके लिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि इससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी न हो पाती। भारत में अंग्रेज़ों और मैसूर के शासकों के बीच चार सैन्य मुठभेड़ हुई थीं। अंग्रेज़ों और हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के बीच समय-समय पर युद्ध हुए। 32 वर्षों (1767 से 1799 ई.) के मध्य में ये युद्ध छेड़े गए थे।

युद्ध

हैदर अली

भारत के इतिहास में चार मैसूर युद्ध लड़े गये हैं, जो इस प्रकार से हैं-

  1. प्रथम युद्ध (1767 - 1769 ई.)
  2. द्वितीय युद्ध (1780 - 1784 ई.)
  3. तृतीय युद्ध (1790 - 1792 ई.)
  4. चतुर्थ युद्ध (1799 ई.)

भौगोलिक संरचना

यह दक्षिणी भारत का एक राज्य था, जिसका पुनर्गठन सन्‌ 1956 में भाषा के आधार पर किया गया था। इसके परिणामस्वरूप कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को इसमें मिला दिया गया है। इसका क्षेत्रफल 74,210 वर्ग मील है। इसके उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण में केरल और मद्रास एवं पश्चिम में गोआ एवं अरब सागर हैं। मैसूर का धरातल ऊँचा नीचा एवं पठारी है। समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 2,000 फुट है। प्राकृतिक बनावट के आधार पर इस दो भागों में विभक्त किया जा सकता है:

  1. पश्चिम का तटीय मैदान
  2. दक्षिणी दक्कन प्रदेश।

तटीय मैदान मालाबार तट का उत्तरी भाग है, जिसकी चौड़ाई बहुत कम है। इसके पश्चिम में पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ हैं, जिनसे छोट छोटी द्रुतगामिनी नदियाँ निकलकर अरब सागर में विलीन हो जाती हैं। पूर्वी भाग उच्च महाड़ी एवं पठारी प्रदेश है। मैसूर के मध्य में, उत्तर से दक्षिण, पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ है। इसके पूर्व में प्राचीन चट्टानों से निर्मित दकन का भाग है। उत्तर-पूर्व में कृष्णा, तुंगभद्रा एवं भीमा नदियों का समतल उच्च मैदान है।[1]

जलवायु

यहाँ का ताप साधारणत: ऊँचा रहता है। औसत ताप 27° सेल्सियस है। तापांतर आंतरिक भाग में अधिक रहता है। वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिम में अधिक (375 सेंमी. से अधिक) एवं पूर्व के वृष्टिछाया प्रदेश में कम (50 सेंमी. से कम) होती है। अधिकांश: वर्षा दक्षिण-पूर्वी मानसून से होती है। यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति सदाबहार के जंगल हैं, जिनसे सागौन, चंदन, राजबुड आदि की लकड़ी प्राप्त होती है। वनाच्छादित क्षेत्र 12,000 वर्ग मील है, जो संपूर्ण क्षेत्र का 17 प्रतिशत है।[1]

कृषि

53.5 प्रतिशतक्षेत्र में खेती होती है तथा 71.2% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। मुख्य फसलें धान, ज्वार, गेहूँ, दलहन मूँगफली, कपास आदि हैं। वागाती खेती में कहवा, चाय तथा रबर का उत्पादन होता है। पशुपालन भी महत्त्वपूर्ण है। मैसूर में लगभग 10 लाख रुपये के मूल्य की मछलियाँ प्रति वर्ष पकड़ी जाती हैं। तुंगभद्रा एवं घाटप्रभा आदि 14 बहुउद्देश्यीय सिंचाई योजनाएँ आ रही हैं।[1]

खनिज पदार्थ

सोना हट्टी एवं कामत श्रेणियों में, बेंगलुरु एवं चिकमंगलूर में ऐस्वेस्टस तथा लोहा और मैंगनीज़, ताँबा, बॉक्साइट, गंधक आदि अन्य क्षेत्रों में मिलते हैं। कोयला एवं खनिज तेल का अभाव है, जिसकी पूर्ति जल विद्युत से की जाती है। यह अधिकांशत: शारावती, भद्रा एवं तुंगभद्रा जलविद्युत योजनाओं से प्राप्त होती है।[1]

सांस्कृतिक राजधानी

कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले मैसूर के नाम से कई ख़ास चीजें जुड़ी हुई हैं- मैसूर मल्लिगे (विशेष पुष्प), मैसूर के रेशमी वस्त्र, राजमहल, मैसूर पाक (मिष्टान्न), मैसूर पेटा (पगड़ी), मैसूर विल्यदले (पान) तथा और भी बहुत-सारी चीज़ें। ये सब कुछ मैसूर और इसके जीवन की पहचान हैं लेकिन ये पहचान तब तक अधूरी रहती हैं जब तक इस शहर में पिछले 400 वर्षों से लगातार मनाए जा रहे दशहरा उत्सव की बात न की जाए। यह मैसूर को राज्य के अन्य ज़िलों और शहरों से अलग करता है। पूर्व में इसे 'नवरात्रि' के नाम से ही जाना जाता था लेकिन वाडेयार राजवंश के लोकप्रिय शासक कृष्णराज वाडेयार के समय में इसे दशहरा कहने का चलन शुरू हुआ। भारत ही नहीं, कई बाहरी देशों में भी इस उत्सव की बढ़ती लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष राज्य सरकार ने इसे राज्योत्सव (नाद हब्बा) का दर्जा दिया है।

मैसूर का दशहरा

मैसूर दशहरे में जम्बू सवारी

पारंपरिक उत्साह और धूम-धाम के साथ मनाया जाने वाला यह आसुरी शक्तियों पर देवत्व के विजय का दस दिवसीय उत्सव हर वर्ष अक्टूबर महीने में मनाया जाता है। दशहरे की परंपरा का इतिहास मध्यकालीन दक्षिण भारत के अद्वितीय विजयनगर साम्राज्य के समय से शुरू होता है। हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा 12-13 वीं शताब्दी में स्थापित इस साम्राज्य में दशहरा उत्सव मनाया जाता था। इसकी राजधानी हम्पी के दौरे पर पहुंचे कई विदेशी पर्यटकों ने अपने संस्मरणों तथा यात्रा वृत्तान्तों में इस विषय में लिखा है। इनमें डोमिंगोज पेज, फर्नाओ नूनिज और रॉबर्ट सीवेल जैसे पर्यटक भी शामिल हैं। इन लेखकों ने हम्पी में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव के बारे में काफ़ी विस्तार से लिखा है। विजयनगर शासकों की यही परंपरा वर्ष 1399 में मैसूर पहुंची जब गुजरात के द्वारका से पुरगेरे (मैसूर का प्राचीन नाम) पहुंचे दो भाइयों यदुराय और कृष्णराय ने वाडेयार राजघराने की नींव डाली। यदुराय इस राजघराने के पहले शासक बने। उनके पुत्र चामराज वाडेयार प्रथम ने पुरगेरे का नाम 'मैसूर' रखा। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य की अधीनता भी स्वीकार की। वाडेयार राजाओं के दशहरा उत्सवों से आज के उत्सवों का चेहरा काफ़ी अलग हो चुका है। अब यह एक अन्तरराष्ट्रीय उत्सव बन गया है। इस उत्सव में शामिल होने के लिए देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से मैसूर पहुंचने वाले पर्यटक दशहरा गतिविधियों की विविधताओं को देख दंग रह जाते हैं। तेज रोशनी में नहाया मैसूर महल, फूलों और पत्तियों से सजे चढ़ावे, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद, गोम्बे हब्बा और विदेशी मेहमानों से लेकर जम्बो सवारी तक हर बात उन्हें ख़ास तौर पर आकर्षित करती है। हालांकि बदलते समय के साथ भारत के धार्मिक अनुष्ठानों से प्रमुख कारक के रूप में धर्म की बातें दूर होती जा रही हैं लेकिन सजग पर्यटक चाहे तो दशहरा उत्सव में धर्म का अंश घरेलू आयोजनों में आज भी देख सकता है।[2]

यातायात और परिवहन

मैसूर शहर दो उत्तरी रेलमार्गों के जंक्शन पर स्थित है और भारत की प्रमुख पश्चिमी सड़क प्रणाली पर एक महत्त्वपूर्ण विभाजक बिंदु है।

वायु मार्ग

मैसूर में मैसूर हवाई अड्डा है, जो शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से सभी प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें आती-जाती हैं।

रेल मार्ग

बैंगलोर से मैसूर के बीच अनेक रेलें चलती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस मैसूर को चेन्नई से जोड़ती है।

सड़क मार्ग

राज्य राजमार्ग मैसूर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ते हैं। कर्नाटक सड़क परिवहन निगम और पड़ोसी राज्यों के परिवहन निगम तथा निजी परिवहन कंपनियों की बसें मैसूर से विभिन्न राज्यों के बीच चलती हैं। यह शहर सड़क द्वारा बैंगलोर से 139 किलोमीटर, हम्पी से 400 किलोमीटर, दिल्ली से 2,230 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

उद्योग और व्यापार

मैसूर एक महत्त्वपूर्ण निर्माण एवं व्यापारिक केंद्र है। मैसूर में सूती एवं रेशमी वस्त्र, चावल, तेल की मिलें, चंदन का तेल और रसायनिक उर्वरक उद्योग हैं। शहर के उद्योगों को बिजली पूर्व में स्थित शिवसमुद्रम के निकट पनबिजली गृह से मिलती है। मैसूर के कुटीर उद्योगों में बुनाई, तंबाकू, कॉफ़ी प्रसंस्करण और बीड़ी निर्माण शामिल हैं। यह क्षेत्र हाथीदांत, धातु और लकड़ी की अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है।

मैसूर का महाराजा पैलेस

रेलवे स्टेशन के पास स्थित बाज़ार स्थानीय कृषि उत्पादों के लिए संग्रहण केंद्र का काम करता है। मैसूर में काली मिट्टी के विशाल भूभाग पर कपास उगाया जाता है। यहाँ से चावल, मोटा अनाज और तिलहन का निर्यात किया जाता है। मैसूर की सरकारी सिल्क फैक्टरी में मैसूर की सिल्क की साड़ियाँ बनती हैं। रेशमी वस्त्र, चमड़े, आभूषण, टोकरी, रस्सी, चंदन, हाथीदांत की वस्तुएँ आदि के कुटीर उद्योग तथा वस्त्र उद्योग श्रेंगलूरू मैसूर, बल्लारि आदि में, लोहे एवं इस्पात का उद्योग भद्रावती में, सीमेंट शाहाबाद एवं भद्रावती में, दियासलाई शिवमोगा में, ऊनी एवं रंशमी वस्त्र बेंगळूरू एवं मैंसूर में, काग़ज़ भद्रावती में तथा टेलीफोन, हवाई जहाज आदि के उद्योग बेंगळूरू में हैं।

शिक्षण संस्थान

मैसूर विश्वविद्यालय

मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। मैसूर में 1916 में स्थापित मैसूर विश्वविद्यालय और कई संबद्ध महाविद्यालय हैं, जिनमें महाराजा कॉलेज, महिलाओं के लिए महारानी कॉलेज, युवराज साइंस कॉलेज, शारदाविलास टेरेजियन व अन्य कॉलेज शामिल हैं। यहाँ कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय का केंद्र है। अन्य शैक्षणिक संस्थानों में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग, एस. जे. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, विद्यावर्द्धक कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, मैसूर मेडिकल कॉलेज, जे. एस. एस. मेडिकल कॉलेज, जे. एस. एस. डेंटल ऐंड फ़ार्मेसी कॉलेज, फ़ारूक़िया डेंटल एंड फ़ार्मेसी कॉलेज, एस. डी. एम. इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, विद्या विकास कॉलेज ऑफ़ होटल मैनेजमेंट, जे. एस. एस. लॉ कॉलेज, शारदा लॉ कॉलेज, वी. वी. लॉ कॉलेज और महाजन लॉ कॉलेज शामिल हैं। कन्नड़ संस्कृति की प्रोन्नति के लिए भी कई संस्थान हैं।

संग्रहालयों का शहर

महलों के शहर के नाम से मशहूर मैसूर में बीसियों संग्रहालय इस शहर की धरोहरों को संजोने का काम कर रहे हैं। इन संग्रहालयों में विशेष हैं-

  1. जयचामराजेन्द्र संग्रहालय तथा कला दीर्घा
  2. प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय
  3. लोककथा संग्रहालय
  4. ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट (ओआरआई)
  5. रेल संग्रहालय
  6. मैसूर महल
  7. वाडेयार राजघराने के वर्तमान उत्तराधिकारी श्रीकांतदत्त नरसिंहराज वाडेयार का निजी संग्रहालय।

विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी संग्रहालयों में काफ़ी प्रभावशाली ढंग से इतिहास को संजोकर रखने का प्रयास किया किया गया है लेकिन इस समय ज़रूरत इस बात की है कि इन संग्रहालयों में रखी समृद्ध धरोहरों कों भी मैसूर आने वाले पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाए।[3]

पर्यटन

चामुंडी पर्वत पर नन्दी की मूर्ति

मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। यह एक पर्यटन स्थल भी है। मैसूर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। मैसूर में क़िले, पहाड़ियाँ एवं झीलें भी हैं। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। मैसूर महलों, बग़ीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती क़ायम है। कर्नाटक संगीतनृत्य का यह प्रमुख केंद्र है। पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में होयसल वंश द्वारा र्निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है।

पुराना क़िला

18वीं शताब्दी में यूरोपीय शैली में पुन:निर्मित एक पुराना क़िला, मैसूर के मध्य में स्थित है। क़िले के दायरे में महाराजा महल (1897 ई.) है, जिसमें हाथीदांत व सोने से निर्मित सिंहासन है।

पार्क एवं इमारतें

मैसूर में कर्ज़न पार्क, सिल्वर जुबली क्लॉक टावर (1927 ई.), गाँधी चौक और महाराजा की दो मूर्तियाँ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। पश्चिम में गोर्डोन पार्क के निकट भूतपूर्व ब्रिटिश रेज़िडेंसी (1805), प्रख्यात ओरिएंटल लाइब्रेरी, विश्वविद्यालय भवन, सार्वजनिक कार्यालय, जगमोहन महल और ललिता महल आदि अन्य प्रसिद्ध इमारतें हैं।

चामुंडी पहाड़ी, मैसूर

पहाड़ियाँ एवं झील

तीर्थयात्री बड़ी संख्या में चामुंडी पहाड़ी पर लगभग 1,064 मीटर दूर जाते हैं, जहाँ शिव के पवित्र बैल, नन्दी की अखंडित मूर्ति है। इस शिखर से दक्षिण की ओर स्थित नीलगिरि पहाड़ियों का सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है। कावेरी नदी पर मैसूर के पश्चिमोत्तर में 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विशाल कृष्णराव झील है, जिसमें बाँध भी बना है। इस बाँध के नीचे फ़व्वारे व झरनेयुक्त सीढ़ीदार वृन्दावन उद्यान हैं, जिन पर रात में रोशनी की जाती है।

अभयारण्य

पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में होयसल वंश द्वारा निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है। वेणुगोपाल वन्य जीव उद्यान के एक भाग बांदीपुर अभयारण्य तक मैसूर से पहुँचा जा सकता है। यह गौर, भारतीय बाइसन और चीतल के झुंडों के लिए विख्यात है। यहाँ घूमने के लिए सड़कों का संजाल है। इससे लगकर ही तमिलनाडु राज्य का मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। यह कावेरी व उसकी नदियों का अपवाह क्षेत्र है।


ख़रीददारी

सोमनाथपुर मंदिर, मैसूर

सिल्क की साड़ियों को लेने के लिय आप केआर सर्कल पर बने फैक्टरी शोरूम और थोक बाज़ार जा सकते हैं। मैसूर की असली चंदन की लकड़ी के सामान लिए सय्याजी राव रोड पर बने कावेरी आर्ट एंपोरियम जा सकते हैं। यह एंपोरियम सरकार द्वारा संचालित है। सय्याजी राव रोड पर बनी देवराज बाज़ार में ख़ूबसूरत शहरी चित्रकारी करी तसवीर मिलती हैं। इस बाज़ार में बहुत साफ-सफाई है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार मैसूर शहर की जनसंख्या 7,42,261 है। मैसूर ज़िले की कुल जनसंख्या 26,24,911 है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 मैसूर (हिंदी) इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2013।
  2. चार शताब्दी पुरानी है मैसूर दशहरे की भव्य परंपरा (हिंदी) दक्षिण भारत राष्ट्रमत। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2013।
  3. संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) दक्षिण भारत राष्ट्रमत। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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